त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES) | 11 Oct 2021

प्रिलिम्स के लिये 

त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, राष्ट्रीय रोज़गार नीति

मेन्स के लिये 

भारत में रोज़गार की स्थिति और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

‘श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय’ के तहत ‘श्रम ब्यूरो’ ने वर्ष 2021 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) के लिये ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) के परिणाम जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण:
    • परिचय:
      • ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टाब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ (AQEES) का हिस्सा है।
      • इसमें कुल 9 क्षेत्रों के संगठित खंड में 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठान शामिल हैं।
      • ये 9 क्षेत्र हैं- विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं रेस्तरां, आईटी/बीपीओ और वित्तीय सेवा गतिविधियाँ।
    • उद्देश्य: सरकार को ‘रोज़गार के क्षेत्र में एक बेहतर राष्ट्रीय नीति’ तैयार करने में सक्षम बनाना।
      • भारत ने वर्ष 1998 में ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) के ‘एम्प्लॉयमेंट पाॅलिसी कन्वेंशन (1964) की पुष्टि की, जिसके तहत अनुसमर्थन करने वाले देशों को ‘पूर्ण, उत्पादक और स्वतंत्र रूप से चुने गए रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन की गई एक सक्रिय नीति’ को लागू करने की आवश्यकता है। ज्ञात हो कि भारत के पास अभी तक कोई ‘राष्ट्रीय रोज़गार नीति’ (NEP) नहीं है।
    • QES vs PLFS:
      • जहाँ एक ओर त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES) मांग पक्ष की तस्वीर प्रदान करता है, वहीं ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण’ या ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PLFS) श्रम बाज़ार की आपूर्ति पक्ष की तस्वीर प्रस्तुत करता है।
        • ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ का संचालन ‘सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ के तहत ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन’ (NSO) द्वारा किया जाता है।
    • QES डेटा से संबंधित समस्याएँ: ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) में कम-से-कम 10 श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को ही  शामिल किया गया है, इस प्रकार यह केवल औपचारिक अर्थव्यवस्था संबंधित डेटा ही प्रदान करता है।
      • यह देखते हुए कि अनौपचारिक श्रमिक (बिना लिखित अनुबंध के) भारत में श्रम शक्ति का लगभग 90% हिस्सा हैं, ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ इस प्रकार श्रम बाज़ार की केवल एक आंशिक तस्वीर प्रदान करता है।
  • QES 2021 डेटा की मुख्य विशेषताएँ:
    • वर्ष 2013-14 (छठी आर्थिक जनगणना) के आधार पर अप्रैल-जून 2021 के आँकड़े चरम कोविड-19 महीनों के दौरान नौ क्षेत्रों में रोज़गार में 29% की वृद्धि दर्शाते हैं।
    • इस दौरान महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। छठी आर्थिक जनगणना (2013) के दौरान यह 31% थी, जो कि ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (2021) के अनुसार वर्तमान में 29% है।
    • 9 क्षेत्रों में से 7 क्षेत्रों में रोज़गार में वृद्धि देखी गई, जबकि केवल 2 क्षेत्रों (व्यापार और आवास एवं रेस्तरां) में रोज़गार के आँकड़ों में गिरावट देखी गई।
      • 2013-2021 की अवधि के दौरान आईटी/बीपीओ क्षेत्र में 152% की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।
    • वर्ष 1998-2021 के बीच रोज़गार के आँकड़ों में पर्याप्त वृद्धि हुई है। वर्ष 1998 (चौथे आर्थिक सर्वेक्षण) के बाद से रोज़गार में उच्चतम वृद्धि दर (38%) वर्ष 2005-2013 की अवधि में दर्ज की गई थी।
      • वर्ष 1998-2021 के बीच रोज़गार की साधारण वृद्धि दर में उतार-चढ़ाव रहा है।
  • ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टाब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे
    • श्रम ब्यूरो द्वारा ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टाब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ को नौ चयनित क्षेत्रों के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में रोज़गार एवं प्रतिष्ठानों के संबंध में तिमाही आधार पर अद्यतन करने के लिये आयोजित किया जाता है।
      • ये क्षेत्र गैर-कृषि प्रतिष्ठानों में कुल रोज़गार में वृद्धि हेतु उत्तरदायी हैं।
    • AQEES के तहत मुख्यतः दो घटक हैं:
      • ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) और
      • ‘एरिया फ्रेम एस्टाब्लिश्मेंट सर्वे’ (AFES)
    • ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों का सर्वेक्षण प्रदान करता है।
    • वहीं AFES नमूना सर्वेक्षण के माध्यम से असंगठित क्षेत्र (10 से कम श्रमिकों के साथ) को कवर करता है।

आर्थिक जनगणना

  • आर्थिक जनगणना भारत की भौगोलिक सीमा के भीतर स्थित सभी प्रतिष्ठानों की पूर्ण गणना है।
  • आर्थिक जनगणना देश में सभी आर्थिक प्रतिष्ठानों की आर्थिक गतिविधियों के भौगोलिक विस्तार/क्लस्टरों, स्वामित्व पद्धति, जुड़े हुए व्यक्तियों इत्यादि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी भी उपलब्ध कराती है।
  • यह हर पाँच वर्ष में आयोजित की जाती है और सरकार एवं अन्य संगठनों हेतु नीतियाँ तथा योजना बनाने के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • अब तक केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 6 आर्थिक जनगणनाएँ (Economic censuses) संचालित की हैं।
    • पहली आर्थिक जनगणना वर्ष 1977 में
    • दूसरी आर्थिक जनगणना वर्ष 1980 में
    • तीसरी आर्थिक जनगणना वर्ष 1990 में
    • चौथी आर्थिक जनगणना वर्ष 1998 में
    • पाँचवीं आर्थिक जनगणना वर्ष 2005 में
    • छठी आर्थिक जनगणना वर्ष 2013 में
  • 7वीं आर्थिक जनगणना, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा वर्ष 2019 से आयोजित की जा रही है।
    • यह कार्य इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV), कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के सहयोग से MoSPI द्वारा किया जा रहा है।
    • पहली बार आँकड़ों के संग्रहण, सत्यापन, रिपोर्ट सृजन और प्रसार के लिये एक  आईटी-आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है।
    • 7वीं आर्थिक जनगणना के तहत गैर-फार्म कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्र में वस्तुओं/सेवाओं (स्वयं के उपभोग के एकमात्र प्रयोजन के अतिरिक्त) के उत्पादन या वितरण से जुड़े घरेलू उद्यमों सहित सभी प्रतिष्ठानों को शामिल किया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू