वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में भारत
स्रोत: पी.आई.बी
भारत ने नई दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) बैठक में वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपनी बढ़ती प्रतिष्ठा का प्रदर्शन किया।
- भारत ने DST-ICGEB बायो-फाउंड्री का उद्घाटन किया, जो सार्वजनिक वित्तपोषित अपनी तरह की पहली सुविधा है। यह मंच जैव-आधारित नवाचारों को बढ़ाने, स्टार्टअप्स और शोधकर्त्ताओं को सहयोग देने के लिये बनाया गया है।
- ICGEB, जिसकी स्थापना वर्ष 1983 में हुई थी, एक प्रमुख अंतर-सरकारी संगठन है, जिसमें 69 सदस्य देश हैं और इसके केंद्र नई दिल्ली, ट्रिएस्ट और केप टाउन में स्थित हैं।
- BioE3 नीति (आर्थिक, पर्यावरणीय और रोज़गार के लिये जैव प्रौद्योगिकी) के तहत भारत का उद्देश्य एक मज़बूत बायो-मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम बनाना है।
- भारत की जैव अर्थव्यवस्था 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2014) से बढ़कर 165.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2024) हो गई है तथा वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का लक्ष्य रखा गया है।
- भारत वैश्विक स्तर पर जैव प्रौद्योगिकी में 12वें, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरे स्थान पर है और यह विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है। वर्ष 2024 में भारत में 10,000 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप्स हैं, जो वर्ष 2014 में केवल 50 थे।
- प्रमुख उपलब्धियाँ:
- ZyCoV-D- मिशन कोविड सुरक्षा के तहत विकसित विश्व की पहली DNA आधारित कोविड वैक्सीन।
- नैफिथ्रोमाइसिन, देश का पहला स्वदेशी मैक्रोलाइड एंटीबायोटिक।
- गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर की रोकथाम में सहायता के लिये क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (qHPV) वैक्सीन CERVAVAC विकसित की गई है।
- न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (PCV) न्यूमोसिल को विशेष रूप से बच्चों में निमोनिया, मेनिन्जाइटिस और सेप्सिस जैसे न्यूमोकोकल रोगों से बचाने के लिये विकसित किया गया है।
और पढ़ें: भारत में BioE3 नीति और जैव प्रौद्योगिकी
फ्लिपकार्ट को NBFC लाइसेंस मिला
स्रोत: एल.एम.
फ्लिपकार्ट भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) लाइसेंस प्राप्त करने वाली पहली भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी बन गई है, जिससे उसे अपने ग्राहकों और विक्रेताओं को सीधे ऋण देने की अनुमति मिल गई है।
- NBFC लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकताएँ: भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत NBFC के रूप में पंजीकरण के लिये कंपनी का कंपनी अधिनियम, 1956 या 2013 के तहत अधिगठित होना अनिवार्य है।
- उसे ₹10 करोड़ की न्यूनतम निवल स्वाधिकृत निधि बनाए रखनी होती है।
- NBFC: यह कंपनी अधिनियम, 1956 अथवा 2013 के अंतर्गत स्थापित की गई एक पंजीकृत कंपनी होती है, जो मुख्य रूप से उधार देने, प्रतिभूतियों में निवेश, पट्टे पर देने या किराया-खरीद जैसे कार्यों में संलग्न होती है।
- इसमें वे संस्थाएँ शामिल नहीं हैं जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि, उद्योग, वस्तुओं/सेवाओं का व्यापार या रियल एस्टेट होता है।
- जो कंपनियाँ मुख्य रूप से योजनाओं या व्यवस्थाओं के माध्यम से एकमुश्त या किश्तों में जमा राशि प्राप्त करती हैं, उन्हें अवशिष्ट गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Residuary NBFC) कहा जाता है।
- NBFC और बैंक: बैंकों के विपरीत, NBFC डिमांड डिपॉज़िट स्वीकार नहीं कर सकते, ये भुगतान और निपटान प्रणाली (पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम) का हिस्सा नहीं होते (अतः ये चेक जारी नहीं कर सकते) तथा NBFC में जमा करने वालों को जमा बीमा एवं क्रेडिट गारंटी निगम (DICGC) द्वारा संरक्षण प्राप्त नहीं होता।
और पढ़ें: RBI द्वारा NBFC की समीक्षा
भारत IIAS की अध्यक्षता हेतु निर्वाचित
स्रोत: पी.आई.बी
भारत को वर्ष 2025-2028 की अवधि के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रशासनिक विज्ञान संस्थान (IIAS) का अध्यक्ष चुना गया है।
- संगठन के इतिहास में यह पहली बार था कि चुनाव मतपत्र के माध्यम से हुए, जिसमें भारत ने 61.7% मत प्राप्त करके शीर्ष स्थान हासिल किया।
- IIAS: इसकी स्थापना वर्ष 1930 में हुई थी और इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स में स्थित है। यह वैज्ञानिक उद्देश्यों वाला एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है।
- IIAS 31 सदस्य देशों, 20 राष्ट्रीय अनुभागों और 15 शैक्षिक अनुसंधान केंद्रों का एक वैश्विक महासंघ है, जो समकालीन नीति चुनौतियों के लिये सार्वजनिक प्रशासन समाधान विकसित करने में सहयोग करता है।
- इसके उल्लेखनीय सदस्य देश भारत, जापान, चीन, जर्मनी, इटली, कोरिया, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, स्विट्ज़रलैंड, मैक्सिको आदि हैं।
- IIAS संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर कार्य करता है तथा लोक प्रशासन पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ समिति (UN CEPA) और संयुक्त राष्ट्र लोक प्रशासन नेटवर्क (UNPAN) में योगदान देता है, हालाँकि यह औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध नहीं है।
- भारत वर्ष 1998 से IIAS का सदस्य राज्य रहा है, जिसका प्रतिनिधित्व प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) करता है।
और पढ़ें: प्रमुख प्रशासनिक सुधार
AMR उपचार के लिये थर्मोफिलिक बैक्टीरिया
स्रोत: द हिंदू
थर्मोफिलिक बैक्टीरिया, जो राजगीर (बिहार) हॉट स्प्रिंग्स के चरम तापमान वाले वातावरण में पनपते हैं, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के खिलाफ एंटीबायोटिक्स के स्रोत के रूप में महत्त्वपूर्ण संभावना रखते हैं। साथ ही, इनके औद्योगिक एवं कृषि संबंधी अनुप्रयोग भी व्यापक हैं।
- अध्ययन के बारे में: राजगीर में, एक्टिनोबैक्टीरिया, जो स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन जैसे एंटीमाइक्रोबियल के उत्पादक होते हैं। गर्म जल स्रोतों में पाए जाने वाले जीवाणुओं में 40-43% एक्टिनोबैक्टीरिया पाए जाते है।
- एक्टिनोमाइसीटेल्स जीवाणु से निकाले गए डायथाइल फ्थालेट ने खाद्यजनित खतरनाक रोगाणु लिस्टेरिया मोनोसाइटोजेन्स के विरुद्ध प्रभावी रोधक क्षमता (inhibition) दिखाई है, यह खोज खाद्य सुरक्षा और नए एंटीमाइक्रोबियल यौगिकों के विकास में महत्त्वपूर्ण है।
- राजगीर हॉट स्प्रिंग्स के सूक्ष्मजीव विविधता का विश्लेषण 16S rRNA मेटाजेनोमिक्स तकनीक से किया गया, जिसमें विशेष रूप से प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) उत्पादक जीवाणुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- मेटाजीनोमिक्स पर्यावरणीय नमूनों (जैसे- हवा, मिट्टी, पानी, आँतों के सूक्ष्मजीव समुदाय) से सीधे प्राप्त आनुवंशिक सामग्री ( DNA/RNA) का अध्ययन है, जिसमें प्रयोगशाला में व्यक्तिगत जीवों को संवर्द्धित करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- अध्ययन का महत्त्व: शक्तिशाली जीवाणुरोधी यौगिकों का निष्कर्षण रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग से फैलने वाली एक मूक महामारी है।
- AMR ने स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ा दी है, जिसके कारण प्रायः प्रत्येक संक्रमण हेतु अनेक एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल लागत 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगी।
- थर्मोफिलिक बैक्टीरिया के बारे में: थर्मोफिलिक बैक्टीरिया हॉट स्प्रिंग्स, डीप सी वेंट और कंपोस्ट पिल्स के ढेरों में निवास करते हैं तथा खनिज समृद्ध, लो-कॉम्पिटिशन निचे का दोहन करते हैं।
- सऊदी अरब में पाए जाने वाले थर्मोफिलिक जीवाणु ग्राम-पॉजिटिव रोगजनक बैक्टीरिया (जैसे- स्टैफिलोकोकस ऑरियस, स्ट्रेप्टोकोकस) के खिलाफ प्रभावी एंटीबायोटिक्स उत्पन्न करते हैं।
- अनुप्रयोग: PCR परीक्षण एंज़ाइम (कोविड-19 के लिये उपयोग किया जाता है) तथा लेह के हॉट स्प्रिंग से प्राप्त जीवाणु संयोजन पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देता है।
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पीएम-प्रणाम योजना
स्रोत: बी.एल.
