दिव्यांगजनों का सशक्तीकरण | 19 May 2025

प्रिलिम्स के लिए:

दिव्यांगजनों के अधिकारों पर कन्वेंशन, मूल अधिकार, अनुच्छेद 41, भारतीय पुनर्वास परिषद, PM-DAKSH योजना

मेन्स के लिए:

भारत में दिव्यांगजनों के अधिकार और सशक्तीकरण, सामाजिक न्याय एवं समानता प्राप्त करने में सुगम्यता का महत्त्व

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (DEPwD) ने वैश्विक सुगम्यता जागरूकता दिवस (GAAD) के अवसर पर समावेशी भारत शिखर सम्मेलन का आयोजन किया।

  • इस शिखर सम्मेलन के परिणामस्वरूप दिव्यांगजनों के समावेशन को बढ़ावा देने के क्रम में तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। इसकी प्रमुख पहलों में सार्वजनिक भवनों का ऑडिट करने के लिए 'सुगम्यता सूचकांक', समावेशी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना तथा हैकथॉन एवं राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के माध्यम से जागरूकता बढ़ाना शामिल है।

नोट: GAAD की स्थापना वर्ष 2012 में जेनिसन असुनसियन (एक्सेसिबिलिटी प्रोफेशनल) तथा जो डेवॉन (वेब ​​डेवलपर) द्वारा की गई थी, यह दिवस प्रतिवर्ष मई के तीसरे गुरुवार को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य डेवलपर्स, डिज़ाइनरों तथा डिजिटल रचनाकारों को दिव्यांगजनों (PwDs) हेतु सुलभ वेबसाइट एवं डिजिटल सामग्री निर्मित करने हेतु प्रोत्साहित करना है।

समावेशी समाज हेतु सुगम्यता क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • समान अधिकार तथा भागीदारी सुनिश्चित करना: सुगम्यता से दिव्यांगजनों को उनके मूल मानवाधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवा एवं सामाजिक भागीदारी तक पहुँच को प्रदान करने में सुलभता होती है।
  • पूर्ण समावेशन के क्रम में बाधाओं में कमी आना: दिव्यांगजनों को अक्सर शारीरिक और मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 
    • सुगम्यता का उद्देश्य विविध आवश्यकताओं के अनुरूप उचित समायोजन प्रदान करके इन बाधाओं को दूर करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में शामिल हो सकें।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानक फ्रेमवर्क: संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख दस्तावेज़ जैसे कि दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD), दिव्यांगजनों से संबंधित विश्व कार्य योजना तथा अवसरों की समानता पर मानक नियम के तहत सुगम्यता को एक अधिकार तथा दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के साधन के रूप में महत्त्व दिया गया है। 
    • इन ढाँचों में सुलभ भौतिक वातावरण, सूचना, संचार, परिवहन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सुलभ पहुँच शामिल है।
  • सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा: समावेशी समाज से गरीबी उन्मूलन एवं समान आर्थिक अवसरों के साथ समग्र सतत् विकास में योगदान मिलता है।

