डेली न्यूज़ (29 May, 2021)



ओडिशा में कृष्णमृग (Blackbuck) की आबादी में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये

कृष्णमृग या काले हिरण (Blackbuck), वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, आईयूसीएन (IUCN)

मेन्स के लिये

कृष्णमृग संबंधित संरक्षित क्षेत्र, संरक्षण स्थिति, उत्पन्न खतरे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा राज्य वन विभाग द्वारा जारी नवीनतम पशुगणना के आँकड़ों के अनुसार, पिछले छह वर्षों में ओडिशा में कृष्णमृग या काले हिरण (Blackbuck) की आबादी दोगुनी हो गई है।

Blackbuck

प्रमुख बिंदु 

कृष्णमृग के बारे में:

  • कृष्णमृग का वैज्ञानिक नाम ‘Antilope Cervicapra’ है, जिसे ‘भारतीय मृग’ (Indian Antelope) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत और नेपाल में  मूल रूप से निवास करने वाली मृग की एक प्रजाति है।
    • ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में (संपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में) व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
  • ये घास के मैदानों में सर्वाधिक पाए जाते हैं अर्थात् इसे घास के मैदान का प्रतीक माना जाता है।
  • इसे चीते के बाद दुनिया का दूसरा सबसे तेज़ दौड़ने वाला जानवर माना जाता है।
  • कृष्णमृग एक दैनंदिनी मृग (Diurnal Antelope) है अर्थात् यह मुख्य रूप से दिन के समय ज़्यादातर सक्रिय रहता है।
  • यह आंध्र प्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: यह हिंदू धर्म के लिये पवित्रता का प्रतीक है क्योंकि इसकी त्वचा और सींग को पवित्र अंग माना जाता है। बौद्ध धर्म के लिये यह सौभाग्य (Good Luck) का प्रतीक है।

संरक्षण स्थिति:

खतरा: 

  • इनके संभावित खतरों में प्राकृतिक आवास का विखंडन, वनों का उन्मूलन, प्राकृतिक आपदाएँ, अवैध शिकार आदि शामिल हैं।

संबंधित संरक्षित क्षेत्र:

  • वेलावदर (Velavadar) कृष्णमृग अभयारण्य- गुजरात
  • प्वाइंट कैलिमेर (Point Calimer) वन्यजीव अभयारण्य- तमिलनाडु
  • वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने प्रयागराज के समीप यमुना-पार क्षेत्र (Trans-Yamuna Belt) में कृष्णमृग संरक्षण रिज़र्व स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी दी। यह कृष्णमृग को समर्पित पहला संरक्षण रिज़र्व होगा।

ओडिशा में कृष्णमृग: 

  • काले हिरण को ओडिशा में कृष्णसारा मृगा (Krushnasara Mruga) के नाम से जाना जाता है।
  • काला हिरण पुरी ज़िले में बालूखंड-कोणार्क तटीय मैदान/वन्यजीव अभयारण्य तक ही सीमित है।
  • गंजाम (Ganjam) ज़िले में बालीपदर-भेटनोई और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में ।
  • नवीनतम गणना के अनुसार, वर्ष 2011 में 2,194 की मृग आबादी की तुलना में 7,358 मृग हैं।
  • इनकी आबादी में वृद्धि के प्रमुख कारणों में आवासों में सुधार, स्थानीय लोगों और वन कर्मचारियों द्वारा दी गई सुरक्षा शामिल है।

भारत में पाए जाने वाले अन्य मृग प्रजातियाँ:

स्रोत: डाउन टू अर्थ


बेगम सुल्तान जहाँ

प्रिलिम्स के लिये: 

बेगम सुल्तान जहाँ से संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये:

बेगम सुल्तान जहाँ के महत्त्वपूर्ण कार्य तथा महिला सशक्तीकरण में उनकी भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बेगम सुल्तान जहाँ की पुण्यतिथि मनाई गई।

  • वह एक परोपकारी, विपुल लेखिका, नारीवादी तथा महिला सशक्तीकरण का प्रतीक होने के साथ ही  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की प्रथम महिला चांसलर भी थीं।

Maharani-Sultan

प्रमुख बिंदु

  • जन्म:  9 जुलाई, 1858 (भोपाल)।

भोपाल  की शासक:

  • वह भोपाल की आखिरी बेगम थीं। उन्होंने वर्ष 1909 से 1926 तक शासन किया जिसके बाद उनका पुत्र उत्तराधिकारी बना।
    • वह भोपाल की चौथी बेगम (महिला शासक) थीं।
  • उन्होंने नगर पालिका प्रणाली की स्थापना की, नगरपालिका चुनावों की शुरुआत की और अपने लिये एक किलेबंद शहर तथा एक महल का निर्माण करवाया।
  • किलेबंद शहर में उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और जल की आपूर्ति में सुधार हेतु कदम उठाए तथा इस शहर के निवासियों के लिये व्यापक टीकाकरण अभियान लागू किया।

नारीवाद  का प्रतीक:

  • उन्होंने एक ऐसे समय में महिलाओं के लिये प्रगतिशील नीतियों की शुरुआत की जब महिलाएँ पितृसत्तात्मक व्यवस्थाओं के अधीन थी। इसके चलते आज भी उन्हें नारीवाद का प्रतीक माना जाता है।
  • वर्ष 1913 में उन्होंने लाहौर में महिलाओं के लिये एक मीटिंग हॉल (Meeting Hall for Ladies) का निर्माण करवाया।
  • महिलाओं को प्रोत्साहित करने और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिये उन्होंने भोपाल में 'नुमाइश मस्नुआत ए हिंद' (Numaish Masunuaat e Hind) नामक प्रदर्शनी का आयोजन किया।

परोपकारी:

  • ज़रूरतमंद छात्रों की मदद के लिये उन्होंने तीन लाख रुपए की निधि के साथ ‘सुल्तान जहाँ एंडोमेंट ट्रस्ट’ (Sultan Jahan Endowment Trust) की स्थापना की।
  • उन्होंने देवबंद (उत्तर प्रदेश) में एक मदरसा, लखनऊ में नदवतुल उलूम और यहाँ तक कि मक्का, सऊदी अरब में मदरसा सुल्तानिया को भी निधि/वित्त प्रदान किया।
  • लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली जैसे संस्थानों और बॉम्बे और कलकत्ता के कुछ प्रसिद्ध कॉलेजों ने उनसे प्रचुर अनुदान प्राप्त किया।

शिक्षाविद्: 

  • उन्होंने 41 किताबें लिखीं तथा अंग्रेज़ी भाषा की कई पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद किया।
  • उनके द्वारा लिखी गई दर्स-ए-हयात (Dars-e-Hayat) नामक पुस्तक में युवा लड़कियों की शिक्षा और पालन-पोषण के बारे में बताया गया है।
  • उन्होंने स्वयं शुरू किये गए सुल्तानिया स्कूल में पाठ्यक्रम को नया रूप दिया और अंग्रेज़ी, उर्दू, अंकगणित, गृह विज्ञान तथा शिल्प जैसे विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल किया।
  • उन्होंने लेडी मिंटो नर्सिंग स्कूल (Lady Minto Nursing School) नाम से एक नर्सिंग स्कूल भी शुरू किया।
  • वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की पहली महिला कुलाधिपति थीं।
    • दिसंबर 2020 में AMU के शताब्दी समारोह के दौरान, प्रधानमंत्री द्वारा बेगम सुल्तान जहाँ तथा इस ऐतिहासिक संस्थान में उनके योगदान को श्रद्धांजलि दी गई थी।
  • मृत्यु: 12 मई 1930

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


क्लाइमेट ब्रेकथ्रू समिट

प्रिलिम्स के लिये

ग्रीन हाइड्रोजन, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, COP 26, रेस टू ज़ीरो अभियान, जलवायु  महत्त्वाकांक्षी गठबंधन

मेन्स के लिये

ज़ीरो-कार्बन अर्थव्यवस्था की भूमिका, क्लाइमेट ब्रेकथ्रू समिट की विशेषताएँ एवं महत्त्व, पेरिस समझौते की भूमिका, ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन की साझेदारी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व के राष्ट्रों के नेताओं ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों (स्टील, शिपिंग, ग्रीन हाइड्रोजन और प्रकृति सहित) में प्रगति का प्रदर्शन करने के लिये क्लाइमेट ब्रेकथ्रू समिट की बैठक बुलाई।

प्रमुख बिंदु 

परिचय:

  • यह वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, मिशन पॉसिबल पार्टनरशिप, यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट चैंपियंस और यूनाइटेड किंगडम (COP 26 प्रेसीडेंसी) के बीच एक सहयोग है।
  • इसका उद्देश्य ज़ीरो-कार्बन अर्थव्यवस्था के लिये वैश्विक पहुँच बढ़ाने हेतु संरचनात्मक परिवर्तन की आवश्यकता को प्रदर्शित करना है।
    • ‘ज़ीरो-कार्बन अर्थव्यवस्था’ न्यून ऊर्जा खपत और न्यून प्रदूषण के आधार पर हरित पारिस्थितिक अर्थव्यवस्था को संदर्भित करती है, जहाँ उत्सर्जन की आपूर्ति ग्रीनहाउस गैसों (नेट-ज़ीरो) के अवशोषण और उन्हें हटाने से होती है।
  • इसके प्रमुख अभियानों में से एक 'रेस टू ज़ीरो' (Race to Zero) अभियान है जो 708 शहरों, 24 क्षेत्रों, 2,360 व्यवसायों, 163 निवेशकों और 624 उच्च शिक्षण संस्थानों को एक सतत् भविष्य के लिये ज़ीरो-कार्बन रिकवरी की ओर ले जाने के लिये समर्थन जुटाता है।

शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:

  • संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन को सुरक्षित करने और वर्ष 2050 तक वैश्विक ताप वृद्धि को औद्योगिक-पूर्व के तापमान स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को पूरा करने हेतु समन्वित कार्रवाई का आह्वान किया।
  • मर्स्क (Maersk), विश्व की सबसे बड़ी कंटेनर शिपिंग लाइन और पोत संचालक है जो वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को आधा करने की प्रतिबद्धता के साथ रेस टू ज़ीरो अभियान में शामिल हो गया।
  • विश्व भर से 40 स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों ने 2030 तक उत्सर्जन को आधा करने और 2050 तक नेट ज़ीरो तक पहुँचने के लिये स्वयं को प्रतिबद्ध किया है।
    • ये 40 संस्थान करीब 18 देशों में 3,000 से अधिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • इस तरह की विभिन्न कंपनियों और संस्थानों के परिवर्तन को क्षेत्रीय-व्यापक  योजनाओं (Sector-Wide Plans) द्वारा समर्थित किया जा रहा है, जो संशोधित जलवायु कार्ययोजना के मार्ग (Climate Action Pathways) में परिलक्षित होता है, जिसे ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन के लिये मराकेश (Marrakech) पार्टनरशिप के साथ लॉन्च किया गया है।
    •  क्लाइमेट एक्शन पाथवे वर्ष 2050 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक दुनिया की पहुँच स्थापित करने के लिये क्षेत्रीय दृष्टिकोण निर्धारित करते हैं, जो देशों और गैर-राज्य नेतृत्वकर्त्ताओं  को समान रूप से 2021, 2025, 2030 और 2040 तक ज़ीरो-कार्बन वाला विश्व तैयार करने हेतु आवश्यक कार्यों की पहचान करने में मदद करने के लिये एक रोडमैप प्रदान करते हैं।

महत्त्व:

  • भारी उद्योग  (एल्यूमीनियम, कंक्रीट एवं सीमेंट, रसायन, धातु-खनन, प्लास्टिक तथा स्टील) और हल्के उद्योग (उपभोक्ता वस्तु, फैशन, आईसीटी और मोबाइल तथा खुदरा वस्तु) दोनों को तकनीकी और आर्थिक रूप से डीकार्बोनाइज (Decarbonizing) करना सुनियोजित है। 
  • जहाँ प्रत्यक्ष उत्सर्जन में कमी नहीं की जा सकती है वहाँ इसकी सामग्री और ऊर्जा के उपयोग में कमी करके उत्सर्जन को कम किया जा सकता है जिससे उनकी उत्पादकता में वृद्धि होगी और प्राकृतिक जलवायु समाधान जैसे परिवर्तनशील समाधानों को लागू करते हुए उत्पादन प्रक्रियाओं को डीकार्बोनाइज़ किया जा सकेगा।  

ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन के लिये मराकेश (Marrakech ) पार्टनरशिप

  • यह जलवायु परिवर्तन पर कार्यरत रहने वाली सरकारों और शहरों, क्षेत्रों, व्यवसायों तथा निवेशकों के बीच सहयोग स्थापित करके पेरिस समझौते के कार्यान्वयन का समर्थन करता है।
  • 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के लक्ष्य को  प्राप्त करने और जलवायु-तटस्थ तथा लचीले विश्व बनाने के लिये सभी हितधारकों की उच्च महत्त्वाकांक्षा को बढ़ावा देने हेतु सामूहिक रूप से प्रयास किये जा रहे हैं जिसमें पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

 रेस टू ज़ीरो अभियान (Race to Zero Campaign)

  • संयुक्त राष्ट्र समर्थित रेस टू ज़ीरो अभियान में गैर-राज्य अभिनेताओं (कंपनियां, शहर, क्षेत्र, वित्तीय और शैक्षणिक संस्थान ) को शामिल किया गया है। इसके अंर्तगत वर्ष 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को आधा करने और एक स्वस्थ, निष्पक्ष, ज़ीरो-कार्बन विश्व प्रदान करने के लिये कठोर और तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 
  • रेस टू ज़ीरो राष्ट्रीय सरकारों के बाहरी  नेतृत्वकर्त्ताओं को जलवायु महत्त्वाकांक्षी गठबंधन (Climate Ambition Alliance) में शामिल होने के लिये एकत्रित करता है।

जलवायु  महत्त्वाकांक्षी गठबंधन (Climate Ambition Alliance)

  • जलवायु महत्त्वाकांक्षी गठबंधन (CAA) में वर्तमान में 120 राष्ट्र और कई अन्य निजी भागीदार शामिल हैं जो वर्ष 2050 तक नेट-ज़ीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्र या निजी भागीदार दुनिया भर में वर्तमान में उत्सर्जित ग्रीनहाउस-गैस  के 23% और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 53% के लिये  ज़िम्मेदार हैं।
  • भारत इस गठबंधन का अंग नहीं है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


मुद्रा विनिमय सुविधा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बांग्लादेश ने अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये श्रीलंका के साथ 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मुद्रा विनिमय सुविधा को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

परिचय

  • करेंसी स्वैप अथवा मुद्रा विनिमय का आशय दो देशों के बीच पूर्व निर्धारित नियमों और शर्तों के साथ मुद्राओं के आदान-प्रदान हेतु किये गए समझौते या अनुबंध से है।
  • वर्तमान संदर्भ में मुद्रा स्वैप को प्रभावी रूप से ऋण के रूप में देखा जा सकता है, जो बांग्लादेश द्वारा श्रीलंका को डॉलर के रूप में दिया जाएगा, साथ ही इसमें यह समझौता भी शामिल है कि ऋण और उसके साथ ब्याज का भुगतान श्रीलंकाई रुपए में किया जाएगा।
  • केंद्रीय बैंक और संबंधित देश की सरकारों द्वारा अल्पकालिक विदेशी मुद्रा तरलता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये या भुगतान संतुलन (BoP) संकट से बचने के लिये पर्याप्त विदेशी मुद्रा सुनिश्चित करने हेतु विदेशी समकक्षों के साथ मुद्रा स्वैप समझौता किया जाता है।
    • यह समझौता श्रीलंका के लिये बाज़ार से उधार लेने की तुलना में काफी सस्ता है, और काफी महत्त्वपूर्ण भी है, क्योंकि श्रीलंका विदेशी ऋणों के साथ-साथ पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने के लिये संघर्ष कर रहा है।
  • इन विनिमय समझौतों में विनिमय दर या अन्य बाज़ार संबंधी जोखिमों का कोई खतरा नहीं रहता है, क्योंकि लेनदेन की शर्तें अग्रिम रूप से निर्धारित होती हैं।
    • विनिमय दर जोखिम, जिसे मुद्रा जोखिम के रूप में भी जाना जाता है, का आशय विदेशी मुद्रा के विरुद्ध आधार मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न होने वाले वित्तीय जोखिम से है।

