चीन-लिथुआनिया तनाव | 31 Jan 2022

प्रिलिम्स के लिये:

लिथुआनिया की अवस्थिति, चीन का ‘16+1’ सहयोग मंच

मेन्स के लिये:

चीन-लिथुआनिया तनाव और भारत के हित, ताइवान पर भारत की नीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ ने लिथुआनिया को निशाना बनाने और आर्थिक प्रतिबंध लगाने हेतु ‘विश्व व्यापार संगठन’ (WTO) में चीन के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है।

Lithuania

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • नवंबर 2021 में लिथुआनिया में एक ताइवानी प्रतिनिधि कार्यालय खोला गया था। उल्लेखनीय है कि यह पहली बार है जब ताइवान को यूरोपीय संघ के भीतर एक कार्यालय खोलने के लिये अपने नाम का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
    • इसके पश्चात् चीन ने लिथुआनिया के साथ अपने राजनयिक संबंधों को डाउनग्रेड करते हुए इसे ‘वन चाइना पॉलिसी’ का उल्लंघन बताया था। चीन ने लिथुआनिया के उत्पादों का अनौपचारिक रूप से बहिष्कार भी किया है, चाहे वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश से प्राप्त किया गया हो।
      • चीन का आरोप है कि लिथुआनिया ताइवान का उपयोग करके और चीन एवं यूरोप के बीच कलह फैलाने हेतु अमेरिकी के साथ मिलकर काम कर रहा है।
      • 'वन चाइना पॉलिसी' का अर्थ है कि चीनी जनवादी गणराज्य (मेनलैंड चाइना) के साथ राजनयिक संबंध चाहने वाले देशों को चीनी गणराज्य (ताइवान) के साथ आधिकारिक संबंध तोड़ना चाहिये।
  • विश्व व्यापार संगठन में कार्रवाई:
    • विश्व व्यापार संगठन में जाकर यूरोपीय संघ ने लिथुआनिया के व्यापारिक प्रतिनिधियों और अधिकारियों के आरोपों का समर्थन किया है, जिनके मुताबिक, चीन ने लिथुआनिया से आयात को अवरुद्ध कर दिया है और अन्य आर्थिक प्रतिबंध लागू किये हैं।
      • गौरतलब है कि लिथुआनिया के आयात पर चीन की कार्रवाई अन्य यूरोपीय देशों को भी प्रभावित करती है।
      • इसके अलावा चीन ने फ्राँस, जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों से माल के आयात पर भी व्यापार प्रतिबंध लगाया है, क्योंकि ये भी लिथुआनिया की आपूर्ति शृंखला का हिस्सा हैं।
      • यूरोपीय संघ वर्तमान में चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और लिथुआनिया के निर्यात का लगभग 80-90% शेष यूरोपीय संघ के साथ विनिर्माण अनुबंधों पर आधारित है।
    • विवाद को एक पैनल के समक्ष ले जाने से पहले दोनों पक्षों के बीच समाधान के लिये 60 दिन की अवधि निर्धारित की गई थी।
  • लिथुआनिया द्वारा चीन का प्रतिरोध करने के कारण:
    • घरेलू कारण:
      • कुछ हद तक चीन के खिलाफ लिथुआनिया के वर्तमान विरोध को वर्ष 2020 में सरकार के परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
      • लिथुआनिया की नई सरकार लोकतंत्र और स्वतंत्रता की "मूल्य-आधारित" विदेश नीति का समर्थन करती है जिसने स्पष्ट रूप से वर्ष 2020 में ही ताइवान के लिये अपना समर्थन प्रदान किया।
    • भू-राजनीतिक कारण:
      • यह यूरोपीय संघ पर पूर्वी यूरोप में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और लिथुआनिया के प्रतिकूल पड़ोसियों, रूस व बेलारूस के साथ नाटो के पतन का कारण भी है।
        • लिथुआनिया सोवियत संघ से एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बाहर होने वाला प्रथम राज्य है। इसका चीन के विरुद्ध खड़े होने के लिये इसका अपना ऐतिहासिक संदर्भ और वैचारिक तर्क है।
      • पश्चिम के खिलाफ बढ़ती चीन-रूस साझेदारी ने भी लिथुआनिया को चीन के प्रति सतर्क कर दिया है।
    • अन्य कारण:
      • शिनजियांग और हॉन्गकॉन्ग के मुद्दों पर लिथुआनिया यूरोपीय संघ के देशों में चीन के सबसे बड़े आलोचकों में से एक रहा है।
      • लिथुआनिया ने कोविड -19 महामारी के मद्देनजर चीन के विरोध के बावजूद वर्ष 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन में पर्यवेक्षक बनने के लिये ताइवान का समर्थन किया।
      • इसके अलावा लिथुआनिया का तर्क है कि आर्थिक संबंध केवल लोकतांत्रिक शासन के साथ ही टिकाऊ हो सकते हैं, जिस कारण लिथुआनिया एवं चीन के बीच तनाव और बढ़ गया है।
        • मई 2021 में लिथुआनिया ने मध्य और पूर्वी यूरोप के साथ चीन के 17+1 सहयोग मंच को "विभाजनकारी" कहकर स्वयं को इससे अलग कर लिया जिस कारण यह अब 16+1 देशों का ही समूह है।
        • लिथुआनिया इस समूह का पहला देश है जिसने इससे अलग होने का कारण चीन की आर्थिक गैर-पारस्परिकता व यूरोप की अखंडता के लिये खतरा बताया है।
      • सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए लिथुआनिया ने अपने देश के लोगों को चीन में बने स्मार्टफोन खरीदने से बचने की सलाह दी है और चीन को अपने क्लेपेडा बंदरगाह में नियंत्रण हिस्सेदारी तथा अपनी 5G अवसंरचना बोलियों (5G Infrastructure Bids) से भी दूर रखा है।
  • भू-राजनीतिक नतीजा:
    • ताइवान ने चीन के दबाव के कारण लिथुआनियाई अर्थव्यवस्था की भरपाई के प्रयास किये हैं।
      • लिथुआनियाई रम की लगभग 20,000 बोतलें जो चीन के लिये बाध्य थीं, ताइवान द्वारा समर्थन के प्रतीकात्मक संकेत के रूप में खरीदी गई
      • लिथुआनिया के आर्थिक नुकसान की भरपाई में मदद के लिये ताइवान 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की निवेश योजना लेकर आया है।
      • विशेष रूप से वर्तमान अर्द्धचालक आपूर्ति की कमी को देखते हुए यह भी माना जाता है कि यूरोपीय संघ के बाज़ार तक पहुँचने हेतु लिथुआनिया को ताइवान का प्रवेश द्वार बनाया गया है।
      • ताइवान लिथुआनियाई व्यवसायों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का क्रेडिट कार्यक्रम शुरू करने की भी योजना बना रहा है।
    • अमेरिका ने लिथुआनिया के साथ एकजुटता व्यक्त करने वाले जर्मनी जैसे यूरोपीय संघ के देशों के साथ-साथ ताइवान पर लिथुआनिया को मजबूर करने के चीन के प्रयासों के बारे में चिंता व्यक्त की है।

आगे की राह

  • लिथुआनिया-चीन तनाव से परे भारत के लिये विशेष रूप से यह ज़रूरी है कि यूरोपीय संघ एक प्रमुख शक्ति के रूप में चीन के साथ संबंधों को कैसे आगे बढ़ाएगा क्योंकि यह समान रूप से तेज़ी से बढ़ते व्यापारिक संबंधों के खिलाफ रणनीतिक विचारों को प्रदर्शित करता है।
    • चीन द्वारा व्यापार का अनुचित उपयोग, जो संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता की 50वीं वर्षगाँठ पर इसकी घोषणा के बिल्कुल विपरीत है तथा इसके साथ ही एक और चिंता का विषय यह है कि वह "सत्ता की राजनीति" और "आधिपत्य" से बचता है।
    • लिथुआनिया के साथ चीन का व्यापार अधिशेष एक अपवाद है तथा चीन के बाज़ार तक पहुँचने के लिये किसी प्रकार के दबाव की आवश्यकता नहीं है।
  • भारत, ताइवान के मुद्दे पर चीन के मुकाबले लाभों और लागतों का आकलन करने के लिये यूरोपीय संघ के कदम पर करीब से नज़र रखेगा।

स्रोत: द हिंदू