भारत का निवेश परिवेश और नीतिगत-संशोधन
यह एडिटोरियल 21/07/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “India’s FDI challenge: In a world of shrinking investment, capital will come where there is confidence and clarity” पर आधारित है। यह लेख उभरते बाज़ारों में वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में संरचनात्मक गिरावट को उजागर करता है, साथ ही इस बात पर प्रकाश डालता है कि सकल निवेश में वृद्धि के बावजूद भारत के निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट आई है, जो इस बात पर ज़ोर देता है कि निवेश को सही मायने में आकर्षित करने के लिये गहन सुधारों, व्यापार एकीकरण और नीतिगत समन्वय की आवश्यकता है।
प्रिलिस के लिये:भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह, विशेष आर्थिक क्षेत्र, डिजिटल इंडिया पहल, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, मेक इन इंडिया, भारत-UAE व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, विश्व बैंक का लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स मेन्स के लिये:भारत को वैश्विक निवेश केंद्र बनाने वाले प्रमुख कारक, निरंतर विदेशी निवेश आकर्षित करने की भारत की क्षमता को सीमित करने वाली बाधाएँ। |
उभरते बाज़ारों में वैश्विक FDI प्रवाह वर्ष 2008 में सकल घरेलू उत्पाद के 5% से घटकर केवल 2% रह गया है, जो एक अस्थायी झटके के बजाय एक संरचनात्मक गिरावट को दर्शाता है। भारत भी इसी विरोधाभास को प्रतिबिंबित करता है, जहाँ सकल FDI वर्ष 2024-25 में 14% बढ़कर 81 अरब डॉलर तक पहुँच गया, वहीं निवल FDI 96% घटकर मात्र 0.35 अरब डॉलर रह गया, जिसका मुख्य कारण बढ़ता प्रत्यावर्तन है। भू-राजनीतिक संरेखण और व्यापार समझौतों द्वारा तेज़ी से संचालित निवेश निर्णयों के साथ, भारत की हालिया FTA गति इसे वैश्विक पुनर्स्थापन के लिये रणनीतिक रूप से तैयार करती है। स्पष्ट संदेश यह है कि भारत को अब केवल निवेश आमंत्रित करने से आगे बढ़कर उसे वास्तव में अर्जित करना होगा, जिसके लिये उदारीकरण, व्यापार एकीकरण तथा समन्वित नीतिगत कार्रवाई अनिवार्य है।
भारत को वैश्विक निवेश का केंद्र बनाने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?
- वृहद आर्थिक आधारभूत कारक
- भू-आर्थिक अनिश्चितता के बीच मज़बूत आर्थिक विकास: वैश्विक चुनौतियों और आर्थिक मंदी के बावजूद, भारत की तेज आर्थिक वृद्धि वैश्विक निवेशकों के लिये इसके आकर्षण का आधार बनी हुई है।
- वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की वास्तविक GDP में 6.5% की वृद्धि का अनुमान है। विनिर्माण, सेवा और निर्माण जैसे क्षेत्रों के विस्तार से इस विकास पथ को बल मिल रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025 में भारत की GDP 4.187 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगी, जो जापान को पीछे छोड़कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी, जो इसकी मज़बूत आर्थिक स्थिति को दर्शाता है।
- बढ़ता जनांकिकीय लाभांश: भारत का युवा और गतिशील कार्यबल दीर्घकालिक विकास के अवसरों की तलाश कर रहे विदेशी निवेशकों के लिये अपार संभावनाएँ प्रदान करता है।
- भारत की 15-59 वर्ष की कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या वर्ष 2036 तक बढ़कर 64.9% होने की उम्मीद है।
- 28.4 वर्ष की औसत आयु कुशल श्रम की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करती है, जिससे भारत एक आकर्षक विनिर्माण केंद्र बन जाता है।
- यह जनांकिकीय लाभ भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये एक प्रमुख स्थान पर रखता है, विशेष रूप से विनिर्माण और प्रौद्योगिकी जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में।
- भारत की 15-59 वर्ष की कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या वर्ष 2036 तक बढ़कर 64.9% होने की उम्मीद है।
