सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध | 14 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये:

सिंगल यूज़ प्लास्टिक, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021

मेन्स के लिये:

सिंगल यूज़ प्लास्टिक का पर्यावरण पर प्रभाव एवं इसे प्रबंधित करने के लिये किये गए प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया है।

  • ये नियम विशिष्ट सिंगल यूज़ प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं को प्रतिबंधित करते हैं जिनकी वर्ष 2022 तक "कम उपयोगिता और उच्च अपशिष्ट क्षमता" है।

Cleaning-Up

प्रमुख बिंदु

परिचय:

  • नए नियम:
    • 1 जुलाई, 2022 से पहचाने गए सिंगल यूज़ प्लास्टिक का निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग प्रतिबंधित रहेगा।
    • कंपोस्टेबल प्लास्टिक से बनी वस्तुओं पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा।
    • इस अधिसूचना में सूचीबद्ध प्लास्टिक वस्तुओं को छोड़कर भविष्य में अन्य प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने हेतु सरकार ने उद्योग को अनुपालन के लिये अधिसूचना की तारीख से दस वर्ष का समय दिया है।
    • प्लास्टिक बैग की अनुमत मोटाई जो कि वर्तमान में 50 माइक्रोन है, को  30 सितंबर, 2021 से 75 माइक्रोन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन तक बढ़ाई जाएगी।
      • अधिक मोटाई वाले प्लास्टिक बैग कचरे के रूप में अधिक आसानी से संभाले जा सकते हैं और उनमें उच्च पुनर्चक्रण क्षमता होती है।
  • प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिये कानूनी ढाँचा: वर्तमान में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 देश में 50 माइक्रोन से कम मोटाई के कैरी बैग और प्लास्टिक शीट के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
    • प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 वर्ष 2016 के नियमों में संशोधन करता है।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण निकायों के साथ प्रतिबंध की निगरानी करेगा, उल्लंघनों की पहचान करेगा और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत निर्धारित दंड लगाएगा।

कम्पोस्टेबल प्लास्टिक:

  • पेट्रोकेमिकल्स और जीवाश्म ईंधन से निर्मित प्लास्टिक की जगह प्रयोग में आने वाली कंपोस्टेबल प्लास्टिक मकई, आलू और टैपिओका स्टार्च, सेल्युलोज़, सोया प्रोटीन तथा लैक्टिक एसिड जैसे नवीकरणीय सामग्रियों से निर्मित की जाती है। 
  • ये गैर विषैले पदार्थ होते हैं और कम्पोस्टेबल होने या खाद में परिवर्तित होने पर वापस कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और बायोमास में विघटित हो जाते हैं।

Compostable-Plastic

सिंगल यूज़ प्लास्टिक और प्रतिबंध का कारण:

  • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक या डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक को फेंकने या पुनर्नवीनीकरण से पूर्व केवल एक बार उपयोग किया जाता है।
  • यह प्लास्टिक इतना सस्ता और सुविधाजनक है कि इसने पैकेजिंग उद्योग की अन्य सभी सामग्रियों को प्रतिस्थापित कर दिया है लेकिन इसे विघटित होने में सैकड़ों वर्ष का समय  लग जाता है।
    • आंँकड़ों का अवलोकन करें तो हमारे देश में हर वर्ष पैदा होने वाले 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे में से 43 फीसदी सिंगल यूज़ प्लास्टिक होता है।
  • इसके अलावा पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक नॉन बायोडिग्रेडेबल (Non Biodegradable)  होता है जिसे सामान्यतः  लैंडफिल के माध्यम से दफनाया जाता है या यह पानी में मिलकर समुद्र में प्रवाहित हो जाता है।
    • विखंडन की प्रक्रिया में यह ज़हरीले रसायनों (एडिटिव्स जो प्लास्टिक को आकार देने और सख्त करने के लिये उपयोग किया जाता है) को स्रावित करता है जो हमारे भोजन और पानी में मिश्रित हो जाते हैं।
  • सिंगल यूज़ प्लास्टिक वस्तुओं के कारण उत्पन्न होने वाला प्रदूषण सभी देशों के सामने एक महत्त्वपूर्ण एवं गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन गया है और भारत सिंगल यूज़ प्लास्टिक के कूड़े से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिये कार्रवाई हेतु प्रतिबद्ध है।
    • वर्ष 2019 में चौथी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में भारत ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों के कारण होने वाले प्रदूषण की समस्या को संबोधित करने हेतु एक प्रस्ताव पेश किया।
  • वर्ष 2018 में  संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री को वर्ष 2022 तक सभी सिंगल यूज़ प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लेने के लिये  ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।

प्लास्टिक अपशिष्ट पर अंकुश लगाने हेतु पहलें

आगे की राह

  • सतत् विकल्प: आर्थिक रूप से किफायती और पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य ऐसे सतत् विकल्प को अपनाना, जो आवश्यक संसाधनों पर बोझ नहीं डालेंगे और उनकी कीमतें भी समय के साथ कम होंगी तथा मांग में वृद्धि होगी।
    • कपास, खादी बैग और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक जैसे विकल्पों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है।
    • सतत् रूप से व्यवहार्य विकल्पों की तलाश के लिये और अधिक ‘अनुसंधान एवं विकास’ (R&D) और वित्त की आवश्यकता है।
  • सर्कुलर अर्थव्यवस्था: प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये देशों को प्लास्टिक मूल्य शृंखला में सर्कुलर और सतत् आर्थिक प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
    • एक सर्कुलर इकाॅनमी एक क्लोज़्ड-लूप सिस्टम बनाने, संसाधनों के उपयोग को कम करने, अपशिष्ट के उत्पादन, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, मरम्मत, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर होती है।
  • व्यवहार परिवर्तन: नागरिकों के व्यवहार में बदलाव लाना और उन्हें अपशिष्ट पृथक्करण तथा अपशिष्ट प्रबंधन के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व: नीतिगत स्तर पर ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) की अवधारणा, जो पहले से ही वर्ष 2016 के नियमों के तहत उल्लिखित है, को बढ़ावा देना होगा।
    • ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) एक नीतिगत दृष्टिकोण है, जिसके तहत उत्पादकों को पोस्ट-कंज़्यूमर उत्पादों के उपचार या निपटान का महत्त्वपूर्ण दायित्व- वित्तीय और/या भौतिक सौंपा जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस