शिक्षा में डिजिटल अंतराल | 03 Aug 2022

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल अंतराल, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, शिक्षा का अधिकार, अनुच्छेद 21 ए।

मेन्स के लिये:

शिक्षा में डिजिटल अंतराल, इसका प्रभाव और आगे का रास्ता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शिक्षा मंत्री ने लोकसभा को सूचित किया कि भारत के कम- से- कम 10 राज्यों में 10% से कम स्कूल सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) उपकरण या डिजिटल उपकरण से लैस हैं।

Digital-Gap

आईसीटी उपकरण:

  • शिक्षण और सीखने के लिये आईसीटी उपकरण में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, जैसे- प्रिंटर, कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट आदि से लेकर गूगल मीट, गूगल स्प्रेडशीट आदि जैसे सॉफ्टवेयर उपकरण तक शामिल हैं।
  • यह उन सभी संचार तकनीकों को संदर्भित करता है जो डिजिटल रूप से सूचना तक पहुँचने, पुनः प्राप्त करने, संग्रहीत करने, संचारित करने और संशोधित करने के उपकरण हैं।
  • आईसीटी का उपयोग केबलिंग की एक एकीकृत प्रणाली (सिग्नल वितरण और प्रबंधन सहित) या लिंक सिस्टम के माध्यम से मीडिया प्रौद्योगिकी जैसे ऑडियो-विज़ुअल और कंप्यूटर नेटवर्क के साथ टेलीफोन नेटवर्क के अभिसरण को संदर्भित करने के लिये भी किया जाता है।
  • हालाँकि यह देखते हुए कि आईसीटी में शामिल अवधारणाएँ, तरीके और उपकरण लगभग दैनिक आधार पर लगातार विकसित हो रहे हैं,आईसीटी की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है।

डिजिटल अंतराल:

  • परिचय:
    • यह जनसांख्यिकी और आधुनिक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तक पहुँच वाले क्षेत्रों और उन तक पहुँच नहीं होने के बीच का अंतर है।
    • यह विकसित और विकासशील देशों, शहरी तथा ग्रामीण आबादी, युवा एवं शिक्षित बनाम वृद्ध और कम शिक्षित व्यक्तियों, पुरुषों और महिलाओं के बीच मौज़ूद है।
    • भारत में शहरी-ग्रामीण विभाजन डिजिटल अंतराल का सबसे बड़ा कारक है।
  • स्थिति:
    • अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा 2021 में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में लगभग 60% स्कूली बच्चे ऑनलाइन सीखने के अवसरों का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
    • ऑक्सफैम इंडिया के एक अध्ययन में पाया गया कि शहरी निजी स्कूलों के छात्रों के माता-पिता ने इंटरनेट सिग्नल और स्पीड के साथ समस्याओं की सूचना दी।
  • प्रभाव:
    • ड्रॉपआउट और बाल श्रम के कारण:
      • ‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों’ [EWS]/वंचित समूहों [DG] से संबंधित बच्चों को अपनी शिक्षा पूरी नहीं करने का परिणाम भुगतना पड़ रहा है, साथ ही इस दौरान इंटरनेट और कंप्यूटर तक पहुँच की कमी के कारण कुछ बच्चों को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी है
      • वे बच्चे बाल श्रम अथवा बाल तस्करी के प्रति भी सुभेद्य हो गए हैं।
    • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव:
      • यह लोगों को उच्च/गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण से वंचित करेगा जो उन्हें अर्थव्यवस्था में योगदान करने और वैश्विक स्तर पर मार्गदर्शक नेता में मदद कर सकता है।
    • अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा:
      • शिक्षा के संबंध में ऑनलाइन प्रस्तुत की गई महत्त्वपूर्ण जानकारी से वंचित बने रहेंगे और इस प्रकार वे हमेशा पिछड़े ही रहेंगे, जिसे खराब प्रदर्शन के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है।
      • इस प्रकार इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम छात्र और कम विशेषाधिकार प्राप्त छात्रों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
    • सीखने की असमानता:
      • निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लोग वंचित हैं और पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उन्हें लंबे समय तक बोझिल अध्ययन से गुजरना पड़ता है।
      • जबकि अमीर आसानी से स्कूली शिक्षा सामग्री को ऑनलाइन एक्सेस कर सकते हैं और अपने कार्यक्रमों पर तुरंत काम कर सकते हैं।

 शिक्षा के अधिकार हेतु संवैधानिक प्रावधान

  • मूल भारतीय संविधान के भाग- IV (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत -DPSP) के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 39 (f) में राज्य द्वारा वित्तपोषित समान और सुलभ शिक्षा का प्रावधान किया गया।
  • वर्ष 2002 में 86वें संवैधानिक संशोधन से शिक्षा के अधिकार को संविधान के भाग- III में एक मौलिक अधिकार के तहत शामिल किया गया।

संबंधित पहल

आगे की राह:

  • आर्थिक रूप से वहनीय, उपयोग में आसान प्रौद्योगिकियों को सुनिश्चित करके सरकार डिजिटल अंतराल को प्रभावी रूप से कम कर सकती हैं। इंटरनेट कनेक्टिविटी की उच्च लागत, तकनीकी उपकरणों की कीमत, विद्युत् शुल्क व कर शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिये डिजिटल अंतराल को बढ़ाने में प्रमुख कारक की भूमिका निभाते हैं।
  • इंटरनेट और आधुनिक तकनीकों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये शिक्षकों और छात्रों को समग्र रूप से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। जितने कम छात्र इन उपकरणों का उपयोग करेंगे डिजिटल अंतराल उतना ही बढ़ता जाएगा।
  • शैक्षिक ऑनलाइन सामग्री निर्माताओं को अधिक-से-अधिक भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखना चाहिये। जब उपयोगकर्ताओं को विश्वास होता है कि वे अपनी मूल या स्थानीय भाषाओं में सामग्री देख सकते हैं, तो वे समान डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने के लिये प्रेरित होते हैं ।
  • लैंगिक आधार पर डिजिटल अंतराल को कम करने की विशेष ज़रूरत है। इंटरनेट तक पहुँच में विद्यमान बाधाएँ महिलाओं और बालिकाओं द्वारा  समुदायों और देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में पूर्ण भागीदारी प्रदान करने में बाधा डालती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस