भारत में जलवायु संबंधी भौतिक जोखिम | 23 May 2025
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, ग्रीन हाइड्रोजन, सूखा प्रतिरोधी फसलें, मैंग्रोव, राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन, स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR)। मेन्स के लिये:भारत के लिये जलवायु भौतिक जोखिम (CPR), CPR से निपटने में चुनौतियाँ, CPR से निपटने की रणनीतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक सहित हाल की रिपोर्टें भारत के जलवायु संकट की पुष्टि करती हैं, जिसमें बढ़ते तापमान, अनियमित मानसून और गंभीर आपदाओं जैसे जलवायु भौतिक जोखिम (CPR) से भारत की 80% से अधिक आबादी और अर्थव्यवस्था को खतरा है।
जलवायु भौतिक जोखिम क्या हैं?
- परिचय: जलवायु भौतिक जोखिम (CPR) प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों, मानव समाजों एवं आर्थिक प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों को संदर्भित करते हैं।
- ये जोखिम चरम मौसम की घटनाओं और दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तनों से उत्पन्न होते हैं, जिससे वित्तीय नुकसान, परिचालन संबंधी व्यवधान तथा जीवन एवं आजीविका के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
- प्रकार: CPR को दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
- दीर्घकालिक शारीरिक जोखिम: ये जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक क्रमिक परिवर्तन हैं जिनमें समुद्र का बढ़ता स्तर, तापमान में वृद्धि, वर्षा में परिवर्तन और महासागर अम्लीकरण शामिल है।
- इनके कारण कृषि उत्पादकता में कमी, जल की कमी, स्वास्थ्य जोखिम और जैव विविधता की हानि होती है।
भारत के लिये जलवायु भौतिक जोखिम (CPR) क्या हैं?
- बढ़ता तापमान और हीटवेव: भारत का औसत तापमान वर्ष 1901 से वर्ष 2018 के बीच लगभग 0.7˚C बढ़ा, जबकि उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर की समुद्री सतह का तापमान वर्ष 1951 से वर्ष 2015 तक लगभग 1˚C बढ़ा।
- IPCC ने चेतावनी दी है कि प्रत्येक 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि गर्मी, वर्षा व सूखे की चरम स्थितियों को और खराब कर देगी। यदि वर्ष 2100 तक तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है तो भारत में वर्ष 2036-2065 तक हीटवेव 25 गुना अधिक समय तक चल सकती है।
- अनियमित मानसून: दीर्घकालिक आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष 1951-1980 की तुलना में वर्ष 1981-2011 के दौरान शुष्क अवधि में 27% की वृद्धि हुई है, साथ ही ग्रीष्मकालीन मानसून में अधिक तीव्र वर्षा हुई है।
- मध्य भारत में, अत्यधिक दैनिक वर्षा (> 150 मिमी) वर्ष 1950 से वर्ष 2015 तक 75% बढ़ गई।
- सूखा और जल की कमी: नीति आयोग के वर्ष 2019 समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार, लगभग 600 मिलियन भारतीय उच्च से लेकर चरम जल तनाव का सामना कर रहे हैं ।
- भारत की 12% आबादी ' डे जीरो (Day Zero) ' स्थितियों का सामना कर रही है (जल की आपूर्ति लगभग समाप्त हो चुकी है)। वर्ष 2030 तक, जल की मांग आपूर्ति से दोगुनी हो सकती है, जिससे लाखों लोगों के लिये गंभीर कमी और 6% GDP नुकसान का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- समुद्र का बढ़ता स्तर: आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर वैश्विक आकलन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, वर्ष 2100 तक, भारत में लगभग 27 मिलियन लोग वैश्विक समुद्र-स्तर वृद्धि ( वर्ष 2100 तक एक फुट बढ़ने का अनुमान) से प्रभावित हो सकते हैं।
- खाद्य सुरक्षा संकट: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक गेहूँ की पैदावार में 19.3% तथा वर्ष 2080 तक 40% की कमी आ सकती है, जबकि इसी अवधि में खरीफ मक्का की पैदावार में 18% तथा 23% की गिरावट आ सकती है।
- CO2 के बढ़ते स्तर से चावल, गेहूँ, मक्का और फलियों जैसी प्रमुख फसलों में आयरन, ज़िंक एवं प्रोटीन की मात्रा कम हो सकती है, जिससे विश्व भर में एक अरब से अधिक लोगों में पोषण संबंधी कमियों का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- आर्थिक और बुनियादी ढाँचे को नुकसान: बाढ़ और हीट वेव जैसी जलवायु-प्रेरित घटनाएँ बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचाती हैं। पिछले दशक में बाढ़ के कारण भारत को 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ - जो वैश्विक नुकसान का 10% है।
भारत के समक्ष CPR से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- जीवाश्म ईंधन-केंद्रित ऊर्जा मॉडल: नवीकरणीय लाभ के बावजूद, भारत की 77% विद्युत (वित्त वर्ष 23) अभी भी कोयले द्वारा प्राप्त होती है।
- जलवायु वित्त का अभाव: भारत को नेट-ज़ीरो के लिये वर्ष 2070 तक 10.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, लेकिन हरित वित्तपोषण अपर्याप्त है।
- तकनीकी विकास में कमी: भारत का हरित प्रौद्योगिकी क्षेत्र- विशेष रूप से बैटरी भंडारण एवं सौर पैनल, आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिसमें आधे से अधिक (वित्त वर्ष 2024 में 7 बिलियन अमरीकी डॉलर में से 3.89 बिलियन अमरीकी डॉलर) आयात चीन से होता है।
- सीमित घरेलू विनिर्माण प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (PLI) स्कीम में बाधा उत्पन्न होती है और हरित आत्मनिर्भरता में कमी आती है।
- नवीकरणीय परियोजनाओं के प्रति संवेदनशीलता: विडंबना यह है कि जलवायु प्रभाव नवीकरणीय ऊर्जा में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- तमिलनाडु में पवन ऊर्जा अनियमित हवाओं के कारण 2024-25 में 5% कम हो सकती है। उच्च तापमान सौर PV दक्षता को प्रति डिग्री सेल्सियस 0.4-0.5% तक कम कर देता है। धूल PV उत्पादन को 60% तक कम कर सकती है, विशेष रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों में।
- हरित तकनीकों में सीमित अनुसंधान एवं विकास (R&D) निवेश: भारत अपने GDP का केवल 0.7% ही अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर व्यय करता है, जबकि इज़रायल (4.6%) और दक्षिण कोरिया (4.5%) जैसे वैश्विक अग्रणी देशों से काफी पीछे है।
- इससे ग्रीन हाइड्रोजन, ऊर्जा भंडारण और कार्बन कैप्चर में नवाचार सीमित हो जाता है, जबकि भारत तीसरा सबसे बड़ा CO2 उत्सर्जक होने के बावजूद पीछे है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) में चुनौतियां: परिवहन क्षेत्र, जो 14% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है, सीमित चार्जिंग अवसंरचना (2024 में 25,000 स्टेशन) और उच्च लागत के कारण EV अपनाने में संघर्ष करता है।.
