सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों हेतु परामर्श प्रक्रिया | 21 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) से कहा है कि शाखा स्तर पर अधिकारियों के साथ एक महीने की परामर्श प्रक्रिया शुरू करें ताकि बैंकिंग क्षेत्र को सुव्यवस्थित करने के लिये सुझाव प्राप्त किये जा सकें और वर्ष 2024-25 तक देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिल सके।

प्रमुख बिंदु

  • परामर्श प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया गया है, पहली शाखा या क्षेत्रीय स्तर पर, इसके बाद राज्य स्तर पर तथा तीसरी केंद्रीय स्तर पर। इसका समापन दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर दो दिवसीय मंथन के साथ होगा।
  • 17 अगस्त, 2019 से शुरू होने वाले एक महीने के इस अभियान से प्राप्त सुझावों का उपयोग बैंकिंग क्षेत्र के भविष्य के विकास के लिये एक रोडमैप तैयार करने के लिये इनपुट के रूप में किया जाएगा।

प्रक्रिया का एजेंडा

  • क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दों के साथ बैंकिंग की प्रदर्शन समीक्षा और सिंक्रनाइज़ेशन (Syncranisation)।
  • शाखाओं का मूल्यांकन स्वच्छ ऋण (पानी और स्वच्छता क्षेत्र में उधार), वित्तीय समावेशन (Financial inclusion) और महिला सशक्तीकरण, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benifit Transfer), डिजिटल अर्थव्यवस्था, ATM उपयोग और प्रदर्शन तथा कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (Corporate Social Responsbility), आदि विषयों पर करना।
  • बैंकों के सामने मौजूद चुनौतियों गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA), कम लाभ आदि का समाधान खोजना।
  • किसानों की आय दोगुना करने, जल संरक्षण को बढ़ावा देने, आर्थिक विकास हेतु बुनियादी ढाँचे के विकास आदि के लिये ऋण को उपलब्ध कराने में बैंकों की भूमिका बढ़ाना।
  • हरित अर्थव्यवस्था (Green Economy) का समर्थन, शिक्षा ऋण और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) तथा निर्यात जैसे अन्य क्षेत्रों में सुधार।

पृष्ठभूमि

  • देश की अर्थव्यवस्था 5 साल के सबसे निचले स्तर यानी 6.8% पर आ गई है।
  • ऑटोमोबाइल सेक्टर (Automobile Sector) दो दशकों में अपने सबसे खराब संकट का सामना कर रहा है और रिपोर्ट में ऑटोमोबाइल और अन्य सहायक उद्योगों में हज़ारों की संख्या में नौकरियों के छिन जाने का संकट बताया गया है।
  • रियल एस्टेट (Real Estate) क्षेत्र में, ऐसे मकानों की संख्या में वृद्धि हुई है जिन्हें बेचा नहीं जा सका है, जबकि तेज़ी से आगे बढ़ने वाली उपभोक्ता सामान (FMCG) कंपनियों ने पहली तिमाही (अप्रैल - जून, 2019) में गिरावट दर्ज की है।
  • बैंक, पॉलिसी दरों में ढील नहीं दिये जाने जैसे आरोपों का सामना कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फरवरी और जून, 2019 के बीच रेपो दर (Rapo Rate) में 75 आधार अंकों की कटौती की थी, लेकिन बैंकों ने केवल 29 आधार अंकों के कमी की तथा ऋणों की ब्याज दरों में ज़्यादा कमी देखने को नहीं मिली।
  • हालाँकि, बैंकों द्वारा उद्योगों को दिया गया ऋण जून 2018 की तिमाही में 0.9% था जबकि 2019 की इसी अवधि में 6.6% तक की वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं इसी अवधि के दौरान MSME क्षेत्र में रोजगार सृजन 0.7% से 0.6% तक घट गया है ।
  • हालाँकि बैंकों के NPA में सुधार हुआ है। वाणिज्यिक बैंकों का कुल बेड लोन (Bad Loan) 2018-19 में 9.34 लाख करोड़ रुपए से घटकर 1.02 लाख करोड़ रुपए रह गया है।

स्रोत: द हिंदू