प्रिलिम्स फैक्ट्स (11 Oct, 2025)



पर्यावरणीय चिंताओं के आलोक में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अरावली जंगल सफारी पर रोक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस (IE) 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा में प्रस्तावित अरावली जंगल सफारी परियोजना पर अस्थायी रूप से रोक लगाई है और कहा कि इस परियोजना से भारत के पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में से एक तथा दिल्ली-NCR के हरित फेफड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। 

  • अरावली जंगल सफारी परियोजना: वर्ष 2022 में घोषित इस परियोजना का उद्देश्य गुरुग्राम और नूह के पास विश्व की सबसे बड़ी जंगल सफारी का विकास करना है। 
  • शारजाह सफारी (UAE) और गिर अभयारण्य (गुजरात) से प्रेरित होने के साथ इसमें बड़ी बिल्ली प्रजातियों, पक्षी पार्क, हर्पेटेरियम, अंडरवाटर वर्ल्ड तथा इको-टूरिज़्म ट्रेल्स हेतु क्षेत्र शामिल करने का प्रावधान है। 
  • अरावली रेंज: इसे विश्व की सबसे पुरानी पर्वत शृंखलाओं में से एक माना जाता है। यह गुजरात से दिल्ली (राजस्थान और हरियाणा होते हुए) तक 800 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित है। अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू (जिसे अर्बुदा भी कहा जाता है) पर स्थित गुरु शिखर है। 
    • इस पर्वत शृंखला से बनास, साहिबी (यमुना की सहायक नदियाँ) और लूनी (जो कच्छ के रण में प्रवाहित होती है) जैसी नदियों का उद्गम होता है। 
    • अरावली पर्वत शृंखला दो भागों में विभाजित है: सांभर-सिरोही शृंखला (जिसमें गुरु शिखर शामिल है) और सांभर-खेतड़ी शृंखला 
    • खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध यह शृंखला पश्चिमी रेगिस्तान के विरुद्ध अवरोध की भूमिका निभाती है। 
    • इसके दक्षिण में घने जंगल हैं और इस शृंखला का अधिकांश भाग चट्टानी एवं विरल आबादी वाला होने के साथ क्वार्टजाइट एवं रेत से ढका हुआ है। 

और पढ़ें: अरावली के समक्ष गंभीर खतरे 

प्रोजेक्ट वॉटरवर्थ

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स  

मेटा प्लेटफॉर्म्स ने अपनी मल्टी बिलियन डॉलर की अंडरसी केबल प्रोजेक्ट वॉटरवर्थ के भारत चरण के लिये लैंडिंग साइट के रूप में मुंबई और विशाखापत्तनम का चयन किया है। 

  • प्रोजेक्ट वॉटरवर्थ: यह मेटा प्लेटफॉर्म्स की एक सब-सी केबल पहल है जिसका उद्देश्य वैश्विक डेटा कनेक्टिविटी में सुधार लाना है। 
    • यह अमेरिका, भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका को जोड़ेगा, जिससे यह विश्व की सबसे लंबी सब-सी केबल होगी, जिसकी लंबाई 50,000 किलोमीटर से अधिक है। 
  • मार्ग डिज़ाइन: प्रोजेक्ट वॉटरवर्थ में एक W-आकार का मार्ग है जो लाल सागर कॉरिडोर को बायपास करेगा, जिससे भू-राजनीतिक संघर्षों और केबल में क्षति के जोखिम कम होंगे। 
  • समय-सीमा और क्षमता: 1 पेटाबिट प्रति सेकंड (Pbps) की डिज़ाइन क्षमता के साथ इसके वर्ष 2030 तक क्रियाशील होने की संभावना है। 
  • सामरिक महत्त्व: भारत में चुने गए लैंडिंग साइट वैश्विक AI अवसंरचना में देश की भूमिका को अभिवर्द्धित करते हैं, डेटा स्थानीयकरण में सहायक हैं और भारत के डिजिटल ईकोसिस्टम का सुदृढ़ीकरण करते हैं। 

Project_Waterworth

और पढ़ें: मेटा का प्रोजेक्ट वॉटरवर्थ 

इंडिया मोबाइल कांग्रेस

स्रोत: PIB 

एशिया के सबसे बड़े दूरसंचार, मीडिया और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम इंडिया मोबाइल कांग्रेस (IMC 2025) के 9वें संस्करण का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा नई दिल्ली में किया गया। 

इंडिया मोबाइल कांग्रेस 

  • परिचय: यह मोबाइल और डिजिटल प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवीनतम प्रगति तथा नवाचारों पर प्रकश डालने वाला एक प्रमुख वार्षिक आयोजन है। 
    • इससे डिजिटल परिदृश्य के भविष्य पर चर्चा करने के क्रम में उद्योग नेतृत्वकर्त्ताओं, नीति निर्माताओं एवं प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को एक मंच मिलता है। 
  • आयोजक: इसका आयोजन संयुक्त रूप से दूरसंचार विभाग (DoT) एवं सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) द्वारा किया गया। 
  • थीम: इस वर्ष की थीम “इनोवेट टू ट्रांसफॉर्म” है। जिसके तहत भारत में डिजिटल परिवर्तन तथा सामाजिक प्रगति के क्रम में नवाचार को अपनाने की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला गया है। 
  • हालिया प्रगति: भारत 6G एलायंस द्वारा NASSCOM और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ संयुक्त प्रौद्योगिकी विकास को आगे बढ़ाने के क्रम में समझौता ज्ञापन (MoUs) पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इसके साथ ही इसने स्पेक्ट्रम, नेक्स्ट जनरेशन टेलीकॉम पॉवर, AI-आधारित नेटवर्क विकास और 6G आर्किटेक्चर एवं सुरक्षा से संबंधित चार व्हाइटपेपर जारी किये।  
    • भारत की 6G महत्त्वाकांक्षा के क्रम में वर्ष 2035 तक GDP में 1.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान मिलने का अनुमान है। भारत का लक्ष्य वैश्विक 6G पेटेंट्स में 10% हिस्सेदारी हासिल करना है। देश का सैटेलाइट संचार बाज़ार वर्ष 2033 तक तीन गुना होने का अनुमान है।
और पढ़ें: इंडिया मोबाइल कांग्रेस 

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)

स्रोत: PIB 

चर्चा में क्यों? 

विगत 10 वर्षों में, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) भारत की सतत् कृषि पहलों की आधारशिला बन गई है। 

  • मृदा क्षरण, जल प्रदूषण और रासायनिक अवशेषों के कारण, भारत ने जैविक कृषि को बढ़ावा देने, किसानों की आय बढ़ाने एवं धारणीय कृषि का समर्थन करने के लिये वर्ष 2015 में PKVY शुरू किया। 

परंपरागत कृषि विकास योजना क्या है?

  • परिचय: PKVY राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM) घटक का हिस्सा है। 
    • इस योजना का उद्देश्य जैविक कृषि को समर्थन और बढ़ावा देना है, जिससे मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा। 
    • भारत के लिये सहभागी गारंटी प्रणाली (PGS) को बढ़ावा देना, जो पारस्परिक विश्वास पर आधारित स्थानीय रूप से प्रासंगिक जैविक प्रामाणीकरण है, जिसमें उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों को शामिल किया जाता है।  
      • पीजीएस-इंडिया "थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन" प्रणाली से बाहर काम करता है। 
  • वित्तपोषण पैटर्न: 
    • केंद्र और राज्य सरकारें 60:40 के अनुपात में वित्तपोषण साझा करती हैं। 
    • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये वित्तपोषण अनुपात 90:10 (केंद्र: राज्य) है। 
    • संघ शासित प्रदेशों के लिये सहायता पूरी तरह से केंद्र सरकार (100%) द्वारा वित्तपोषित है। 
  • पात्रता: सभी किसान और संस्थाएँ आवेदन करने के पात्र हैं। हालाँकि पात्रता के लिये अधिकतम भूमि जोत 2 हेक्टेयर है। 
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) की प्रमुख विशेषताएँ: 
    • क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण: इसके तहत किसानों को प्रत्येक 20 हेक्टेयर के क्लस्टर में संगठित किया जाना शामिल है, जिससे संसाधनों का साझा उपयोग होने के साथ मानकों की एकरूपता एवं लागत में कमी को संभव बनाया जा सके।  
    • एंड-टू-एंड सपोर्ट: यह योजना किसानों को उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणन एवं विपणन तक प्रत्येक चरण में सहयोग प्रदान करने पर केंद्रित है। 
    • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: इसके तहत किसानों को जैविक तकनीकों, मृदा उर्वरता में सुधार तथा फसल विविधीकरण प्रणाली पर प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन दिया जाता है। 
    • मार्केट लिंकेज: यह योजना किसानों को स्थानीय एवं राष्ट्रीय बाज़ारों तक प्रत्यक्ष पहुँच प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित करती है, जिससे उद्यमिता को बढ़ावा मिलता है। 
      • जैविक खेती पोर्टल एक समर्पित ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म है जिसे किसानों एवं उपभोक्ताओं के बीच जैविक उत्पादों की प्रत्यक्ष बिक्री को बढ़ावा देने हेतु विकसित किया गया है। 
  • इस योजना के अंतर्गत प्रदान किये जाने वाले प्रमुख लाभ: 
    • PKVY के तहत जैविक कृषि को अपनाने वाले किसानों को तीन वर्षों की अवधि में प्रति हेक्टेयर ₹31,500 की सहायता प्रदान किया जाना शामिल है। 
    • इस सहायता राशि का काफी अधिक हिस्सा ऑन फार्म एवं ऑफ फार्म जैविक इनपुट्स हेतु समर्पित है। 

भारत में जैविक प्रमाणन के प्रकार क्या हैं? 

  • तृतीय-पक्ष प्रमाणन (NPOP): राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) के अंतर्गत मान्यता प्राप्त एजेंसियों द्वारा प्रबंधित, यह प्रणाली उत्पादन, प्रसंस्करण, व्यापार और निर्यात में अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करती है, जिससे भारतीय किसानों को वैश्विक जैविक बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त करने में सहायता मिलती है। 
  • सहभागी गारंटी प्रणाली (PGS-इंडिया): कृषि मंत्रालय के अंतर्गत एक किसान-केंद्रित, समुदाय-आधारित प्रमाणन, जहाँ किसान सामूहिक रूप से प्रथाओं का सत्यापन करते हैं और उपज को जैविक घोषित करते हैं, यह मुख्य रूप से घरेलू बाज़ारों के लिये सहायक है तथा लघु एवं सीमांत किसानों को सहायता प्रदान करता है। 

Organic_Certification_in_India 

और पढ़ें: प्राकृतिक कृषि 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक कृषि से किस प्रकार भिन्न है? (2021)  

  1. स्थायी कृषि एकधान्य कृषि पद्धति को हतोत्साहित करती है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में एकधान्य कृषि पद्धति की प्रधानता है।   
  2. पारंपरिक रासायनिक कृषि के कारण मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है किंतु इस तरह की परिघटना स्थायी कृषि में नहीं देखी जाती है।   
  3. पारंपरिक रासायनिक कृषि अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में आसानी से संभव है किंतु ऐसे क्षेत्रों में स्थायी कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है।   
  4. मल्च बनाने की प्रथा (मल्चिंग) स्थायी कृषि में काफी महत्त्वपूर्ण है किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसी प्रथा आवश्यक नहीं है।  

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:  

(a) केवल 1 और 3  
(b) केवल 1, 2 और 4  
(c) केवल 4    
(d) केवल 2 और 3  

उत्तर: (b)  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी मिश्रित खेती की प्रमुख विशषेता है? (2012) 

(a) नकदी और खाद्य दोनों सस्यों की साथ-साथ खेती। 
(b) दो या दो से अधिक सस्यों को एक ही खेत में उगाना। 
(c) पशुपालन और सस्य-उत्पादन को एक साथ करना। 
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 

उत्तर: (c)