मादक पदार्थों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) ने 26 जून 2025 को मादक पदार्थों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस (विश्व ड्रग दिवस) की स्मृति में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन किया।
- परिचय: यह दिवस वर्ष 1987 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक नशा-मुक्त विश्व के लिये वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से घोषित किया गया था।
- वर्ष 2025 की थीम “ब्रेक द साइकल #स्टॉप ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम” संगठित मादक पदार्थों के नेटवर्क के विरुद्ध दीर्घकालिक और लक्षित कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देती है।
- मादक पदार्थों का दुरुपयोग: ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) के अनुसार, वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 292 मिलियन लोगों ने मादक पदार्थों का सेवन किया, जो पिछले एक दशक में 20% की वृद्धि को दर्शाता है और बढ़ती वैश्विक चिंता को उजागर करता है।
- UNODC, जिसकी स्थापना वर्ष 1997 में हुई थी, मादक पदार्थों पर नियंत्रण, अपराध और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से संबंधित मुद्दों से निपटता है तथा प्रत्येक वर्ष 26 जून को विश्व ड्रग रिपोर्ट प्रकाशित करता है।
- मादक पदार्थों से प्रभावित क्षेत्र: ट्रिपल फ्रंटियर क्षेत्र (अर्जेंटीना, ब्राज़ील और पैराग्वे), गोल्डन क्रिसेंट (ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान) तथा गोल्डन ट्राइंगल (लाओस, म्याॅमार व थाईलैंड)।
- सामान्य ड्रग्स: कैनबिस सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला मादक पदार्थ है, इसके बाद ओपिओइड, एम्फेटामिन्स, कोकीन और एक्स्टेसी का स्थान आता है।
- कैनबिस को कनाडा, उरुग्वे और संयुक्त राज्य अमेरिका के 27 क्षेत्रों में कानूनी मान्यता प्राप्त है। इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव मुख्य रूप से THC (delta-9-tetrahydrocannabinol) के कारण होते हैं।
- भारत में मादक पदार्थों का नियंत्रण: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) मादक पदार्थों की माँग में कमी, रोकथाम, उपचार, पुनर्वास और राष्ट्रव्यापी जन-जागरूकता अभियानों के लिये नोडल एजेंसी है।
- नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA) भारत का प्रमुख मादक पदार्थों के विरुद्ध अभियान है, जो सभी ज़िलों में सक्रिय है और NMBA ऐप के माध्यम से अभियान की गतिविधियों की वास्तविक समय की निगरानी करता है।
- NIDAAN और NCORD पोर्टल्स ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म हैं, जिनमें मादक पदार्थों से जुड़े अपराधियों का विस्तृत डेटा संग्रहित किया जाता है।
चिल्का झील के मड क्रैब मत्स्य पालन हेतु MSC प्रमाणन
स्रोत: बिज़नेस लाइन
भारत के अंतर्देशीय मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिये केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (ICAR-CIFRI) और चिल्का विकास प्राधिकरण (CDA) की अगुवाई में एक संयुक्त पहल का उद्देश्य चिल्का झील के मड क्रैब मत्स्य पालन के लिये मरीन स्टीवर्डशिप काउंसिल (Marine Stewardship Council- MSC) प्रमाणन प्राप्त करना है।
MSC प्रमाणन
- मरीन स्टीवर्डशिप काउंसिल (MSC) एक अंतर-राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है जो अपने इको-लेबल और प्रमाणन कार्यक्रम के माध्यम से सतत् मत्स्य पालन को बढ़ावा देता है।
- MSC प्रमाणन वाइल्ड-कैप्चर फिशरीज़ के लिये विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त इको-लेबल है जो सस्टेनेबल फिश स्टॉक, कम पर्यावरणीय प्रभाव और अनुकूली, प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करता है। यह भविष्य में स्वस्थ महासागरों और सतत् समुद्री भोजन को सुरक्षित करने हेतु ज़िम्मेदारी पूर्वक मछली पकड़ने को बढ़ावा देता है।
- यह प्रमाणन निर्यात मूल्य को बढ़ाता है, जैव विविधता संरक्षण को समर्थन देता है तथा आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- चिल्का मड क्रैब भारत का पहला अंतर्देशीय मत्स्य पालन है जिसे MSC स्थिरता प्रमाणन के लिये नामित किया गया है।
भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र की स्थिति
- वैश्विक स्तर पर भारत दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन में 8% और वैश्विक मत्स्य निर्यात में 4% का योगदान देता है। वैश्विक स्तर पर भारत जलीय कृषि उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है, झींगा उत्पादन में अग्रणी है और मछली पकड़ने के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है।
- अंतर्देशीय मत्स्य पालन कुल मत्स्य उत्पादन में 75% से अधिक का योगदान देता है।
- प्रमुख मछली उत्पादक राज्यों में आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक शामिल हैं।
- सरकार की पहल:
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कवकनाशकों के उपयोग से औषधि-प्रतिरोधी फफूंद संक्रमणों में वृद्धि
स्रोत: द हिंदू
एक अध्ययन से पता चला है कि कृषि कवकनाशी टेबुकोनाज़ोल कैंडिडा ट्रॉपिकलिस (एक फफूंदजनित रोगजनक) में अप्रत्याशित आनुवंशिक परिवर्तन उत्पन्न कर रहा है, जिसके कारण यह कवक फ्लुकोनाज़ोल और वोरिकोनाज़ोल जैसे सामान्य रूप से प्रयुक्त एंटीफंगल औषधियों के प्रति प्रतिरोधी हो गया है।
- कैंडिडा ट्रॉपिकलिस गंभीर फफूंद संक्रमणों के लिये ज़िम्मेदार है, जिसकी मृत्यु दर 55–60% तक होती है।
टेबुकोनाज़ोल
- परिचय: टेबुकोनाज़ोल एक प्रणालीगत, व्यापक-स्पेक्ट्रम कवकनाशी है, जिसका व्यापक उपयोग कृषि में गेहूँ, जौ, चावल, फलों, सब्ज़ियों और घास जैसी फसलों (turf) में फफूंदजनित रोगों के नियंत्रण हेतु किया जाता है।
- कार्य: टेबुकोनाज़ोल, फ्लुकोनाज़ोल और वोरिकोनाज़ोल जैसी चिकित्सीय एंटीफंगल औषधियों के समान, एर्गोस्टेरॉल बायोसिंथेसिस (ergosterol biosynthesis) को अवरुद्ध करके कार्य करता है, जो फफूंद की कोशिका झिल्ली के निर्माण के लिये आवश्यक होता है। इसी कारण इसमें निवारक और उपचारात्मक दोनों गुण पाए जाते हैं।
- इसका व्यापक रूप से बीज उपचार, मृदा सिंचन अथवा पत्तियों पर छिड़काव के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे यह फसलों को बहु-आयामी सुरक्षा प्रदान करता है। हालाँकि, कृषि में इसके अत्यधिक उपयोग ने एंटीफंगल प्रतिरोध को बढ़ावा देने की भूमिका के कारण गंभीर चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
- अत्यधिक उपयोग का प्रभाव: कृषि में कवकनाशी टेबुकोनाज़ोल के अत्यधिक उपयोग से कैंडिडा ट्रॉपिकलिस में क्रॉस-प्रतिरोध (cross-resistance) को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि यह एन्यूप्लोइडी यानी गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन उत्पन्न करता है, जिससे प्रतिरोध संबंधित जीनों की अत्यधिक सक्रियता या समाप्ति हो सकती है।
- परिवर्तित प्लॉयडी वाले स्ट्रेन बिना औषधियों के धीमी गति से बढ़ते हैं, लेकिन एंटीफंगल औषधियों के संपर्क में आने पर उनकी जीवित रहने की क्षमता अधिक होती है।
- कुछ स्ट्रेन हैप्लॉइड (केवल एक गुणसूत्र समूह वाले और संभोग करने में सक्षम) बन गए, जिससे प्रतिरोध के फैलने की संभावना और अधिक बढ़ गई।
- प्लॉइडी किसी कोशिका में पूर्ण गुणसूत्र समूहों की संख्या को दर्शाता है। डिप्लॉइड (2n) कोशिकाओं में दो गुणसूत्र समूह होते हैं (जो मानव कोशिकाओं में सामान्यतः पाए जाते हैं), हैप्लॉइड (1n) में एक गुणसूत्र समूह होता है (जैसे शुक्राणु और अंडाणु में), जबकि ट्रिप्लॉइड (3n) में तीन गुणसूत्र समूह होते हैं।
कवकनाशी
- ये फसलों की रक्षा हेतु प्रयुक्त रसायन (पीड़कनाशी) होते हैं, जिनका उपयोग पौधों में फफूंदजनित रोगों के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये किया जाता है। इनमें क्लोरोथालोनिल, डाइथियोकार्बामेट्स (जैसे मैनकोज़ेब, मैनब, ज़िनेब), सल्फर डेरिवेटिव आदि शामिल हैं।
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उन्नत रॉक वेदरिंग
स्रोत: द हिंदू
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये उन्नत चट्टान अपक्षय (Enhanced Rock Weathering- ERW) एक आशाजनक तकनीक है जिसमें वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को तेज़ी से सोखने हेतु कृषि भूमि पर कुचला हुआ हुए बेसाल्ट को फैलाया जाता है।
- यह पद्धति प्रौद्योगिकी दिग्गजों (Tech Giants) और अपने उत्सर्जन को संतुलित करने के इच्छुक उद्योगों का ध्यान आकर्षित कर रही है।
उन्नत रॉक वेदरिंग
- परिचय: ERW अपक्षय की प्राकृतिक प्रक्रिया को तेज़ करता है, जहाँ बेसाल्ट जैसी चट्टानें टूट जाती हैं और बाइकार्बोनेट के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड को बंद कर देती हैं, जो अंततः चूना पत्थर में बदल जाती हैं। चट्टानों को बारीक पीसकर उनके सतह क्षेत्र को बढ़ाने के द्वारा इस प्रक्रिया को गति दी जाती है।
- कार्बन पृथक्करण: सतह क्षेत्र को बढ़ाने के लिये बारीक पिसी चट्टान का उपयोग करके, ERW भू-वैज्ञानिक कार्बन पृथक्करण की दर को बढ़ाता है, जिससे यह प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से होने वाली प्रक्रिया की तुलना में काफी तेज़ हो जाती है।
- अतिरिक्त लाभ: ERW मिट्टी की क्षारीयता को बढ़ाता है, फसल की पैदावार और उर्वरता में सुधार करता है साथ ही नदियों और महासागरों तक पहुँचने से पहले मृदा के अम्लों को निष्क्रिय करके CO2 उत्सर्जन को कम करता है।
- विवादास्पद प्रभावशीलता: एक नई तकनीक के रूप में ERW कार्बन हटाने में मिश्रित परिणाम दिखाता है।
- जबकि कुछ अध्ययनों में चार वर्षों में प्रति हेक्टेयर 10.5 टन CO2 की रिपोर्ट दी गई है, वहीं अन्य अध्ययनों में कम दर दिखाई गई है, जो सटीक माप और आगे के शोध की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- जोखिम और चुनौतियाँ: हालाँकि ERW आम तौर पर सुरक्षित है, कुछ त्वरित अपक्षय वाली चट्टानें हानिकारक भारी धातुएँ छोड़ सकती हैं।
- मुख्य चिंता कार्बन कैप्चर का अधिक आकलन है, जिससे कार्बन क्रेडिट बढ़ सकता है और उत्सर्जन बढ़ सकता है।
- वैश्विक कार्यान्वयन: ERW का परीक्षण विश्व भर में किया जा रहा है, दार्जिलिंग चाय बागानों से लेकर अमेरिका के सोया और मक्का फार्मों तक, जिसमें ब्राजील ने पहला सत्यापित ERW कार्बन क्रेडिट जारी किया है।
- निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी: गूगल ने 200,000 टन क्रेडिट हेतु सबसे बड़े ERW सौदे पर हस्ताक्षर किये। इसके अलावा माटी कार्बन (भारत स्टार्टअप) ने कार्बन हटाने के लिये 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एक्स पुरस्कार जीता।
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रसायन, अपशिष्ट और प्रदूषण पर वैश्विक विज्ञान-नीति पैनल
स्रोत: यूएनईपी
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme- UNEP) के तहत पुंटा डेल एस्टे, उरुग्वे में रसायन, अपशिष्ट और प्रदूषण पर वैश्विक विज्ञान-नीति पैनल की स्थापना की गई है।
रसायन, अपशिष्ट और प्रदूषण पर वैश्विक विज्ञान-नीति पैनल क्या है?
- परिचय: यह पैनल IPCC (जलवायु परिवर्तन) और जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (जैव विविधता) पर अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति मंच का पूरक है, जो अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति निकायों का एक त्रिकोण बनाता है त्रिग्रहीय संकट (जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और प्रदूषण) को संबोधित करता है।
- यह प्रदूषण और अपशिष्ट पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करके वैश्विक पर्यावरण शासन में एक महत्वपूर्ण अंतर को भरता है।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के माध्यम से प्रदूषण से निपटने, खतरनाक रसायनों और अपशिष्ट का प्रबंधन करने तथा पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये वैश्विक प्रयासों को मज़बूत करना है।
- महत्त्वपूर्ण कार्य:
- रसायनों, अपशिष्ट और प्रदूषण पर स्वतंत्र, नीति-प्रासंगिक वैज्ञानिक सलाह प्रदान करना।
- वैज्ञानिक आकलन करना, अनुसंधान अंतराल की पहचान करना और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण का समर्थन करना।
- प्रभावी प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिये विकासशील देशों में क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना।
- उभरते खतरों का पता लगाने और निवारक कार्रवाई का मार्गदर्शन करने के लिये क्षितिज स्कैनिंग में संलग्न हों।
- सूचित निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिये वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
- महत्त्व:
- दैनिक जीवन में बढ़ते और अनियमित रासायनिक उपयोग से स्वास्थ्य और पारिस्थितिकीय जोखिम बढ़ गया है।
- अनुमान है कि नगरीय ठोस अपशिष्ट 2023 में 2.1 बिलियन टन से बढ़कर 2050 तक 3.8 बिलियन टन हो जाएगा।
- पिछले दो दशकों में प्रदूषण से संबंधित मौतों में 66% की वृद्धि हुई है।महत्त्व:
IPCC
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change - IPCC) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक संस्था है, जो जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का मूल्यांकन करती है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों व भविष्य के जोखिमों तथा अनुकूलन एवं शमन के विकल्पों का नियमित आकलन प्रदान करना था।
- IPCC की रिपोर्टें वैश्विक जलवायु नीति को दिशा देती हैं और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
- IPCC हर 6–7 वर्षों में व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट प्रकाशित करता है (जैसे: AR6, 2021–2023), जो तीन कार्य समूहों (Working Groups) और एक संश्लेषण रिपोर्ट (Synthesis Report) के माध्यम से तैयार की जाती हैं।
- यह विशेष रिपोर्ट (जैसे, 1.5 डिग्री सेल्सियस, भूमि, क्रायोस्फीयर पर) तथा ग्रीनहाउस गैस (GHG) इन्वेंटरी के लिये कार्यप्रणाली रिपोर्ट (जैसे, 2006 दिशानिर्देश, 2019 में अद्यतन) भी प्रकाशित करता है।
IPBES
- जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति मंच (Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services), वर्ष 2012 में स्थापित किया गया था। यह एक स्वतंत्र अंतर-सरकारी निकाय है, जिसके लगभग 150 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।
- यह जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र तथा लोगों के लिये उनके योगदान पर वैज्ञानिक आकलन प्रदान करता है, साथ ही उनके संरक्षण तथा सतत् उपयोग के लिये उपकरण और मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
- हालाँकि यह संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक संस्था नहीं है, फिर भी इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का समर्थन प्राप्त है और इसका सचिवालय बॉन, जर्मनी में स्थित है।
- UNEP प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय रासायनिक समझौतों के सचिवालयों की मेज़बानी भी करता है, जिनमें स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन, पारे पर मिनामाटा कन्वेंशन और ग्लोबल फ्रेमवर्क ऑन केमिकल्स (GFC) शामिल हैं:
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
- UNEP की स्थापना वर्ष 1972 में की गई थी और इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में स्थित है। यह पर्यावरण मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र की अग्रणी एजेंसी है।
- यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) द्वारा शासित होती है और जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन, स्वच्छ समुद्र, सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) जैसे वैश्विक कार्यों का समर्थन करती है। यह एमिशन गैप रिपोर्ट और ग्लोबल एनवायरनमेंट आउटलुक जैसी प्रमुख रिपोर्टें प्रकाशित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भौगोलिक क्षेत्र में जैवविविधता के लिये संकट हो सकते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. जैवविविधता निम्नलिखित तरीकों से मानव अस्तित्व का आधार बनाती है: (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (d) |