भारत में दिव्यांगजनों की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • भारत में दिव्यांगजन: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में दिव्यांगजनों की संख्या 2.68 करोड़ (कुल जनसंख्या का 2.21%) है।   
    • दिव्यांगता का प्रचलन महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक था, पुरुषों में यह दर 2.4% और महिलाओं में 1.9% थी। यह शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक था।
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (RPwD Act), 2016 के अनुसार, कुल 21 प्रकार की दिव्यांगताएँ शामिल की गई हैं, जिनमें चलने-फिरने में असमर्थता (Locomotor Disability),
      दृष्टिबाधिता, श्रवण बाधिता (Hearing Impairment), वाणी एवं भाषा की दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, एक से अधिक दिव्यांगता (Multiple Disabilities), मस्तिष्क पक्षाघात (Cerebral Palsy), बौनेपन की स्थिति (Dwarfism) आदि शामिल हैं।  
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • संविधान की प्रस्तावना: सभी नागरिकों को न्याय (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक), स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, उपासना की) तथा समानता (स्थिति और अवसर की) सुनिश्चित करती है।
    • मूल अधिकार (भाग III): संविधान छह मूल अधिकारों (समानता, स्वतंत्रता, शोषण से संरक्षण, धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार तथा संवैधानिक उपचार) की गारंटी देता है, जो दिव्यांगजनों सहित सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, भले ही उनका स्पष्ट रूप से उल्लेख न किया गया हो। 
    • राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (भाग IV): अनुच्छेद 41 में बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी और दिव्यांगता के मामलों में सार्वजनिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
      • यह राज्य को अपनी आर्थिक क्षमता के भीतर ज़रूरतमंद लोगों के लिये कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान करने का अधिकार देता है।  
    • पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकाय:
      • बारहवीं अनुसूची (अनुच्छेद 243-W की प्रविष्टि 9): "दिव्यांग और मानसिक रूप से मंद लोगों सहित समाज के कमज़ोर वर्गों के हितों की रक्षा करना।"   
      • ग्यारहवीं अनुसूची (अनुच्छेद 243-G की प्रविष्टि 26): ग्यारहवीं अनुसूची (अनुच्छेद 243-G की प्रविष्टि 26): दिव्यांग और मानसिक रूप से मंद लोगों के कल्याण सहित सामाजिक कल्याण भी शामिल है।”
  • नीतिगत रूपरेखा: दिव्यांगजन के लिये राष्ट्रीय नीति, 2006 का उद्देश्य समाज में दिव्यांगजनों के लिये समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना है।
    • भारत ने वर्ष 2008 में UNCRPD की पुष्टि की। कन्वेंशन के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने के लिये, संसद ने RPwD अधिनियम 2016 (दिव्यांगजनों के लिये सम्मान, भेदभाव रहित व्यवहार और समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये) अधिनियमित किया।
    • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 ने ऑटिज्म, मस्तिष्क पक्षाघात, मानसिक मंदता और बहु- दिव्यांगताओं से ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण हेतु एक राष्ट्रीय निकाय की स्थापना की।
    • भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम, 1992 ने RCI को दिव्यांगता सेवाओं को विनियमित और निगरानी करने, प्रशिक्षण को मानकीकृत करने तथा योग्य पुनर्वास पेशेवरों का रजिस्टर बनाए रखने के लिये एक वैधानिक निकाय बनाया।
    • वर्ष 2015 में शुरू की गई दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (SIPDA) के कार्यान्वयन की योजना, कौशल विकास के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत 15-59 वर्ष आयु वर्ग के दिव्यांगजनों के लिये कौशल प्रशिक्षण पर केंद्रित है।
  • न्यायिक घोषणाएँ:  
    • राजीव रतूड़ी बनाम भारत संघ (2024) में, सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः पुष्टि की कि दिव्यांगजनों के लिये सुगम्यता अनुच्छेद 21 के तहत एक संवैधानिक अनिवार्यता है, जो इसे जीवन, सम्मान और आवागमन की स्वतंत्रता के अधिकार से जोड़ती है।
      • इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि वास्तविक समानता सुनिश्चित करने और उन्हें हाशिये पर जाने से रोकने के लिये डिजिटल समावेशन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक बनाम ए.के. नायर एवं अन्य (2023) मामले  में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि दिव्यांगजन सशक्तीकरण अधिनियम, 2016 में समय-समय पर सरकार द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार दिव्यांगजनों के लिये पदोन्नति में आरक्षण का स्पष्ट प्रावधान है।

