नशीली दवाओं के खतरे से लड़ने के लिये समझौते | 22 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021

मेन्स के लिये:

भारत और अवैध दवा व्यापार

चर्चा में क्यों?

भारत ने 26 द्विपक्षीय समझौतों, 15 समझौता ज्ञापनों और विभिन्न देशों के साथ सुरक्षा सहयोग को लेकर  दो समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, ताकि रासायनिक पूर्ववर्तियों (Chemical Precursors) के अलावा मादक पदार्थों, दवाओं और मनोदैहिक पदार्थों की अवैध तस्करी का मुकाबला किया जा सके।

प्रमुख बिंदु

भारत में नशीली दवाओं का खतरा:

Golden-Crescent

  • भारत के युवाओं में नशे की लत तेज़ी से बढ़ रही है।
  • भारत विश्व के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों (एक तरफ स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र और दूसरी तरफ स्वर्णिम अर्धचंद्र क्षेत्र) के बीच स्थित है।
    • स्वर्ण त्रिभुज क्षेत्र में थाईलैंड, म्याँमार, वियतनाम और लाओस शामिल हैं।
    • स्वर्णिम अर्धचंद्र क्षेत्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं।
  • वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत (विश्व में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता) में प्रिस्क्रिप्शन दवाओं और उनके अवयवों को मनोरंजक उपयोग के साधनों में तेज़ी से परिवर्तित किया जा रहा है।
  • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा वर्ष 2019 में जारी 'भारत में पदार्थ के उपयोग का परिमाण रिपोर्ट' के अनुसार:
    • सर्वेक्षण के समय (वर्ष 2018 में आयोजित) लगभग 5 करोड़ भारतीयों ने भाँग और ओपिओइड (Opioids) का उपयोग करने की सूचना दी थी।
    • अनुमान है कि लगभग 8.5 लाख लोग ड्रग्स का इंजेक्शन लगाते हैं।
    • रिपोर्ट के अनुसार, अनुमानित कुल मामलों में से आधे से अधिक पंजाब, असम, दिल्ली, हरियाणा, मणिपुर, मिज़ोरम, सिक्किम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से हैं।
    • अनुमान के अनुसार, लगभग 60 लाख लोगों को अपनी ओपिओइड उपयोग की समस्याओं के लिये सहायता की आवश्यकता होगी।

उठाए गए विभिन्न कदम:

  • विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ समन्वय:
    • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (Narcotics Control Bureau) ने अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के लिये सूचना और खुफिया जानकारी साझा करने हेतु विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ समन्वय किया है।
    • इनमें सार्क (SAARC), ब्रिक्स (BRICS), कोलंबो योजना (Colombo Plan), आसियान (ASEAN), बिम्सटेक (BIMSTEC), ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime) और अंतर्राष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (International Narcotics Control Board) शामिल थे।
  • विभिन्न केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय:
    • प्रभावी दवा कानून प्रवर्तन हेतु वर्ष 2016 में गृह मंत्रालय द्वारा नार्को समन्वय केंद्र (Narco Coordination Centre- NCORD) तंत्र स्थापित किया गया था।
      • इस एनसीओआरडी प्रणाली को बेहतर समन्वय के लिये जुलाई 2019 में ज़िला स्तर तक चार स्तरीय योजना में पुनर्गठित किया गया था।
    • बड़ी बरामदगी से जुड़े मामलों की जाँच की निगरानी के लिये जुलाई 2019 में एनसीबी के महानिदेशक के अध्यक्षता में एक संयुक्त समन्वय समिति का गठन किया गया था।
  • ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली पोर्टल:
    • अखिल भारतीय ड्रग ज़ब्ती डेटा के डिजिटलीकरण के लिये गृह मंत्रालय ने वर्ष 2019 में नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट (Narcotics Drugs and Psychotropic Substances Act) के जनादेश के अंतर्गत सभी ड्रग कानून प्रवर्तन एजेंसियों हेतु ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली (Seizure Information Management System- SIMS) नामक एक ई-पोर्टल लॉन्च किया।
  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष:
    • इसका गठन नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार से निपटने, नशा करने वालों के पुनर्वास और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ जनता को शिक्षित करने आदि के संबंध में किये गए खर्च को पूरा करने हेतु किया गया था।
  • राष्ट्रीय ड्रग दुरुपयोग सर्वेक्षण:
    • सरकार एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (National Drug Dependence Treatment Centre) की मदद से और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग का अध्ययन करने हेतु एक राष्ट्रीय ड्रग सर्वेक्षण (National Drug Abuse Survey) भी कर रही है।
  • प्रोजेक्ट सनराइज़:
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते एचआईवी के प्रसार से निपटने के लिये विशेष रूप से ड्रग्स इंजेक्शन का प्रयोग करने वाले लोगों में इसके प्रयोग को रोकने हेतु 'प्रोजेक्ट सनराइज़' (Project Sunrise) शुरू किया गया था।
  • नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, (NDPS) 1985: 
    • यह किसी भी व्यक्ति द्वारा मादक पदार्थ या साइकोट्रॉपिक पदार्थ के उत्पादन, बिक्री, क्रय, परिवहन, भंडारण, और/या उपभोग को प्रतिबंधित करता है।
    • इस अधिनियम में अब तक तीन बार- वर्ष 1988, वर्ष 2001 और वर्ष 2014 में संशोधन किया जा चुका है।
    • यह अधिनियम पूरे भारत में लागू होता है और साथ ही यह भारत के बाहर निवास करने वाले सभी भारतीय नागरिकों एवं भारत में पंजीकृत जहाज़ों तथा विमानों पर मौजूद सभी व्यक्तियों पर भी भी लागू होता है।
  • नशा मुक्त भारत अभियान:
    • यह सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित है।

मादक पदार्थों के खतरे पर नियंत्रण हेतु अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और सम्मेलन:

  • भारत मादक पदार्थों के खतरे से निपटने हेतु निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अभिसमयों का हस्ताक्षरकर्त्ता है:
    • नारकोटिक ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) कन्वेंशन (1961)।
    • साइकोट्रोपिक पदार्थों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1971)।
    • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों के अवैध यातायात के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)।
    • ट्रांसनेशनल क्राइम के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC) 2000.

आगे की राह

  • सीमा पार तस्करी पर अंकुश लगाकर, NDPS अधिनियम के तहत कठोर दंड या नशीली दवाओं के प्रवर्तन में सुधार कर आपूर्ति को रोकने के लिये कदम उठाए जाने चाहिये तथा भारत को मांग पक्ष को ध्यान में रखकर समस्या का समाधान करना चाहिये।
  • व्यसन को चरित्र दोष के रूप में नहीं बल्कि एक बीमारी के रूप में देखा जाना चाहिये। साथ ही  नशीली दवाओं के सेवन से जुड़े कलंक (Stigma) को समाप्त करने की ज़रूरत है। समाज को यह समझने की भी ज़रूरत है कि नशा करने वाले अपराधी नहीं बल्कि पीड़ित होते हैं।
  • कुछ दवाएँ जिनमें 50% से अधिक अल्कोहल और ओपिओइड होता है, को शामिल करने की आवश्यकता है। देश में नशीली दवाओं की समस्या पर अंकुश लगाने के लिये पुलिस अधिकारियों व आबकारी एवं नारकोटिक्स विभाग (Excise and Narcotics Department) की ओर से सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • शिक्षा पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों की लत, इसके प्रभाव और नशामुक्ति पर भी अध्याय शामिल होने चाहिये। उचित परामर्श एक अन्य विकल्प हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू