आचार्य विनोबा भावे | 13 Sep 2021

प्रिलिम्स के लिये:

आचार्य विनोबा भावे, महात्मा गांधी, भूदान आंदोलन, असहयोग आंदोलन, महाराष्ट्र धर्म

मेन्स के लिये:

आचार्य विनोबा भावे का राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान एवं उनके सामाजिक सुधार संबंधी कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने आचार्य विनोबा भावे की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

प्रमुख बिंदु

  • जन्म:

    • विनायक नरहरि भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गागोडे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था।
    • नरहरि शंभू राव और रुक्मिणी देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे।
      • उन पर उनकी माँ का अत्यधिक प्रभाव था, इसी कारण वह उनसे 'गीता' पढ़ने के लिये प्रेरित हुए।
  • संक्षिप्त परिचय:

    • वे भारत के सबसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से एक और महात्मा गांधी के एक व्यापक रूप से सम्मानित शिष्य थे।
    • साथ ही भूदान आंदोलन के संस्थापक (भूमि-उपहार आंदोलन) थे।
  • गांधी के साथ जुड़ाव:

    • वे महात्मा गांधी के सिद्धांतों व विचारधारा से आकर्षित होकर राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से गांधी को अपना गुरु मानते थे।
    • उन्होंने वर्ष 1916 में अहमदाबाद के पास साबरमती में गांधीजी के आश्रम (तपस्वी समुदाय) में शामिल होने के लिये अपनी हाईस्कूल की पढ़ाई छोड़ दी।
    • गांधी की शिक्षाओं ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के लिये समर्पित जीवन की ओर अग्रसर किया।
  • स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:

    • उन्होंने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और विशेष रूप से आयातित विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान किया।
    • वर्ष 1940 में उन्हें भारत में गांधीजी द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही (सामूहिक कार्रवाई के बजाय सत्य के लिये खड़े होने वाले व्यक्ति) के रूप में चुना गया था।
    • 1920 और 1930 के दशक के दौरान भावे को कई बार बंदी बनाया गया तथा ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिये 40 के दशक में पांँच साल की जेल की सज़ा दी गई थी। उन्हें आचार्य (शिक्षक) की सम्मानित उपाधि दी गई थी।
  • सामाजिक कार्यों में भूमिका:

    • उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की दिशा में अथक प्रयास किया।
    • गांधीजी द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रभावित होकर उन्होंने उन लोगों का मुद्दा उठाया जिन्हें गांधीजी द्वारा हरिजन कहा जाता था।
    • उन्होंने गांधीजी के सर्वोदय शब्द को अपनाया जिसका अर्थ है "सभी के लिये प्रगति" (Progress for All)।
    • इनके नेतृत्व में 1950 के दशक के दौरान सर्वोदय आंदोलन ने विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें प्रमुख भूदान आंदोलन है।
  • भूदान आंदोलन:

    • वर्ष 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली (Pochampalli) गाँव के हरिजनों ने उनसे जीविकोपार्जन के लिये लगभग 80 एकड़ भूमि प्रदान कराने का अनुरोध किया।
    • विनोबा ने गाँव के ज़मींदारों को इस आंदोलन में आगे आने और हरिजनों की सहायता करने के लिये कहा। उसके बाद एक ज़मींदार ने आगे बढ़कर आवश्यक भूमि प्रदान करने की पेशकश की। इस घटना ने बलिदान और अहिंसा के इतिहास मेंएक नया अध्याय जोड़ दिया।
    • यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी।
    • यह आंदोलन 13 वर्षों तक जारी रहा और इस दौरान विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) का भ्रमण किया।
    • वह लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित किया गया।
    • इस आंदोलन ने दुनिया भर से प्रशंसको को आकर्षित किया तथा स्वैच्छिक सामाजिक न्याय को जागृत करने हेतु इस तरह के एकमात्र प्रयोग के कारण इसकी सराहना की गई।
  • क्षेत्रीय कार्य:

    • वर्ष 1923 में उन्होंने मराठी में एक मासिक 'महाराष्ट्र धर्म' का प्रकाशन किया, जिसमें उपनिषदों पर उनके निबंध छापे गए थे।
    • उन्होंने जीवन के एक सरल तरीके को बढ़ावा देने के लिये कई आश्रम स्थापित किये, जो विलासिता से रहित थे, क्योंकि यह लोगों का ध्यान ईश्वर की भक्ति से हटा देता है।
    • महात्मा गांधी की शिक्षाओं की तर्ज पर आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1959 में महिलाओं के लिये ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की स्थापना की।
    • उन्होंने गोहत्या पर कड़ा रुख अपनाया और इसके प्रतिबंधित होने तक उपवास करने की घोषणा की।
  • साहित्यक रचना:

    • उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में शामिल हैं: स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति आदि।
  • मृत्यु

    • वर्ष 1982 में वर्द्धा, महाराष्ट्र में उनका निधन हो गया।
  • पुरस्कार

    • विनोबा भाबे वर्ष 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय व्यक्ति थे। उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।

स्रोत: पीआईबी