भारत का समुद्री क्षेत्र: सुधार और प्रतिस्पर्द्धा
यह एडिटोरियल 04/09/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “India’s recent maritime reforms need course correction” पर आधारित है। इस लेख में भारत के मेरीटाइम रिफॉर्म पैकेज- 2025 (जिसमें भारतीय बंदरगाह अधिनियम और मर्चेंट शिपिंग अधिनियम शामिल हैं) जिसका उद्देश्य पुराने कानूनों का आधुनिकीकरण, व्यापार-सुगमता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को सुदृढ़ करना है, के संदर्भ में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये: सागरमाला कार्यक्रम, पारादीप बंदरगाह, हरित सागर हरित पत्तन दिशानिर्देश, ग्रीन टग ट्रांज़िशन प्रोग्राम, प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट, प्रोजेक्ट 15B विध्वंसक, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, हिंद महासागर क्षेत्र
मेन्स के लिये: भारत के समुद्री क्षेत्र में हुई प्रमुख प्रगति, भारत के समुद्री क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे।
भारत का व्यापक मेरीटाइम रिफॉर्म पैकेज- 2025, जिसमें तटीय नौवहन अधिनियम, 2025, समुद्री माल ढुलाई विधेयक, 2025 और मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 2025 शामिल हैं, देश के सौ वर्ष पुराने नौवहन नियमों को आधुनिक बनाने तथा उन्हें वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इन सुधारों का उद्देश्य शासन को सुव्यवस्थित करना, व्यापार को सुगम बनाना और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार में भारत की स्थिति को मज़बूत करना है। हालाँकि, नए समुद्री राज्य विकास परिषद को दिये गये अधिकारों के कारण केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन को लेकर चिंताएँ भी उत्पन्न हुई हैं। भारत के समुद्री क्षेत्र के आधुनिकीकरण के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन इन सुधारों की दीर्घकालिक सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ये प्रयास नियामक कार्यढाँचे को जटिल बनाने के बजाय उसकी स्पष्टता और सुदृढ़ता को सुनिश्चित करें।
भारत के समुद्री क्षेत्र में क्या प्रमुख प्रगति हुई है?
- बंदरगाह अवसंरचना और आधुनिकीकरण: सागरमाला कार्यक्रम के तहत भारत के बंदरगाह अवसंरचना में परिवर्तनकारी प्रगति देखी गई है, जिसका उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना और बंदरगाह क्षमता को बढ़ावा देना है।
- वधावन और पारादीप आउटर हार्बर जैसे डीप ड्राफ्ट वाले बंदरगाहों का विकास भारत में बड़े जहाज़ों के आवागमन को सुगम बनाने, लॉजिस्टिक्स की दक्षता बढ़ाने और भारत की वैश्विक व्यापार अभिगम्यता का विस्तार करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिये, पारादीप बंदरगाह ने वित्त वर्ष 2023-24 में 145.38 MMT कार्गो का संचालन किया, जो इसकी महत्त्वपूर्ण वहन क्षमता को दर्शाता है।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय बंदरगाहों का टर्नअराउंड टाइम सत्र 2013-14 में 93.59 घंटे से घटकर सत्र 2023-24 में 48.06 घंटे हो गया।
- स्थायित्व और हरित नौवहन पर ध्यान: भारतीय समुद्री क्षेत्र स्थायी प्रथाओं की ओर बढ़ रहा है, जिसमें हरित सागर हरित पत्तन दिशानिर्देश और ग्रीन टग ट्रांज़िशन प्रोग्राम जैसी पहल पर्यावरण-अनुकूल संचालन को बढ़ावा दे रही हैं।
- यह परिवर्तन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक समुद्री क्षेत्र बढ़ती पर्यावरणीय जाँच का सामना कर रहा है।
- नवीकरणीय ऊर्जा और वैकल्पिक ईंधन के उपयोग पर ज़ोर भारत को बंदरगाह एवं नौवहन दक्षता को बढ़ाते हुए वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ तालमेल स्थापित करने में सहायता करता है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने स्थायी नौवहन प्रथाओं को सुविधाजनक बनाने के लिये इंडिया-सिंगापुर ग्रीन एंड डिजिटल शिपिंग कॉरिडोर शुरू किया है तथा पारादीप, कांडला एवं तूतीकोरिन में हरित हाइड्रोजन केंद्र विकसित किये जा रहे हैं।
- ये पहल समुद्री उत्सर्जन को कम करने की भारत की प्रतिबद्धता को पुष्ट करती हैं, जो महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
- यह परिवर्तन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक समुद्री क्षेत्र बढ़ती पर्यावरणीय जाँच का सामना कर रहा है।
- तकनीकी एकीकरण और डिजिटलीकरण: AI, IoT और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों का एकीकरण भारत के बंदरगाहों को नया रूप दे रहा है।
- ‘One Nation One Port Process (एक राष्ट्र, एक बंदरगाह प्रक्रिया)’ कागज़ी कार्रवाई को कम करके तथा तीव्र वस्तु परिवहन की सुविधा प्रदान करके परिचालन दक्षता को बढ़ा रही है।
- कंटेनर और जहाज़ों की आवाजाही पर रीयल-टाइम डेटा कलेक्शन ने बंदरगाह संचालन को महत्त्वपूर्ण रूप से अनुकूलित किया है।
- इसके अतिरिक्त, जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह प्राधिकरण भारत के उन पहले बंदरगाहों में से एक है जिसने पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम (PCS) को लागू किया है। यह एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो लॉजिस्टिक्स शृंखला में सभी हितधारकों को एकीकृत करता है, जिससे पारदर्शिता और दक्षता बढ़ती है।
- नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और लॉजिस्टिक्स में सुधार करने के लक्ष्य के साथ, यह डिजिटल सुधार भारत के वैश्विक समुद्री क्षेत्र में अग्रणी बनने की कुंजी है।
- ‘One Nation One Port Process (एक राष्ट्र, एक बंदरगाह प्रक्रिया)’ कागज़ी कार्रवाई को कम करके तथा तीव्र वस्तु परिवहन की सुविधा प्रदान करके परिचालन दक्षता को बढ़ा रही है।
- बुनियादी अवसंरचना का वित्तपोषण और निजी क्षेत्र की भागीदारी: भारत के समुद्री क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण विकास निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी रही है, जिसे शिपिंग और जहाज़ निर्माण में स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) जैसी अनुकूल नीतियों से प्रोत्साहन मिला है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) अब बंदरगाह सुविधाओं के आधुनिकीकरण की एक प्रमुख रणनीति है, जिसमें सरकार की वर्ष 2035 तक बंदरगाह क्षमता का विस्तार करने के लिये 82 अरब डॉलर की निवेश योजना शामिल है।
- सागरमाला कार्यक्रम के तहत, 12 प्रमुख बंदरगाहों में 10 करोड़ मीट्रिक टन प्रतिवर्ष (MTPA) से अधिक क्षमता प्राप्त करने के लिये 116 पहलों का अभिनिर्धारण किया गया है।
- इसमें कोचीन शिपयार्ड में नया ड्राई डॉक और विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय डीपवाटर सी-पोर्ट जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं। यह भारत का पहला समर्पित कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह है, जो विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता को कम करेगा।
- तटीय और अंतर्देशीय जलमार्गों का विस्तार: भारत संवहनीय और लागत प्रभावी माल परिवहन के लिये अपने तटीय एवं अंतर्देशीय जलमार्गों का तेज़ी से उपयोग कर रहा है।
- तटीय नौवहन, एक ऊर्जा-कुशल विकल्प, सड़क और रेल परिवहन पर बोझ कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- यद्यपि यह क्षेत्र नियामक चुनौतियों का सामना कर रहा है, हाल के नीतिगत परिवर्तनों से परिचालन सुव्यवस्थित हो रहा है तथा इन मार्गों के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है।
- भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में अंतर्देशीय जलमार्गों पर रिकॉर्ड 145.5 मिलियन टन वस्तु परिवहन कर नया रिकॉर्ड बनाया, जो वित्त वर्ष 2013-14 में 18.1 मिलियन मीट्रिक टन थी।
- जल मार्ग विकास परियोजना गंगा नदी पर अंतर्देशीय जल परिवहन को सशक्त बना रही है।
- इस तीव्र विकास के साथ-साथ सरकार द्वारा मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करने से भारत के लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के और मज़बूत होने की उम्मीद है।
- तटीय नौवहन, एक ऊर्जा-कुशल विकल्प, सड़क और रेल परिवहन पर बोझ कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- जहाज़ निर्माण और समुद्री सुरक्षा पहल: भारत अपनी वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने के लिये अपने जहाज़ निर्माण उद्योग एवं समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- कोचीन में अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ मरम्मत सुविधा तथा नई ड्राई डॉक सुविधाओं के विकास के साथ महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
- जहाज़ निर्माण पर इस ज़ोर का उद्देश्य न केवल घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करना है, बल्कि भारत को एक समुद्री केंद्र के रूप में स्थापित करना भी है।
- भारतीय नौसेना जहाज़ निर्माण उद्योग का एक प्रमुख संचालक है। मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) जैसी कंपनियों द्वारा निर्मित प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट और प्रोजेक्ट 15B विध्वंसक जैसी परियोजनाएँ इसका प्रमाण हैं।
- कोचीन में अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ मरम्मत सुविधा तथा नई ड्राई डॉक सुविधाओं के विकास के साथ महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
- मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियाँ और व्यापार मार्ग: भारत का समुद्री क्षेत्र वैश्विक व्यापार मार्गों तक रणनीतिक अभिगम्यता सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मज़बूत कर रहा है।
- चाबहार में शाहिद बेहेश्टी बंदरगाह के संचालन के लिये ईरान के साथ ऐतिहासिक 10-वर्षीय समझौता मध्य एशिया तक अभिगम्यता सुनिश्चित करने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है।
- इसके अलावा, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय व्यापार और लॉजिस्टिक्स दक्षता में क्रांतिकारी बदलाव का वादा करती है।
- नॉर्वे, UAE और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापनों के साथ, इस साझेदारी का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को 30% और पारगमन समय को 40% तक कम करना है।
- ये घटनाक्रम ग्लोबल साउथ में एक केंद्रीय समुद्री अभिकर्त्ता के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करते हैं।
भारत के समुद्री क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- अविकसित अंतर्देशीय जलमार्ग और संपर्क अंतराल: प्रगति के बावजूद, भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और प्रमुख बंदरगाहों से संपर्क के कारण कम उपयोग में हैं।
- एक मज़बूत, परस्पर जुड़े नेटवर्क का अभाव तटीय एवं अंतर्देशीय नौवहन के विकास को सड़क और रेल परिवहन के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में बाधित करता है।
- यद्यपि भारत में 14,500 किलोमीटर नौगम्य जलमार्ग हैं, लेकिन इसका केवल एक छोटा सा हिस्सा ही परिचालन में है, जो देश के व्यापारिक आवागमन में केवल लगभग 3.5% का योगदान देता है।
- भारत की सड़क व रेल पर निर्भरता, जो प्रायः भीड़भाड़ वाली और महंगी होती हैं, अंतर्देशीय जल परिवहन की पूरी क्षमता को कमज़ोर कर रही है।
- अपर्याप्त और अकुशल बुनियादी अवसंरचना: भारत के बंदरगाह प्रायः अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना से ग्रस्त होते हैं, जिसके कारण परिचालन दक्षता में कमी आती है और लॉजिस्टिक्स लागत अधिक होती है। यद्यपि प्रमुख बंदरगाहों में सुधार हुआ है, फिर भी कई गैर-प्रमुख बंदरगाहों में आधुनिक उपकरणों और डीप ड्राफ्ट का अभाव है, जिससे बड़े जहाज़ों के प्रबंधन की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
- इससे भारत को पड़ोसी ट्रांसशिपमेंट केंद्रों पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उसे राजस्व में भारी नुकसान होता है।
- उदाहरण के लिये, वर्तमान में, भारत अपने 75% ट्रांसशिपमेंट कार्गो को विदेशी बंदरगाहों पर का प्रबंधन करता है, जिससे संभावित राजस्व में अनुमानित 200-220 मिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक नुकसान होता है।
- समुद्री सुरक्षा और भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: भारत की विशाल तटरेखा और रणनीतिक स्थिति इसे समुद्री सुरक्षा के लिये कई तरह के खतरों के प्रति सुभेद्य बनाती है, जिनमें समुद्री डकैती, मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध मत्स्यन शामिल है।
- हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) आज महाशक्तियों की भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का केंद्र बन चुका है, विशेषकर चीन की नौसैनिक सक्रियता के कारण।
- इस परिप्रेक्ष्य में भारत की प्रोजेक्ट-75-I (स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण योजना) में लगातार विलंब हो रहा है। भारत को एक युद्धपोत बनाने में औसतन 85 महीने लगते हैं, जबकि जापान केवल 27 महीने और फ्राँस 46 महीने में यह कार्य पूरा कर लेते हैं।
- नियामक विखंडन और केंद्रीकरण संबंधी चिंताएँ: भारत के समुद्री क्षेत्र में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 जैसे हालिया सुधारों के तहत विनियमों का विखंडन और बढ़ता केंद्रीकरण है।
- आलोचकों का तर्क है कि यह बंदरगाह विकास और नियामक कार्यढाँचों में राज्य सरकारों की स्वायत्तता को सीमित करता है।
- हालाँकि केंद्रीकरण संचालन को सुव्यवस्थित कर सकता है, लेकिन इससे स्थानीय प्राथमिकताओं को कमज़ोर करने और निर्णय लेने में अड़चनें उत्पन्न करने का जोखिम है।
- उदाहरण के लिये, बंदरगाह विकास पर समुद्री राज्य विकास परिषद का नियंत्रण, जिसमें राज्य समुद्री बोर्डों के लिये केंद्रीय अनुमोदन आवश्यक है, तटीय राज्यों के लचीलेपन को कम करने के रूप में देखा जाता है।
- आलोचकों का तर्क है कि यह बंदरगाह विकास और नियामक कार्यढाँचों में राज्य सरकारों की स्वायत्तता को सीमित करता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव और स्थिरता चुनौतियाँ: हरित नौवहन और संवहनीयता पर बढ़ता ध्यान बंदरगाह संचालन और नौवहन गतिविधियों के उच्च पर्यावरणीय प्रभाव से प्रभावित होता है।
- हरित सागर हरित पत्तन दिशानिर्देश जैसी पहलों का उद्देश्य उत्सर्जन को कम करना है, लेकिन भारत को इस क्षेत्र में सतत् प्रथाओं को लागू करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- हरित प्रौद्योगिकियों का अंगीकरण महंगा है और छोटे निवेशकों एवं संचालकों पर वित्तीय बोझ को लेकर चिंताएँ हैं।
- नौवहन महानिदेशालय का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक, भारत की वार्षिक अनुपालन लागत 87-100 मिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है, जिसके परिणामस्वरूप ईंधन व्यय में 14% और माल ढुलाई दरों में 5% की वृद्धि होगी।
- बेड़े की आयु और जहाज़ निर्माण क्षमता की कमी: भारत के वाणिज्यिक नौवहन बेड़े के समक्ष प्रमुख चुनौती जहाज़ों के पुराना होने तथा जहाज़-निर्माण क्षमता की कमी है। वर्तमान में लगभग 39.1% जहाज़ 20 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
- यह न केवल बेड़े की दक्षता को प्रभावित करता है, बल्कि सुरक्षा और संवहनीयता के लिये भी जोखिम उत्पन्न करता है।
- हालाँकि सरकार आधुनिकीकरण पर ज़ोर दे रही है, जहाज़ निर्माण क्षमता अभी भी अविकसित है, जिससे वैश्विक व्यापार की बढ़ती माँगों को पूरा करना कठिन हो रहा है।
- वैश्विक जहाज़ निर्माण बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी अत्यंत कम अर्थात् 1% से भी कम है। इसके विपरीत, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान सामूहिक रूप से वैश्विक जहाज़ निर्माण बाज़ार के अधिकांश हिस्से को नियंत्रित करते हैं।
- यह न केवल बेड़े की दक्षता को प्रभावित करता है, बल्कि सुरक्षा और संवहनीयता के लिये भी जोखिम उत्पन्न करता है।
- अपर्याप्त कुशल कार्यबल और लैंगिक असमानता: भारत का समुद्री क्षेत्र, विशेष रूप से स्मार्ट बंदरगाह प्रबंधन और डिजिटलीकरण जैसे उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में, कौशल की भारी कमी से जूझ रहा है।
- आधुनिकीकरण के प्रयासों के बावजूद, AI, IoT और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों के प्रबंधन में सक्षम पेशेवरों की कमी है।
- यह कमी नई तकनीकों के एकीकरण को धीमा करती है और परिचालन दक्षता को सीमित करती है।
- इसके अलावा, भारत का समुद्री उद्योग काफी हद तक पुरुष-प्रधान क्षेत्र बना हुआ है। वर्ष 2021 के वीमेन इन मैरीटाइम सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में नाविकों में 2% से भी कम महिलाएँ हैं।
- आधुनिकीकरण के प्रयासों के बावजूद, AI, IoT और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों के प्रबंधन में सक्षम पेशेवरों की कमी है।
भारत अपने समुद्री क्षेत्र की दक्षता बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी को मज़बूत करना: दक्षता बढ़ाने के लिये, भारत को समर्पित मल्टीमॉडल कॉरिडोर के माध्यम से अपने बंदरगाहों को रेल और सड़क नेटवर्क के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- यह एकीकरण बंदरगाहों से अंतर्देशीय गंतव्यों तक वस्तुओं के आवागमन को सुव्यवस्थित करने, भीड़भाड़ को कम करने तथा समग्र लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार करने में सहायता कर सकता है।
- वस्तु परिवहन और यात्री यातायात दोनों के लिये निर्बाध लास्ट-माइल कनेक्टिविटी स्थापित करना बाधाओं से बचने तथा वस्तुओं की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
- केंद्र, राज्य और निजी संस्थाओं के बीच सहयोगात्मक योजना इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी ला सकती है।
- स्मार्ट पोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर को लागू करना: भारत को AI-ड्रीवेन कार्गो ट्रैकिंग, IoT-सक्षम स्वचालन और पूर्वानुमानित रखरखाव प्रणालियों जैसी स्मार्ट पोर्ट तकनीकों में निवेश करके अपने बंदरगाहों के डिजिटल परिवर्तन में तीव्रता लानी चाहिये। ये तकनीकें संचालन को अनुकूलित कर सकती हैं, मानवीय त्रुटि को कम कर सकती हैं तथा वास्तविक काल में निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ा सकती हैं।
- स्वचालित कंटेनर हैंडलिंग, डिजिटल सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ और बर्थ आवंटन का डेटा-संचालित अनुकूलन बंदरगाह गतिविधियों को सुव्यवस्थित करेगा तथा टर्नअराउंड टाइम को कम करेगा, जिससे परिचालन दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- नियामक कार्यढाँचों का सरलीकरण: सरकार को अनुमोदन प्रक्रिया में विलंब एवं विसंगतियों को कम करने के लिये राज्यों और केंद्रीय एजेंसियों में नियामक ढाँचों को सुव्यवस्थित तथा इसे सुसंगत बनाना चाहिये।
- दस्तावेज़ीकरण को सरल बनाना, अनुपालन बोझ को कम करना तथा बंदरगाह प्रक्रियाओं का मानकीकरण भारत के समुद्री क्षेत्र को और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने में सहायता करेगा।
- एकल-खिड़की निकासी प्रणाली बुनियादी अवसंरचना के विकास और कार्गो हैंडलिंग दोनों के लिये तेज़ी से अनुमोदन की सुविधा प्रदान कर सकती है, जिससे व्यापार में आसानी को बढ़ावा मिलेगा और निजी क्षेत्र का अधिक निवेश आकर्षित होगा।
- हरित और सतत् प्रौद्योगिकियों में निवेश: समुद्री क्षेत्र की पर्यावरणीय संधारणीयता में सुधार के लिये, भारत को बंदरगाह संचालन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा समाधान, जहाज़ों के लिये उत्सर्जन नियंत्रण प्रणालियाँ तथा विद्युत-चालित क्रेन व कार्गो हैंडलिंग उपकरण जैसी हरित प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- सब्सिडी, कर छूट और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से हरित नवाचार को बढ़ावा देने से उत्सर्जन में कमी आएगी तथा भारत का समुद्री क्षेत्र वैश्विक सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित होगा।
- हरित बंदरगाह और पर्यावरण-अनुकूल नौवहन पद्धतियाँ उन अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भी देश की अपील को बढ़ाएँगी जो पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी को तेज़ी से प्राथमिकता दे रहे हैं।
- कौशल विकास और कार्यबल क्षमता में वृद्धि: समुद्री क्षेत्र की ज़रूरतों के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश मौजूदा कार्यबल की कमी की पूर्ति करने के लिये आवश्यक है।
- उन्नत समुद्री तकनीकों, डिजिटल बंदरगाह प्रबंधन और संवहनीय प्रथाओं में विशेष प्रशिक्षण आधुनिक बंदरगाह संचालन के लिये एक कुशल कार्यबल का निर्माण कर सकता है, साथ ही महिलाओं के अधिक समावेश को भी प्राथमिकता दे सकता है।
- शैक्षणिक संस्थानों, समुद्री प्रशिक्षण केंद्रों और उद्योग जगत के सहयोग से एक मज़बूत प्रतिभा शृंखला विकसित करना आवश्यक है, जिससे भारत के पास ऐसी कुशल कार्यशक्ति हो जो अत्याधुनिक अवसंरचना का प्रबंधन कर सके तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में अग्रणी बने।
- आपदा प्रबंधन और समुत्थानशीलता का सुदृढ़ीकरण: भारत के समुद्री क्षेत्र को बंदरगाह संचालन को प्रभावित करने वाली बाढ़ और चक्रवात जैसी चरम मौसमी घटनाओं से निपटने के लिये अधिक सुदृढ़ आपदा प्रबंधन प्रोटोकॉल लागू करने होंगे।
- इसमें जलवायु संबंधी व्यवधानों का सामना करने के लिये बुनियादी अवसंरचना का उन्नयन, बंदरगाहों में शीघ्र निकासी की व्यवस्था में सुधार तथा वास्तविक काल जलवायु निगरानी और त्वरित चेतावनी प्रणालियों में निवेश करना आवश्यक है।
- समुद्री क्षेत्र के विकास कार्यढाँचे में आपदा-रोधी योजना को शामिल करके भारत प्राकृतिक आपदाओं से व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव को कम कर सकता है और संचालन की निरंतरता सुनिश्चित कर सकता है।
- जहाज़ निर्माण क्षमताओं का विस्तार और उन्नयन: भारत को विदेशी शिपयार्ड पर निर्भरता कम करने के लिये अपने घरेलू जहाज़ निर्माण उद्योग को उन्नत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इसमें नवाचार को बढ़ावा देना, बुनियादी अवसंरचना में सुधार करना चाहिये तथा जहाज़ों के घरेलू उत्पादन को समर्थन देने के लिये अनुकूल नीतियाँ बनाई जानी चाहिये।
- पर्यावरण के अनुकूल, ऊर्जा-कुशल जहाज़ों के निर्माण पर ज़ोर देकर, भारत स्वयं को जहाज़ निर्माण में एक वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सकता है तथा बेड़े के विस्तार के लिये आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है, जिससे उसकी समुद्री सुरक्षा और वैश्विक व्यापार उपस्थिति मज़बूत हो सकती है।
- सीमा शुल्क और बंदरगाह में शीघ्र निकासी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: विलंब को कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिये, भारत को बंदरगाहों पर सीमा शुल्क एवं शीघ्र निकासी प्रक्रियाओं को पूरी तरह से स्वचालित करना चाहिये।
- तीव्र दस्तावेज़ीकरण प्रसंस्करण, निरीक्षण और निकासी के लिये AI-आधारित प्रणालियों को शुरू करने से मानवीय हस्तक्षेप कम हो सकता है तथा टर्नअराउंड टाइम में सुधार हो सकता है।
- इन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने से न केवल भीड़भाड़ कम होगी, बल्कि व्यवसायों के लिये एक अधिक पूर्वानुमानित एवं पारदर्शी वातावरण भी बनेगा, जिससे अंततः वैश्विक शिपिंग बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
- क्षेत्रीय समुद्री सहयोग को बढ़ावा देना: भारत को सीमा पार नौवहन और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को बढ़ाने के लिये पड़ोसी देशों के साथ क्षेत्रीय समुद्री सहयोग को सुदृढ़ करना चाहिये।
- संयुक्त उद्यम स्थापित करना, सहयोगात्मक बंदरगाह विकास और साझा तकनीकी पहल क्षेत्रीय व्यापार प्रवाह को और अधिक सुचारू बना सकती हैं।
- क्षेत्रीय समुद्री संपर्क में सुधार करके, भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक केंद्रीय केंद्र के रूप में अपनी स्थिति बना सकता है, बढ़े हुए व्यापार मार्गों का लाभ उठा सकता है और पड़ोसी देशों के साथ मज़बूत साझेदारी के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
निष्कर्ष:
भारत के समुद्री सुधार और आधुनिकीकरण अभियान, मैरीटाइम इंडिया विज़न- 2030 को प्राप्त करने तथा सतत् विकास लक्ष्यों— SDG 9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी सुविधाएँ) एवं SDG 14 (जलीय जीवों की सुरक्षा) के साथ तालमेल बिठाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। बुनियादी अवसंरचना की कमियों, संवहनीयता की चुनौतियों और कार्यबल की असमानताओं को दूर करके, भारत एक वैश्विक समुद्री केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकता है। इस दिशा में संतुलित शासन, हरित नौवहन और डिजिटल एकीकरण समुत्थानशीलता सुनिश्चित करने की कुंजी होंगे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत का समुद्री क्षेत्र, अपनी विशाल तटरेखा, रणनीतिक अवस्थिति और मैरीटाइम इंडिया विज़न- 2030 के अंतर्गत महत्त्वाकांक्षी सुधारों के साथ, आर्थिक विकास, संवहनीयता तथा वैश्विक संपर्क को गति देने की क्षमता रखता है। भारत को एक वैश्विक समुद्री केंद्र बनाने के लिये जिन प्रमुख चुनौतियों का समाधान आवश्यक है, उनका विश्लेषण करते हुए इसके प्रमुख अवसरों का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ [इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (IOR-ARC)]' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
- इसकी स्थापना अत्यंत हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
- यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (d)
प्रश्न 2. ब्लू कार्बन क्या है? (2021)
(a) महासागरों और तटीय पारिस्थितिक तंत्रों द्वारा प्रगृहीत कार्बन
(b) वन जैव मात्रा (बायोमास) और कृषि मृदा में प्रच्छादित कार्बन
(c) पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस में अंतर्विष्ट कार्बन
(d) वायुमंडल में विद्यमान कार्बन
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न 1. 'नीली क्रांति' को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्यपालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (2018)