प्रिलिम्स फैक्ट्स (29 Jun, 2021)



प्रिलिम्स फैक्ट्स: 29 जून, 2021

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस

National Statistics Day

राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणाली (National Statistical System) की स्थापना में प्रशांत चंद्र महालनोबिस के अमूल्य योगदान को मान्यता देने के लिये इनकी जयंती (29 जून) को हर साल सांख्यिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

दिवस को मनाने का उद्देश्य:

  • दैनिक जीवन में सांख्यिकी के उपयोग को लोकप्रिय बनाना और जनता को इस बात के लिये जागरूक करना कि नीतियों को आकार देने तथा तैयार करने में सांख्यिकी किस तरह सहायक है।

वर्ष 2021 के लिये थीम:

  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) -2 (भुखमरी की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना तथा बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना ।

संबंधित आयोजन:

  • सरकारी सांख्यिकी में प्रो. पी.सी. महालनोबिस राष्ट्रीय पुरस्कार, 2021 और युवा सांख्यिकीविद् के लिये प्रो. सी. आर. राव राष्ट्रीय पुरस्कार 2021 के विजेताओं की घोषणा की जाएगी।
    • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) ने वर्ष 2019 में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों एवं संस्थानों में आधिकारिक सांख्यिकीविदों के असाधारण योगदान के सम्मान में प्रो. पी. सी. महालनोबिस राष्ट्रीय आधिकारिक सांख्यिकी पुरस्कार (Prof. P.C. Mahalanobis National Award in Official Statistics) नामक पुरस्कार का गठन किया था।
    • मंत्रालय वैकल्पिक वर्षों में प्रदान किये जाने वाले प्रो. सी.आर. राव और प्रो. पी.वी. सुखात्मे पुरस्कारों के माध्यम से आधिकारिक सांख्यिकीय प्रणाली को लाभान्वित करने वाले अनुप्रयुक्त एवं सैद्धांतिक सांख्यिकी के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले शोध कार्य हेतु उत्कृष्ट योगदान को भी मान्यता देता है।.

प्रशांत चंद्र महालनोबिस (1893-1972)

  • उन्हें भारत में आधुनिक सांख्यिकी का जनक माना जाता है, उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute- ISI) की स्थापना की, योजना आयोग को आकार दिया (जिसे 1 जनवरी, 2015 को नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया) और बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण के लिये कार्यप्रणाली का मार्ग प्रशस्त किया।
  • उन्होंने रैंडम सैंपलिंग की विधि का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर नमूना सर्वेक्षण करने तथा परिकलित रकबे/पहले से अनुमानित क्षेत्रफल और फसल की पैदावार का आकलन करने हेतु नवीन तकनीकों की शुरुआत की।
    • उन्होंने 'फ्रैक्टाइल ग्राफिकल एनालिसिस' नामक एक सांख्यिकीय पद्धति भी तैयार की, जिसका उपयोग विभिन्न समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बीच तुलना करने के लिये किया जाता है।

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कालक्रम:

  • 1930: पहली बार ‘महालनोबिस दूरी’ का प्रस्ताव किया गया, जो दो डेटा सेट के बीच तुलना हेतु एक माप है।
    • कई आयामों में माप के आधार पर, एक बिंदु और वितरण के बीच की दूरी का पता लगाने के लिये इस सूत्र का उपयोग किया जाता है। व्यापक स्तर पर इसका उपयोग क्लस्टर विश्लेषण और वर्गीकरण क्षेत्र में किया जाता है।
  • 1932: कोलकाता में ISI की स्थापना, जिसे वर्ष 1959 में राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित किया गया।
  • 1933: 'सांख्य: द इंडियन जर्नल ऑफ स्टैटिस्टिक्स' की शुरुआत।
  • 1950: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey) की स्थापना और सांख्यिकीय गतिविधियों के समन्वय के लिये केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation- CSO) की स्थापना।
  • 1955: योजना आयोग के सदस्य बने और वर्ष 1967 तक उस पद पर बने रहे।
    • उन्होंने भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961) तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने भारत में औद्योगीकरण और विकास का खाका तैयार किया।
  • 1968: पद्म विभूषण से सम्मानित।
    • उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

अभ्यास ‘सी ब्रीज 2021’

Exercise Sea Breeze

रूस और यूक्रेन के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बीच यूक्रेन के साथ पश्चिमी सहयोग का प्रदर्शन करते हुए यूक्रेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका ने काला सागर में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास 'सी ब्रीज' (Sea Breeze) की शुरुआत की है। 

यह अभ्यास ब्रिटिश रॉयल नेवी के HMS डिफेंडर के काला सागर में रूस के कब्जे वाले क्रीमिया के पास से गुज़रने के कुछ ही दिनों बाद ही शुरू हुआ है।

प्रमुख बिंदु

अभ्यास के बारे में:

  • अभ्यास सी ब्रीज का आयोजन वर्ष 1997 से किया जा रहा है, जिसमें नाटो राज्य तथा काला सागर क्षेत्र में स्थित नाटो सहयोगी देश शामिल होते हैं।
  • वर्ष 1997 से अब तक 21 बार इस अभ्यास का आयोजन हो चुका है। इस बार का संस्करण (वर्ष 2021) अभी तक आयोजित अभ्यासों के इतिहास में सबसे बड़ा होगा जिसमें 30 से अधिक देशों के लगभग 5,000 सैन्यकर्मी शामिल होंगे।

अभ्यास का उद्देश्य:

  • अभ्यास का उद्देश्य नौसेना और भूमि संबंधी ऑपरेशनों में सुधार करना तथा भाग लेने वाले देशों के बीच आपसी सहयोग में सुधार करना है।
  • अभ्यास का एक अन्य उद्देश्य क्षेत्र में स्थिरता और शांति बनाए रखने के लिये एक शक्तिशाली संदेश भेजना भी है।

रूस के लिये काला सागर का महत्त्व:

  • काला सागर क्षेत्र की अद्वितीय भौगोलिक अवस्थिति रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करती है और इसीलिये रूस हमेशा इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण बनाए रखने चाहता था।
    • पहला, यह पूरे क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक चौराहे के रूप में कार्य करता है। काला सागर तक पहुँच सभी तटीय और पड़ोसी राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है और कई आसन्न क्षेत्रों में शक्ति प्रदर्शन को काफी हद तक बढ़ाता है।
    • दूसरा, यह क्षेत्र माल और ऊर्जा परिवहन के लिये एक महत्त्वपूर्ण पारगमन गलियारे के रूप में कार्य करता है।
    • तीसरा, काला सागर क्षेत्र सांस्कृतिक एवं जातीय विविधता से समृद्ध है और भौगोलिक निकटता के कारण, रूस के साथ घनिष्ठ ऐतिहासिक संबंध साझा करता है।
  • इस तरह के हितों का अनुसरण करने के बाद रूस ने वर्ष 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर इस पर कब्ज़ा कर लिया और प्रायद्वीप के आसपास के जलक्षेत्र को अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा किया।
    • अधिकांश देश रूस द्वारा किये गए इस अधिग्रहण को मान्यता नहीं देते हैं और जल के लिये यूक्रेन के दावों का समर्थन करते हैं।

काला सागर:

  • अटलांटिक महासागर का यह सीमांत समुद्र, पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के बीच स्थित है।
  • काला सागर के सीमावर्ती देशों में- रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, तुर्की, बुल्गारिया और रोमानिया शामिल हैं।
  • काला सागर एक मेरोमिक्टिक बेसिन के साथ सबसे बड़ा जल निकाय है, जिसका अर्थ है कि यहाँ समुद्र की निचली और ऊपरी परतों के बीच जल की आवाजाही एक दुर्लभ घटना है जो इसके जल के एनोक्सिक (यानी जल में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की कमी) होने के लिये भी उत्तरदायी है।

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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 29 जून, 2021

भारत का पहला रैबीज़ मुक्त राज्य: गोवा

हाल ही में गोवा के मुख्यमंत्री ने राज्य को देश का पहला रैबीज़ मुक्त राज्य घोषित किया है। ज्ञात हो कि गोवा में पिछले तीन वर्ष में रैबीज़ का एक भी मामला सामने नहीं आया है। रैबीज़ नियंत्रण का कार्य मिशन रैबीज़ परियोजना द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसे केंद्र सरकार के अनुदान के माध्यम से चलाया जा रहा है। विदित हो कि राज्य में अब तक रैबीज़ के विरुद्ध पाँच लाख से अधिक कुत्तों का टीकाकरण किया गया है और संपूर्ण गोवा में रैबीज़ की रोकथाम हेतु लगभग एक लाख लोगों को शिक्षित किया गया है, साथ ही 24 घंटे रैबीज़ निगरानी केंद्र भी स्थापित किये गए हैं, जिसमें एक आपातकालीन हॉटलाइन और ऐसे लोगों की सहायता के लिये त्वरित प्रतिक्रिया टीम शामिल है, जिन्हें कुत्तों ने काटा है। रैबीज़ एक रिबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) वायरस के कारण होता है, जो किसी पागल जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, बंदर, आदि की लार में मौजूद होता है। जानवर के काटने और रैबीज़ के लक्षण दिखाई देने की समयावधि चार दिनों से लेकर दो साल तक या कभी-कभी उससे भी अधिक हो सकती है। ऐसे में घाव से वायरस को जल्द-से-जल्द हटाना आवश्यक होता है। आँकड़ों की मानें तो दुनिया में रैबीज़ से होने वाली मौतों में एक-तिहाई से अधिक भारत में होती हैं। भारत में रैबीज़ एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जिससे प्रतिवर्ष अनुमानित 20,000 लोगों की मौत हो जाती है। 

खाद्य सुरक्षा हेतु ओडिशा और विश्व खाद्य कार्यक्रम की साझेदारी

हाल ही में ओडिशा सरकार और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने आजीविका पहल को ओडिशा करने और राज्य समर्थित महिला स्वयं सहायता समूहों (WSHGs) का समर्थन करने, घरेलू खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में सुधार करने हेतु साझेदारी की है। महिलाओं के सशक्तीकरण, आजीविका और आय पर केंद्रित इस साझेदारी का प्राथमिक उद्देश्य ओडिशा में पोषण सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करना है। यह साझेदारी इस विचार पर केंद्रित है कि सतत् आजीविका से घरेलू खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में सुधार होगा, जिससे अंततः महिलाओं का समग्र सशक्तीकरण सुनिश्चित किया जा सकेगा। इस साझेदारी के माध्यम से तकनीकी सहायता और क्षमता विकास प्रदान कर महिला स्वयं सहायता समूहों (WSHGs) का समर्थन किया जाएगा, जिससे राज्य में दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा में प्रत्यक्ष योगदान दिया जा सकेगा। दिसंबर 2023 तक प्रभावी इस साझेदारी में सरकारी खरीद प्रणालियों के साथ महिला समूहों के जुड़ाव, अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, महिला समूहों के क्षमता निर्माण, निगरानी उपकरण विकसित करने और समूहों के कामकाज में सुधार हेतु मूल्यांकन मापदंड विकसित करने आदि पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। ज्ञात हो कि इस साझेदारी को ओडिशा सरकार की ओर से ‘मिशन शक्ति विभाग’ द्वारा क्रियान्वित किया जाएगा, जिसका गठन इसी वर्ष 01 जून को किया गया है। 

निजी क्षेत्र को रॉकेट लॉन्च साइट निर्माण की अनुमति

भारत ने निजी कंपनियों को सरकार से पूर्व मंज़ूरी के अधीन देश के भीतर और बाहर रॉकेट लॉन्च साइट स्थापित करने एवं संचालित करने की अनुमति देने का निर्णय लिया है। इसी प्रकार भारतीय या विदेशी क्षेत्र से किसी भी रॉकेट को लॉन्च (कक्षीय या उप-कक्षीय) केवल ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र' (IN-SPACe) से पूर्व मंज़ूरी के साथ ही किया जा सकता है, जो कि अंतरिक्ष विभाग के तहत भारत सरकार द्वारा गठित एक स्वतंत्र निकाय है। अंतरिक्ष विभाग द्वारा लाए गए राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिवहन नीति-2020 के मसौदे के अनुसार, रॉकेट लॉन्च स्वयं की लॉन्च साइट या लीज़ पर ली गई लॉन्च साइट और मोबाइल प्लेटफॉर्म (भूमि, समुद्र या वायु) से भी हो सकता है। मसौदा नीति के अनुसार, IN-SPACe की मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये प्रस्तावक को वित्तीय गारंटी या बीमा कवर संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी। भारत के क्षेत्र के बाहर से लॉन्च करने के मामले में आवश्यक है कि लॉन्च के लिये अनुमोदन, संबंधित राष्ट्र/क्षेत्र के लागू कानूनों के तहत हो। 

तिब्बत में पहली पूर्ण विद्युतीकृत बुलेट ट्रेन

हाल ही में चीन ने तिब्बत के सुदूर हिमालयी क्षेत्र में अपनी पहली पूर्ण विद्युतीकृत बुलेट ट्रेन का संचालन शुरू किया है, जो प्रांतीय राजधानी ल्हासा और न्यिंगची को जोड़ती है, यह रणनीतिक रूप से अरुणाचल प्रदेश के निकट तिब्बती सीमावर्ती शहर है। सिचुआन-तिब्बत रेलवे का ‘ल्हासा-न्यिंगची खंड’ तकरीबन 435.5 किलोमीटर लंबा है। इस परियोजना के महत्त्व को इस बात से समझा जा सकता है कि यह तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में पहली विद्युतीकृत रेल परियोजना है। इस खंड की अधिकतम गति 160 किमी प्रति घंटा है और यह सिंगल लाइन विद्युतीकृत रेलवे पर संचालित है। यह ल्हासा, शन्नान और न्यिंगची सहित नौ स्टेशनों पर रुकती है। सड़कों की तुलना में ल्हासा-न्यिंगची रेलवे ल्हासा से न्यिंगची तक यात्रा के समय को 5 घंटे से घटाकर लगभग 3.5 घंटे कर देता है, और शन्नान से न्यिंगची तक यात्रा के समय को 6 घंटे से घटाकर लगभग 2 घंटे कर देता है। भारत के लिये यह इस लिहाज़ से भी महत्त्वपूर्ण है कि चीन दक्षिण तिब्बत के हिस्से के रूप में अरुणाचल प्रदेश का दावा करता है, जिसे भारत ने दृढ़ता से खारिज किया है। भारत-चीन सीमा विवाद में 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) शामिल है।