सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति | 22 May 2023

प्रिलिम्स के लिये:

कॉलेजियम प्रणाली, भारत का मुख्य न्यायाधीश

मेन्स के लिये:

कॉलेजियम प्रणाली का विकास और इसकी आलोचना, सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दो नए न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की नियुक्ति की गई है।

  • इनके शामिल होने के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में 34 न्यायाधीशों की निर्धारित स्वीकृत संख्या  पूर्ण हो गई है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया:

  • सर्वोच्च न्यायालय की संरचना और शक्ति: 
    • मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में आठ न्यायाधीश थे (एक मुख्य न्यायाधीश और सात अन्य)। 
    • संसद ने समय के साथ न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की है।
    • सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान में 34 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश और 33 अन्य) है।
  • न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये योग्यताएँ:
    • संविधान के अनुच्छेद 124 (3) के अनुसार, एक व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है: 
      • व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिये।
      • एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कम-से-कम पाँच साल या लगातार दो ऐसी न्यायालयों में सेवा की हो।
      • वैकल्पिक रूप से कम-से-कम दस वर्षों के लिये एक उच्च न्यायालय का अधिवक्ता या कुल मिलाकर दो या दो से अधिक विभिन्न न्यायालयों में अधिवक्ता रहा हो।
      • राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित न्यायविद होना चाहिये।
  • नियुक्ति: 
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 124 के खंड (2) के अंतर्गत की जाती है
      •  राष्ट्रपति सूचित नियुक्तियाँ करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के साथ परामर्श करता है।
  • शपथ:
    • प्रत्येक नियुक्त न्यायाधीश को राष्ट्रपति या इस कार्य के लिये नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी होती है और उस पर हस्ताक्षर करने होते हैं।
    • शपथ में भारत के संविधान, संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने तथा भय या पक्षपात के बिना कर्त्तव्यों का पालन करने की प्रतिबद्धता शामिल है
  • कार्यकाल और निष्कासन: 
    • संविधान में न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये कोई निर्धारित न्यूनतम समय-सीमा तय नहीं है।
    • सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद पर बना रहता है।
      • हालाँकि एक न्यायाधीश राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा देकर 65 वर्ष की आयु से पूर्व भी इस्तीफा दे सकता है।
  • वेतन एवं भत्ते: 
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते एवं विशेषाधिकार, अवकाश और पेंशन संसद द्वारा निर्धारित किये जाते हैं।
      • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, पेंशन और भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं।
  • सेवानिवृत्ति के बाद प्रतिबंध:
    • सेवानिवृत्ति के बाद सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को भारत में किसी भी अदालत में कानून का अभ्यास करने या किसी भी सरकारी प्राधिकरण के समक्ष वकालत करने से प्रतिबंधित किया जाता है।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 128 के अनुसार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के राष्ट्रपति की पूर्व- अनुमति से ही भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने के लिये वापस बुलाया जा सकता है
  • निष्कासन:
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश से ही पद से हटाया जा सकता है। जिसे पद से हटाने की प्रक्रिया के लिये संसद के प्रत्येक सदन द्वारा संबोधित करने की आवश्यकता होती है जिसे विशेष बहुमत द्वारा समर्थित किया जाता है, यानी उस सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा किया जा सकता है।
    • निष्कासन के आधार में दुर्व्यवहार या अक्षमता भी सम्मिलित होते हैं।
    • संसद के पास अभिभाषण प्रस्तुत करने और किसी न्यायाधीश के दुर्व्यवहार या अक्षमता की जाँच करने तथा उसे सिद्ध करने की प्रक्रिया को विनियमित करने का अधिकार है।
    • एक बार नियुक्त होने के बाद न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक सेवा करते हैं तथा उनके कार्यकाल की अवधि में सिद्ध कदाचार या अक्षमता को छोड़कर उन्हें हटाया नहीं जा सकता है।
  • न्यायिक नियुक्तियों के लिये कॉलेजियम प्रणाली:
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से की जाती है।
    • कॉलेजियम, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल हैं, न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति एवं स्थानांतरण पर निर्णय लेते हैं।
    • भारतीय संविधान में "कॉलेजियम" शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से स्थापित किया गया है।

कॉलेजियम प्रणाली का विकास:

  • प्रथम न्यायाधीश मामला (1981): 
    • इसने यह निर्धारित किया कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के सुझाव की "प्रधानता" को "ठोस कारणों" के चलते अस्वीकार किया जा सकता है।
    • इस निर्णय ने अगले 12 वर्षों के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी है।
  • दूसरा न्यायाधीश मामला (1993): 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की कि "परामर्श" का अर्थ वास्तव में "सहमति" है।
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत राय होगी।
  • तीसरा न्यायाधीश मामला (1998):
    • राष्ट्रपति द्वारा जारी एक प्रेज़िडेंशियल रेफरेंस (Presidential Reference) (अनुच्छेद 143) के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें CJI और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल होंगे।
  • चौथा न्यायाधीश मामला (2015): 
    • 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2014 एवं राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission- NJAC) नामक एक नए निकाय के साथ सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को बदल दिया है।
    • हालाँकि वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने 99वें संवैधानिक संशोधन के साथ-साथ NJAC अधिनियम को असंवैधानिक और चौथे न्यायाधीश के मामले में शून्य घोषित कर दिया। नतीजतन, पहले की कॉलेजियम प्रणाली फिर से सक्रिय हो गई। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से वापस बैठने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिये बुलाया जा सकता है। 
  2. भारत में उच्च न्यायालय के पास अपने निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) 

स्रोत: द हिंदू