भारतीय रिज़र्व बैंक का खुला बाज़ार परिचालन | 22 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 10,000 करोड़ रुपए प्रत्येक की सकल राशि के लिये खुला बाज़ार परिचालनों (OMO) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) की एक सामयिक खरीद एवं बिक्री का आयोजन करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

परिचय

  • खुला बाज़ार परिचालन, जिसे ऑपरेशन ट्विस्ट के रूप में भी जाना जाता है, के तहत सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) की एक साथ खरीद एवं बिक्री की प्रक्रिया में दीर्घावधिक प्रतिभूतियों की खरीद और समान मात्रा में अल्पावधिक प्रतिभूतियों की बिक्री शामिल है।

खुला बाज़ार परिचालन

  • अर्थ: खुला बाज़ार परिचालन का आशय सरकार द्वारा मुक्त बाज़ार में जारी किये गए बॉण्ड की बिक्री एवं खरीद से है। 
  • मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरण: यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रयोग किये जाने वाला एक मात्रात्मक मौद्रिक उपकरण है, जिसका उपयोग RBI द्वारा वर्ष भर तरलता की संतुलित स्थिति को बनाए रखने और ब्याज़ दर तथा मुद्रास्फीति के स्तर पर इसके प्रभाव को सीमित करने के लिये किया जाता है।
    • मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरण का आशय ऐसे उपकरणों से है, जो नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और बैंक दर आदि में परिवर्तन करके मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करते हैं।

मुद्रा आपूर्ति पर प्रभाव:

  • जब रिज़र्व बैंक मुक्त बाज़ार में सरकारी बॉण्ड खरीदता है, तो वह इसके लिये चेक के माध्यम से भुगतान करता है। यह चेक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आरक्षित मात्रा को बढ़ा देता है, जिससे मुद्रा आपूर्ति में बढ़ोतरी होती है।
  • रिज़र्व बैंक द्वारा निजी व्यक्तियों या संस्थानों को बॉण्ड की बिक्री करने से मुद्रा की आरक्षित मात्रा में कमी आती है, जिससे मुद्रा की आपूर्ति भी कम हो जाती है।

खुला बाज़ार परिचालन (OMO) के प्रकार: प्रत्यक्ष/एकमुश्त और रेपो

  • प्रत्यक्ष/एकमुश्त
    • इसके तहत केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचने का कोई वादा किये बिना उनकी खरीद करता है। इसी तरह केंद्रीय बैंक इन प्रतिभूतियों को खरीदने का कोई वादा किये बिना ही उनकी बिक्री करता है।
  • रेपो
    • इसके तहत केंद्रीय बैंक जब प्रतिभूतियों को खरीदता है, तो खरीद समझौते में प्रतिभूमि के पुनर्विक्रय की तारीख और कीमत विनिर्देशित की जाती है। इस प्रकार के समझौते को पुनर्खरीद समझौता/रिपर्चेज़ एग्रीमेंट या रेपो कहा जाता है। 
    • इसी तरह केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों की एकमुश्त बिक्री के बजाय, प्रतिभूतियों को एक समझौते के माध्यम से बेच सकता है, जिसमें उस तारीख और मूल्य के बारे में सूचना दी जाएगी, जिस पर उसकी पुनर्खरीद की जानी है। इस प्रकार के समझौते को रिवर्स रिपर्चेज़ एग्रीमेंट या रिवर्स रेपो कहा जाता है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विभिन्न परिपक्वता अवधियों वाले रेपो और रिवर्स रेपो का संचालन किया जाता है: ओवरनाइट, 7 दिन, 14 दिन आदि। इस प्रकार के ऑपरेशन अब भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का मुख्य हिस्सा बन गए हैं।

सरकारी प्रतिभूतियाँ

  • सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली एक व्यापार योग्य साधन होती हैं। ये सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करती हैं। 
  • अल्पावधिक प्रतिभूतियों को ट्रेज़री बिल कहा जाता है, इनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष से भी कम होती है। 
  • दीर्घकालिक प्रतिभूतियों को आमतौर पर सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूति कहा जाता है, इनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष से अधिक होती है।
  • भारत में केंद्र सरकार द्वारा ट्रेज़री बिल तथा बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों दोनों को जारी किया जाता है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ ही जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है।
  • सरकारी प्रतिभूतियों में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है, इसलिये इन्हें जोखिम रहित गिल्ट-एज्ड उपकरण भी कहा जाता है।
    • गिल्ट-एज्ड प्रतिभूतियाँ सरकार और बड़े निगमों द्वारा उधार ली गई निधि के साधन के रूप में जारी किये जाने वाले उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं।
  • हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने खुदरा निवेशकों को केंद्रीय बैंक के साथ सरकारी प्रतिभूतियों (G-sec) में निवेश करने के लिये प्रत्यक्ष तौर पर ‘गिल्ट अकाउंट’ खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया है।

स्रोत: द हिंदू