भारत डॉल्फिन-फिशर सहोपकारिता पर वैश्विक अनुसंधान में हुआ शामिल
केरल विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्त्ताओं के सहयोग से एक बहुवर्षीय शोध परियोजना (2024–2028) शुरू की है, जिसका उद्देश्य केरल की अष्टमुड़ी झील में इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन और पारंपरिक/आर्टिसनियल मछुआरों के बीच पाए जाने वाले दुर्लभ सहकारी मत्स्य संग्रहण के सहोपकारिता (म्यूचुअलिज़्म) का अध्ययन करना है।
- क्रियाविधि: इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन (सूसा प्लंबिया) अपनी पूँछ हिलाकर या घुमाकर सघन मछलियों के झुंडों का संकेत देती हैं, जिससे मछुआरों को अधिक से अधिक मत्स्य संग्रहण के लिये सही समय पर जाल डालने में मदद मिलती है, जबकि इसी दौरान बिखरी हुई मछलियाँ डॉल्फिन के लिये भी आसानी से शिकार बन जाती हैं।
- सहोपकारिता: यह दो प्रजातियों के बीच एक दीर्घकालिक संबंध है जहाँ दोनों को लाभ होता है—जैसे भोजन, सुरक्षा, परागण, बीज प्रसार या आश्रय के माध्यम से।
- इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन: ये अपने विशिष्ट हंप और लॉन्ग डॉर्सल फिन के लिये जानी जाती हैं, ये ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और एशिया के उथले तटीय जल में पाई जाती हैं।
- इस समूह में चार प्रजातियाँ शामिल हैं, जिनमें एस. टेउज़ी और एस. चिनेंसिस को वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर सम्मेलन (CMS) के परिशिष्ट I और II के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।
- इसे IUCN द्वारा संकटग्रस्त (Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
अष्टमुडी झील
- विषय: यह कोल्लम ज़िले में स्थित एक रामसर स्थल है, जो केरल की सबसे बड़ी झीलों में से एक है, जो बैकवाटर्स का प्रवेश द्वार माना जाता है।
- 'अष्टमुडी' का मलयालम में अर्थ है 'आठ लटें (Eight Braids)', जो इसकी अनोखी आठ बाँहों/आठ शाखाओं जैसा/वाली आकृति को दर्शाता है।
- विस्तार: यह झील कई नदियों, जिनमें कल्लड़ा नदी भी शामिल है, से पोषित होती है, अरब सागर में जाकर गिरती है तथा इसके चारों ओर मैंग्रोव, नारियल के पेड़ तथा घनी हरियाली पाई जाती है।
- जैवविविधता: किंगफिशर, बगुले, एग्रेट और कॉर्मोरेंट जैसी पक्षी प्रजातियाँ इन आर्द्रभूमियों में पाई जाती हैं। कल्लड़ा नदी करीमीन (पर्ल स्पॉट फिश) के प्रजनन स्थल के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है
| और पढ़ें: अष्टमुडी झील में प्रदूषण |
फ्लोटिंग रेट बॉण्ड (FRBs)
चर्चा में क्यों?
RBI के फ्लोटिंग रेट बॉण्ड्स (FRBs) की मांग में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है क्योंकि निवेशक इक्विटी, सोने और पारंपरिक जमाओं से हटकर सुरक्षित, उच्च-उपज वाले सरकार समर्थित ऋण उपकरणों की ओर रुख कर रहे हैं।
- यह मांग उनके उच्च रिटर्न के कारण है, जो राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (NSC) पर +35 आधार अंकों की दर से जुड़े हैं।
RBI के फ्लोटिंग रेट बॉण्ड (FRC) क्या हैं?
- परिचय: भारत में पहली बार वर्ष 1995 में जारी किये गए, RBI के FRB एक निश्चित कूपन दर के बजाय परिवर्तनीय कूपन दर वाली सरकारी प्रतिभूतियाँ हैं।
- दर को पूर्व-घोषित अंतरालों (आमतौर पर प्रत्येक 6 महीने या 1 वर्ष) पर पूर्व-चयनित बेंचमार्क के आधार पर रीसेट किया जाता है, जो उन्हें पारंपरिक निश्चित दर वाले बॉण्ड से अलग करता है।
- पात्रता: ये बॉण्ड व्यक्तियों (संयुक्त धारकों सहित) और हिंदू अविभाजित परिवारों (HUFs) के लिये खुले हैं।
- अनिवासी भारतीय (NRI) इन बॉण्डों में निवेश करने के पात्र नहीं हैं ।
- ब्याज दर तंत्र: FRB की ब्याज दर बाजार-निर्धारित बेंचमार्क से संबद्ध होती है, जो आमतौर पर 182-दिन के ट्रेज़री बिलों की पिछली तीन नीलामियों की औसत उपज या आधार दर के साथ नीलामी द्वारा तय किये गए एक निश्चित स्प्रेड पर आधारित होती है।
- कुछ मामलों में जैसे RBI के खुदरा FRB—कूपन दर NSC दर से संबद्ध होती है, जिसके परिणामस्वरूप रिटर्न व्यापक ब्याज दरों में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार स्वतः समायोजित हो जाता है।
- महत्त्व: FRB निवेशकों को ब्याज दर जोखिम से बचाता है, जब दरों में वृद्धि होती हैं तो कूपन भुगतान भी बढ़ जाता है।
- यह निश्चित-ब्याज दर वाले ऋण उपकरणों पर आधारित पोर्टफोलियो के लिये विविधीकरण और हेज़िंग उपकरण के रूप में कार्य करता है।
नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (NSC) योजना
- NSC योजना: वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा व्यक्तियों में दीर्घकालिक बचत की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिये NSC योजना शुरू की गई थी।
- अवधि और ब्याज: इस योजना की परिपक्वता अवधि 5 वर्ष है और यह 7.7% की आकर्षक ब्याज दर प्रदान करती है, जिस पर वार्षिक रूप से चक्रवृद्धि ब्याज लगता है।
- पात्रता: कोई भी निवासी भारतीय NSC योजना के तहत निवेश कर सकता है। अभिभावक नाबालिगों (न्यूनतम आयु 10 वर्ष) या मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों की ओर से आवेदन करने के पात्र हैं।
- जमा: निवेशक न्यूनतम 1,000 रुपये की राशि से निवेश शुरू कर सकते हैं और उसके बाद 100 रुपये के गुणकों में अतिरिक्त जमा कर सकते हैं। जमा पर कोई उच्च सीमा नहीं है, और एक व्यक्ति इस योजना के अंतर्गत एक से अधिक खाते खोल सकता है।
- अतिरिक्त लाभ: निवेशक NSC प्रमाणपत्रों को बैंकों के पास गिरवी रखकर ऋण ले सकते हैं और जमा की अधिकतम सीमा न होने के कारण यह योजना पर्याप्त और दीर्घकालिक बचत के लिये उपयुक्त मानी जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1.RBI फ्लोटिंग रेट बॉण्ड क्या हैं?
वर्ष 2020 में लॉन्च किये गए, ये सरकार समर्थित, गैर-संचयी ऋण उपकरण हैं जिनमें फ्लोटिंग ब्याज दर होती है, जिनका भुगतान 7 वर्षों के बाद किया जा सकता है और ये सुरक्षित मूलधन तथा अर्द्ध-वार्षिक ब्याज भुगतान प्रदान करते हैं।
2.RBI फ्लोटिंग रेट बॉण्ड में निवेश करने के लिये कौन पात्र है?
व्यक्ति (संयुक्त धारकों सहित) और HUF पात्र हैं; NRI इन बॉण्ड में निवेश नहीं कर सकते।
3. राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (NSC) योजना क्या है?
