एटालिन जलविद्युत परियोजना और पर्यावरणीय मुद्दे

प्रीलिम्स के लिये:

वन सलाहकार समिति, प्रतिपूरक वनीकरण

मेन्स के लिये:

जलविद्युत परियोजना से उत्पन्न चुनौतियों से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी में प्रस्तावित 3097 मेगावाट की एटालिन जलविद्युत परियोजना की वजह से लगभग 270,000 पेड़ों की कटाई होने से जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर विभिन्न पक्षों में अंतर्विरोध की स्थिति उत्पन्न हुई है।  

प्रमुख बिंदु:

  • एटालिन जलविद्युत परियोजना दिबांग नदी पर प्रस्तावित है। इसके पूर्ण होने की समयावधि 7 वर्ष निर्धारित की गई है।
  • इस क्षेत्र में पक्षियों की 680 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो भारत में पाई जाने वाली कुल पक्षियों की प्रजातियों (Avian Species) का लगभग 56% है।
  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980 (Forest Conservation Act, 1980) के प्रावधानों के तहत जब भी खनन या अवसंरचना विकास जैसे गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि का उपयोग किया जाता है तो बदले में उस भूमि के बराबर गैर-वन भूमि अथवा निम्नीकृत भूमि के दोगुने के बराबर भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण (Compensatory Afforestation) करना होता है।
  • पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee-FAC) से प्रस्तावित परियोजना को मंज़ूरी मिलनी बाकी है।
  • FAC के अनुसार, 1074.329 हेक्टेयर भूमि पर 19.6 करोड़ रुपए की लागत से प्रतिपूरक वनीकरण किया जाएगा।

वन सलाहकार समिति

(Forest Advisory Committee-FAC):

  • वन सलाहकार समिति औद्योगिक गतिविधियों के लिये वनों में पेड़ों की कटाई की अनुमति पर निर्णय लेती है।
  • FAC केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MOEF&CC) के अंतर्गत कार्यरत है, जिसमें केंद्र के वानिकी विभाग के स्वतंत्र विशेषज्ञ और अधिकारी शामिल होते हैं।

प्रतिपूरक वनीकरण

(Compensatory Afforestation):

  • प्रतिपूरक वनीकरण का आशय आधुनिकीकरण तथा विकास के लिये काटे गए वनों के स्थान पर नए वनों को लगाने से है। अर्थात् उद्योगों द्वारा वनों के नुकसान की प्रति पूर्ति हेतु वैकल्पिक भूमि का अधिग्रहण किया जाता है।

पर्यावरणविद् एवं स्थानीय निवासियों का मत:

  • स्थानीय निवासियों के अनुसार, दिबांग क्षेत्र में दो बांध प्रस्तावित ‘दिबांग बहुउद्देशीय परियोजना’ और ‘एटलिन जल विद्युत परियोजना’ दोनों एक साथ एक बहुत बड़े क्षेत्र को जलमग्न कर देगीं।
  • पर्यावरणविदों एवं स्थानीय निवासियों का मत है कि परियोजना की वज़ह से विकृत पारिस्थितिकी को कृत्रिम वृक्षारोपण की सहायता से यथास्थिति में नहीं लाया जा सकता है।
  • इडू मिश्मी समुदाय (Idu Mishmi Community) के लोग चारागाह भूमि, वनों और वन्यजीवों को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं।
  • दिबांग घाटी के अन्य हिस्सों के लोगों से न तो परामर्श लिया गया और न ही सार्वजनिक सुनवाई में पारिस्थितिकी नुकसान के बारे में बोलने की अनुमति दी गई।

आगे की राह:

  • व्यक्तियों/सरकारों को ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ प्रकृति के ह्रास के मानवीय कारणों को नियंत्रित करना चाहिये, जिससे मानव और प्रकृति के बीच का संतुलन बना रहे। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों कम करने तथा इसको दूर करने के लिये वन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत करते हैं। अतः आवश्यक है कि वनों की कटाई और वृक्षारोपण जैसे मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया जाए तथा इस विषय को नीति निर्माण के केंद्र में रखा जाए।


स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स