राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों का स्थापना दिवस
चर्चा में क्यों?
1 नवंबर को, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु सहित आठ भारतीय राज्य, साथ ही पाँच केंद्रशासित प्रदेश (UTs) अर्थात् अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दिल्ली, लक्षद्वीप और पुडुचेरी अपना स्थापना दिवस मनाते हैं।
- यह भारत के प्रशासनिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसे राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 और बाद में राज्य विभाजन द्वारा आकार दिया गया।
कौन से भारतीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 1 नवंबर को अपना स्थापना दिवस मनाते हैं?
राज्य
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राज्य |
गठन |
गठन का आधार |
गठन से पूर्व की स्थिति |
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आंध्र प्रदेश |
1 नवंबर, 1953 |
आंध्र राज्य वर्ष 1953 में बनाया गया था और 1956 में राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के अंतर्गत आंध्र प्रदेश राज्य का गठन हुआ। |
आंध्र राज्य और हैदराबाद राज्य का भाग था |
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कर्नाटक |
1 नवंबर, 1956 |
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 (मूल रूप से मैसूर राज्य के रूप में) |
बॉम्बे राज्य, कूर्ग राज्य, हैदराबाद राज्य और मैसूर राज्य के कुछ हिस्से |
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केरल |
1 नवंबर, 1956 |
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 |
मद्रास राज्य और त्रावणकोर-कोचीन का भाग |
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मध्य प्रदेश |
1 नवंबर, 1956 (पुनर्गठित) |
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 |
सेंट्रल प्रोविंसेस और बेरार, तथा पूर्वी राज्यों की रियासतें |
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तमिलनाडु |
1 नवंबर, 1956 (मद्रास राज्य के रूप में), 1969 में तमिलनाडु नाम रखा गया |
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 |
मद्रास राज्य और त्रावणकोर-कोचीन का भाग |
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हरियाणा |
1 नवंबर, 1966 |
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 |
पूर्वी पंजाब का भाग |
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पंजाब |
1 नवंबर, 1966 (वर्तमान स्वरूप में) |
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 |
पूर्वी पंजाब का भाग |
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छत्तीसगढ़ |
1 नवंबर, 2000 |
मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 |
मध्य प्रदेश का भाग |
केंद्रशासित प्रदेश
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केंद्रशासित प्रदेश |
गठन |
गठन का आधार |
गठन से पूर्व की स्थिति |
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अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह |
1 नवंबर, 1956 |
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 |
भाग ‘D’ राज्य |
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दिल्ली |
1 नवंबर, 1956 |
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 |
दिल्ली (भाग ‘C’ राज्य) |
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लक्षद्वीप |
1 नवंबर, 1956 |
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम, 1956 |
मद्रास राज्य का भाग |
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पुडुचेरी |
1 नवंबर, 1954 (वास्तविक नियंत्रण – de facto), 1963 (केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा) |
फ्राँस के साथ हस्तांतरण संधि (Treaty of Cession) और केंद्र शासित प्रदेश शासन अधिनियम, 1963 |
फ्राँसीसी भारत की भूमियाँ |
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चंडीगढ़ |
1 नवंबर, 1966 |
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 |
पूर्वी पंजाब का भाग |
भारत में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के गठन से संबंधित प्रावधान क्या हैं?
- भारतीय संविधान का भाग I: इसका शीर्षक है “संघ और उसका क्षेत्र”। जिसमे अनुच्छेद 1 से 4 शामिल हैं।
- यह भारत को "राज्यों का संघ" के रूप में परिभाषित करता है, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के नाम और क्षेत्र निर्दिष्ट करता है तथा संसद को नए राज्यों को शामिल करने या स्थापित करने और मौजूदा राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं या नामों में परिवर्तन का अधिकार प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 1: भारत को "राज्यों का संघ" घोषित करता है और इसके क्षेत्र में सभी राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और भविष्य में अधिग्रहित किये जाने वाले क्षेत्र शामिल होंगे।
- यह एक अविनाशी केंद्र और लचीली इकाइयों वाले एक मज़बूत संघ के विचार को दर्शाता है।
- अनुच्छेद 2: संसद को संघ में नए राज्यों को शामिल करने या ऐसे नियमों और शर्तों पर नए राज्यों की स्थापना करने का अधिकार देता है, जैसा वह उचित समझे।
- अनुच्छेद 3: यह संसद को किसी मौजूदा राज्य से क्षेत्र अलग करके या दो या अधिक राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों को मिलाकर एक नया राज्य बनाने का अधिकार प्रदान करता है।
- यह किसी भी मौजूदा राज्य के क्षेत्र, सीमाओं या नाम में परिवर्तन की भी अनुमति देता है।
- हालाँकि, इस उद्देश्य के लिये कोई विधेयक केवल राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश से ही प्रस्तुत किया जा सकता है, जिन्हें इसे संबंधित राज्य विधानमंडल के पास उसके विचारों के लिये भेजना होगा।
- राज्य विधानमंडल की राय संसद पर बाध्यकारी नहीं है और केंद्रशासित प्रदेश के मामले में ऐसे किसी संदर्भ की आवश्यकता नहीं है।
- इस प्रावधान ने छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड (2000) और तेलंगाना (2014) के गठन जैसे बड़े पुनर्गठन को संभव बनाया है।
- अनुच्छेद 4: अनुच्छेद 2 या 3 के अंतर्गत बनाया गया कोई भी कानून पहली अनुसूची (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची) और चौथी अनुसूची (राज्यसभा सीट आवंटन) में संशोधन कर सकता है।
- ऐसे कानून को अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संवैधानिक संशोधन नहीं माना जाता है।
भारत में राज्य पुनर्गठन से संबंधित आयोग
- भाषाई प्रांत आयोग (धर आयोग) (1948): राज्यों के गठन के आधार के रूप में भाषा को अस्वीकार कर दिया गया।
- जेवीपी समिति (1949): जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और पट्टाभि सीतारामैया की सदस्यता वाली इस समिति ने विघटन की आशंकाओं के कारण भाषाई पुनर्गठन के विरुद्ध चेतावनी दी थी। इसने राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को प्राथमिकता दी।
- राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) (जिसे फ़ज़ल अली आयोग के नाम से भी जाना जाता है) (1953): न्यायमूर्ति फ़ज़ल अली की अध्यक्षता में गठित एसआरसी, जिसमें एच.एन. कुंजरू और के.एम. पणिक्कर सदस्य थे, ने वर्ष 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- इसने भाषा को एक प्रमुख कारक के रूप में स्वीकार किया, लेकिन 'एक भाषा, एक राज्य' के विचार को अस्वीकार कर दिया और एकता, सुरक्षा तथा प्रशासनिक, आर्थिक और वित्तीय पहलुओं पर ज़ोर दिया।
- इसके परिणामस्वरूप राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 पारित हुआ, जिसने भारत को 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया और पुराने भाग क, ख, ग और घ वर्गीकरण को समाप्त कर दिया।
- बाद में, क्षेत्रीय पहचान की मांगों और बेहतर प्रशासनिक दक्षता, आर्थिक विकास और संसाधन नियंत्रण की आवश्यकता के कारण कई भारतीय राज्यों का गठन किया गया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. संविधान के कौन-से अनुच्छेद राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के गठन और पुनर्गठन को नियंत्रित करते हैं?
अनुच्छेद 1 से 4 संघ और उसके क्षेत्र को कवर करते हैं। अनुच्छेद 2 नए राज्यों को स्वीकार या स्थापित करता है, अनुच्छेद 3 संसद को राज्यों के गठन या परिवर्तन का अधिकार प्रदान करता है तथा अनुच्छेद 4 पहली और चौथी अनुसूचियों में आकस्मिक संशोधनों से संबंधित है।
2. अनुच्छेद 2 और 3 के तहत कानूनों को संवैधानिक संशोधन क्यों नहीं माना जाता है?
अनुच्छेद 4 स्पष्ट रूप से कहता है कि अनुच्छेद 2 या 3 के तहत बनाए गए कानून पहली और चौथी अनुसूचियों में संशोधन कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा, जिससे संसद को सामान्य कानून द्वारा क्षेत्रों का पुनर्गठन करने की अनुमति मिलती है।
3. राज्य पुनर्गठन आयोग का उद्देश्य क्या था?
राज्य पुनर्गठन आयोग ने भाषाई पुनर्गठन की मांगों की जाँच की, एकता और प्रशासनिक दक्षता पर ज़ोर देते हुए मुख्य रूप से भाषाई आधार पर पुनर्गठन की सिफारिश की। इसकी सिफारिशों के परिणामस्वरूप राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 बना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. वर्ष 1953 में जब आंध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाया गया था तब उसकी राजधानी किसे बनाया गया था? (2008)
(a) गुंटूर
(b) कुर्नूल
(c) नेल्लोर
(d) वारंगल
उत्तर: (b)
GSAT-7R: भारत का सबसे भारी नौसैनिक संचार उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC), श्रीहरिकोटा से GSAT-7R (जिसे CMS-03 भी कहा जाता है), भारत का सबसे भारी स्वदेशी रूप से निर्मित उन्नत संचार उपग्रह, सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह देश की अंतरिक्ष क्षमताओं और नौसैनिक संचार में एक बड़े सुधार को दर्शाता है।
CMS-03 (GSAT-7R) के बारे में मुख्य बातें क्या हैं?
- परिचय: CMS-03 को लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) का इस्तेमाल करके इसकी पाँचवीं ऑपरेशनल उड़ान (LVM3-M5) में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।
- CMS-03 एक बहु-बैंड संचार उपग्रह है, जो भारतीय भौगोलिक क्षेत्र सहित विस्तृत समुद्री क्षेत्रों में सेवाएँ प्रदान करेगा।
- CMS-03, जिसका वजन लगभग 4400 किलोग्राम है, भारत से जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में लॉन्च किया गया सबसे भारी संचार उपग्रह है।
- LVM3 के पिछले मिशन ने चंद्रयान-3 को लॉन्च किया था, जिसमें भारत पहला ऐसा देश बन गया जिसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक लैंडिंग की।
- तकनीकी विशेषताएँ: उपग्रह को GTO (जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) में स्थापित किया गया है और बाद में यह अपने ऑनबोर्ड प्रोपल्शन सिस्टम का उपयोग करके अंतिम जियोस्टेशनरी कक्षा में पहुँच जाएगा।
- CMS-03 को 15 वर्ष की मिशन लाइफ के लिये डिज़ाइन किया गया है। इसमें उन्नत बहु-बैंड ट्रांसपॉन्डर हैं, जो वॉइस, डेटा और वीडियो सिग्नल प्रसारित करते हैं, जिससे भारतीय नौसेना हेतु भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) में सुरक्षित तथा उच्च-क्षमता वाली संचार सुविधा सुनिश्चित होती है
- महत्त्व: GSAT-7R ने वर्ष 2013 में लॉन्च हुए दशक पुराने GSAT-7 (रुक्मिणी) को प्रतिस्थापित किया है, जिसका अब परिचालन जीवन समाप्त हो चुका है।
- यह नया उपग्रह पूरी तरह से स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है, जो आत्मनिर्भर भारत के तहत प्रगति का प्रतीक है।
- LVM3-M5 भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूत करता है और भारी पेलोड जैसे कि यूरोपीय Ariane-5 के लिये विदेशी लॉन्च वाहनों पर निर्भरता को कम करता है।
- यह गगनयान की तैयारियों का समर्थन करता है, LVM3 की हैवी-लिफ्ट क्षमता और भविष्य के मिशनों के लिये क्रायोजेनिक इंजन री-इग्निशन परीक्षण को प्रदर्शित करता है।
लॉन्च व्हीकल मार्क (LVM)-3
- LVM-3, जिसे पहले जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (GSLV Mk 3) कहा जाता था, सॉलिड, लिक्विड और क्रायोजेनिक ईंधन आधारित इंजन का उपयोग करता है। यह 8,000 किग्रा तक का पेलोड निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) में (पृथ्वी की सतह से 2,000 किमी ऊँचाई तक) तथा 4,000 किग्रा तक का पेलोड जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट में (लगभग 36,000 किमी) स्थापित कर सकता है।
