अरावली सफारी उद्यान को लेकर चिंताएँ | 23 Jan 2023

प्रिलिम्स के लिये:

अरावली पर्वत शृंखला, फोल्ड माउंटेन, जलभृत (Aquifers), भूजल, बिग कैट्स, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972

मेन्स के लिये:

अरावली सफारी उद्यान को लेकर चिंताएँ

चर्चा में क्यों

हाल ही में हरियाणा में प्रस्तावित 10,000 एकड़ की अरावली सफारी उद्यान (Aravali Safari Park) परियोजना को लेकर कुछ पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने चिंता जताई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह परियोजना इस प्रकार की विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी। वर्तमान में शारजाह का 2,000 एकड़ का सफारी उद्यान, जिसकी शुरुआत फरवरी 2022 में हुई, अफ्रीका के बाहर इस तरह का सबसे बड़ा उद्यान है।
  • इसका उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिये पर्यटन और रोज़गार के अवसरों का सृजन करना है।

Park-Way-Have

चिंताएँ: 

  • अपने प्राकृतिक वातावरण में स्वदेशी अरावली वन्यजीवन के अनुभव के लिये अरावली सफारी परियोजना को वास्तविक जंगल सफारी के बजाय चिड़ियाघर/ज़ू सफारी के रूप में विकसित और डिज़ाइन किया जा रहा है।
  • प्रस्ताव में वर्णित परियोजना के उद्देश्यों में अरावली के संरक्षण का उल्लेख तक नहीं है।
  • इस क्षेत्र में वाहन यातायात और निर्माण, प्रस्तावित सफारी उद्यान अरावली पहाड़ियों के नीचे जलभृतों को प्रभावित कर सकता है जो कि जल की समस्या से जूझ रहे ज़िलों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।
    • ये जलभृत आपस में जुड़े हुए हैं और पैटर्न में कोई गड़बड़ी या परिवर्तन भू-जल तालिका को काफी प्राभावित कर सकता है।
  • यह देखते हुए कि उद्यान एक "जल-दुर्लभ क्षेत्र" में है, विरोध प्रदर्शन करने वाले समूह ने इसके लिये प्रस्तावित "अंडरवाटर ज़ोन" को लेकर विशेष रूप से विरोध व्यक्त किया है।
    • नूह ज़िले में कई जगहों पर भूजल स्तर पहले से ही 1,000 फीट से नीचे है; नलकूप, बोरवेल और तालाब सूख रहे हैं; गुरुग्राम ज़िले के कई इलाके 'रेड ज़ोन' में हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कई आदेशों के अनुसार, यह स्थान 'जंगल' की श्रेणी में आता है और वन संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित है। इस क्षेत्र में पेड़ों की कटाई, निर्माण कार्य और रियल एस्टेट विकसित करना प्रतिबंधित है।
  • विरोध प्रदर्शन करने वाले समूह ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मई 2022 में हरियाणा पर्यटन विभाग द्वारा प्रस्तावित निर्माण कार्य भी अवैध ही होगा और यह पहले से क्षतिग्रस्त अरावली पारिस्थितिकी तंत्र को और नुकसान पहुँचाएगा।

भारत में वन्यजीव और वनों का संरक्षण:

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: 
    • यह इससे संबंधित प्रावधानों के उल्लंघन के लिये कड़ी सज़ा का प्रावधान करता है। यह अधिनियम वन्यजीव संबंधी अपराध करने के लिये उपयोग में लाए जाने वाले किसी भी उपकरण, वाहन या हथियार को ज़ब्त करने का भी प्रावधान करता है।
    • संकटग्रस्त प्रजातियों और उनके आवास सहित वन्यजीवों की बेहतर सुरक्षा के लिये देश में संरक्षित क्षेत्र, जैसे राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व स्थापित किये गए हैं।
  • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB):
    • WCCB जंगली जानवरों और जानवरों से बने उप-उत्पादों के अवैध व्यापार के संबंध में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिये राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करता है।
    • WCCB ने निवारक कार्रवाई करने के लिये वन्यजीवों के अवैध शिकार और अवैध तस्करी के मामले में संबंधित राज्य तथा केंद्रीय एजेंसियों को अलर्ट एवं चेतावनी जारी की है।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT):
    • यह एक विशेष न्यायिक निकाय है जो देश में केवल पर्यावरणीय मामलों का निर्णय लेने के उद्देश्य से विशेषज्ञता युक्त है। 
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927:
    • यह वनों, वन उत्पादों के पारगमन तथा लकड़ी एवं अन्य वन उपज पर लगाए जा सकने वाले शुल्क से संबंधित कानून को समेकित करने का प्रयास करता है। 
  • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006:
    • इस अधिनियम में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण तथा बाघ एवं अन्य संकटापन्न प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो बनाने का प्रावधान है। 
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980:
    • यह वनों को उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है और गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि के परिवर्तन को विनियमित करता है। वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के वि-संरक्षण और/या गैर-वानिकी उद्देश्यों हेतु वन भूमि के व्यपवर्तन के लिये केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 
    • यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों, जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में रह रहे हैं, के वन अधिकारों एवं वन भूमि पर कब्ज़े को पहचानने एवं  निर्दिष्ट करने के लिये अधिनियमित किया गया है।

अरावली पर्वत शृंखला:

  • परिचय: 
    • उत्तर-पश्चिमी भारत की अरावली विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक, अब 300 मीटर से 900 मीटर की ऊँचाई के साथ अवशिष्ट पर्वतों का निर्माण करती है। यह गुजरात के हिम्मतनगर से दिल्ली तक 800 किमी. तक विस्तृत है, जो हरियाणा, राजस्थान, गुजरात तथा दिल्ली में 692 किलोमीटर (किमी) में विस्तृत है।
    • पर्वतों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है- राजस्थान में सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज जहाँ उनका विस्तार लगभग 560 किमी. है।
    • दिल्ली से हरिद्वार तक विस्तृत अरावली की छिपी हुई शाखा गंगा एवं सिंधु नदियों की जल निकासी के बीच एक विभाजक का कार्य करती है।
    • ये वलित पर्वत हैं जिनमें चट्टानें मुख्य रूप से वलित पपड़ी से बनी होती हैं, जब दो अभिसरण प्लेटें पर्वतनी संचलन नामक प्रक्रिया द्वारा एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं।
    • अरावली लाखों वर्ष पुराना है, जिसका निर्माण भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की मुख्य भूमि से टकराने के कारण हुआ। कार्बन डेटिंग के आधार पर पर्वतमाला में खनन किये गए तांबे एवं अन्य धातुओं को कम-से-कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है। 

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  • महत्त्व: 
    • अरावली पहाड़ी पूर्व में उपजाऊ मैदानों और पश्चिम में रेतीले रेगिस्तान के बीच एक अवरोध के रूप में कार्य करती है। ऐतिहासिक रूप से यह कहा जाता है कि अरावली शृंखला ने थार मरुस्थल को गंगा के मैदानों तक विस्तारित होने से रोकने का कार्य किया है जो नदियों तथा मैदानों के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करता था।
    • यह जैवविविधता में समृद्ध है जो पौधों की 300 स्थानिक प्रजातियों, 120 पक्षी प्रजातियों और सियार तथा नेवले जैसे कई विशिष्ट जानवरों को आश्रय प्रदान करता है।
    • अरावली उत्तर-पश्चिम भारत और उससे आगे की जलवायु को प्रभावित करती है। मानसून के मौसम के दौरान यह एक बाधा के रूप में कार्य करती है, जिससे मानसूनी बादल शिमला और नैनीताल की तरफ पूर्व की ओर बढ़ जाते हैं, उप-हिमालयी नदियों के साथ उत्तर भारतीय मैदानों को पोषित करते हैं। यह सर्दियों के महीनों के दौरान मध्य एशिया की ठंडी पश्चिमी हवाओं से उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों की रक्षा करती है।
    • भारत में कुल वन आवरण का सबसे कम लगभग 3.59% वन आवरण हरियाणा में होने के कारण अरावली रेंज एकमात्र आकर्षण है, जो हरियाणा राज्य को वन आवरण का बड़ा हिस्सा प्रदान करता है। 
    • अरावली भी आसपास के क्षेत्रों के लिये भूजल पुनर्भरण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है जो वर्षा जल को अवशोषित करती है और भूजल स्तर को पुनर्जीवित करती है।
    • इस रेंज को दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की दुनिया की सबसे प्रदूषित हवा के लिये "फेफड़े" के रूप में माना जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल ही में किये गए संशोधन के अनुसार, वनवासियों को वन क्षेत्रों में उगाए गए बाँस को गिराने का अधिकार है।
  2. अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार बाँस एक लघु वनोपज है।
  3. अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वनवासियों को लघु वन उपज के स्वामित्त्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भारतीय वन (संशोधन) विधेयक 2017 गैर-वन क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बाँस की कटाई और पारगमन की अनुमति देता है। हालाँकि, वन भूमि पर उगाए गए बाँस को एक पेड़ के रूप में वर्गीकृत किया जाना जारी रहेगा और मौजूदा कानूनी प्रतिबंधों द्वारा निर्देशित किया जाएगा। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 बाँस को लघु वन उपज के रूप में मान्यता देता है और अनुसूचित जनजातियों तथा पारंपरिक वन निवासियों को "स्वामित्त्व, लघु वन उपज एकत्र करने, उपयोग और निपटान तक पहुँच" का अधिकार देता है। अतः कथन 2 और 3 सही हैं।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. अवैध खनन के क्या परिणाम होते हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिये पर्यावरण और वन मंत्रालय की गो एंड नो गो ज़ोन की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। (2013)

प्रश्न. भारत के वन संसाधनों की स्थिति और जलवायु परिवर्तन पर इसके परिणामी प्रभावों की जाँच कीजिये। (2020)

स्रोत: डाउन टू अर्थ