वन भूमि का गैर-वानिकी में परिवर्तन | 05 Aug 2020

प्रीलिम्स के लिये:

सघन वन, वन सलाहकार समिति 

मेन्स के लिये:

वन भूमि का गैर-वानिकी में परिवर्तन

चर्चा में क्यों?

‘वन एवं पर्यावरण के लिये कानूनी पहल’ (Legal Initiative for Forest and Environment- LIFE) नामक एक पर्यावरणीय कानूनी फर्म द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, विगत तीन वर्षों में वन भूमि का विभिन्न परियोजनाओं के लिये परिवर्तन (Diversion) की सिफारिशों में लगातार गिरावट देखी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2017 में कुल 27,801.07 हेक्टेयर वन भूमि का गैर-वानिकी उपयोग में परिवर्तन की अनुमति दी गई थी, जो वर्ष 2018 में घटकर 21,781.30 हेक्टेयर और वर्ष 2019 में 13,656.60 हेक्टेयर रह गया है।
  • ऐसे प्रस्तावों की अस्वीकृति की वास्तविक दर मात्र 2.36% है। वन भूमि परिवर्तन के 423 प्रस्तावों में से केवल 10 प्रस्तावों को खारिज किया गया है, जबकि 66 प्रस्तावों में उपयोगकर्ता एजेंसी को अधिक विवरण प्रस्तुत करने को कहा गया था।

राज्य स्तरीय विश्लेषण:

  • 24 राज्य जिन्होंने वर्ष 2019 में गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि के परिवर्तन की अनुशंसा की थी, उनमें से 10 राज्यों की भागीदारी 82.49% है।
  • गैर-वानिकी उपयोग के सबसे ज्यादा प्रस्ताव ओडिशा (1697.75 हेक्टेयर), झारखंड (1647.41 हेक्टेयर) और मध्य प्रदेश (1626.8 हेक्टेयर) से आए हैं।
  • वर्ष 2019 में मेघालय में सबसे कम (छह हेक्टेयर) वन भूमि का गैर-वानिकी में परिर्वतन देखने को मिला है। 

वन भूमि परिवर्तन की प्रक्रिया:

  • वन भूमि को विभिन्न बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के अधीन परिवर्तन के लिये राज्य सरकारों द्वारा 'वन सलाहकार समिति' (Forest Advisory Committee) या 'क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समितियों' (Regional Empowered Committees) के माध्यम से अनुशंसा की जाती है। 
  • 'वन सलाहकार समिति' या क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समितियों' से मंज़ूरी मिलने के बाद इसे केंद्रीय 'पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF) द्वारा अंतिम मंज़ूरी दी जाती है।

कमी के कारण:

  • पारिस्थितिक चिंताओं के कारण गैर-वानिकी उपयोग हेतु वन भूमि में परिवर्तन की सिफारिशों की संख्या में कमी देखी गई है। वन भूमि के गैर-वानिकी भूमि में परिवर्तन की सिफारिश से पूर्व कई मानदंडों जैसे वन का घनत्व, वैकल्पिक साइट की उपलब्धता, शमन उपाय आदि को देखा जाता है।

चिंता के विषय:

  • सामान्यत: अत्यधिक सघन वनों में मानव अधिवास न के बराबर होते हैं। इससे मानव पुनर्वास तथा भूमि अधिग्रहण की लागत न के बराबर होती है। लगभग 58% वन भूमि जिसे गैर वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित किया गया है ‘सघन वन श्रेणी’ के अंतर्गत है। 

घनत्व के आधार पर वनों को सामान्यत: तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है 

अत्यधिक सघन वन (Very Dense Forest):

  •  इसमें ऐसे वन आते हैं जहाँ वृक्षों के वितान का घनत्व 70% से अधिक है।  

मध्यम सघन वन (Moderately Dense Forest):

  • वनों में वृक्ष वितान का घनत्व 40 से 70% होता है।  

खुले वन (Open Forest): 

  • वनों में वृक्ष वितान का घनत्व 10 से 40% होता है।
  • गैर-वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित वन भूमि का लगभग 45% वन्य जीव संरक्षण प्रोजेक्टों के अंतर्गत आता है। 
  • गैर-वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित कुल वन भूमि का 51.73% रैखिक परियोजनाओं (Linear Projects) जैसे सड़क, रेलवे, पारगमन लाइनों, पाइपलाइन आदि के अधीन थी। इसके बाद खनन एवं उत्खनन और सिंचाई का स्थान है। 
  • रैखिक परियोजनाओं के अधिक वन भूमि के परिवर्तन से क्षेत्रों में वनों की सघनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा वनों का विखंडन (Fragmentation) बढ़ता है। इससे वनों में अतिक्रमण बढ़ता है तथा ‘मानव-वन्यजीव संघर्ष’ में वृद्धि होती है।

वन भूमि का परिवर्तन 

शीर्ष राज्य 

सड़कों का निर्माण

गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश 

पारेषण लाइनें

झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश

रेलवे लाइन निर्माण

झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश

निष्कर्ष:

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों कम करने तथा इसको दूर करने के लिये वन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत करते हैं। अतः आवश्यक है कि वनों की कटाई और वृक्षारोपण जैसे मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया जाए तथा इस विषय को नीति निर्माण के केंद्र में रखा जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस