विकलांग बच्चों की स्कूलों में नामांकन स्थिति | 04 Jul 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शैक्षणिक संस्थानों में विकलांग बच्चों के प्रवेश के संदर्भ में यूनेस्को (UNESCO) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (Tata Institute of Social Sciences) ने एक रिपोर्ट जारी की।

उद्देश्य

  • इस रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों में विकलांग बच्चों के प्रवेश के आँकड़ों की स्थिति को दर्शाते हुए शिक्षा के अधिकार के तहत सभी बच्चों के लिये शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है।
  • आरटीई अधिनियम, 2009 में संशोधन करके इसे विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के साथ संरेखित करना रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशों में से एक है।

प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 से 19 वर्ष तक की आयु के विकलांग बच्चों में चार में से कम-से-कम एक ने कभी किसी शैक्षणिक संस्थान में भाग नहीं लिया, जबकि पाँच वर्षीय विकलांग बच्चों में से तीन-चौथाई स्कूल नहीं जा पाते।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 5-19 वर्ष के 78 लाख से अधिक विकलांग बच्चे हैं। इनमें से सिर्फ 61% बच्चे शैक्षिक संस्थान में भाग ले रहे थे। लगभग 12% बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया था, जबकि 27% बच्चे कभी भी स्कूल नहीं गए थे।
  • स्कूल में नामांकित विकलांग बच्चों की संख्या स्कूलिंग के प्रत्येक क्रमिक स्तर के साथ गिरती है। लड़कों की तुलना में स्कूल में विकलांग लड़कियों की संख्या कम है।
  • विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं के बीच अंतर बना रहता है।
  • 20% दृश्य और श्रवण दोष वाले बच्चे कभी स्कूल में नहीं थे।
  • हालाँकि कई विकलांग या मानसिक बीमारी वाले बच्चों में यह आँकड़ा 50% से अधिक पाया गया।

गृह-आधारित शिक्षा

  • विशेषज्ञों के अनुसार, विकलांग बच्चों को गृह-आधारित शिक्षा प्रदान किये जाने के मामले में दिये गए सरकारी आँकड़े सिर्फ कागज़ पर मौजूद होते हैं। वास्तविक रूप में विकलांग बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
  • ग्रामीण भारत के बहुत से भागों में यदि कोई माता-पिता गृह-आधारित शिक्षा का चुनाव करते हैं, तो संभवतः बच्चों को शिक्षा नही मिल पाती है।
  • सब तक शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सर्व शिक्षा अभियान चलाया गया है लेकिन अभी भी सब तक शिक्षा नही पहुँच सकी है।
  • शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या सरकारी आँकड़ों की तुलना में कहीं ज़्यादा है।

चुनौतियाँ

  • विशेषज्ञों के अनुसार, शिक्षा का अधिकार अधिनियम स्कूलों में सभी बच्चों के नामांकन को अनिवार्य बनाता है, लेकिन इसके अंतर्गत विकलांग बच्चों की शिक्षा के लिये आवश्यक संसाधनों का प्रावधान नहीं है।
  • नामांकन संख्या कम होने में सबसे बड़ी चुनौती बुनियादी एवं मूलभूत संसाधनों की कमी है।

सर्व शिक्षा अभियान

  • इसका कार्यान्‍वयन वर्ष 2000-2001 से किया जा रहा है।
  • यह एक निश्चित समयावधि के भीतर प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत सरकार का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है।
  • इस अभियान को देश भर में राज्य सरकारों की सहभागिता से चलाया जा रहा है।
  • 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा 6-14 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना आवश्यक बना दिया गया है।
  • सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्‍य सार्वभौमिक सुलभता के साथ प्रारंभिक शिक्षा में बालक-बालिका एवं सामाजिक श्रेणी के अंतर को दूर करना तथा अधिगम की गुणवत्‍ता में सुधार करना है।
  • इसके अंतर्गत विविध प्रयास किये जा रहे हैं, जैसे- नए स्‍कूल खोलना तथा वैकल्पिक स्‍कूली सुविधाएँ प्रदान करना, स्‍कूलों एवं अतिरिक्‍त क्लासरूम का निर्माण किया जाना, प्रसाधन-कक्ष एवं पेयजल सुविधा प्रदान करना, नि:शुल्‍क पाठ्य-पुस्‍तकें एवं ड्रेस वितरित करना आदि।

स्रोत- द हिंदू