एडिटोरियल (01 Jan, 2022)



NFHS 5: एक महिला केंद्रित विश्लेषण

यह एडिटोरियल 31/12/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित लेख “In NFHS Report Card, The Good, The Sober, The Future” पर आधारित है। इसमें पाँचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के महिला विशिष्ट डेटा और इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक परिणामों के संबंध में चर्चा की गई है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS 5), जो देश के स्वास्थ्य परिदृश्य का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है, ने जनसंख्या स्थिरीकरण, बेहतर परिवार नियोजन सेवाओं और स्वास्थ्य प्रणालियों के बेहतर वितरण जैसे कई मोर्चों पर उत्साहजनक परिणाम दर्शाए हैं।      

यद्यपि इसने लिंग-आधारित हिंसा और महिलाओं एवं बालिकाओं के विरुद्ध प्रचलित हानिकारक प्रथाओं (जैसे बाल विवाह और पक्षपातपूर्ण लिंग चयन) को संबोधित करने हेतु आगे और सुधार की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है।     

भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं ने इन समस्याओं को और गंभीर बना दिया है और ये सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 2030 एजेंडा एवं भारत के विकास लक्ष्यों की उपलब्धि के लिये बाधाकारी हैं। 

NFHS 5 के महिला-विशिष्ट निष्कर्ष: सकारात्मक पक्ष

  • TFR प्रतिस्थापन स्तर से नीचे: भारत की जनसंख्या वृद्धि स्थिर होती नज़र आ रही है। 
    • कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR)—जो प्रति महिला पैदा हुए बच्चों की औसत संख्या को प्रकट करता है, राष्ट्रीय स्तर पर 2.2 से घटकर 2.0 रह गया है।  
    • देश के 31 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों (देश की आबादी का 69.7%) ने 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे की प्रजनन दर हासिल कर ली है। 
  • बेहतर परिवार नियोजन: प्रजनन दर में गिरावट का मुख्य कारण आधुनिक परिवार नियोजन विधियों को अपनाने में हुई वृद्धि (वर्ष 2015-16 में 47.8% से बढ़कर वर्ष 2019-21 में 56.5%) और इसी अवधि में परिवार नियोजन की अधूरी आवश्यकता में आई 4% अंकों की गिरावट है।      
  • महिला साक्षरता में सुधार: महिला साक्षरता में उल्लेखनीय सुधार नज़र आया है जहाँ 41% महिलाओं ने (वर्ष 2015-16 में 36% की तुलना में) 10 या अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा प्राप्त की है।     
    • अधिक समय तक शिक्षा ग्रहण करने वाली बालिकाओं में कम बच्चों को जन्म देने की प्रवृत्ति देखी गई है और उनके बीच देर से विवाह करने और रोज़गार पाने की संभावना भी अधिक होती है।
  • बेहतर मातृ स्वास्थ्य वितरण: मातृ स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार सुधार हो रहा है।  
    • आरंभिक तीन माह में प्रसव-पूर्व देखभाल 11.4% (वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच) की वृद्धि के साथ 70% के स्तर पर पहुँच गया है।   
      • अनुशंसित चार प्रसव-पूर्व देखभाल जाँच (Antenatal Care Check-ups) 7% अंक की वृद्धि के साथ 58.1% के स्तर पर पहुँच गई है। 
      • प्रसव-उत्तर देखभाल सेवाग्रहण (Postnatal Care Visits) में 15.6% की वृद्धि हुई है और यह 78% तक पहुँच गया है।   
    • वर्ष 2019-21 में 88.6% महिलाओं द्वारा संस्थागत प्रसव सेवा का उपयोग किया गया जो वर्ष 2015-16 की तुलना में 9.8% अंक की वृद्धि दर्शाता है। 
      • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में संस्थागत प्रसव में भी वृद्धि  (52.1% से बढ़कर 61.9%) देखी गई है।  
  • बेहतर मासिक धर्म स्वास्थ्य और शारीरिक स्वायत्तता: महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता व अखंडता (Bodily Autonomy and Integrity) और स्वयं के जीवन के बारे में निर्णय लेने की क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।   
    • मासिक धर्म संबंधी हाइजीन उत्पादों का उपयोग करने वाली महिलाओं (15-24 आयु वर्ग) के अनुपात में भी वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच लगभग 20% अंक की वृद्धि हुई है और वर्तमान में 77.3% के स्तर पर पहुँच गया है।  
  • प्रौद्योगिकी और बैंकिंग संबंधित प्रगति: इसी अवधि में स्वयं के बैंक खाते रखने वाली महिलाओं के अनुपात में 25.6% की वृद्धि हुई है और यह 78.6% के स्तर पर पहुँच गया है।   
    • लगभग 54% महिलाओं के पास अपना मोबाइल फोन है और प्रत्येक तीन में से लगभग एक महिला इंटरनेट का उपयोग कर रही है।