- मुख्य उपलब्धियाँ: चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 चंद्र मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
- इसके द्वारा गगनयान कार्यक्रम के तहत री-एंट्री टेस्ट हेतु भारत का पहला क्रू मॉड्यूल (2014) ले जाया गया।
- वर्ष 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक प्रक्षेपण विकल्पों की कमी के बीच इसरो ने 72 वनवेब (OneWeb) उपग्रहों को LEO में प्रक्षेपित किया।
- इन मिशनों ने ISRO के लचीलेपन को प्रदर्शित किया और इसी के परिणामस्वरूप “GSLV Mk-3” को “LVM-3” के रूप में रीब्रांड किया गया।
- उन्नयन और भविष्य के सुधार: ISRO भविष्य के मिशनों, जैसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्र अन्वेषण अभियानों के लिये LVM-3 को उन्नत बना रहा है।
- योजना है कि इसके लिक्विड स्टेज (तरल चरण) को परिष्कृत केरोसीन और तरल ऑक्सीजन से संचालित सेमी-क्रायोजेनिक इंजन से प्रतिस्थापित किया जाए।
- इन सुधारों से इसकी पेलोड क्षमता बढ़कर 10,000 किलोग्राम तक (LEO में) पहुँच सकती है।
- ISRO अगली पीढ़ी का “लूनर मॉड्यूल लॉन्च व्हीकल (LMLV)” भी विकसित कर रहा है, जो 80,000 किलोग्राम तक का भार ले जाने में सक्षम होगा। इसके साथ ही LVM-3 को भारत की डीप-स्पेस (गहरे अंतरिक्ष) और मानव अंतरिक्ष उड़ान महत्त्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने वाला “बाहुबली रॉकेट” के रूप में स्थापित किया जा रहा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न. GSAT-7R (CMS-03) क्या है?
GSAT-7R (CMS-03) भारतीय नौसेना के लिये स्वदेशी रूप से विकसित एक मल्टीबैंड संचार उपग्रह है। इसे श्रीहरिकोटा से LVM-3 (M5) रॉकेट द्वारा जियो ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में प्रक्षेपित किया गया। यह भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) में सुरक्षित वॉयस, डेटा और वीडियो संचार की सुविधा प्रदान करेगा।
प्रश्न. GSAT-7R (CMS-03) मिशन में LVM-3 ने कौन-सी उपलब्धि हासिल की?
इस मिशन में ISRO ने C25 क्रायोजेनिक स्टेज को उपग्रह पृथक्करण के बाद दोबारा प्रज्वलित किया जो भारत के लिये पहली बार था। इससे भविष्य के मिशनों में मल्टी-ऑर्बिट डिप्लॉयमेंट (अर्थात् एक ही मिशन में कई कक्षाओं में उपग्रह भेजना) संभव होगा।
प्रश्न. LVM-3 की पेलोड क्षमता क्या है?
LVM-3 लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 8,000 किलोग्राम तक और जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट (GEO) में 4,000 किलोग्राम तक का भार ले जाने में सक्षम है।
प्रश्न. LVM-3 के प्रमुख पिछले मिशन कौन-से हैं?
LVM-3 ने चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और वर्ष 2022 में 72 वनवेब (OneWeb) उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
- PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं जो पृथ्वी संसाधनों के मॉनिटरन उपयोगी हैं जबकि GSLV को मुख्यतः संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
- PSLV द्वारा प्रमोचित उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर रहते प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है।
- GSLV Mk III, एक चार स्टेज वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमें प्रथम और तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में द्रव रॉकेट इंजनों का प्रयोग होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 2
(d) केवल 3
उत्तर: (a)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
इसरो द्वारा लॉन्च किया गया मंगलयान:
- इसे मार्स ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला दूसरा देश बन गया है।
- भारत अपने पहले ही प्रयास में स्वयं के अंतरिक्षयान द्वारा मंगल ग्रह की परिक्रमा करने में सफल एकमात्र देश बन गया है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
मुगल लघु चित्रकला
चर्चा में क्यों?
लंदन में आयोजित एक नीलामी में एक मुगल लघुचित्र 13.64 मिलियन अमेरिकी डॉलर में बिका, जिससे यह अब तक की सबसे महँगी भारतीय पेंटिंग्स में से एक बन गया है — यह मूल्य एम.एफ. हुसैन की वर्ष 1954 की शीर्षकहीन कृति (ग्राम यात्रा) के 13.75 मिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड के लगभग बराबर है।
- सम्राट अकबर (1556–1605) के शासनकाल में बनी यह पेंटिंग सुनहरी आभा के साथ अपारदर्शी रंगों में चित्रित की गई है।
- इसमें फर और परिदृश्य के सूक्ष्म विवरणों के माध्यम से यथार्थवाद और गहराई का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया गया है।
मुगल चित्रकला के संबंध में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- उत्पत्ति: 16वीं शताब्दी में विकसित मुगल चित्रकला शैली एक लघु कला रूप थी, जिसमें फारसी और भारतीय शैलियों का सुंदर संगम दिखाई देता है।
- इसे मुख्यतः पांडुलिपियों की चित्र सज्जा और एलबम कला के लिये उपयोग किया गया, जिससे यह मुगल कला की उत्कृष्टता का प्रतीक बन गई।
- विकास:
- बाबर (1526-1530): अपने छोटे शासनकाल और विजय पर ध्यान केंद्रित करने के कारण चित्रकला में कोई बड़ा योगदान नहीं दिया।
- हुमायूँ (1530-1540, 1555-1556): फारस में शाह तहमास्प के दरबार में निर्वासन के बाद, हुमायूँ ने भारत में फारसी प्रभावों को पेश किया और शाही कलाकार मीर सैयद अली और ख्वाजा अब्दुस समद को लाकर शाही कार्यशाला (तस्वीर खाना) की स्थापना की।
- प्रिंसेस ऑफ द हाउस ऑफ तैमूर (लगभग 1550) नामक पेंटिंग इस काल का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
- अकबर (1556-1605): वह मुगल चित्रकला के वास्तविक संस्थापक थे, जिन्होंने इंपीरियल एटेलियर की स्थापना की और फारसी तकनीकों को भारतीय विषयों और प्रकृतिवाद के साथ मिश्रित किया।
- प्रमुख कलाकार: बसावन, दसवंत, लाल, मिस्किन, केसु दास।
- उन्होंने यथार्थवादी मानवीय अभिव्यक्तियों के साथ एक भारतीय रंग पैलेट (जैसे पीकॉक ब्लू और इंडियन रेड) पेश किया, जबकि जेसुइट मिशनरियों के यूरोपीय प्रभावों ने परिप्रेक्ष्य और छायांकन को जोड़ा।
- जहाँगीर (1605–1627): जहाँगीर के संरक्षण में मुगल चित्रकला अपने चरम पर पहुँची। इस काल में चित्रों का केंद्र बिंदु कथात्मक दृश्यों से हटकर चित्रांकन, प्राकृतिक अध्ययन और एलबम कला की ओर स्थानांतरित हुआ।
- मुख्य विषय: चित्रांकन, पक्षी, पुष्प, पशु तथा प्रकृति पर आधारित अध्ययन।
- प्रमुख कलाकार: उस्ताद मंसूर (जिनकी प्रसिद्ध कृति रेड ब्लॉसम्स है), अबू अल हसन और बिचित्र।
- शाहजहाँ (1628–1658): उन्होंने कला को संरक्षण तो दिया, लेकिन नवीनता में कमी रखी, जिससे मुगल चित्रकला अधिक अलंकरणयुक्त और औपचारिक बन गई। इस काल की चित्रकलाओं में दरबारी दृश्य, संगीत एवं प्रेम जैसे विषय प्रमुख रहे, साथ ही सोने और सजावटी आकृतियों का अधिक प्रयोग किया गया।
- औरंगज़ेब (1658–1707): उन्होंने चित्रकला में बहुत कम रुचि दिखाई और इसे गैर-इस्लामी माना, जिसके परिणामस्वरूप शाही संरक्षण में गिरावट आई।
- कई कलाकार राजपूत और दक्कन के दरबारों की ओर चले गए, जहाँ आगे चलकर बीकानेर, हैदराबाद और लखनऊ जैसे प्रांतीय कार्यशालाओं में यह परंपरा जीवित रही।
- उत्तर मुगल काल (18वीं शताब्दी): मुहम्मद शाह रंगीला (1719–1748) के शासनकाल में कला का अल्पकालिक पुनरुत्थान हुआ, जिसमें प्रेम और मनोरंजन विषयों पर आधारित चित्र बनाए गए। हालाँकि शाह आलम द्वितीय के काल तक आते-आते मुगल चित्रकला का पतन हो गया और उसका स्थान राजपूत तथा कंपनी शैली की चित्रकलाओं ने ले लिया।
- विरासत और प्रभाव: मुगल चित्रकला एक विशिष्ट शास्त्रीय भारतीय शैली के रूप में विकसित हुई, जिसने 18वीं–19वीं शताब्दी में राजपूत (बीकानेर, बूंदी, किशनगढ़) और दक्कन–कंपनी शैली की चित्रकलाओं को प्रभावित किया।
- इसने साम्राज्य से परे दरबारी कला की परंपरा को बनाए रखा और भारतीय कला में वैज्ञानिक प्राकृतिकवाद (Scientific naturalism) की नींव रखी, जिसका उदाहरण जहाँगीर के प्राकृतिक अध्ययनों में देखा जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. बसावन की चीता मिनिएचर (चित्रकला) का क्या महत्त्व है?
यह कृति (लगभग 1575–80) बसावन को समर्पित मानी जाती है, जो अकबर के दरबार के प्रमुख कलाकारों में से एक थे। इसे मुगल चित्रकला में प्राकृतिक इतिहास पर आधारित शुरुआती अध्ययनों में से एक माना जाता है।
2. अकबर के दरबार में प्रमुख चित्रकार कौन-कौन थे?
प्रमुख कलाकारों में बसावन, दासवंत, लाल, मिस्किन और केसू दास शामिल थे, जिन्होंने हमज़ानामा और अकबरनामा जैसे महत्त्वपूर्ण पांडुलिपियों को चित्रित किया।
3. जहाँगीर के शासनकाल में मुगल मिनिएचर चित्रों की विशिष्ट कलात्मक विशेषताएँ क्या थीं?
जहाँगीर के काल में सूक्ष्म रेखांकन, प्राकृतिक अध्ययन (पक्षी, पशु, पुष्प), चित्रांकन और सुस्पष्ट एक-बिंदु परिप्रेक्ष्य पर विशेष बल दिया गया। यह काल मुगल प्राकृतिकवाद और व्यक्तिगत चित्रकला की चरम सीमा का प्रतीक था।
UPSC, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स
प्रश्न. बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रायः चित्रित चित्रकारी है, जो (2017)
(a) अजंता में है
(b) बादामी में है
(c) बाघ में है
(d) एलोरा में है
उत्तर: (a)
प्रश्न. भारत की कला व संस्कृति के इतिहास के संबंध में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)
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विख्यात मूर्तिशिल्प |
स्थल |
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1. बुद्ध के महापरिनिर्वाण की एक भव्य प्रतिमा, जिसमें ऊपर की ओर अनेकों दैवी संगीतज्ञ तथा नीचे की ओर उनके दुखी अनुयायी दर्शाए गए हैं |
अजंता |
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2. प्रस्तर पर उत्कीर्ण विष्णु के वराह अवतार की विशाल प्रतिमा, जिसमें वह देवी पृथ्वी को गहरे विक्षुब्ध सागर से उबारते दर्शाए गए हैं |
माउंट आबू |
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3. विशाल गोलाश्मों पर उत्कीर्ण "अर्जुन की तपस्या"/"गंगा-अवतरण" |
मामल्लपुरम |
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
प्रश्न. निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों पर विचार कीजिये: (2013)
- अजंता की गुफ़ाएँ
- लेपाक्षी मंदिर
- साँची स्तूप
उपर्युक्त स्थलों में से कौन-सा/से भित्ति चित्रकला के लिये भी जाना जाता है/जाने जाते हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल I और 2
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं
उत्तर: (b)
लखनऊ को UNESCO ने ‘क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी’ घोषित किया
लखनऊ को उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित UNESCO महासम्मेलन (43वें सत्र) के दौरान क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी का दर्जा प्रदान किया गया।
- शामिल किये जाने के कारण: यह मान्यता लखनऊ की समृद्ध अवधी व्यंजन परंपरा (जैसे कबाब, बिरयानी, कोरमा और शीरमाल) को सम्मानित करती है, जो शहर की खानपान कला, आतिथ्य और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है।
- लखनऊ इस गौरव को प्राप्त करने वाला हैदराबाद (2019) के बाद भारत का दूसरा शहर बन गया है।
- ‘क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी’ के लिये मानदंड: किसी शहर को इस श्रेणी में शामिल होने के लिये —
- समृद्ध पारंपरिक पाक विरासत, स्थानीय सामग्री और कौशल होना चाहिये,
- सततता और खाद्य शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये,
- भोजन के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना चाहिये, इत्यादि।
UNESCO क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क (UCCN)
- परिचय: UNESCO द्वारा वर्ष 2004 में स्थापित, क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क (UCCN) उन शहरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है जिन्होंने स्थायी शहरी विकास के लिये रचनात्मकता को एक रणनीतिक कारक के रूप में पहचाना है।
- UCCN नेटवर्क: वर्तमान में 100 से अधिक देशों के 408 शहर इस नेटवर्क का हिस्सा हैं।
- इस वर्ष पहली बार “UCCN ने क्रिएटिव सिटीज़ ऑफ आर्किटेक्चर” को एक नई रचनात्मक श्रेणी (New creative field) के रूप में शामिल किया गया है, जो कि मौजूदा सात क्रिएटिव फील्ड्स (हस्तकला एवं लोककला, डिज़ाइन, फ़िल्म, गैस्ट्रोनॉमी/पाक-कला, साहित्य, मीडिया कला और संगीत) के अलावा एक नया क्रिएटिव फील्ड है।
- UCCN में भारतीय शहर: भारत के अब लखनऊ समेत 9 शहरों को UNESCO क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क (UCCN) के तहत मान्यता मिली है।
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शहर |
श्रेणी |
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जयपुर |
हस्तकला एवं लोककला |
2015 |
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वाराणसी |
संगीत |
2015 |
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चेन्नई |
संगीत |
2017 |
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2023 |
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गैस्ट्रोनॉमी/पाक-कला |
2025 |
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जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा और बिरसा मुंडा
जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा (1–15 नवंबर 2025) भारत के जनजातीय नायकों, उनकी संस्कृति और योगदान का सम्मान करने वाला एक राष्ट्रीय उत्सव है, जिसका समापन 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में होता है। यह दिवस भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
- जनजातीय गौरव वर्ष (JJGV): जनजातीय गौरव वर्ष (15 नवंबर, 2024 – 15 नवंबर, 2025) जनजातीय कार्य मंत्रालय के नेतृत्व में मनाया जा रहा है। यह भगवान बिरसा मुंडा के 150 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है तथा वार्षिक जनजातीय गौरव दिवस को जनजातीय गर्व, समावेशन और विकास के लिये पूरे वर्ष चलने वाले आंदोलन में परिवर्तित करता है।
- यह पहल जन भागीदारी और संपूर्ण शासन दृष्टिकोण पर बल देती है तथा धरती आबा जनजातीय उत्कर्ष ग्राम अभियान एवं प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (PM JANMAN) जैसी पहलों पर आधारित है।
- भगवान बिरसा मुंडा: भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को छोटानागपुर क्षेत्र (वर्तमान झारखंड) में हुआ था। वे मुंडा जनजाति के एक महान जननायक थे।
- ब्रिटिश नीतियाँ, जैसे स्थायी बंदोबस्त अधिनियम 1793, ने पारंपरिक खुंटकट्टी भूमि प्रणाली (Khuntkatti land system) को नष्ट कर दिया, जिससे जनजातीय लोग बेगार, ऋणग्रस्तता और विस्थापन के शिकार हो गए।
- बिरसा ने वर्ष 1886 में ईसाई धर्म अपना लिया था, लेकिन बाद में ब्रिटिश राज से इसके लिंक को देखते हुए उन्होंने इसे छोड़ दिया और कहा, “साहेब साहेब एक टोपी।”
- उन्होंने बिरसाइत धर्म की स्थापना की, जिसमें जनजातीय परंपराओं को सुधारवादी विचारों के साथ जोड़ा गया। जनजातीय समाज में उन्हें ‘भगवान’ और ‘धरती का अब्बा’ (Dharti ka Abba) के रूप में पूजा गया।
- वर्ष 1899 में, बिरसा ने उलगुलान (बड़ा हंगामा) का नेतृत्व किया, जो एक जनजातीय विद्रोह था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को समाप्त करना, बाहरी लोगों को निकालना और बिरसा राज स्थापित करना था।
- उनका आंदोलन गुरिल्ला रणनीति पर आधारित था, उसने औपनिवेशिक कानूनों और करों को अस्वीकार किया तथा यह भारत के सबसे संगठित जनजातीय विद्रोहों में से एक बन गया।
- वर्ष 1900 में बिरसा को गिरफ्तार किया गया और वे मात्र 25 वर्ष की आयु में शहीद हो गए। उनकी विरासत ने आगे चलकर छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908) को प्रेरित किया, जिसने जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की।
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पीएम-डिवाइन योजना के तहत एकीकृत सोहरा सर्किट
पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्रालय (DoNER) ने प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास पहल (PM-DevINE) योजना के तहत एकीकृत सोहरा सर्किट की आधारशिला रखी और मेघालय में 233 करोड़ रुपए मूल्य की DoNER परियोजनाओं का शुभारंभ किया।
- एकीकृत सोहरा सर्किट: यह परियोजना पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्रालय (DoNER) और मेघालय सरकार द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की जा रही है। इसका उद्देश्य सोहरा को एक सतत्, बहुदिवसीय पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना है, जो स्थानीय आजीविका को प्रोत्साहित करेगा।
- परियोजना में सोहरा अनुभव केंद्र तथा पर्यावरणीय पर्यटन स्थलों जैसे नोहकलिकाई जलप्रपात, मावस्माई इको पार्क और वाहकलियार घाटी का विकास शामिल है।
- इससे पर्यटकों के व्यय में छह गुना वृद्धि और क्षेत्र में 4,600 से अधिक रोज़गार अवसरों के सृजन की अपेक्षा की गई है।
- पीएम-डेवाइन योजना: इसे केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में 100% केंद्रीय निधिकरण के साथ केंद्रीय बजट 2022-23 में घोषित किया गया था।
- यह योजना प्रमुख अवसंरचना एवं सामाजिक परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण प्रदान करती है, युवा एवं महिला आजीविका को सशक्त बनाती है तथा प्रधानमंत्री गतिशक्ति दृष्टिकोण के अनुरूप विकासीय अंतरालों को पाटने का कार्य करती है।
- फरवरी 2025 तक, पीएम-डेवाइन योजना के अंतर्गत ₹4,927 करोड़ मूल्य की कुल 36 परियोजनाएँ स्वीकृत की जा चुकी हैं।
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