AFSPA और पूर्वोत्तर | 01 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA), 1958, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)।

मेन्स के लिये:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA), 1958, उत्तर पूर्व विद्रोह।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने तीन पूर्वोत्तर राज्यों- असम, नगालैंड और मणिपुर के हिस्सों में लागू सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA) को आंशिक रूप से वापस ले लिया है।

  • वर्तमान में AFSPA इन तीन राज्यों के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में भी लागू है।

AFSPA

AFSPA

  • AFSPA सशस्त्र बलों को निरंकुश शक्तियाँ देता है।
    • उदाहरण के लिये यह उन्हें कानून का उल्लंघन करने वाले या हथियार और गोला-बारूद रखने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ गोली चलाने की अनुमति देता है, भले ही इससे उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाए
    • साथ ही यह उन्हें "उचित संदेह" के आधार पर वारंट के बिना ही व्यक्तियों को गिरफ्तार करने और परिसर की तलाशी लेने की शक्ति प्रदान करता है।
  • धारा 3 के तहत "अशांत" क्षेत्र घोषित किये जाने के बाद इसे केंद्र या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा, राज्य या उसके कुछ हिस्सों पर लगाया जा सकता है।
    • अधिनियम को वर्ष 1972 में संशोधित किया गया था, इसके अंतर्गत किसी क्षेत्र को "अशांत" घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गई थीं।
    • वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) केवल नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के लिये AFSPA का विस्तार करने हेतु समय-समय पर "अशांत क्षेत्र" अधिसूचना जारी करता है।
    • मणिपुर और असम के लिये अधिसूचना राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाती है।
    • त्रिपुरा ने वर्ष 2015 में अधिनियम को निरस्त कर दिया तथा मेघालय 27 वर्षों के लिये AFSPA के अधीन था, जब तक कि इसे 1 अप्रैल, 2018 से MHA द्वारा निरस्त नहीं कर दिया गया।

 AFSPA के संदर्भ में राज्य सरकारों की भूमिका:

  • राज्य के साथ अनौपचारिक परामर्श: अधिनियम केंद्र सरकार को AFSPA लगाने का निर्णय एकतरफा रूप से लेने का अधिकार देता है, यह कार्य आमतौर पर अनौपचारिक रूप से राज्य सरकार के इच्छा अनुरूप होता है।
    • राज्य सरकार की सिफारिश के बाद ही केंद्र इस पर निर्णय लेता है।
  • स्थानीय पुलिस के साथ समन्वय: अधिनियम सुरक्षा बलों को गोली चलाने की शक्ति प्रदान करता है, यह संदिग्ध को पूर्व चेतावनी के बिना नहीं किया जा सकता है। 
    • अधिनियम के मुताबिक संदिग्धों की गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के अंदर सुरक्षाबलों को उन्हें स्थानीय थाने को सौंपना होता है।
    • इसमें कहा गया है कि सशस्त्र बलों को ज़िला प्रशासन के सहयोग से कार्य करना चाहिये, न कि एक स्वतंत्र निकाय के रूप में।

AFSPA को वापस लेने का कारण तथा इसके प्रभाव:

  • वापसी: AFSPA के तहत क्षेत्रों की सुरक्षा की स्थिति में सुधार भारत सरकार द्वारा उग्रवाद को समाप्त करने व उत्तर-पूर्व में स्थायी शांति लाने के लिये लगातार किये गए प्रयासों और समझौतों के परिणामस्वरूप तेज़ी से विकास का परिणाम है।
  • प्रभाव: पूर्वोत्तर भारत में लगभग बीते 60 वर्षों से AFSPA अनवरत रूप से लागू है, जिससे पूर्वोत्तर भारत के वासियों के बीच देश के शेष हिस्सों से अलगाव की भावना पैदा हो रही है।
    • मौजूदा हालिया कदम से इस क्षेत्र को असैन्य बनाने में मदद मिलने की उम्मीद है; यह चौकियों के माध्यम से तलाशी और निवासियों की आवाजाही पर प्रतिबंध को हटा देगा।

पूर्वोत्तर भारत पर AFSPA लगाए जाने का कारण:

  • नगा विद्रोह: जब 1950 के दशक में ‘नगा राष्ट्रीय परिषद’ (NNC) की स्थापना के साथ नगा राष्ट्रवादी आंदोलन शुरू हुआ तो असम पुलिस ने कथित तौर पर आंदोलन को दबाने के लिये बल प्रयोग किया।
    • जैसे ही नगालैंड में एक सशस्त्र आंदोलन ने जड़ें जमाईं तो संसद में AFSPA पारित किया गया और बाद में इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया गया।
    • मणिपुर में भी इसे वर्ष 1958 में सेनापति, तामेंगलोंग और उखरुल के तीन नगा-बहुल ज़िलों में लगाया गया था, जहाँ NNC सक्रिय थी।
  • अलगाववादी और राष्ट्रवादी आंदोलन: जैसे ही अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववादी एवं राष्ट्रवादी आंदोलन होने लगे AFSPA का प्रयोग और अधिक किया जाने लगा।

AFSPA के अलोकप्रिय होने के कारण:

  • अलगाव की भावना को बढ़ाना: नगा राष्ट्रवादी आंदोलन के नेताओं के अनुसार, बल प्रयोग और AFSPA के अनुचित प्रयोग ने नगा लोगों के बीच अलगाव की भावना को बढ़ाया है।
  • कठोर कानून और फर्जी मुठभेड़: पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा की विभिन्न घटनाएँ दर्ज की गई हैं, क्योंकि AFSPA सुरक्षा बलों को व्यापक अधिकार देता है।
    • वर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक रिट याचिका में न्यायेत्तर हत्याओं के पीड़ितों के परिवारों ने आरोप लगाया था कि पुलिस द्वारा मई 1979 से मई 2012 तक राज्य में 1,528 फर्जी मुठभेड़ों को अंजाम दिया गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इनमें से छह मामलों की जाँच के लिये एक आयोग का गठन किया और आयोग ने सभी छह को फर्जी मुठभेड़ पाया।
  • राज्य को दरकिनार करना: ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ केंद्र सरकार ने राज्य को दरकिनार कर दिया है, जिसमें वर्ष 1972 में त्रिपुरा में AFSPA लागू करना भी शामिल है।

AFSPA को निरस्त करने हेतु किये गए प्रयास:

  • इरोम शर्मिला द्वारा विरोध: वर्ष 2000 में सामाजिक कार्यकर्त्ता इरोम शर्मिला ने भूख हड़ताल शुरू की जो मणिपुर में AFSPA के खिलाफ 16 वर्ष तक जारी रहेगी।
  • जस्टिस जीवन रेड्डी: वर्ष 2004 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस जीवन रेड्डी के नेतृत्व में पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया था।
    • समिति ने AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की और इसे "अत्यधिक अवांछनीय" बताया, और माना कि यह कानून उत्पीड़न का प्रतीक बन गया है।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश: बाद में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने इन सिफारिशों का समर्थन किया।

आगे की राह

  • सरकार और सुरक्षा बलों को सर्वोच्च न्यायालय, जीवन रेड्डी आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस