भारत-चीन संबंधों में एक नई दिशा का निर्माण | 21 Aug 2025

प्रिलिम्स के लिये: चाइना+1 रणनीति, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, पीएम-डिवाइन, बिम्सटेक, इन-स्पेस, इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन

मेन्स के लिये: भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध, सहयोग और विवाद। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत के विदेश मंत्री ने दिल्ली में चीन के विदेश मंत्री के साथ एक बैठक की, जो नवंबर 2024 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से सेनाओं के हटने के बाद पहली मंत्रिस्तरीय बैठक है। इस चर्चा का केंद्र शांति को सुदृढ़ करना, आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाना और रणनीतिक चुनौतियों का समाधान करना रहा।

भारत-चीन विदेश मंत्रियों की बैठक से क्या प्रमुख बातें सामने आईं?

  • तनाव कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देना: दोनों पक्षों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि स्थायी संबंधों के लिये वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति आवश्यक है। भारत ने अपने 3D दृष्टिकोण को दोहराया — डिसएंगेजमेंट (सैन्य टकराव से पीछे हटना), डी-एस्केलेशन (तनाव को कम करना), और डी-इंडक्शन (सेना की वापसी)। इसके साथ ही भारत ने 3 आपसी सिद्धांतों- सम्मान, संवेदनशीलता और हितों पर भी बल दिया।
  • आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करना:: वार्ता में व्यापार सुविधा, संपर्क, नदी डेटा साझाकरण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया, जबकि चीन ने पिछले प्रतिबंधों में ढील देते हुए उर्वरक, दुर्लभ मृदा और सुरंग खोदने वाली मशीनों की आपूर्ति करने पर सहमति व्यक्त की।
    • प्रमुख कदमों में लिपुलेख, शिपकी ला और नाथू ला के माध्यम से सीमा व्यापार को पुनः शुरू करना तथा पर्यटकों, व्यवसायों और मीडिया के लिये वीज़ा सुविधा प्रदान करना शामिल था।
  • सांस्कृतिक एवं लोगों के बीच संबंधों को सुगम बनाना: बैठक में कैलाश मानसरोवर यात्रा को पुनः आरंभ करने तथा पर्यटक वीजा की बहाली पर जोर दिया गया।
    • दोनों पक्षों ने वर्ष 2026 में पीपुल-टू-पीपुल संपर्क पर उच्च स्तरीय तंत्र (High-Level Mechanism) की बैठक आयोजित करने और एक साथ राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगाँठ मनाने पर भी सहमति व्यक्त की।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक सहभागिता: भारत ने जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर चिंता जताई।
    • दोनों देशों ने बहुध्रुवीय विश्व की दिशा में कार्य करने, क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने और SCO, BRICS और द्विपक्षीय तंत्र जैसे मंचों के माध्यम से सहयोग को मज़बूत करने पर बल दिया।

भारत और चीन के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?

  • सांस्कृतिक, शैक्षिक और पीपुल-टू-पीपुल संबंध: भारत और चीन के बीच सभ्यतागत संबंध हैं, जिनका उदाहरण ह्वेनसांग और बोधिधर्म हैं। ये संबंध शैक्षणिक सहयोग और भाषा कार्यक्रमों के माध्यम से और अधिक सुदृढ़ हो रहे हैं।
    • आयुर्वेद, योग और भारतीय शास्त्रीय कलाओं में चीन की बढ़ती रुचि, पर्यटन, तीर्थयात्रा और सीधी उड़ानों के साथ-साथ लोगों के बीच आपसी जुड़ाव को मज़बूत करती है।
  • पूंजी प्रवाह और प्रौद्योगिकी साझाकरण: भारतीय स्टार्टअप्स, विशेषकर यूनिकॉर्न ने प्रमुख चीनी फंडिंग को आकर्षित किया है, जिससे उनके विस्तार में सहायता मिली है।
    • वर्ष 2020 तक, 18 यूनिकॉर्न को चीन से 3.5 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का निवेश प्राप्त हुआ था।
    • बुनियादी ढाँचे और हाई-स्पीड रेल के क्षेत्र में चीन की उन्नत जानकारी भारत के औद्योगिक विकास के लिये लाभकारी है।
      • इस प्रकार की पूंजी प्रवाह और विशेषज्ञता रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद जटिल अंतरनिर्भरता को उजागर करती है।
  • बहुपक्षीय सहयोग: भारत और चीन ब्रिक्स, SCO, G-20, एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) में सहयोग कर वैश्विक दक्षिण एकजुटता, बहुध्रुवीयता और जलवायु कूटनीति को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • चीन भारत के अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA)  का समर्थन करता है, तथा दोनों देशों की ऊर्जा परिवर्तन में साझी हिस्सेदारी है।
    • वर्ष 2024 ब्रिक्स कज़ान शिखर सम्मेलन सहित नेतृत्व बैठकें और शिखर सम्मेलन द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक दिशा प्रदान करते हैं।
  • जलवायु न्याय और दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत और चीन जलवायु न्याय, हरित वित्तपोषण और दक्षिण-दक्षिण सहयोग को आगे बढ़ाने में समान आधार पाते हैं।
    • दोनों देश पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए कार्बन टैरिफ और वैश्विक जलवायु शासन में अंतर्निहित असमानताओं के बारे में गहरी चिंताएँ साझा करते हैं।
      • यह अभिसरण अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर नीति संरेखण और समन्वय की अनुमति देता है।
    • COP29 में उन्होंने संयुक्त रूप से यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर टैक्स का विरोध किया, तथा इसके अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और नकारात्मक आर्थिक प्रभावों के जोखिमों को चिह्नित किया।
      • इस तरह का सहयोग बहुपक्षीय जलवायु वार्ता में उनके एकजुट रुख को मज़बूत करता है।