चर्चा में क्यों?
सिंथेटिक उर्वरक के उपयोग को कम करने के उद्देश्य से शुरू की गई पीएम-प्रणाम योजना ने वर्ष 2023-24 में 15.14 लाख टन उर्वरकों की कमी के साथ प्रारंभिक सफलता प्राप्त की है, जिसके परिणामस्वरूप सब्सिडी में पर्याप्त बचत हुई है।
नोट: कर्नाटक अकेले कुल बचत का 30% के लिये ज़िम्मेदार है, इसके बाद महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश का स्थान है, जिन्होंने संयुक्त रूप से 58% से का अधिक योगदान दिया है।
पीएम-प्रणाम योजना क्या है?
- परिचय: पीएम-प्रणाम को जून 2023 में मंज़ूरी दी गई, जिसका उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करना है। इसके तहत राज्यों को वैकल्पिक उर्वरकों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- यह योजना तीन वर्षों की अवधि के लिये लागू है (वित्त वर्ष 2023-24 से 2025-26 तक)।
- लक्षित बचत: PM-PRANAM का मुख्य उद्देश्य 20,000 करोड़ रुपए के उर्वरक व्यय में कटौती प्राप्त करना है। यह लक्ष्य रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम करने और संधारणीय कृषि को बढ़ावा देने की दीर्घकालिक रणनीति को दर्शाता है।
- यह जैविक तथा प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के माध्यम से जैवउर्वरकों और जैविक उर्वरकों के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
- ट्रैकिंग तंत्र: इंटीग्रेटेड फर्टिलाइजर्स मैनेजमेंट सिस्टम (iFMS) को उर्वरकों के उपयोग को ट्रैक करने के लिये एक प्रमुख मंच के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
पीएम-प्रणाम योजना भारत में संधारणीय कृषि पद्धतियों में किस प्रकार योगदान दे सकती है?
- रासायनिक उर्वरक के उपयोग में कमी: पीएम-प्रणाम राज्यों को यूरिया, DAP (डायमोनियम फॉस्फेट), NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) और MOP (पोटाश का म्यूरिएट) जैसे अत्यधिक रासायनिक इनपुट को कम करने के लिये प्रोत्साहित करता है, जिससे मृदा क्षरण, जल प्रदूषण तथा जैवविविधता हानि जैसे पर्यावरणीय जोखिम कम हो जाते हैं।
- सब्सिडी बचत और अनुदान के लिये पात्रता निर्धारित करने हेतु किसी राज्य की यूरिया खपत में कमी को उसके तीन वर्ष के औसत के आधार पर मापा जाएगा।
- संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियाँ: केंद्र सब्सिडी बचत का 50% राज्यों को देता है, जिसमें से 70% वैकल्पिक उर्वरक प्रौद्योगिकी और उत्पादन का समर्थन करने वाली परिसंपत्तियों के लिये आवंटित किया जाता है तथा 30% उर्वरक कटौती व जागरूकता में शामिल किसानों, पंचायतों एवं हितधारकों को पुरस्कृत करने हेतु आवंटित किया जाता है।
- जैविक और वैकल्पिक कृषि: यह योजना जैविक कृषि और टिकाऊ विकल्पों की ओर बदलाव का पुरज़ोर समर्थन करती है, जिसका उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य में सुधार लाना एवं सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम करना है।
- सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव: यह योजना रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की मौजूदा उर्वरक सब्सिडी से हुई बचत के माध्यम से वित्तपोषित की जा रही है तथा पीएम-प्रणाम के लिये अलग से कोई बजट आवंटित नहीं किया गया है।
- यह योजना कृषकों को दी जाने वाली विद्युत सब्सिडी से जुड़े जल प्रदूषण, मृदा लवणता और जैवविविधता की हानि को कम करने में सहायता करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित जीवों पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से जैव उर्वरक के रूप में प्रयुक्त होता है/होते हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) |