बांग्लादेश की असामान्य स्थिति

  • बांग्लादेश को अब तक अन्य देशों के लिये वित्तीय सहायता प्रदाता के रूप में नहीं देखा जाता था, यह दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक रहा है और अभी भी अन्य देशों से अरबों डॉलर की वित्तीय सहायता प्राप्त करता है।
  • लेकिन पिछले दो दशकों में बांग्लादेश अपनी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार करने में कामयाब रहा है और वर्ष 2020 में दक्षिण एशिया में सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में सामने आया है।
    • बांग्लादेश ने देश के लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकलने में सफलता हासिल की है। इसने प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है।
  • यह पहली बार है कि बांग्लादेश किसी दूसरे देश की मदद के लिये सामने आया है, इसलिये इस घटना को एक प्रकार से ऐतिहासिक माना जा सकता है।

भारत के लिये श्रीलंका का दृष्टिकोण

  • वर्ष 2020 में श्रीलंका के राष्ट्रपति ने भारत से 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के क्रेडिट स्वैप का अनुरोध किया था, साथ ही उन ऋणों पर स्थगन की भी मांग की थी, जो श्रीलंका को भारत को चुकाना है।
  • लेकिन कोलंबो बंदरगाह पर एक महत्त्वपूर्ण कंटेनर टर्मिनल परियोजना को रद्द करने के कोलंबो के फैसले पर भारत-श्रीलंका संबंध तनावपूर्ण रहे हैं, जिससे भारत ने क्रेडिट स्वैप के निर्णय को टाल दिया है।
  • इससे पूर्व जुलाई 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने श्रीलंका को 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट स्वैप सुविधा प्रदान की थी और इस सौदे को सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका ने फरवरी माह में निपटा दिया था। इस सुविधा को आगे नहीं बढ़ाया गया।

सार्क के लिये स्वैप सुविधाओं हेतु रिज़र्व बैंक की रूपरेखा

  • सार्क मुद्रा विनिमय सुविधा 15 नवंबर, 2012 को लागू हुई थी।
  • संशोधित रूपरेखा 14 नवंबर, 2019 से 13 नवंबर, 2022 तक वैध है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समग्र कोष के भीतर एक स्वैप व्यवस्था की पेशकश करता है।
  • स्वैप व्यवस्था का उपयोग अमेरिकी डॉलर, यूरो या भारतीय रुपए में किया जा सकता है। यह रूपरेखा भारतीय रुपए में स्वैप निकासी के लिये कुछ रियायत भी प्रदान करती है।
  • यह सुविधा सभी सार्क सदस्य देशों के लिये उपलब्ध होगी, बशर्ते उन्हें द्विपक्षीय स्वैप समझौतों पर हस्ताक्षर करना होगा।
  • अनुमान यह था कि क्षेत्रीय समूह की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में केवल भारत ही ऐसा कर सकता है। हालाँकि बांग्लादेश-श्रीलंका व्यवस्था दर्शाती है कि अब स्थितियाँ परिवर्तित हो चुकी हैं।

भुगतान संतुलन

परिभाषा

  • किसी देश के भुगतान संतुलन (BoP) को आमतौर पर एक वर्ष की विशिष्ट अवधि के दौरान शेष विश्व के साथ किसी देश के सभी आर्थिक लेनदेन के व्यवस्थित विवरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • समग्र तौर BoP खाता अधिशेष या घाटा हो सकता है।
    • यदि घाटा होता है तो उसे विदेशी मुद्रा खाते से पैसे लेकर निपटाया जा सकता है।
    • यदि विदेशी मुद्रा खाते का भंडार कम हो रहा है तो इस परिदृश्य को BoP संकट के रूप में जाना जाता है।

भुगतान संतुलन के घटक

  • चालू खाता: यह दृश्य एवं अदृश्य वस्तुओं (वस्तुओं और सेवाओं) के निर्यात और आयात को दर्शाता है।
  • पूंजी खाता: यह एक देश के पूंजीगत व्यय और आय को दर्शाता है। यह एक अर्थव्यवस्था में निजी और सार्वजनिक निवेश दोनों के शुद्ध प्रवाह का सारांश देता है।
  • त्रुटि एवं चूक: कभी-कभी भुगतान संतुलन संतुलित नहीं होता है। इस असंतुलन को भुगतान संतुलन में त्रुटियों और चूक के रूप में दिखाया जाता है।

विदेशी मुद्रा भंडार

  • विदेशी मुद्रा भंडार एक विदेशी मुद्रा में निहित संपत्ति है, जो एक केंद्रीय बैंक के पास होती है।
  • इनमें विदेशी मुद्राएँ, बाॅॅण्ड, ट्रेज़री बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल हो सकती हैं।
  • इन भंडारों का उपयोग देनदारियों को वापस करने और मौद्रिक नीति को प्रभावित करने के लिये किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


मेकेदातु परियोजना:कावेरी नदी

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण, कावेरी वन्यजीव अभयारण्य, सर्वोच्च न्यायालय,मेकेदातु परियोजना, कावेरी एवं उसकी सहायक नदियाँ  

मेन्स के लिये:

मेकेदातु परियोजना के संदर्भ में  कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण एवं सर्वोच्य न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय का महत्त्व, कावेरी जल विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक सरकार ने  राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा संयुक्त समिति गठित करने के निर्णय को चुनौती देने का फैसला किया है।

  • यह संयुक्त समिति मेकेदातु में अनधिकृत निर्माण गतिविधि के आरोपों की जांँच करेगी, जहांँ कर्नाटक सरकार द्वारा कावेरी नदी पर एक बांँध बनाने का प्रस्ताव किया गया था।

Mekedatu

प्रमुख बिंदु: 

मेकेदातु परियोजना:

  • इस परियोजना की कुल लागत 9,000 करोड़ रुपए है जिसका उद्देश्य बंगलूरु शहर के लिये पीने के पानी का भंडारण और आपूर्ति करना है। परियोजना के माध्यम से लगभग 400 मेगावाट (मेगावाट) बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव है।
  • वर्ष 2017 में सर्वप्रथम कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा इसे अनुमोदित किया गया था।
  • परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट को पहले ही जल संसाधन मंत्रालय (Ministry of Water Resources) से मंज़ूरी मिल मिल चुकी है तथा अब इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) से मंज़ूरी मिलना शेष है।
    • MoEFCC का अनुमोदन प्राप्त होना इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे कावेरी वन्यजीव अभयारण्य (Cauvery Wildlife Sanctuary) का 63% वन क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा।
  • वर्ष 2018 में, तमिलनाडु राज्य द्वारा परियोजना के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) में अपील की गई, हालांँकि कर्नाटक द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया था यह परियोजना तमिलनाडु में जल के प्रवाह को प्रभावित नहीं करेगी।
  • जून 2020 में, कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (Cauvery Water Management Authority) की बैठक के दौरान, तमिलनाडु ने परियोजना को लेकर पुनः अपना विरोध व्यक्त किया।

तमिलनाडु द्वारा विरोध के कारण:

  • तमिलनाडु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदन प्राप्त होने तक ऊपरी तट (Upper Riparian) पर प्रस्तावित किसी भी परियोजना का विरोध करता है।
  • कर्नाटक को इस मामले में निचले तटवर्ती राज्य यानी तमिलनाडु की सहमति के बिना अंतरराज्यीय नदी पर कोई जलाशय बनाने का कोई अधिकार नहीं है।
    • यह परियोजना कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (Cauvery Water Disputes Tribunal-CWDT) के उस अंतिम निर्णय के विरुद्ध है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कोई भी राज्य विशेष स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है या अन्य राज्यों को अंतरराज्यीय नदियों के जल  से वंचित करने का अधिकार नहीं रखता है।
  • CWDT और SC ने पाया है कि कावेरी बेसिन में उपलब्ध मौजूदा भंडारण सुविधाएंँ जल भंडारण और वितरण हेतु  पर्याप्त थीं, इसलिये कर्नाटक का प्रस्ताव प्रथम दृष्टि में सीधे तौर पर खारिज कर दिया जाना चाहिये।

कावेरी नदी विवाद

Karnataka

कावेरी नदी (कावेरी):

  • तमिल भाषा में इसे 'पोन्नी' के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस नदी को दक्षिण की गंगा (Ganga of the south) भी कहा जाता है और यह दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है।
  • यह दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है। इसका उद्गम दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाटों में स्थित ब्रह्मगिरी पहाड़ी से होता है तथा यह कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों से होती हुई दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती है और एक शृंखला बनाती हुई पूर्वी घाटों में उतरती है इसके बाद पांडिचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  • अर्कवती, हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ, शिमसा, काबिनी, भवानी, हरंगी आदि इसकी कुछ सहायक नदियाँ हैं।

विवाद:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • चूँकि इस नदी का उद्गम कर्नाटक से होता है और केरल से आने वाली प्रमुख सहायक नदियों के साथ यह तमिलनाडु से होकर बहती है तथा पांडिचेरी से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इसलिये इस विवाद में 3 राज्य और एक केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं।
    • इस विवाद का इतिहास लगभग 150 साल पुराना है तथा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर के बीच वर्ष 1892 एवं वर्ष 1924 में हुए दो समझौते भी इससे जुड़े हुए हैं।
    • इन समझौतों में इस सिद्धांत को शामिल किया गया था कि ऊपरी तटवर्ती राज्य को किसी भी निर्माण गतिविधि ( उदाहरण के लिये कावेरी नदी पर जलाशय) के लिये निचले तटवर्ती राज्य की सहमति प्राप्त करनी होगी।
  • हालिया विकास:
    • वर्ष 1974 से, कर्नाटक ने अपने चार नए बने जलाशयों में तमिलनाडु की सहमति के बिना पानी को मोड़ना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप विवाद उत्पन्न हुआ।
    • इस मामले को सुलझाने के लिये, वर्ष 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण  (Cauvery Water Disputes Tribunal- CWDT) की स्थापना की गई थी। सामान्य वर्षा की स्थिति में कावेरी नदी के जल को 4 तटवर्ती राज्यों के बीच किस प्रकार साझा किया जाना चाहिये इस संदर्भ में  अंतिम आदेश (2007) तक पहुँचने में न्यायाधिकरण को 17 वर्षों का समय  लगा।
    • न्यायाधिकरण ने निर्देश दिया कि संकट के वर्षों में जल साझाकरण हेतु आनुपातिक आधार का उपयोग किया जाना चाहिये। सरकार ने पुनः 6 वर्ष का समय लिया और वर्ष 2013 में आदेश को अधिसूचित किया
    • इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी जिसके तहत कर्नाटक को तमिलनाडु के लिये 12000 क्यूसेक जल छोड़ने का निर्देश दिया गया था। इस निर्देश के बाद राज्य में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ।
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम निर्णय वर्ष 2018 में आया जिसमें न्यायालय ने कावेरी नदी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया और CWDT द्वारा जल-बंटवारे हेतु अंतिम रूप से की गई व्यवस्था को बरकरार रखा तथा कर्नाटक से तमिलनाडु को किये जाने वाले जल के आवंटन को भी कम कर दिया।
      • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, कर्नाटक को 284.75 हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट (tmcft), तमिलनाडु को 404.25 tmcft, केरल को 30 tmcft और पुदुचेरी को 7 tmcft जल प्राप्त होगा।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को कावेरी प्रबंधन योजना (Cauvery Management Scheme) को अधिसूचित करने का भी निर्देश दिया। केंद्र सरकार ने जून 2018 में 'कावेरी जल प्रबंधन योजना' अधिसूचित की, जिसके तहत 'कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण' (Cauvery Water Management Authority- CWMA) और 'कावेरी जल विनियमन समिति' (Cauvery Water Regulation Committee) का गठन किया गया।

आगे की राह:

  • राज्यों को क्षेत्रीय दृष्टिकोण को त्यागने की ज़रूरत है क्योंकि समस्या का समाधान सहयोग और समन्वय में निहित है न कि संघर्ष में। स्थायी एवं पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य समाधान के लिये बेसिन स्तर पर योजना तैयार की जानी चाहिये।
  • दीर्घावधि में वनीकरण, रिवर लिंकिंग आदि के माध्यम से नदी का पुनर्भरण किये जाने और जल के दक्षतापूर्ण उपयोग (जैसे- सूक्ष्म सिंचाई आदि) को बढ़ावा देने के साथ-साथ जल के विवेकपूर्ण उपयोग हेतु लोगों को जागरूक करने तथा जल स्मार्ट रणनीतियों को अपनाए जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


RBI की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21

प्रिलिम्स के लिये

 भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा विनिमय, अधिशेष स्थानांतरण, डिजिटल भुगतान, सकल घरेलू उत्पाद

मेन्स के लिये

 भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना और भूमिका, महामारी में डिजिटल भुगतान का भूमिका, कोविड महामारी, आर्थिक विकास में अधिशेष की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 2020-21 के लिये अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की।

प्रमुख बिंदु

विदेशी मुद्रा विनिमय:

  • वित्तीय वर्ष 2020-21 में विदेशी मुद्रा लेन-देन से लाभ 29,993 करोड़ रुपए से बढ़कर 50,629 करोड़ रुपए हो गया।
    • विदेशी मुद्रा या विदेशी मुद्रा बाज़ार से आशय यह है कि जहाँ एक मुद्रा का दूसरे के लिये कारोबार किया जाता है।

सरकार को अधिशेष स्थानांतरण:

  • मार्च 2021 की वित्तीय वर्ष की समाप्ति के दौरान प्रावधानों में तेज़ गिरावट (खर्च में कमी न्यून प्रावधानों के कारण थी) और विदेशी मुद्रा लेनदेन से लाभ के पश्चात् आरबीआई इस वर्ष सरकार को अधिशेष के रूप में एक उच्च राशि हस्तांतरित करने में सक्षम है।
    • RBI ने सरकार को अधिशेष के रूप में 99,122 करोड़ रुपए हस्तांतरित किये जिससे सरकार के वित्त को बढ़ावा मिलने की संभावना है। इस प्राप्ति से सरकार को बढ़ते कोविड-19 महामारी से लड़ने में मदद मिलेगी।

सरकार को अधिशेष देने का प्रावधान

  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 के अंतर्गत खराब और संदिग्ध ऋणों के लिये प्रावधान बनाने के पश्चात् संपत्ति में मूल्यह्रास, कर्मचारियों और सेवानिवृत्ति निधि में योगदान और उन सभी मामलों हेतु  जिनके लिये प्रावधान अधिनियम द्वारा या उसके तहत किये जाने हैं या बैंकरों द्वारा जो आमतौर पर प्रदान किये जाते हैं, रिज़र्व बैंक के लाभ की शेष राशि का भुगतान केंद्र सरकार को करना होता है।

डॉलर के मुकाबले रुपया:

  • अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 3.5 प्रतिशत मज़बूत हुआ है (मार्च 2020 के अंत से लेकर मार्च 2021 के अंत तक) लेकिन वर्ष 2020-21 के दौरान अन्य एशियाई देशों की तुलना में भारत का प्रदर्शन काफी कमज़ोर रहा है।

बैंकिंग धोखाधड़ी के मामलों में कमी

  • वर्ष 2020-21 में 1 लाख रुपए और उससे अधिक की बैंक धोखाधड़ी से संबंधित मामलों के कुल मूल्य में 25 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह गिरकर 1.38 ट्रिलियन रुपए पर पहुँच गया है, साथ ही धोखाधड़ी से संबंधित मामलों की संख्या में भी इस दौरान 15 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।

डिजिटल भुगतान

  • कोविड-19 महामारी ने भुगतान के डिजिटल माध्यमों के प्रसार को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई  है।
    • वर्ष 2020-21 में कुल डिजिटल लेनदेन की मात्रा 4,371 करोड़ थी, जबकि वर्ष 2019-20 में यह 3,412 करोड़ थी।
  • वर्ष 2021-22 में भारत की वित्तीय प्रणाली में फिनटेक की संभावनाएँ काफी हद तक डिजिटल उपयोग के प्रसार पर निर्भर करेंगी।
  • वैश्विक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की स्थिति को मज़बूत किये जाने के लिये विभिन्न उपाय जैसे- नवाचार केंद्र, नियामक सैंडबॉक्स और ऑफलाइन भुगतान समाधान जैसी विभिन्न पहलों पर ज़ोर दिया जा रहा है।
  • रिज़र्व बैंक देश भर में बैंक शाखाओं और ATMs के स्थान का पता लगाने के लिये लगाए गए जियो-टैगिंग ढाँचे का विस्तार करने पर ज़ोर दे रहा है, जिससे देश भर में उनके सटीक स्थानों का पता लगाया जा सकेगा।
  • इसके अलावा सीमा पार लेनदेन की सुविधा के लिये भारत की घरेलू भुगतान प्रणाली का लाभ उठाने की संभावना का पता लगाया जा रहा है और प्रेषण के लिये कॉरिडोर स्थापित करने तथा शुल्क समाप्त करने की भी समीक्षा की जा रही है।

तरलता सुनिश्चित करना

  • रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति के रुख के अनुरूप वर्ष 2021-22 के दौरान वित्तीय प्रणाली में तरलता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
    • सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
  • वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए मौद्रिक संचरण निर्बाध रूप से जारी रहेगा।
    • मौद्रिक संचरण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा एक केंद्रीय बैंक के मौद्रिक नीति घटकों (जैसे रेपो दर) को वित्तीय प्रणाली के माध्यम से व्यवसायों और घरों को प्रभावित करने हेतु प्रेषित किया जाता है।

आर्थिक विकास

  • जैसे-जैसे टीकाकरण अभियान में तेज़ी आएगी और संक्रमण के मामलों में गिरावट होगी, वैसे ही आर्थिक विकास में भी तेज़ी आएगी, जो कि मज़बूत ‘बेस इफेक्ट’ द्वारा समर्थित होगी।
    • 'बेस इफेक्ट’ दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के परिणाम पर तुलना आधार के प्रभाव को संदर्भित करता है।
  • रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2021-22 के लिये सकल घरेलू उत्पाद में 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ACCR पोर्टल और आयुष संजीवनी एप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आयुष मंत्रालय ने एक आभासी समारोह में अपना ‘आयुष क्लिनिकल केस रिपोज़िटरी’ (ACCR) पोर्टल और आयुष संजीवनी एप का तीसरा संस्करण लॉन्च किया।

प्रमुख बिंदु:

आयुष क्लिनिकल केस रिपोज़िटरी पोर्टल:

  • यह आयुष मंत्रालय द्वारा आयुष चिकित्सकों और जनता दोनों का समर्थन करने के लिये एक मंच के रूप में संकल्पित और विकसित किया गया है।
  • यह सभी के लाभ हेतु सफलतापूर्वक इलाज किये गए मामलों के बारे में जानकारी साझा करने के लिये दुनिया भर के आयुष चिकित्सकों का स्वागत करता है।
  • जिन मामलों का विवरण इस पोर्टल पर दिया जाता है, उनकी विशेषज्ञों द्वारा जाँच की जाएगी और उनकी समीक्षा को सभी को पढ़ने के लिये अपलोड किया जाएगा।
  • लक्ष्य:
    • विभिन्न रोगों के उपचार के लिये आयुष प्रणाली की शक्ति को व्याख्यायित करना।

आयुष संजीवनी एप का तीसरा संस्करण:

  • इसे आयुष मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा विकसित किया गया है।
    • इसका पहला संस्करण मई 2020 में लॉन्च किया गया था।
  • इसका लक्ष्य देश में 50 लाख लोगों तक पहुँच स्थापित करना है।
  • इस एप का उद्देश्य आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा तथा होम्योपैथी) के उपयोग व जनसंख्या के बीच के उपायों और कोविड -19 की रोकथाम में इसके प्रभाव संबंधी आँकड़े एकत्रित करना है।
  • लक्ष्य:
    • कोविड-19 की कठिन परिस्थितियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और खुद को स्वस्थ रखने के लिये जनता द्वारा अपनाए गए उपायों को समझना।
      • विश्लेषित आँकड़े आयुष तंत्र के अग्रणी विकास में सहायक होंगे।
  • लाभ:
    • यह आयुष विज्ञान के तरीकों एवं उनकी प्रभावकारिता के बारे में महत्त्वपूर्ण अध्ययन और प्रलेखन की सुविधा प्रदान करेगा, जिसमें आयुष-64 और ‘कबसुरा कुदिनीर दवाएँ’ शामिल हैं जो स्पर्शोन्मुख और हल्के से मध्यम लक्षणों वाले कोविड -19 रोगियों के प्रबंधन में शामिल हैं।
      • आयुष-64 ‘केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (CCRAS) द्वारा विकसित एक पॉली-हर्बल फॉर्मूलेशन है। यह मानक देखभाल सहयोगी के रूप में स्पर्शोन्मुख, हल्के और मध्यम कोविड -19 संक्रमण के उपचार में उपयोगी है।
        • प्रारंभ में मलेरिया हेतु वर्ष 1980 में यह दवा विकसित की गई थी और अब इसे कोविड -19 के लिये पुन: तैयार किया गया है।
      • ‘काबासुरा कुदिनीर’ एक पारंपरिक फॉर्मूलेशन है जिसका उपयोग सिद्ध चिकित्सकों द्वारा सामान्य श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये किया जाता है।

