निजी क्षेत्र का पूंजीगत व्यय | 13 May 2025
प्रिलिम्स के लिये:ई-कॉमर्स, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, उत्पादन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएँ, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, राजकोषीय घाटा, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन। मेन्स के लिये:भारतीय आर्थिक विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका, भारत के आर्थिक विकास परिदृश्य को आकार देने वाले प्रमुख कारक, भारत के सतत् आर्थिक विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अपनी पहली 'फॉरवर्ड-लुकिंग सर्वे ऑन प्राइवेट सेक्टर कैपेक्स इन्वेस्टमेंट इंटेंशंस' रिपोर्ट जारी की।
- यह सर्वेक्षण सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 2008 के तहत आयोजित किया गया था, इसका उद्देश्य वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक पाँच वित्तीय वर्षों में निजी कॉर्पोरेट पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) के रुझान का अनुमान लगाना है।
निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय निवेश में रुझान क्या हैं?
- पूंजीगत व्यय में समग्र वृद्धि: निजी क्षेत्र का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) वित्त वर्ष 2021-22 से लेकर 2024-25 तक चार वर्षों में 66.3% की वृद्धि दर्ज करता है। हालाँकि, वित्त वर्ष 2025-26 में इसके 25.5% तक घटने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2024-25 में सुदृढ़ कैपेक्स चक्र के बाद कंपनियों द्वारा की जा रही सतर्क योजना को दर्शाता है।
- यह गिरावट उच्च उधार लागत, कमज़ोर मांग और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं जैसे कारकों से प्रेरित है।
- निवेश का उद्देश्य और प्रकृति: वित्त वर्ष 2024-25 में, 49.6% उद्यमों ने आय सृजन के लिये, 30.1% ने उन्नयन के लिये और 2.8% ने विविधीकरण के लिये निवेश किया।
- वित्त वर्ष 2024-25 में नई परिसंपत्ति खरीद के लिये प्रति उद्यम अनुमानित पूंजीगत व्यय 172.2 करोड़ रुपए था।
- पूंजीगत व्यय का क्षेत्रवार वितरण: विनिर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक 43.8% हिस्सा रहा, उसके बाद सूचना एवं संचार (15.6%) और परिवहन एवं भंडारण (14%) का स्थान रहा।
- परिसंपत्ति के अनुसार, कुल पूंजीगत व्यय का 53.1% मशीनरी एवं उपकरणों पर, 22% पूंजीगत कार्य-प्रगति पर तथा 9.7% भवनों एवं संरचनाओं पर व्यय किया गया।
- सकल अचल परिसंपत्तियों (GFA) में वृद्धि: निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र में प्रति उद्यम औसत GFA में 27.5% की वृद्धि देखी गई, जो वर्ष 2022-23 में 3,279.4 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 4,183.3 करोड़ रुपए हो गई।
- सर्वोच्च GFA विद्युत्, गैस, भाप एवं वातानुकूलन आपूर्ति क्षेत्र में देखा गया, इसके बाद विनिर्माण क्षेत्र रहा।
- सकल अचल परिसंपत्तियाँ (GFA) से तात्पर्य एक उद्यम द्वारा स्वामित्व में रखी गई भौतिक परिसंपत्तियों—जैसे मशीनरी, भवन एवं उपकरण—के कुल मूल्य से होता है, जिसमें मूल्यह्रास (डेप्रीशीएशन) घटा दिया जाता है।
कैपेक्स (पूंजीगत व्यय) क्या है?
- परिचय: कैपेक्स (Capital Expenditure) का आशय ऐसी धनराशि से है जो भौतिक परिसंपत्तियाँ—जैसे संपत्ति, उपकरण या प्रौद्योगिकी—अर्जित करने, उन्नत करने या बनाए रखने पर खर्च की जाती है। यह दीर्घकालिक निवेश होता है, जिसे परिसंपत्ति के रूप में दर्ज किया जाता है और समय के साथ मूल्यह्रास (डेप्रीशीएशन) के अधीन होता है। उदाहरणों में मशीनरी की खरीद और सुविधाओं का आधुनिकीकरण शामिल हैं।
- परिचालन व्यय (Opex), जो व्यवसाय के दैनिक संचालन लागतों को दर्शाता है, के विपरीत कैपेक्स उन महत्त्वपूर्ण निवेशों को कहते हैं जो दीर्घकालिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किये जाते हैं।
- कैपेक्स डेटा: भारतीय सरकार अपने वार्षिक बजट के माध्यम से पूंजीगत व्यय का आवंटन करती है, जिसे वित्त मंत्री प्रस्तुत करते हैं।
- वित्त वर्ष 2025-26 के लिये GDP के 3.1% के अनुरूप ₹11.21 लाख करोड़ के पूंजीगत व्यय का प्रावधान किया गया है।
- महत्त्व: कैपेक्स उच्च गुणक प्रभाव के कारण आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सहायक उद्योगों को प्रोत्साहित करता है, रोज़गार सृजित करता है, तथा श्रम उत्पादकता को बढ़ाता है।
- एक प्रतिचक्रीय राजकोषीय उपकरण के रूप में, कैपेक्स अर्थव्यवस्था को स्थिर करता है तथा परिसंपत्ति सृजन के माध्यम से दीर्घकालिक राजस्व सृजन का समर्थन करता है।
- यह ऋण चुकौती द्वारा देनदारियों को घटाने में भी सहायक होता है तथा निजी निवेश को उत्प्रेरित कर सतत् आर्थिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
निजी क्षेत्र के कैपेक्स को बाधित करने वाली चुनौतियाँ क्या हैं?
- भू-राजनीतिक अनिश्चितता और वैश्विक व्यापार में व्यवधान: बढ़ते तनाव (जैसे—अमेरिका-चीन टैरिफ, वैश्विक प्रतिबंध) व्यापार और इनपुट लागतों में अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं।
- आयातित सामग्रियों पर निर्भर उद्योग आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों के कारण विशेष रूप से सतर्क हैं।
- उच्च उधार लागत: उच्च ब्याज दरें बड़े पैमाने की परियोजनाओं के वित्तपोषण की लागत को बढ़ा देती हैं, जिसके कारण कंपनियाँ बैंकों से उधार लेने के बजाय आंतरिक स्रोतों का उपयोग करना पसंद करती हैं।
- निम्न उपभोक्ता मांग: कम निजी खपत क्षमता विस्तार में निवेश करने के लिये व्यावसायिक विश्वास को प्रभावित करती है।
- कोविड-19 के बाद मांग में कुछ सुधार के बावजूद, यह प्रमुख ग्रीनफील्ड निवेशों को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त सुदृढ़ नहीं है।
- ग्रीनफील्ड परियोजनाओं का अभाव: अधिकांश वर्तमान निवेश ब्राउनफील्ड (मौजूदा इकाइयों का विस्तार) हैं, जो आंतरिक निधियों के माध्यम से वित्तपोषित हैं।
- ग्रीनफील्ड निवेश (नई इकाइयाँ) जिनके लिये आमतौर पर बैंक वित्तपोषण की आवश्यकता होती है, की कमी है, जिससे समग्र पूंजीगत व्यय की दृश्यता कम हो रही है।
- संरचनात्मक समस्याएँ: भूमि अधिग्रहण में देरी और श्रम सुधारों का अभाव प्रमुख बाधाएँ बनी हुई हैं।
- कुशल श्रमिकों की कमी, जिसका उदाहरण L&T द्वारा 40,000 श्रमिकों को नियुक्त करने में किया गया संघर्ष है, परियोजना के क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
- IBC के अनुभवों के कारण सावधानी: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 के तहत पिछले दिवाला (जैसे, जेट एयरवेज, एस्सार) ने फर्मों को अधिक जोखिम-से-बचने वाला बना दिया है। संपत्ति जब्त होने के डर से रूढ़िवादी वित्तीय योजना बनाई जाती है।
- कम क्षमता उपयोग हालाँकि कुछ क्षेत्रों (स्टील, सीमेंट, ऑटो) में 75-80% उपयोग की रिपोर्ट है, लेकिन कुल दरें Q4 FY23 में 76.3% के शिखर से गिरकर 74.7% (Q3 FY24) हो गई हैं। मज़बूत क्षमता उपयोग के बिना, फर्मों को आगे विस्तार करने के लिये बहुत कम प्रोत्साहन मिलता है।
- निवेश का अत्यधिक संकेन्द्रण: नए निजी निवेश ज्यादातर रिलायंस, टाटा जैसी कुछ बड़ी कंपनियों तक ही सीमित हैं। सतत् आर्थिक विकास के लिये भारत की व्यापक भागीदारी आवश्यक है।
निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिये क्या किया जा सकता है?
- संस्थागत तंत्र और ऋण सहायता को मज़बूत करना: बड़े निजी निवेश परियोजनाओं की तीव्रता से स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिये कैबिनेट सचिवालय के तहत मौजूदा पुनरुद्धार परियोजना निगरानी समूह (PMG) को मज़बूत करना।
- MSME के लिये आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) का विस्तार करने और मध्यम आकार की विनिर्माण फर्मों को समान समर्थन देने से पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
- प्रारंभिक चरण के औद्योगिक और तकनीकी निवेश को बढ़ावा देने, उभरते क्षेत्रों में नवाचार एवं विकास को प्रोत्साहित करने के लिये स्टार्टअप्स के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS) का उपयोग करना।
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के दायरे का विस्तार: रक्षा विनिर्माण और सटीक इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों के लिये PLI की शुरुआत करनी चाहिये। निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये PLI संवितरण में पारदर्शिता तथा समयबद्धता में सुधार करना चाहिये।
- कर और विनियामक ढाँचे में सुधार: मशीनरी और संयंत्र निवेश हेतु त्वरित मूल्यह्रास लाभ को पुनः लागू करना चाहिये।
- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (2022) का प्रभावी निष्पादन करना चाहिये जिसका उद्देश्य लॉजिस्टिक्स की लागत को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 13-14% से घटाकर 8-9% करना है, जिससे निजी निर्माताओं की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
- निजी क्षेत्र के निवेशों को जोखिम मुक्त करना: निजी क्षेत्र के निवेशों को जोखिम मुक्त करने के क्रम में सड़क, विद्युत् और रेलवे जैसे क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट(InvITs) और रियल एस्टेट निवेश ट्रस्टों (REITs) के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
- यह दृष्टिकोण जोखिमों को वितरित करते हुए निजी पूंजी को आकर्षित करने पर केंद्रित है, जिससे इन प्रमुख क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष
पिछले कुछ वर्षों में निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में काफी वृद्धि देखी गई है लेकिन वित्त वर्ष 26 की अनुमानित गिरावट से उच्च उधारी लागत एवं वैश्विक तनाव जैसी अनिश्चितताओं के बीच सतर्क निवेश आवश्यक है। फिर भी, उन्नयन और क्षेत्रीय विविधीकरण पर ध्यान से आर्थिक स्थिरता के साथ समन्वित एक विकसित निवेश रणनीति को बढ़ावा मिलेगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत में पूंजीगत व्यय बढ़ाने में निजी क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (a) कोयला उत्पादन उत्तर: b प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न 2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |