निर्जलीकरण-सहिष्णु पादपों की प्रजातियाँ | 20 Jul 2023

प्रिलिम्स के लिये:

पश्चिमी घाट की प्रजातियाँ, जलयोजन, उष्णकटिबंधीय रॉक आउटक्रॉप्स

मेन्स के लिये:

शुष्कन-सहिष्णु संवहनी पादपों की प्रजातियों का जलवायु सहिष्णु कृषि को बढ़ावा देने और बड़े पैमाने पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में उपयोग

चर्चा में क्यों? 

हालिया नए अध्ययन में कृषि और संरक्षण में संभावित अनुप्रयोगों के साथ भारत के पश्चिमी घाट में 62 शुष्कन-सहिष्णु संवहनी (Desiccation-tolerant vascular: DT) की प्रजातियों की खोज की गई है। पादपों की ये प्रजातियाँ कठोर जलवायवीय वातावरण का सामना करने में सक्षम हैं।

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (ARI) पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में पश्चिमी घाट में 62 शुष्कन-सहिष्णु प्रजातियों की पहचान की गई है, यह संख्या पहले की ज्ञात नौ प्रजातियों की तुलना में कहीं अधिक है।

निर्जलीकरण/शुष्कन-सहिष्णु पौधे:

  • शुष्कन-सहिष्णु संवहनी पौधे अपने वानस्पतिक ऊतकों की शुष्कता को सहन करने में सक्षम पौधे हैं। ये सामान्यतः उष्णकटिबंधीय रॉक आउटक्रॉप्स में पाए जाते हैं।
  • ये पौधे उच्च निर्जलीकरण (जल सामग्री 95% तक नष्ट होने पर भी) की स्थिति में जीवित रह सकते हैं।
  • पादपों में निर्जलीकरण तब होता है जब एक पौधे द्वारा ग्रहण अथवा अवशोषित जल की मात्रा किसी भी रूप में निष्काषित जल की तुलना में कम होती है।

  • आबादी: 
    • अध्ययन के अनुसार, इन प्रजातियों की वैश्विक संख्या 300 से 1,500 के बीच है।
      • खोजी गई 62 प्रजातियों में से 16 प्रजातियाँ मूल रूप से भारत में पाई जाती हैं और 12 प्रजातियाँ पश्चिमी घाट के बाहरी क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
  • पाए जाने वाले क्षेत्र
    • ये पौधे उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं।
    • इन्हें पुनर्जीवित करने में जलापूर्ति का काफी योगदान होता है और ये अक्सर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में चट्टानी इलाकों में पाए जाते हैं। 
    • वैश्विक तापन को देखते हुए यह महत्त्वपूर्ण है कि कुछ प्रजातियाँ उच्च तापमान पर भी पनप सकें।
    • कठोर वातावरण में पादपों के लिये जलयोजन और शुष्कन प्रतिरोध दो व्यापक रूप से अध्ययन किये गए तंत्र हैं।
    • पादपों के ऊतक हाइड्रेटेड रहने पर 30% से अधिक पानी की मात्रा बनाए रख सकते हैं।
    • भारतीय शुष्कन सहिष्णु पौधे मुख्य रूप से वन, चट्टानों तथा आंशिक रूप से छायादार पेड़ के तनों के समीप पाए जाते हैं। फेरिक्रेट्स (तलछटी चट्टान की एक कठोर, कटाव-प्रतिरोधी परत) और बेसाल्टिक पठार (ज्वालामुखीय गतिविधि द्वारा निर्मित पठार) पसंदीदा स्थान प्रतीत होते हैं। 
      • ग्लाइफोक्लोआ गोएन्सिस, ग्लाइफोक्लोआ रत्नागिरिका और ग्लाइफोक्लोआ सैंटापौई केवल फेरिक्रेट्स (तलछटी चट्टान की एक कठोर, कटाव-प्रतिरोधी परत) पर पाए गए थे, जबकि बाकी प्रजातियाँ फेरिक्रेट्स और बेसाल्टिक (ज्वालामुखीय गतिविधि द्वारा निर्मित पठार) दोनों पठारों में पाई जाती हैं।
      • इसकी प्रमुख प्रजाति ग्लाइफोक्लोआ थी जिसकी अधिकांश वार्षिक प्रजातियाँ पठारों पर पाई जाती थीं।
  • विशेषता: 
    •  शुष्कन-सहिष्णु (DT) प्रजाति में रंग भिन्नता और रूपात्मक विशेषताएँ दिखाई देती हैं।
      • ट्रिपोगोन प्रजातियाँ (Tripogon Species) शुष्क परिस्थितियों में भूरे और हाइड्रेटेड स्थितियों में हरे रंग में बदल जाती हैं।
      • ओरोपेटियम थोमेयम (Oropetium thomaeum) में हाइड्रेटेड चरण में पत्तियाँ हरे से गहरे बैंगनी या नारंगी रंग में बदल जाती हैं तथा शुष्क चरण में भूरे से लेकर काली तक हो जाती है।
      • फर्न (फ्रोंड्स ) ने अनेक प्रकार की विशेषताएँ प्रदर्शित की हैं जिनमें कोस्टा की ओर अंदर की ओर मुड़ना, शुष्क मौसम की शुरुआत में और संक्षिप्त शुष्क अवधि के दौरान बीजाणुओं को उजागर करना शामिल है।
    • हालाँकि ये सभी प्रजातियों के मामले में सच नहीं है। सी लैनुगिनोसस (C Lanuginosus) के मामले में पत्तियाँ क्लोरोफिलस (Chlorophyllous) भाग को ढकने के लिये अंदर की ओर मुड़ जाती हैं या सिकुड़ जाती हैं जिससे शुष्कन चरण के दौरान सूर्य के सीधे प्रकाश के संपर्क से बचा जा सकता है।
  • महत्त्व: 
    • जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा देने हेतु उच्च तापमान सहिष्णु फसलों की किस्म विकसित करने के लिये शुष्कन-प्रतिरोधी संवहनी पादपों के जीन का उपयोग किया जा सकता है।
      • शुष्कन-सहिष्णु (DT) संवहनी पादपों की खोज का कृषि उपयोग है विशेष रूप से उन स्थानों पर जहाँ सिचाई के लिये जल की कमी है।
    • जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा देने तथा व्यापक स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु उच्च तापमान सहनशील फसलों की किस्म विकसित करने के लिये इन पादपों के जीन का उपयोग किया जा सकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