भारत में दिव्यांगजनों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • दुर्गम भौतिक अवसंरचना: अधिकांश सार्वजनिक इमारतें, परिवहन प्रणालियाँ और शहरी अवसंरचना सार्वभौमिक डिज़ाइन मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं। वर्ष 2018 की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, केवल 3% इमारतें ही पूरी तरह से सुलभ थीं।
    • रैम्प, लिफ्ट या स्पर्शनीय पथ जैसी बुनियादी पहुँच सुविधाओं का अभाव दिव्यांगजनों को प्रभावी रूप से अलग-थलग कर देता है, जिससे उनकी गतिशीलता और स्वतंत्रता बाधित होती है।
  • शैक्षिक बहिष्करण : 76वें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के अनुसार, 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के केवल 52.2% दिव्यांग व्यक्ति साक्षर हैं, जो समावेशी शिक्षा तक पहुँच न होना और सुलभ स्कूल सुविधाओं की कमी के कारण राष्ट्रीय औसत 80% से बहुत कम है।
  • रोज़गार संबंधी बाधाएँ और आर्थिक सीमांतीकरण: सामाजिक पूर्वाग्रह और नियोक्ता द्वारा उचित सुविधाएँ प्रदान करने में अनिच्छा के कारण दिव्यांगजन सार्थक रोज़गार प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। 
    • भारत में रोज़गार योग्य 1.3 करोड़ दिव्यांगजनों में से केवल 34 लाख को ही रोज़गार मिला हुआ है, जो प्रतिभा के पर्याप्त उपयोग न होने को दर्शाता है। 
    • इसके अतिरिक्त, कार्यस्थलों पर सुलभ बुनियादी ढाँचे और सहायक उपकरणों की कमी उनकी भागीदारी को सीमित कर रही है।
  • स्वास्थ्य सेवा की अनुपलब्धता: कोविड-19 के दौरान, दिव्यांगजनों को अत्यधिक जोखिम का सामना करना पड़ा तथा अपर्याप्त तैयारी के कारण आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुँच कम हो गई।
  • डिजिटल डिवाइड का विस्तार: लगभग 98% वेबसाइटें सुगम्यता मानकों के अनुरूप नहीं हैं, जिसके कारण दिव्यांगजन शिक्षा, बैंकिंग और शासन जैसी डिजिटल सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
    • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) जैसे कार्यक्रमों के बावजूद, डिजिटल कौशल विकास पहल में दिव्यांगों का प्रतिनिधित्व काफी कम है।
    • कई सहायक प्रौद्योगिकियाँ (जैसे, चेहरे की पहचान, ध्वनि आदेश) या तो अनुपलब्ध हैं या उनकी पहुँच बहुत कम है, जिससे विशेष रूप से एसिड हमले से बचे लोगों और दृष्टिबाधित व्यक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
  • कानूनी और नीतिगत ढाँचों का कमज़ोर कार्यान्वयन: सार्वजनिक निर्माण विभागों में कम जागरूकता और जवाबदेही के कारण सामंजस्यपूर्ण पहुँच दिशा-निर्देशों (वर्ष 2016 व वर्ष 2021) को भवन उप-नियमों में एकीकृत नहीं किया गया है।
  • विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लचीलापन: सुलभता सभी के लिये एक जैसी नहीं होती; इसका अर्थ है ऐसे वातावरण, सेवाएँ और प्रौद्योगिकियाँ डिज़ाइन करना जो लचीली हों एवं विभिन्न प्रकार की दिव्यांगताओं वाले व्यक्तियों के लिये उपयोगी हों, चाहे वे शारीरिक, संवेदी, संज्ञानात्मक या अन्य हों।

दिव्यांगजनों के लिये समावेशी और सुगम्य समाज सुनिश्चित करने हेतु  भारत क्या उपाय कर सकता है?