NSC एक 5-वर्षीय सरकारी बचत योजना है, जो 7.7% वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज प्रदान करती है, जिसे निवासियों के बीच दीर्घकालिक बचत को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न
प्रश्न. वह सुविधा/सुविधाएँ क्या हैं जो लाभार्थियों को शाखारहित क्षेत्रों में बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट (बैंक साथी) की सेवाओं से मिल सकती हैं? (2014)
- यह लाभार्थियों को उनके गाँवों में सब्सिडी और सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- यह ग्रामीण क्षेत्रों में लाभार्थियों को जमा और निकासी करने में सक्षम बनाता है।
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 व 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2
उत्तर: (c)
प्रश्न. भारत में सभी राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों में बचत खातों पर ब्याज दर किसके द्वारा निर्धारित की जाती है (2010)
(a) केंद्रीय वित्त मंत्रालय
(b) केंद्रीय वित्त आयोग
(c) भारतीय बैंक संघ
(d) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर: (d)
क्वांटम क्लॉक
फिजिकल रिव्यू लेटर्स में वर्ष 2025 में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि क्वांटम क्लॉक में, समय पढ़ने के लिये आवश्यक ऊर्जा, घड़ी को टिक-टिक करने के लिये आवश्यक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे क्वांटम भौतिकी, ऊष्मागतिकी और परिशुद्ध माप-विज्ञान में नए दृष्टिकोण सामने आते हैं।
क्वांटम क्लॉक
- विषय : क्वांटम क्लॉक क्वांटम कणों के व्यवहार का उपयोग करके समय को मापती है, जिनकी अवस्थाएँ सूक्ष्म और संभाव्य तरीकों से बदलती रहती हैं।
- हमेशा आगे की ओर चलने वाली पर, पारंपरिक घड़ियों के विपरीत, क्वांटम क्लॉक यादृच्छिकता दर्शाती हैं, निम्न मात्रा में एन्ट्रॉपी (ऊर्जा के उपयोग से उत्पन्न होने वाली ऊष्मा या अव्यवस्था) उत्पन्न करती हैं तथा यहाँ तक कि पीछे की ओर भी चल सकती हैं, जिससे यह समझना चुनौतीपूर्ण हो जाता है कि वे समय की विश्वसनीय और एकदिशीय (अपरिवर्तनीय) अनुभूति कैसे उत्पन्न करती हैं।
- कार्य: एक क्वांटम घड़ी एक डबल क्वांटम डॉट (DQD) प्रणाली का उपयोग करके संचालित होती है, जिसमें अर्द्धचालक में दो छोटे इलेक्ट्रॉन-धारण करने वाले ‘आइलैंड’ होते हैं।
- एक एकल इलेक्ट्रॉन उनके माध्यम से 0 → L → R → 0 क्रम में चलता है तथा यह पूरा चक्र एक घड़ी की टिक के रूप में गिना जाता है।
- इलेक्ट्रॉन की गति वोल्टेज द्वारा नियंत्रित होती है, और जब आगे और पीछे की छलाॅंग बराबर (संतुलन) हो जाती है, तो कोई एन्ट्रॉपी उत्पन्न नहीं होती है और उपकरण घड़ी के रूप में काम करना बंद कर देता है।
- मापन: पढ़ने के लिये पास में मौजूद एक क्वांटम डॉट चार्ज सेंसर की तरह कार्य करता है तथा उसका करंट इस बात पर निर्भर करते हुए बदलता है कि इलेक्ट्रॉन स्थिति 0, L या R में है।
- इलेक्ट्रॉन की अवस्था को मापने के लिये ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, जिससे निम्न मात्रा में ऊष्मा या अव्यवस्था (एन्ट्रॉपी) उत्पन्न होती है।
- महत्त्व: अवलोकन प्रणालियों (जैसे, ऑप्टिकल क्लॉक, यटरबियम लैटिस क्लॉक) में एन्ट्रॉपी को कम करने पर ध्यान केंद्रित करके अधिक ऊर्जा-कुशल परमाणु घड़ियों का निर्माण किया जा सकता है।
- यह अत्यंत सटीक घड़ियों को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है और प्रभावी क्वांटम कंप्यूटिंग डिज़ाइन तैयार करने में भी मार्गदर्शन दे सकता है।
| और पढ़ें: क्वांटम प्रौद्योगिकी |
बटुकेश्वर दत्त की जयंती
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह के साथ संघर्ष करने वाले वीर क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को 18 नवंबर को उनकी जयंती पर स्मरण किया गया।
बटुकेश्वर दत्त
- प्रारंभिक जीवन: बटुकेश्वर दत्त एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जन्म 18 नवंबर, 1910 को खंडघोष गाँव, बर्दवान ज़िला, पश्चिम बंगाल में हुआ था।
- कॉलेज के दौरान उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई, जिन्होंने उन्हें हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) में शामिल होने के लिये प्रेरित किया तथा वे नौजवान भारत सभा के सक्रिय सदस्य भी बने।
- स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: 8 अप्रैल, 1929 को दत्त और भगत सिंह ने दमनकारी औपनिवेशिक विधेयकों के विरोध में केंद्रीय विधान सभा के खाली स्थान में दो स्वनिर्मित बम फेंके, जिसका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध करना था।
- उन्होंने “इंकलाब ज़िंदाबाद” जैसे नारे लगाए, पर्चे बाँटे जिनमें लिखा था कि “अगर बहरे को सुनाना है तो आवाज़ बहुत ऊँची करनी पड़ती है” तथा देशव्यापी ध्यान आकर्षित करने के लिये स्वेच्छा से आत्मसमर्पण कर दिया।
- दत्त को गिरफ़्तार कर लिया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। उन्होंने कैदियों के अधिकारों के लिये सक्रिय रूप से लड़ाई लड़ी तथा कई भूख हड़तालों में शामिल हुए, जिनमें भगत सिंह के साथ राजनीतिक कैदियों के लिये बेहतर परिस्थितियों की माँग को लेकर की गई 114 दिनों की हड़ताल भी शामिल थी।
- वर्ष 1938 में रिहाई के बाद दत्त भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में शामिल हो गये।
- विरासत: उन्हें एक निस्वार्थ क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाता है, जो बिना किसी प्रतिफल की चाह के कार्य करने के स्वामी विवेकानंद के आदर्श को साकार करते हैं।
- उनका अंतिम संस्कार हुसैनीवाला में वहीँ किया गया, जहाँ भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधियाँ स्थित हैं।
| और पढ़ें: शहीद दिवस |
सेनकाकू द्वीप समूह
चीन की कोस्ट गार्ड ने जापान के प्रशासन वाले सेनकाकू द्वीपों के निकट “अधिकार प्रवर्तन गश्त” (Rights Enforcement Patrol) की। यह कार्रवाई उस बयान के बाद की गई है जिसमें जापानी प्रधानमंत्री ने संकेत दिया था कि ताइवान पर चीन का कोई भी हमला टोक्यो को सैन्य कदम उठाने के लिये मज़बूर कर सकता है।
- सेनकाकू द्वीप समूह चीन और जापान के बीच लंबे समय से चला आ रहा क्षेत्रीय विवाद है।
- सेनकाकू द्वीप समूह: जापान, चीन और ताइवान इन द्वीपों को क्रमशः ‘सेनकाकू’, ‘दियाओयू (Diaoyu)’ और ‘दियाओयुताई (Diaoyutai)’ कहते हैं तथा इनका प्रशासन जापान के पास है।
- ये द्वीप पूर्वी चीन सागर में, तीनों देशों के निकट स्थित हैं तथा इनमें पाँच छोटे निर्जन द्वीप और कुछ चट्टानें शामिल हैं, जिनमें सबसे बड़ा उओत्सुरी (Uotsuri), केवल 1.4 वर्ग मील में फैला है।
- सामरिक महत्त्व: वर्ष 1969 की एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट, जिसमें सेनकाकू द्वीप समूह के अंतर्गत संभावित हाइड्रोकार्बन भंडारों का संकेत दिया गया था, ने उनके सामरिक महत्त्व को बढ़ा दिया और संप्रभुता विवादों को तीव्र कर दिया।
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विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: प्रथम चीन-जापान युद्ध जीतने के बाद जापान ने वर्ष 1895 में ताइवान और सेनकाकू द्वीपों पर नियंत्रण कर लिया। चीन का तर्क है कि युद्ध के बाद जापान ने इन द्वीपों पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया था।
- वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, अमेरिका ने वर्ष 1951 की शांति संधि के तहत द्वीपों का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
- वर्ष 1971 में अमेरिका और जापान ने ओकिनावा प्रत्यावर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किये और ओकिनावा और सेनकाकू द्वीप जापान को वापस कर दिये।
- चीन और ताइवान ने इस हस्तांतरण का तुरंत विरोध किया, लेकिन जापान का कहना है कि उनके दावे संभावित हाइड्रोकार्बन की खोज के बाद ही सामने आए।
| और पढ़ें: सेनकाकू द्वीप विवाद |
अमृत फार्मेसीज़ की 10वीं वर्षगाँठ
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री (MoHFW) ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में अमृत (AMRIT) (उपचार के लिये सस्ती दवाएँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण- Affordable Medicines and Reliable Implants for Treatment) फार्मेसी की 10वीं वर्षगाँठ समारोह का उद्घाटन किया।
अमृत (उपचार के लिये किफायती दवाएँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण) फार्मेसी क्या है?