NFHS_Survey

NFHS 5 के महिला-विशिष्ट निष्कर्ष: नकारात्मक पक्ष

  • कुछ राज्यों में संस्थागत प्रसव का निम्न स्तर: सर्वेक्षण इस चिंताजनक आँकड़े को भी दर्शाता है कि 11% गर्भवती महिलाओं तक अभी भी या तो कुशल जन्म परिचारिका की पहुँच नहीं है या वे संस्थागत सुविधाओं तक पहुँच नहीं रखती हैं।     
    • आगे और विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के 49 ज़िलों में संस्थागत प्रसव दर 70% से कम है, जिनमें से लगभग दो-तिहाई (69%) पाँच राज्यों (नगालैंड, बिहार, मेघालय, झारखंड और उत्तर प्रदेश) से संबंधित हैं।  
  • किशोर गर्भावस्था: किशोर गर्भावस्था (Teenage Pregnancy) में मात्र 1% अंक की मामूली गिरावट आई है और सर्वेक्षण अवधि के दौरान 15-19 आयु वर्ग की 7.9% महिलाएँ माता बन चुकी थीं या गर्भवती थीं।    
  • प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की निम्न अभिगम्यता: वर्तमान में महिला आबादी का एक अत्यंत छोटा खंड ही सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग परीक्षण (1.9%) और स्तन परीक्षण (0.9%) जैसी यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी शृंखला तक पहुँच रखता है।    
  • बाल विवाह में नगण्य गिरावट: बाल विवाह का प्रचलन कम तो हुआ है लेकिन वर्ष 2015-16 में 26.8% से 2019-21 में 23.3% तक इसमें नगण्य गिरावट ही दर्ज हुई है। तीन में से एक महिला को अपने जीवनसाथी की ओर से हिंसा का सामना करना पड़ता है।  
  • निम्न आर्थिक योगदान: अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी अभी भी कम बनी हुई है (केवल 25.6% महिलाएँ वैतनिक रोज़गार में संलग्न हैं और उनकी संख्या में 0.8% अंक की मामूली वृद्धि ही दर्ज हुई)। 
    • महिलाएँ अभी भी अवैतनिक घरेलू एवं देखभाल कार्य का बोझ उठाती हैं, जिससे लाभकारी रोज़गार तक पहुँचने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।   

आगे की राह

  • व्यापक लैंगिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना: सर्वेक्षण से सामने आए समस्याजनक पहलुओं को देखते हुए स्कूल और स्कूल से बाहर के किशोरों दोनों के लिये जीवन-कौशल शिक्षा के एक प्रमुख घटक के रूप में व्यापक लैंगिक शिक्षा (Comprehensive Sexuality Education- CSE) में निवेश करने और गुणवत्तापूर्ण यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।      
    • प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करते हुए सर्विकल कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट और स्तन जाँच जैसी सेवाओं को भी शामिल किया जाना चाहिये। 
  • भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों को संबोधित करना: महिलाओं के सशक्तीकरण और उनके लिये लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने हेतु बाल विवाह एवं पक्षपातपूर्ण लिंग चयन जैसी कुप्रथाओं को संबोधित किया जाना अपरिहार्य है।   
    • असमान शक्ति संबंधों, संरचनात्मक असमानताओं व भेदभावपूर्ण मानदंडों, दृष्टिकोणों व  व्यवहार में परिवर्तन के लिये महिलाओं और बालिकाओं के महत्त्व में वृद्धि लाये जाने की आवश्यकता है। 
    • इसके साथ ही, सकारात्मक पौरुष और लिंग-समानता मूल्यों को बढ़ावा देने के लिये पुरुषों और लड़कों के साथ विशेष रूप से उनके आरंभिक वर्षों में संलग्न होना महत्त्वपूर्ण है।  
  • महिलाओं के बीच प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं को बढ़ावा देना: अगले कुछ वर्षों में मोबाइल प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, शिक्षा और महिला आर्थिक सशक्तिकरण का संयोजन अनौपचारिक भेदभावपूर्ण मानदंडों को संबोधित कर सकने लिये महत्त्वपूर्ण चालक होगा।  
    • यद्यपि मोबाइल, इंटरनेट और बैंकिंग सुविधाओं का उपयोग करने वाली महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है, फिर भी यह पुरुषों की तुलना में अभी कम ही है।
    • महिलाओं के बीच ऐसी सुविधाओं के उपयोग की जानकारी और प्रसार पर पर्याप्त बल दिया जाना चाहिये क्योंकि ऐसे संसाधनों की उपलब्धता तथाउपयोग भी महिलाओं के सशक्तीकरण का एक संकेतक है।  
  • बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिये एकीकृत प्रयास: NFHS के निष्कर्ष बालिकाओं की शिक्षा में मौजूद अंतराल को समाप्त करने और महिलाओं की बदतर स्वास्थ्य स्थिति को दूर करने की तत्काल आवश्यकता की और ध्यान आकर्षित करते हैं।     
    • इन सेवाओं को सुलभ, वहनीय और स्वीकार्य बनाने के लिये (विशेष रूप से उनके लिये जो इन तक पहुँच में सक्षम नहीं हैं) सभी स्वास्थ्य संस्थानों, शिक्षाविदों और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े अन्य भागीदारों की ओर से एकीकृत और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।    

निष्कर्ष

वांछित परिवर्तन लाने के लिये विभिन्न हितधारकों के बीच अभिसरण महत्त्वपूर्ण है। लिंग-आधारित हिंसा और हानिकारक प्रथाओं को संपोषित करने वाले भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों को सख्ती से और संयुक्त रूप से संबोधित किया जाना चाहिये और महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में अवसरों एवं स्वायत्तता का प्रयोग कर सकने के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘NFHS 5 ने कई मोर्चों पर उत्साहजनक परिणाम दर्शाए हैं, लेकिन यह महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध लिंग-आधारित हिंसा एवं हानिकारक प्रथाओं को दूर करने के लिये और अधिक सुधार की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।’’ महिला संबंधित विकास को सुगम बनाने के लिये किये जा सकने वाले उपायों की चर्चा कीजिये।