  • बाधा-मुक्त भौतिक अवसंरचना सुनिश्चित करना: स्कूलों, अस्पतालों और कार्यस्थलों में बाधा-मुक्त अवसंरचना सुनिश्चित करने हेतु सुगम्य भारत अभियान को पुनर्जीवित एवं विस्तारित करना।
    • दिव्यांगजनों की स्वतंत्र गतिशीलता के लिये परिवहन साधनों में सुगमता में सुधार करना। बधिरों और कम सुनने वाले व्यक्तियों के लिये सांकेतिक भाषा दुभाषियों की उपलब्धता बढ़ाना एवं सार्वजनिक प्रसारणों में कैप्शनिंग को बढ़ावा देना।
  • पर्याप्त सहयोग के साथ समावेशी शिक्षा: समग्र शिक्षा अभियान को सभी विद्यालयों में विशेष शिक्षकों की नियुक्ति सुनिश्चित करनी चाहिये। 
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 समावेशी शिक्षा की आवश्यकता को मान्यता देती है, लेकिन इसमें दिव्यांगता-विशेष ठोस रणनीतियों का अभाव है। इसके कार्यान्वयन में पाठ्यक्रम का अनुकूलन और प्रारंभिक पहचान को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • कोठारी आयोग (1966) की सिफारिशों ने लंबे समय से दिव्यांगजनों (PwD) के मुख्यधारा के विद्यालयों में एकीकरण पर बल दिया है, जिसे वित्तीय और शैक्षणिक समर्थन की आवश्यकता है।
  • समान रोज़गार के अवसर: अधिक समावेशिता सुनिश्चित करने हेतु, PM-दक्ष योजना को सुदृढ़ किया जा सकता है, जिसमें दिव्यांगजन कौशल विकास कार्यक्रम की पहुँच को ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों तक मोबाइल प्रशिक्षण इकाइयों और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के साथ साझेदारी के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।
    • दिव्यांगजन रोज़गार सेतु मंच को प्रधानमंत्री विश्वकर्मा जैसे राष्ट्रीय रोज़गार पोर्टलों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये, ताकि नौकरी के उपयुक्त मिलान की प्रक्रिया को सहज और प्रभावी बनाया जा सके।
    • साथ ही, रीयल-टाइम नौकरी विश्लेषण, दिव्यांगजनों की भर्ती के लिये नियोक्ताओं को प्रोत्साहन, और समय-समय पर तृतीय-पक्ष ऑडिट के माध्यम से इस कार्यक्रम की पारदर्शिता, पहुँच और परिणामों में सुधार किया जा सकता है।
  • डिजिटल और वित्तीय सुगमता: भारतीय सरकारी वेबसाइटों के लिये दिशानिर्देश (GIGW 3.0) का पालन सुनिश्चित किया जाए।
    • सुलभ बैंकिंग सेवाओं (टॉकिंग ATM, ब्रेल विवरण) को अनिवार्य किया जाए और जन धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) तथा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के अंतर्गत दिव्यांगजनों तक पहुँच सुनिश्चित की जाए।
  • सुलभ स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा: हेल्थ ID और आयुष्मान भारत डिजिटल प्लेटफॉर्म में दिव्यांगजन से संबंधित विशिष्ट आँकड़ों को शामिल किया जाना चाहिये तथा टेलीहेल्थ प्लेटफॉर्म को स्क्रीन रीडर के अनुकूल बनाया जाना चाहिये।
    • समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के तहत मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं (आशा) को ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांगजनों की पहचान करने और सहायता प्रदान करने के लिये प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
  • जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देना: सरकारी अधिकारियों, न्यायपालिका, पुलिस और स्वास्थ्य पेशेवरों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में दिव्यांगता संवेदनशीलता शामिल करना चाहिये ताकि दिव्यांगजनों के प्रति सम्मानजनक और सूचित व्यवहार सुनिश्चित किया जा सके।

निष्कर्ष

दिव्यांगजनों के लिये समावेशी और सुलभ समाज बनाने के लिये अवसंरचना, शिक्षा, रोज़गार और डिजिटल पहुँच के क्षेत्रों में निरंतर प्रतिबद्धता आवश्यक है। मौजूदा योजनाओं को मज़बूत करना और कानूनी ढाँचे को प्रभावी रूप से लागू करना, दिव्यांगजनों को गरिमा और समान अवसरों के साथ जीवन जीने में सक्षम बनाएगा। सरकार, निजी क्षेत्र और समाज के सामूहिक प्रयास वास्तविक समावेशन और सामाजिक न्याय को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: सुगम्यता एक मूल अधिकार है और दिव्यांगजनों की गरिमा व सशक्तीकरण के लिये आवश्यक पूर्वशर्त है। इसे भारतीय समाज और शासन के संदर्भ में चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में विकलांग व्यक्तियों (persons with disabilities) की संख्या लाखों में है। वैधानिक स्तर पर उन्हें कौन-कौन से लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में 18 वर्ष की आयु तक निःशुल्क शिक्षा।
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिये वरीयता से भूमि का आवंटन।
  3. सार्वजनिक भवनों में ढाल की उपलब्ध होना।

उपर्युक्त में से कौन-सा/कौन-से कथन सही है/हैं?

(a) केवल ।
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (d)