- खंडित डेटा: भारत के CPR आकलन खंडित हैं, विभिन्न एजेंसियों और संस्थानों के बीच प्रयास बिखरे हुए हैं जो विभिन्न पद्धतियों का उपयोग कर रहे हैं, एक एकीकृत प्रणाली की कमी है, इसके बावजूद IIT गांधीनगर के बाढ़ मानचित्रों.और IMD के सुभेद्यता मानचित्र (एटलस) जैसे संसाधनों के।
- विश्वसनीय CPR पूर्वानुमान वैश्विक जलवायु मॉडलों द्वारा सीमित हैं जो भारत की अत्यधिक स्थानीय जलवायु को नज़रअंदाज करते हैं।
CPR से निपटने के लिये सरकार की क्या पहल हैं?
- राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (NAP)
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)
- अटल भूजल योजना
- सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड
- तटीय आवास एवं मूर्त आय के लिये मैंग्रोव पहल (MISHTI)
- मिशन LiFE (पर्यावरण के लिये जीवनशैली)
CPR से निपटने के लिये भारत क्या रणनीतियाँ लागू कर सकता है?
- कृषि संधारणीयता: कृषि और जल प्रबंधन में सहनशीलता विकसित करना जलवायु अनुकूलन के लिये अत्यंत आवश्यक है।
- सूखा सहिष्णु फसलों और कुशल सिंचाई को प्रोत्साहन देने से जल की कमी को कम करने और उपयोग को अनुकूलित करने में सहायता प्राप्त होती है।
- सुदृढ़ शहरीकरण: जल प्रबंधन और बाढ़ को कम करने के लिये जलवायु-अनुकूल भवन संहिताओं और स्पंज सिटी नियोजन को लागू करना।
- बढ़ते ताप को निम्न करने, उत्सर्जन में कमी करने और वायु की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु शहरी वन, ताप कार्रवाई योजनाएँ और सतत् परिवहन विकसित करना।
- तटीय अनुकूलन: जलवायु-अनुकूल बंदरगाह, मैंग्रोव पुनरुद्धार और सुदृढ़ पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ जलवायु प्रभावों से सुरक्षा सुनिश्चित करेंगी और तैयारी को प्रोत्साहन देंगी।
- अनुकूलन में विकेंद्रीकरण: विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित संवेदनशीलता का आकलन करने के साथ पारंपरिक ज्ञान एवं वैज्ञानिक आँकड़ों का उपयोग करते हुए अनुकूलित समाधान तैयार करने के क्रम में विशेषज्ञ जलवायु प्रकोष्ठों का गठन करना चाहिये।
- घरेलू स्वच्छ ऊर्जा: भारत के राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का लक्ष्य सौर पैनलों एवं बैटरियों से संबंधित बाहरी स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों पर निर्भरता कम करने के साथ सौर सेल, पवन टर्बाइन एवं भंडारण को समर्थन देना है।
- भारत द्वारा परमाणु ऊर्जा के साथ ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये स्वदेशी स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
निष्कर्ष
भारत में जलवायु संबंधी भौतिक जोखिमों (CPRs) में वृद्धि देखी जा रही है जो यहाँ के लोगों, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा हैं। सरकारी पहलों द्वारा इस दिशा में प्रगति हुई है लेकिन CPRs का समाधान करने हेतु त्वरित एकीकृत कार्रवाई की आवश्यकता है। इस क्रम में धारणीय भविष्य को सुरक्षित करने के लिये अनुकूलन को उन्नत करने एवं हरित प्रौद्योगिकी में निवेश करने के साथ जलवायु रणनीतियों को तार्किक बनाना आवश्यक है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: जलवायु संबंधी भौतिक जोखिमों (CPRs) के प्रति नवीकरणीय बुनियादी ढाँचे में निहित कमियों का परीक्षण करते हुए इससे संबंधित शमन रणनीतियों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 3. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) प्रश्न.3 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन गठबंधन' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) |