सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) | 01 Oct 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA)

मेन्स के लिये:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) और संबंधित मुद्दे, विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ और उनका जनादेश, आंतरिक और सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय (MHA) ने अरुणाचल प्रदेश तथा नगालैंड के कुछ हिस्सों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) को और छह महीने के लिये बढ़ा दिया है।

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA):

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिये बनाए गए ब्रिटिश-काल के कानून का पुनर्गठन, AFSPA 1947 में चार अध्यादेशों के माध्यम से जारी किया गया था।
    • अध्यादेशों को वर्ष 1948 में एक अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था और पूर्वोत्तर में प्रभावी वर्तमान कानून को वर्ष 1958 में तत्कालीन गृह मंत्री जीबी पंत द्वारा संसद में पेश किया गया था।
    • इसे शुरू में सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम, 1958 के रूप में जाना जाता था।
    • अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड राज्यों के अस्तित्व में आने के बाद अधिनियम को इन राज्यों पर भी लागू करने के लिये अनुकूलित किया गया था।
  • परिचय:
    • AFSPA सशस्त्र बलों और "अशांत क्षेत्रों" में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने तथा बिना वारंट के किसी भी परिसर की तलाशी लेने एवं अभियोजन तथा कानूनी मुकदमों से सुरक्षा के साथ निरंकुश अधिकार देता है।
    • नगाओं के विद्रोह से निपटने के लिये यह कानून पहली बार वर्ष 1958 में लागू हुआ था।
    • अधिनियम को वर्ष 1972 में संशोधित किया गया था और किसी क्षेत्र को "अशांत" घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गई थीं।
    • त्रिपुरा ने वर्ष 2015 में अधिनियम को निरस्त कर दिया तथा मेघालय 27 वर्षों के लिये AFSPA के अधीन था, जब तक कि इसे 1 अप्रैल, 2018 से MHA द्वारा निरस्त नहीं कर दिया गया।
    • वर्तमान में AFSFA असम, नगालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है।
  • अधिनियम को लेकर विवाद:
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन:
      • कानून गैर-कमीशन अधिकारियों तक, सुरक्षाकर्मियों को बल का उपयोग करने और "मृत्यु होने तक" गोली मारने का अधिकार देता है, यदि वे आश्वस्त हैं कि "सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने" के लिये ऐसा करना आवश्यक है।
      • यह सैनिकों को बिना वारंट के परिसर में प्रवेश करने, तलाशी लेने और गिरफ्तारी करने की कार्यकारी शक्तियाँ भी देता है।
      • सशस्त्र बलों द्वारा इन असाधारण शक्तियों के प्रयोग से अक्सर अशांत क्षेत्रों में सुरक्षा बलों पर फर्जी मुठभेड़ों और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं, जबकि नगालैंड एवं जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्यों में AFSPA के अनिश्चितकालीन लागू होने पर सवाल उठाया गया है।
    • जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशें:
      • नवंबर 2004 में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा के लिये न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति गठित की।
      • समिति की मुख्य सिफारिशें इस प्रकार थीं:
        • AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिये और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में उचित प्रावधान शामिल किये जाने चाहिये।
        • सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने हेतु गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिये तथा प्रत्येक ज़िले में जहांँ सशस्त्र बल तैनात हैं, शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किये जाने चाहिये।
    • दूसरी ARC की सिफारिशें: सार्वजनिक व्यवस्था पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 5वीं रिपोर्ट में भी AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की गई है। हालांँकि इन सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है।

अधिनियम पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार:

  • वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय (नगा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) में AFSPA की संवैधानिकता को बरकरार रखा है।
  • इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि-
    • केंद्र सरकार द्वारा स्व-प्रेरणा से घोषणा की जा सकती है, हालांकि यह वांछनीय है कि घोषणा करने से पहले राज्य सरकार को केंद्र सरकार से परामर्श लेना चाहिये।
    • घोषणा एक सीमित अवधि के लिये होनी चाहिये और घोषणा की समय-समय पर समीक्षा हेतु 6 महीने की अवधि समाप्त हो गई है।
    • AFSPA द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते समय प्राधिकृत अधिकारी को प्रभावी कार्रवाई हेतु आवश्यक न्यूनतम बल का प्रयोग करना चाहिये।

आगे की राह

  • वर्षों से कई मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं के कारण अधिनियम की यथास्थिति अब स्वीकार्य समाधान नहीं है। AFSPA उन क्षेत्रों में उत्पीड़न का प्रतीक बन गया है जहांँ इसे लागू किया गया है, इसलिये सरकार को प्रभावित लोगों को संबोधित करने और उन्हें अनुकूल कार्रवाई के लिये आश्वस्त करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को मामले-दर-मामले आधार पर AFSPA को लागू करने और हटाने पर विचार करना चाहिये तथा पूरे राज्य में इसे लागू करने के बजाय केवल कुछ सवेदनशील ज़िलों तक सीमित करना चाहिये।
  • सरकार और सुरक्षा बलों को सर्वोच्च न्यायालय, जीवन रेड्डी आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का भी पालन करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. मानवाधिकार सक्रियतावादी लगातार इस विचार को उज़ागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSP) एक क्रूर अधिनियम है, जिससे सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार के दुरुपयोगों के मामले उत्पन्न होते हैं। इस अधिनियम की कौन-सी धाराओं का सक्रियतावादी विरोध करते हैं? उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्त विचार के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)

स्रोत: द हिंदू