- उन्नत अवसंरचना और रसद: अवसंरचना, विशेष रूप से परिवहन और रसद में भारत का निरंतर निवेश, FDI आकर्षित करने का एक प्रमुख कारक है।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) और PM गति शक्ति पहल भारत की कनेक्टिविटी में बदलाव ला रही हैं, जिससे आपूर्ति शृंखला संचालन सुचारू हो रहा है।
- लगभग 280 परिचालनशील विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) और तीसरे सबसे बड़े घरेलू विमानन बाज़ार के रूप में भारत की स्थिति के साथ, अवसंरचना विकास व्यापार करने में सुगमता को बढ़ाता है।
- इसके अतिरिक्त, सागरमाला और भारतमाला पहलों के माध्यम से कनेक्टिविटी को मज़बूत करने के सरकार के प्रयास भारत के रसद अवसंरचना को बढ़ा रहे हैं।
- भू-आर्थिक अनिश्चितता के बीच मज़बूत आर्थिक विकास: वैश्विक चुनौतियों और आर्थिक मंदी के बावजूद, भारत की तेज आर्थिक वृद्धि वैश्विक निवेशकों के लिये इसके आकर्षण का आधार बनी हुई है।
- नीतिगत और नियामक सुधार
- सरकारी सुधार और नीतिगत समर्थन: भारत ने अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीतियों को उदार बनाने और निवेशक-अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- मेक इन इंडिया पहल और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना प्रमुख प्रेरक हैं, जो विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर रहे हैं।
- आज, कई उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है, जो आर्थिक आत्मविश्वास और रणनीतिक महत्त्वाकांक्षा दोनों का संकेत देता है।
- वित्त वर्ष 2024-25 में, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में 14% की वृद्धि हुई, जो 81 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वैश्विक पूंजी आकर्षित करने में इन सुधारों की सफलता को दर्शाता है।
- हरित संक्रमण पर बढ़ता ध्यान: नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी जैसे क्षेत्रों में वैश्विक रुचि बढ़ रही है, जो FDI वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
- अनुकूल नीतियों और प्रोत्साहनों के कारण, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने अकेले वर्ष 2020 से 2023 तक 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का FDI आकर्षित किया है।
- देश इलेक्ट्रिक वाहन (EV) निवेश का केंद्र भी बन रहा है, जहाँ हुंडई और फॉक्सकॉन जैसी कंपनियाँ उत्पादन विस्तार के लिये पर्याप्त पूँजी लगा रही हैं।
- स्वास्थ्य और फार्मा के लिये वैश्विक केंद्र: मज़बूत विकास संभावनाओं और सरकार समर्थित प्रोत्साहनों के संयोजन के कारण भारत के स्वास्थ्य सेवा रवन फार्मास्युटिकल क्षेत्र प्रमुख प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करने वाले क्षेत्र बन गए हैं।
- वित्त वर्ष 2024 में, भारत के अस्पतालों ने 1.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पर्याप्त FDI प्राप्त किया, जो कुल स्वास्थ्य सेवा FDI का आधा है।
- ग्रीनफील्ड फार्मास्युटिकल क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति और अनुसंधान एवं विकास निवेश को सुविधाजनक बनाने जैसे सुधारों ने भारत को वैश्विक फार्मा कंपनियों के लिये एक आकर्षक गंतव्य बना दिया है।
- डिजिटल परिवर्तन और तकनीकी प्रगति: भारत का तेज़ी से डिजिटलीकरण इसे एक वैश्विक तकनीकी महाशक्ति में बदल रहा है, जो फिनटेक, ई-कॉमर्स और AI जैसे क्षेत्रों में निवेश आकर्षित कर रहा है।
- सरकार की डिजिटल इंडिया पहल ने तकनीक अंगीकरण में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है और वर्ष 2025 तक भारत में 90 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट उपयोगकर्त्ता होंगे।
- वित्त वर्ष 2022-23 में देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था ने सकल घरेलू उत्पाद में 11.74% का योगदान दिया, जो तकनीक-आधारित निवेश की इसकी विशाल क्षमता को दर्शाता है।
- अमेज़न और माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रमुख वैश्विक तकनीकी कंपनियाँ ऑनलाइन सेवाओं और डिजिटल सॉल्यूशन्स की बढ़ती माँग का लाभ उठाते हुए भारत के डिजिटल बुनियादी अवसंरचना में भारी निवेश कर रही हैं। UPI जैसी डिजिटल भुगतान प्रणालियों का उदय डिजिटल अर्थव्यवस्था में अग्रणी के रूप में भारत की स्थिति को और मज़बूत करता है।
- सरकारी सुधार और नीतिगत समर्थन: भारत ने अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीतियों को उदार बनाने और निवेशक-अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- रणनीतिक और भू-राजनीतिक स्थिति
- रणनीतिक भौगोलिक स्थिति: एशियाई मंच पर भारत की रणनीतिक स्थिति 3.2 अरब से अधिक लोगों के विशाल उपभोक्ता बाज़ार तक विशिष्ट अभिगम प्रदान करती है।
- दक्षिण एशियाई, मध्य पूर्वी और अफ्रीकी बाज़ारों में एक प्रमुख भागीदार के रूप में, भारत आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने के इच्छुक व्यवसायों के लिये एक प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
- भारत-UAE व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CEPA) जैसे हालिया समझौते वैश्विक व्यापार में भारत के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित करते हैं।
- रणनीतिक भौगोलिक स्थिति: एशियाई मंच पर भारत की रणनीतिक स्थिति 3.2 अरब से अधिक लोगों के विशाल उपभोक्ता बाज़ार तक विशिष्ट अभिगम प्रदान करती है।
कौन-सी बाधाएँ भारत की निरंतर विदेशी निवेश आकर्षित करने की क्षमता को सीमित कर रही हैं?
- नियामक अड़चनें और नीतिगत अनिश्चितताएँ: महत्त्वपूर्ण सुधारों के बावजूद, भारत का नियामक कार्यढाँचा अभी भी जटिल और धीमा होने के कारण आलोचनाओं का सामना कर रहा है, जिससे विदेशी निवेशक हतोत्साहित होते हैं।
- नियामक अनिश्चितताएँ, विशेष रूप से डिजिटल कानूनों और श्रम कानूनों जैसे क्षेत्रों में, निवेश जोखिम बढ़ाती हैं।
- उदाहरण के लिये, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA), 2023 के प्रारूप नियम- 2025 की शुरुआत में सार्वजनिक परामर्श के लिये जारी किये गए थे, लेकिन वर्ष 2025 के मध्य तक उन्हें अंतिम रूप नहीं दिया गया है, जिससे व्यवसाय अस्पष्ट आवश्यकताओं के साथ ‘अनुपालन अधर’ में हैं।
- वर्ष 2025 के केंद्रीय बजट में कंपनी रजिस्ट्रार (RoC) व कर दाख़िले (टैक्स फाइलिंग) से जुड़ी आवश्यकताओं को और अधिक सख्त एवं अधिक बारंबार किया गया है, जिससे अनुपालन (कंप्लायंस) की प्रक्रियाएँ पहले की तुलना में अधिक जटिल और अतृप्त हो गई हैं।
- बुनियादी अवसंरचना और रसद चुनौतियाँ: हालाँकि भारत के बुनियादी अवसंरचना में सुधार हुआ है, फिर भी यह कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से रसद और ग्रामीण संपर्क में पिछड़ा हुआ है, जो व्यापार सुगमता में बाधा डालता है।
- सड़कों की निम्नस्तरीय गुणवत्ता, बंदरगाहों पर भीड़भाड़ और धीमी रेल नेटवर्क के कारण व्यवसायों की परिचालन लागत में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
- वर्ष 2023 में विश्व बैंक का लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स में भारत को 38वाँ स्थान दिया गया है, जो चीन जैसी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं से काफी पीछे है, जिससे यह समय-संवेदनशील निवेशों के लिये कम आकर्षक हो जाता है।
- वर्ष 2025 तक, भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14% है, जो उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (जैसे: अमेरिका में 7%, जर्मनी में 8%) की तुलना में बहुत अधिक है।
- लॉजिस्टिक्स में ऐसी अक्षमताएँ विनिर्माण और ई-कॉमर्स जैसे उद्योगों को प्रभावित करती हैं, जिससे निवेश में और बाधा आती है।
- कुशल श्रमिकों की कमी: भारत की विशाल श्रम शक्ति एक लाभ है, लेकिन कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और उच्च-स्तरीय विनिर्माण में उन्नत कौशल की कमी एक चुनौती बनी हुई है।
- हालाँकि देश में युवा कार्यबल है, फिर भी कई निवेशकों को वैश्विक मानकों को पूरा करने के लिये कुशल श्रम की खोज़ में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे तकनीक-प्रधान क्षेत्रों में भारत की क्षमता सीमित हो जाती है।
- नैसकॉम-ज़िनोव की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2026 तक 14-19 लाख तकनीकी पेशेवरों की कमी होने का अनुमान है।
- कौशल का यह अंतर AI और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में निवेशकों को हतोत्साहित करता है, जहाँ विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
- भू-राजनीतिक जोखिम: हाल ही में पहलगाम हमले के साथ पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ तनाव जैसे मौजूदा भू-राजनीतिक मुद्दे दीर्घकालिक निवेश को लेकर अनिश्चितता उत्पन्न कर सकते हैं।
- अमेरिका और चीन जैसे प्रमुख बाज़ारों में संरक्षणवादी नीतियों में वृद्धि ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है, जिससे वैश्विक कंपनियों की निवेश रणनीतियाँ प्रभावित हुई हैं।
- इसके कारण, 30% से अधिक वैश्विक कंपनियाँ अब व्यापार और टैरिफ नीतियों को अपनी प्रमुख व्यावसायिक चिंता मानती हैं, जो वर्ष 2025 की शुरुआत के स्तर से तीन गुना अधिक है।
- उदाहरण के लिये, चीनी वस्तुओं पर टैरिफ में हालिया वृद्धि ने विदेशी निवेशकों को भारत की व्यापार नीतियों के साथ तालमेल बिठाने को लेकर सतर्क कर दिया है।
- भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय अनुमोदन: भूमि अधिग्रहण के मुद्दे बुनियादी अवसंरचना और विनिर्माण परियोजनाओं में विदेशी निवेश के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा बने हुए हैं।
- प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के सरकारी प्रयासों के बावजूद, बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये भूमि प्राप्त करना अभी भी कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- हाल के आँकड़े बताते हैं कि लगभग 700 राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएँ आधिकारिक तौर पर विलंबित हुईं, जिनमें से 35% विलंब लंबे समय से चल रहे भूमि अधिग्रहण विवादों के कारण हुई।
- अन्य उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्द्धा: भारत को वियतनाम, बांग्लादेश और मेक्सिको जैसे अन्य उभरते बाज़ारों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ श्रम लागत कम है, नियम सरल हैं तथा व्यावसायिक वातावरण अधिक अनुकूल है।
- चूँकि कुछ क्षेत्रों में इसका नियामक कार्यढाँचा अभी भी जटिल है, ये प्रतिस्पर्द्धी तेज़ी से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित कर रहे हैं जो अन्यथा भारत को मिल सकता था।
- उदाहरण के लिये, वियतनाम की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वृद्धि दर वर्ष 2025 में भारत से आगे निकल गई है, जहाँ पहली छमाही में 32% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो उच्च-मूल्य वाली परियोजनाओं के कारण है।
- डिजिटल और तकनीकी अनुकूलन की धीमी गति: जहाँ भारत डिजिटलीकरण में प्रगति कर रहा है, वहीं तकनीकी अंगीकरण की गति असमान बनी हुई है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे व्यवसायों में।
- डिजिटल डिवाइड देश की उच्च-तकनीकी निवेश आकर्षित करने की क्षमता को बाधित करता है, विशेषकर ई-कॉमर्स और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में।
- हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि 67% भारतीय MSME ‘डिजिटल रूप से सुसज्जित’ हैं, जो ERP, CRM, क्लाउड और डिजिटल भुगतान जैसे उपकरणों का उपयोग करते हैं।
- लेकिन, उन्नत तकनीकों (AI, IoT, एनालिटिक्स) का एकीकरण सीमित है और अधिकांश उपयोग अभी भी भुगतान, संचार एवं बुनियादी सॉफ्टवेयर पर केंद्रित हैं।
- यह असमानता समग्र निवेश क्षमता को सीमित करती है, विशेषकर गैर-शहरी बाज़ारों को लक्षित करने वाले व्यवसायों के लिये।
भारत वैश्विक रुझानों और घरेलू प्राथमिकताओं के अनुरूप अपने निवेश पारिस्थितिकी तंत्र को किस-प्रकार बदल सकता है?
- नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: भारत नियामक प्रक्रियाओं को सरल और त्वरित बनाकर निवेश को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकता है।
- समें भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंज़ूरी और निर्माण परमिट के लिये अनुमोदन में तेज़ी लाना शामिल है, जो प्रायः बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये बाधाएँ बनते हैं।
- सरकार अनुमोदनों में निरंतरता सुनिश्चित करने और प्रशासनिक विलंब को कम करने के लिये समयबद्ध नियामक कार्यढाँचे लागू कर सकती है।
- इसके अतिरिक्त, महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना और विनिर्माण परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिये समर्पित कार्यबलों का गठन एक अधिक निवेशक-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकता है।
- विधिक और अनुबंध प्रवर्तन को मज़बूत करना: निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये अनुबंधों के प्रवर्तन में सुधार आवश्यक है।
- भारत व्यावसायिक अनुबंधों से संबंधित विवादों के लिये विशेष वाणिज्यिक न्यायालय स्थापित कर सकता है और कानूनी प्रक्रियाओं को तीव्र कर सकता है।
- विवाद समाधान तंत्र की दक्षता बढ़ाने और न्यायिक विलंब को कम करने से दीर्घकालिक निवेश के लिये एक गंतव्य के रूप में भारत का आकर्षण बढ़ेगा।
- एक सुचारू रूप से कार्य करने वाला विधिक कार्यढाँचा यह सुनिश्चित करता है कि निवेशक अपने समझौतों की स्थिरता पर भरोसा कर सकें और संभावित जोखिमों को कम कर सकें।
- बुनियादी अवसंरचना के विकास पर अधिक ध्यान: अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये, भारत को महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना (विशेषकर रसद, परिवहन और डिजिटल नेटवर्क) में निवेश में तेज़ी लानी चाहिये।
- बंदरगाहों, राजमार्गों और रेल प्रणालियों का विस्तार तथा आधुनिकीकरण करके कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ-साथ समर्पित औद्योगिक गलियारे बनाकर परिचालन दक्षता में सुधार किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना पर ध्यान केंद्रित करने तथा लास्ट-माइल कनेक्टिविटी में सुधार करने से कंपनियाँ अप्रयुक्त बाज़ारों में विस्तार कर सकेंगी, जिससे घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय निवेश की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा।
- लक्षित शिक्षा के माध्यम से कुशल कार्यबल का विकास: भारत AI, बायोटेक और उन्नत विनिर्माण जैसे उच्च-विकासशील क्षेत्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप लक्षित कौशल विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करके कौशल अंतर को दूर कर सकता है।
- विशिष्ट व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रमाणन कार्यक्रम बनाने के लिये उद्योग जगत के अभिकर्त्ताओं के साथ साझेदारी करने से भारत के कार्यबल वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिये बेहतर ढंग से तैयार होंगे।
- उच्च शिक्षा में निजी-सार्वजनिक भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ अनुसंधान एवं विकास (R&D) संस्थानों को बढ़ावा देने से भारत उभरते उद्योगों के लिये एक प्रतिभा केंद्र के रूप में स्थापित होगा।
- कर प्रणाली को सरल और स्थिर बनाना: भारत के निवेश आकर्षण को बढ़ाने के लिये एक सुव्यवस्थित, पूर्वानुमानित और पारदर्शी कर प्रणाली आवश्यक है।
- भारत विदेशी निवेशकों के लिये और अधिक कर प्रोत्साहन और छूट, जैसे प्रमुख क्षेत्रों में कर अवकाश तथा अनुपालन लागत को कम करने के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) संरचना को और सरल बना सकता है।
- कर नीतियों को स्थिर बनाने और कर मामलों में विवाद समाधान के लिये एक स्पष्ट कार्यढाँचा बनाने से यह सुनिश्चित होगा कि व्यवसाय दीर्घकालिक राजकोषीय वातावरण के बारे में आश्वस्त महसूस करें।
- हरित और सतत् निवेश को बढ़ावा: भारत नवीकरणीय ऊर्जा और संवहनीयता-केंद्रित निवेशों के लिये आकर्षक प्रोत्साहन प्रदान करके सवयं को हरित अर्थव्यवस्था में अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है।
- अधिक हरित बॉण्ड पेश करना, स्वच्छ प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिये कर लाभ तथा इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे स्थायी उद्योगों में FDI नियमों को आसान बनाना पर्यावरण के प्रति जागरूक निवेश को बढ़ावा दे सकता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत स्वच्छ ऊर्जा और हरित बुनियादी अवसंरचना में निवेश आकर्षित करके वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने के अपने प्रयासों में तेज़ी ला सकता है।
- नवाचार और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहन: भारत को एक मज़बूत स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देकर उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ अपनानी चाहिये।
- इसमें कर राहत के माध्यम से उद्यम पूंजी तक बेहतर अभिगम प्रदान करना, एंजेल निवेशकों के लिये नियमों को सरल बनाना और वैश्विक निवेशकों के सहयोग से नवाचार केंद्र स्थापित करना शामिल है।
- तकनीकी स्टार्ट-अप के लिये विशेष क्षेत्र बनाना, जहाँ वित्तपोषण, कर छूट और वैश्विक बाज़ार से जुड़ाव आसान हो, भारत को एक नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करेगा।
- राज्य स्तर पर व्यापार सुगमता में वृद्धि: हालाँकि भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक परिवेश में सुधार लाने में उल्लेखनीय प्रगति की है, फिर भी राज्य-विशिष्ट सुधार महत्त्वपूर्ण हैं।
- प्रत्येक राज्य को अपनी निवेश-अनुकूल नीतियाँ बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, स्थानीय लालफीताशाही को कम करने और बुनियादी अवसंरचना में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- राज्यों के लिये एक ‘निवेश अनुकूलन सूचकांक’ शुरू करना, उन्हें व्यापार सुगमता, कर प्रोत्साहन और भूमि उपलब्धता के आधार पर रैंकिंग देना, राज्यों को वैश्विक पूंजी के लिये प्रतिस्पर्द्धा करने तथा अधिक विकेंद्रीकृत निवेश वातावरण को बढ़ावा देने के लिये प्रेरित करेगा।
- विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल परिवर्तन को प्रोत्साहन: निवेश बढ़ाने के लिये, भारत शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में एक मज़बूत डिजिटल बुनियादी अवसंरचना के निर्माण में निवेश कर सकता है।
- सरकार को डिजिटल भुगतान, वित्तीय समावेशन और साइबर सुरक्षा को प्रोत्साहित करने वाली नीतियाँ बनाकर ई-कॉमर्स, फिनटेक एवं ब्लॉकचेन तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिये।
- डिजिटल सॉल्यूशन, क्लाउड कंप्यूटिंग और AI पर केंद्रित तकनीक-आधारित व्यवसायों को प्रोत्साहन देने से वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका एवं मज़बूत हो सकती है।
- व्यापार साझेदारी और मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को मज़बूत करना: भारत को प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर वार्ता जारी रखनी चाहिये और उन्हें मज़बूत बनाना चाहिये तथा उच्च निवेश क्षमता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- कनाडा और यूरोपीय संघ के साथ FTA का विस्तार और उभरते बाज़ारों के साथ गहन आर्थिक संबंध स्थापित करने से निवेशकों को बाज़ारों तक व्यापक पहुँच मिलेगी।
- सीमा पार व्यापार को सुगम बनाने और प्रमुख वस्तुओं एवं सेवाओं पर शुल्क समाप्त करने से अधिक वैश्विक कंपनियाँ भारत को व्यापक एशियाई बाज़ार के प्रवेश द्वार के रूप में उपयोग करने के लिये आकर्षित हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
भारत का निवेश परिदृश्य अपनी मज़बूत आर्थिक वृद्धि, युवा श्रम शक्ति और प्रगतिशील नीतिगत सुधारों के कारण अपार संभावनाएँ प्रस्तुत करता है। नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके, लॉजिस्टिक्स एवं डिजिटल बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाकर और लक्षित कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करके, भारत निरंतर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित कर सकता है तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक अग्रणी निवेश गंतव्य के रूप में उभर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. निरंतर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करने की भारत की क्षमता को सीमित करने वाले प्रमुख कारकों और बाधाओं का परीक्षण कीजिये तथा सुधार के उपायों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (a) यह मूलत: किसी सूचीबद्ध कंपनी में पूंजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है। उत्तर : (b) मेन्सप्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आई. की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ.डी.आई. के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक एफ.डी.आई. को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइए। (2016) |