एशियाई जलपक्षी गणना -2020 | 06 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आंध्र प्रदेश में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society- BNHS) के विशेषज्ञों के तत्त्वावधान में दो दिवसीय एशियाई जलपक्षी गणना-2020 (Asian Waterbird Census-2020)  संपन्न हुई।

प्रमुख बिंदु: 

  • प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में एशिया और ऑस्ट्रेलिया के हज़ारों स्वयंसेवकों द्वारा अपने देश में आर्द्रभूमियों (Wetlands) की यात्रा की जाती है और इस दौरान वे वाटरबर्ड्स/जलपक्षियों   की गिनती करते हैं। इस नागरिक विज्ञान कार्यक्रम (Citizen Science Programme) को एशियाई जलपक्षी गणना (AWC) कहा जाता है।
  • AWC,  ग्लोबल वॉटरबर्ड मॉनीटरिंग प्रोग्राम (Global Waterbird Monitoring programme) तथा  इंटरनेशनल वॉटरबर्ड सेंसस ( International Waterbird Census-IWC) का एक अभिन्न अंग है, जो वेटलैंड्स इंटरनेशनल (Wetlands International) द्वारा समन्वित है।
    • IWC का संचालन 143 देशों में किया जाता है, यह आर्द्रभूमि साइटों पर जलपक्षियों की संख्या के बारे में जानकारी एकत्र करने से संबंधित है।
    • वेटलैंड्स इंटरनेशनल एक ग्लोबल नॉट-फॉर-प्रॉफिट ऑर्गेनाइज़ेशन है जो आर्द्रभूमियों  के संरक्षण और बहाली के लिये समर्पित है।
    • इसका संचालन अफ्रीका, यूरोप, पश्चिम एशिया, नियोट्रोपिक्स और कैरिबियन में अंतर्राष्ट्रीय जलपक्षी गणना  के अन्य क्षेत्रीय कार्यक्रमों के समानांतर होता है।

विस्तार:

  •  एशियाई जलपक्षी गणना को वर्ष 1987 में भारतीय उपमहाद्वीप में शुरू किया गया तथा इसका विस्तार तेज़ी से अफगानिस्तान से पूर्व की ओर जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया और आस्ट्रेलिया तक हो गया है।
  •  जलपक्षी गणना में पूरे पूर्वी एशियाई - ऑस्ट्रेलियाई फ्लाइवे और मध्य एशियाई फ्लाइवे का एक बड़ा हिस्सा शामिल है।
    • पूर्वी एशिया- ऑस्ट्रेलिया फ्लाइवे आर्कटिक रूस और उत्तरी अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया तथा  न्यूज़ीलैंड की दक्षिणी सीमा तक फैला हुआ है। इसमें पूर्वी एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशिया का बड़ा क्षेत्र शामिल हैं जिसमें पूर्वी भारत तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
    • मध्य एशियाई फ्लाइवे (Central Asian Flyway- CAF) आर्कटिक और भारतीय महासागरों और संबद्ध द्वीप शृंखलाओं के बीच यूरेशिया के एक बड़े महाद्वीपीय क्षेत्र को कवर करता है।

लाभ:

  • गणना से न केवल पक्षियों की वास्तविक संख्या का पता चलता है बल्कि आर्द्रभूमि की वास्तविक स्थिति का भी अंदाजा लगता है, अर्थात् जलपक्षियों की उच्च संख्या यह इंगित करती हैं कि आर्द्रभूमि क्षेत्र में भोजन की पर्याप्त मात्रा , पक्षियों के आराम करने, रोस्टिंग (Roosting) और फोर्जिंग (Foraging) स्पॉट विद्यमान हैं।
  • एकत्र की गई जानकारी राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित क्षेत्रों, रामसर साइट्स, पूर्वी एशियाई - ऑस्ट्रेलियन फ्लाइवे नेटवर्क साइट्स, महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्रों जैसे अंतर्राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण स्थलों के निर्धारण और प्रबंधन को बढ़ावा देने में सहायक होती है।
  • यह कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीसीज़ (Convention on Migratory Species- CMS) और कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (Convention on Biological Diversity‘s- CBD) को लागू करने में भी मदद करता है।

भारत में एशियाई जलपक्षी गणना:

  • भारत में AWC को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।
    • BNHS एक अखिल भारतीय वन्यजीव अनुसंधान संगठन है, जो वर्ष 1883 से प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है।
  • भारत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण AWC साइटों और वेटलैंड IBA की एक संदर्भ सूची तैयार की गई है।
    • भारत में कुल 42 रामसर स्थल हैं, इनमें लद्दाख का त्सो कर वेटलैंड  नवीनतम शामिल क्षेत्र है।
    • बर्डलाइफ से संबंधित महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र (Important Bird and Biodiversity Area- IBA) कार्यक्रम पक्षियों और अन्य वन्यजीवों के संरक्षण हेतु प्राथमिकता वाले स्थलों के वैश्विक नेटवर्क की पहचान, निगरानी और सुरक्षा करता है। भारत में ऐसी 450 से अधिक साइटें विद्यमान हैं।
    • फरवरी 2020 में  गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया।
      • COP13 में CMS परिशिष्ट में दस नई प्रजातियांँ शामिल की गईं। इनमें एशियाई हाथी ( Asian Elephant), जगुआर (Jaguar), ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard), बंगाल फ्लोरिकन (Bengal Florican) इत्यादि सहित सात प्रजातियों को परिशिष्ट-1 (जो कि सबसे कड़ी सुरक्षा प्रदान करता है) में शामिल किया गया था।
    • भारत द्वारा दिसंबर 2018 में जैव विविधता सम्मेलन (Convention on Biological Diversity- CBD) पर अपनी छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट (NR6) प्रस्तुत की गई।

स्रोत: द हिंदू