- अमृत: अमृत को वर्ष 2015 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था तथा इसे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक मिनी रत्न सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम HLL लाइफकेयर लिमिटेड द्वारा कार्यान्वित किया गया था, ताकि कम लागत वाली फार्मेसी स्टोरों के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क के माध्यम से चिकित्सा लागत को कम किया जा सके।
- ये दुकानें सभी मरीजों की पहुँच में सुधार लाने के लिये आवश्यक दवाइयाँ, प्रत्यारोपण और शल्य चिकित्सा संबंधी सामान किफायती दामों पर उपलब्ध कराती हैं।
- यह प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों (PMBJK) के समान है, क्योंकि दोनों का उद्देश्य सस्ती दरों पर दवाइयाँ और चिकित्सा संबंधी आपूर्ति उपलब्ध कराना है।
- विज़न और मिशन: अमृत का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से सस्ती और भरोसेमंद फार्मेसी सेवाएँ प्रदान करना, आवश्यक दवाओं तक व्यापक पहुँच का समर्थन करना तथा उपचार लागत को कम करना है।
- प्रभाव (अक्तूबर 2025 तक): अमृत पहल द्वारा 17,047 करोड़ रुपये मूल्य की दवाइयों की आपूर्ति की गई है तथा मरीजों को 8,395 करोड़ रुपये बचाने में मदद मिली है।
- कुल 68.51 मिलियन मरीज़ों को रियायती सेवाओं का लाभ मिला है।
जन औषधि केंद्र क्या हैं?
- परिचय: जन औषधि केंद्र प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP) के तहत सरकार समर्थित फार्मेसी आउटलेट हैं जो ब्रांडेड दवाओं की तुलना में बहुत कम कीमत पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएँ प्रदान करते हैं।
- वे स्वास्थ्य देखभाल लागत को कम करने और आवश्यक दवाओं तक पहुँच में सुधार लाने के लक्ष्य के साथ फार्मास्यूटिकल्स विभाग के अधीन कार्य करते हैं ।
- PMBJP: यह एक प्रमुख योजना है जो सभी के लिये, विशेष रूप से गरीब और कमज़ोर लोगों के लिये सस्ती, गुणवत्तापूर्ण दवाऍं सुनिश्चित करती है ।
- इसे 2008 में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा शुरू किया गया था तथा वर्ष 2015-16 में इसका पुनर्गठन किया गया।
- PMBJP देश भर में 16,000 से अधिक जन औषधि केंद्रों के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाइयाँ उपलब्ध कराकर स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को कम करता है।
- ये आउटलेट विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अच्छी विनिर्माण प्रथाओं से प्रमाणित सुविधाओं में निर्मित 2,100 से अधिक दवाएँ और 300 सर्जिकल आइटम उपलब्ध कराते हैं तथा इनका परीक्षण राष्ट्रीय परीक्षण एवं अंशांकन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (NABL) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में किया जाता है।
- ये आउटलेट WHO की गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) प्रमाणित इकाइयों में तैयार की गई 2,100 से अधिक दवाएँ और 300 सर्जिकल उत्पाद उपलब्ध कराते हैं और इनकी जाँच राष्ट्रीय परीक्षण एवं अंशांकन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (NABL) द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में की जाती है।
- जन औषधि सुगम ऐप: यह उपयोगकर्त्ताओं को नजदीकी केंद्र ढूंढने, दवाइयाँ खोजने और तत्काल बचत जानकारी के साथ जेनेरिक बनाम ब्रांडेड कीमतों की तुलना करने में मदद करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. अमृत फार्मेसी क्या है?
अमृत (उपचार के लिये किफायती दवाइयाँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण) स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा समर्थित एक खुदरा नेटवर्क है, जिसे HLL लाइफकेयर (एक मिनी रत्न सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। यह OOP व्यय को कम करने के लिये आवश्यक दवाइयाँ, प्रत्यारोपण और सर्जिकल डिस्पोज़ेबल भारी रियायती दरों पर उपलब्ध कराता है।
2. प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) दवा की गुणवत्ता कैसे सुनिश्चित करती है?
PMBJP विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)-GMP प्रमाणित निर्माताओं से दवाइयाँ प्राप्त करती है और प्रत्येक बैच का NABL-मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में परीक्षण करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि जेनेरिक दवाइयाँ सुरक्षा और प्रभावकारिता में ब्रांडेड दवाओं के समान हों।
3. PMBJP उद्यमिता को किस प्रकार बढ़ावा देती है?
जनऔषधि केंद्र डॉक्टरों, फ़ार्मासिस्टों, गैर-सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों द्वारा सरकारी सहायता (₹2.5 लाख तक और अन्य प्रोत्साहन) से संचालित किये जाते हैं, जिससे स्थानीय रोज़गार और विकेंद्रीकृत खुदरा अवसर उत्पन्न होते हैं।