भारत-चीन संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • लगातार सीमा विवाद: 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) अब भी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है, जिससे दोनों पक्षों द्वारा बार-बार घुसपैठ और बुनियादी ढाँचे के निर्माण की घटनाएँ सामने आती रहती हैं।
    • चीन अकसाई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा किये हुए है और अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 'दक्षिण तिब्बत' बताकर अपना दावा करता है।
    • चीन अकसाई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा किए हुए है और अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को दक्षिण तिब्बत बताकर दावा करता है।
    • पारस्परिक रूप से सहमत मानचित्रों के अभाव के कारण सत्यापन और गश्ती समन्वय जटिल हो जाता है, तथा देपसांग और चार्डिंग-निंगलुंग नाला जैसे टकराव वाले बिंदु अभी भी अनसुलझे हैं।
    • हाल ही में डोकलाम गतिरोध (2017) और गलवान घाटी संघर्ष (2020) भारत-चीन सीमा पर लगातार अस्थिरता को उजागर करते हैं।

  • आर्थिक असमानता और व्यापार निर्भरता: चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साथी है (अमेरिका के बाद) 2024-25 में, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार का कुल मूल्य 127.7 अरब अमेरिकी डॉलर है। भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 2023-24 में बढ़कर 85 अरब डॉलर हो गया है, जो 2022-23 में 83.2 अरब डॉलर था।
  • आर्थिक विषमता और व्यापार निर्भरता: चीन 2024-25 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार (अमेरिका के बाद) होगा, जिसका द्विपक्षीय व्यापार का कुल मूल्य 127.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा और चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2022-23 में 83.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा।
    • भारत चीनी API, इलेक्ट्रॉनिक्स और सौर पैनल का आयात करता है और निर्यात ज्यादातर कम मूल्य का होता है, जबकि चीनी आयात उच्च मूल्य का होता है।
  • सामरिक एवं सुरक्षा चुनौतियाँ: PoK से होकर चीन का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और पाकिस्तान के साथ उसका सैन्य/परमाणु सहयोग भारत की सामरिक असुरक्षा को बढ़ाता है।
    • चीन वैश्विक मंचों पर भारत की न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) सदस्यता और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सीट की आकांक्षाओं में बाधा डालता है, साथ ही पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को संरक्षण प्रदान करता है, जिससे भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ बाधित होती हैं।
    • इसके अलावा भारत चीनी प्रौद्योगिकी पर बहुत अधिक निर्भर है, चीनी कंपनियों के पास स्मार्टफोन बाज़ार का लगभग 75% हिस्सा है और EV, दूरसंचार और अर्द्धचालक जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र चीन पर निर्भर हैं।
      • चीन से जुड़े तत्त्वों द्वारा उत्पन्न साइबर खतरों ने स्वास्थ्य सेवा और विद्युत नेटवर्क को निशाना बनाया है, जिसके कारण भारत ने 300 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया है और हुआवेई जैसी कंपनियों को 5G परीक्षणों से बाहर कर दिया है।
  • जल विज्ञान और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: चीन का ब्रह्मपुत्र और सतलुज जैसी नदियों पर नियंत्रण है और मेडोग और जांगमु बाँध जैसी परियोजनाएँ भारत की जल सुरक्षा के लिये खतरा हैं और साथ ही महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंताएँ भी पैदा कर रही हैं।
    • ब्रह्मपुत्र पर जलविज्ञान संबंधी आँककड़ों को साझा करने की समय सीमा 2023 में समाप्त हो गई है, हालाँकि हालिया चर्चाओं से इसके नवीकरण की उम्मीद जगी है, लेकिन स्थिति अभी भी संवेदनशील बनी हुई है और इसके लिये सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता है।
  • क्षेत्रीय नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्द्धा: भारत और चीन दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में प्रभुत्व के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं, तथा चीन समुद्री रेशम मार्ग/मोतियों की माला के माध्यम से अपने समुद्री क्षेत्र का विस्तार कर रहा है।
    • श्रीलंका (हंबनटोटा) और म्याँमार (क्याउकप्यू) जैसे प्रमुख बंदरगाहों पर इसकी उपस्थिति भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को चुनौती देती है।

भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने हेतु क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • रणनीतिक संवाद को और सशक्त बनाना: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनावपूर्ण बिंदुओं को हल करने के लिये विशेष प्रतिनिधि (SR) स्तर और सीमा मामलों पर परामर्श एवं समन्वय के लिये  कार्यकारी तंत्र (WMCC) की वार्ताएँ जारी रखी जाएँ, जिसमें पूर्ण विसैन्यीकरण, तनाव कम करना तथा शांति बहाल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
    • SCO और BRICS जैसे मंचों पर नियमित सहभागिता विश्वास निर्माण कर सकती है तथा संघर्षों को रोकने में सहायक हो सकती है।
    • विश्वास-निर्माण उपायों (CBM) को केवल सैन्य वार्ताओं तक सीमित न रखकर, उन्हें आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक विस्तारित किया जाए ताकि सीमा क्षेत्रों में आपसी विश्वास बढ़ाया जा सके।
    • संवेदनशील क्षेत्रों में विमिलिटरीकृत बफर ज़ोन स्थापित करना और विसैन्यीकरण के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल पर सहमत होना आपसी विश्वास को सुदृढ़ करेगा तथा आकस्मिक संघर्षों को रोकेगा।
    • साथ ही, भारत को स्मार्ट सीमा अवसंरचना, ISR (खुफिया, निगरानी एवं टोही) तकनीकों तथा पर्वतीय युद्ध की तैयारी में निवेश कर अपनी विश्वसनीय प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत बनाना चाहिये।
  • आर्थिक और व्यापार संतुलन: चीन के साथ व्यापार महत्त्वपूर्ण बने रहने के बावजूद, भारत को चयनात्मक आर्थिक सहभागिता अपनानी चाहिये, जिसमें पूंजीगत वस्तुएँ और प्रौद्योगिकी आयात बढ़ाए जाएँ, जबकि दूरसंचार तथा फार्मास्यूटिकल्स जैसे रणनीतिक क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भरता कम की जाएँ।
    • बाज़ार पहुँच, निवेश जाँच और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण पर संरचित वार्ताएँ ऐसे सहयोग की अनुमति देंगी, जिससे सुरक्षा से समझौता किये बिना सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।
  • जल और पर्यावरणीय चिंताओं का प्रबंधन: ब्रह्मपुत्र पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करना पुनः शुरू करके और दीर्घकालिक, संस्थागत जल-साझाकरण ढाँचा स्थापित करके सीमापार नदी शासन को सुदृढ़ किया जाएँ।
    • स्थाई बाँध प्रबंधन, बाढ़ पूर्वानुमान और जलवायु-सहिष्णु प्रथाओं के लिये संयुक्त तंत्र को बढ़ावा दिया जाएँ, जिसमें पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय तथा पारिस्थितिक स्थिरता को शामिल किया जाए ताकि नदी के निचले इलाकों के समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • बहुपक्षीय सहयोग मंचों का उपयोग: भारत और चीन BRICS, SCO, G20 तथा जलवायु वार्ताओं जैसे मंचों पर साझा स्थान रखते हैं। वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के सुधार, दक्षिण-दक्षिण सहयोग और सतत् विकास वित्तपोषण जैसे मुद्दों पर आधारित गठबंधन बनाना द्विपक्षीय मतभेदों से परे सहयोग को बढ़ावा दे सकता है।
    • यह भारत को चीन के प्रभाव का लाभ उठाने में सहायता करता है और साथ ही अपनी नेतृत्व क्षमता को भी प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करता है।
  • वृद्धिवाद के माध्यम से दीर्घकालिक विश्वास निर्माण: ‘भव्य पुनःस्थापना’ का लक्ष्य रखने के बजाय, भारत को वृद्धिशील विश्वास-निर्माण को अपनाना चाहिये और धीरे-धीरे विश्वास बढ़ाने के लिये छोटे-छोटे सत्यापन योग्य कदम उठाने चाहिये।
    • महामारी की तैयारी, आपदा राहत सहयोग और छात्र आदान-प्रदान जैसी पहल, मुख्य विवादों को सुलझाने से पहले कम लागत वाले, उच्च प्रभाव वाले विश्वास गुणक के रूप में कार्य कर सकती हैं।

निष्कर्ष

भारत-चीन संबंध धीरे-धीरे सीमाई स्थिरता, व्यापार और सामरिक संवाद के माध्यम से रचनात्मक सहभागिता की ओर बढ़ रहे हैं। यद्यपि क्षेत्रीय विवादों, आर्थिक असंतुलन और तकनीकी निर्भरता जैसी चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं, फिर भी विश्वास-निर्माण उपायों, सामरिक स्वायत्तता, क्षेत्रीय सहयोग तथा वैश्विक बहुध्रुवीय सहभागिता के संयोजन से एक स्थिर, सहयोगपूर्ण व भविष्यन्मुखी द्विपक्षीय संबंध की राह प्रशस्त की जा सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत-चीन संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय स्थिरता और सहयोग बढ़ाने के उपाय भी सुझाएँ।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में आने वाला 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative)' किसके मामलों के संदर्भ में आता है? (2016)

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d)

मेन्स 

प्रश्न. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी० पी० ई० सी०) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल 'एक पट्टी एक सड़क' पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। सी० पी० ई० सी० का एक संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिये और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइए। (2018)