संबंधित पहल:

  • राष्ट्रीय आयुष मिशन: भारत सरकार आयुष चिकित्सा प्रणाली के विकास और संवर्द्धन हेतु राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के माध्यम से राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) नामक केंद्र प्रायोजित योजना लागू कर रही है।
  • आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र।
  • हाल ही में एक सरकारी अधिसूचना के माध्यम से विशिष्ट सर्जिकल प्रक्रियाओं को सूचीबद्ध किया गया है तथा कहा गया है कि आयुर्वेद के स्नातकोत्तर मेडिकल छात्रों को इस प्रणाली से परिचित होने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से प्रदर्शन करने हेतु व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित होना चाहिये।

आयुष तंत्र:

आयुर्वेद:

  • 'आयुर्वेद' शब्द दो अलग-अलग शब्दों 'आयु' अर्थात जीवन और 'वेद' यानी ज्ञान के मेल से बना है। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में आयुर्वेद का अर्थ ‘जीवन का विज्ञान’ है।
  • इसका उद्देश्य संरचनात्मक और कार्यात्मक संस्थाओं को संतुलन की स्थिति में रखना है, जो विभिन्न प्रक्रियाओं, आहार, स्वास्थ्य, दवाओं और व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है।

योग:

  • योग एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी।
  • 'योग' शब्द संस्कृत से लिया गया है और इसका अर्थ है जुड़ना या एकत्रित होना अर्थात शरीर और चेतना के मिलन का प्रतीक।
  • आज दुनिया भर में विभिन्न रूपों में इसका अभ्यास किया जाता है और इसकी लोकप्रियता में वृद्धि जारी है (अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस - 21 जून)।

प्राकृतिक चिकित्सा:

  • प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी प्रणाली है जो शरीर को स्वयं को स्वास्थ्य रखने में मदद करने के लिये प्राकृतिक उपचार का उपयोग करती है। यह जड़ी-बूटियों, मालिश, एक्यूपंक्चर, व्यायाम और पोषण संबंधी परामर्श सहित कई उपचारों को अपनाता है।
  • इसके कुछ उपचार सदियों पुराने हैं लेकिन वर्तमान में यह पारंपरिक उपचारों को आधुनिक विज्ञान के कुछ पहलुओं के साथ जोड़ती है।

यूनानी:

  • यूनानी प्रणाली की उत्पत्ति ग्रीस में हुई थी और इसकी नींव हिप्पोक्रेटस ने रखी थी।
  • हालाँकि यह प्रणाली अपने वर्तमान स्वरूप का श्रेय अरबों को देती है, जिन्होंने न केवल ग्रीक साहित्य को अरबी में प्रस्तुत करके बचाया, बल्कि अपने स्वयं के योगदान से अपनी चिकित्सा पद्धति को भी समृद्ध किया।
  • इसे भारत में अरबों और फारसियों द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी के आसपास पेश किया गया था।
  • भारत में यूनानी शैक्षिक, अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की सबसे बड़ी संख्या है।

सिद्ध:

  • दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से तमिलनाडु राज्य में सिद्ध चिकित्सा पद्धति का अभ्यास किया जाता है।
  • 'सिद्ध' शब्द 'सिद्धि' से बना है जिसका अर्थ है उपलब्धि। सिद्ध वे पुरुष थे जिन्होंने चिकित्सा, योग या तप (ध्यान) के क्षेत्र में सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त किया।

सोवा-रिग्पा:

  • "सोवा-रिग्पा" जिसे आमतौर पर तिब्बती चिकित्सा पद्धति के रूप में जाना जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी, ​​जीवित और अच्छी तरह से प्रलेखित चिकित्सा परंपराओं में से एक है।
  • यह चिकित्सा पद्धति तिब्बत में उत्पन्न हुई और भारत, नेपाल, भूटान, मंगोलिया तथा रूस में लोकप्रिय रूप से प्रचलित है। सोवा-रिग्पा के अधिकांश सिद्धांत और व्यवहार "आयुर्वेद" के समान हैं।
  • सोवा-रिग्पा इस सिद्धांत पर आधारित है कि ब्रह्मांड के सभी जीवित प्राणियों और निर्जीव वस्तुओं के शरीर ‘जंग-वा-नगा’ (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के पाँच ब्रह्मांडीय भौतिक तत्त्वों से निर्मित हैं।
  • जब हमारे शरीर में इन तत्त्वों का अनुपात असंतुलित हो जाता है तो विकार उत्पन्न होते हैं।

होम्योपैथी:

  • होम्योपैथी शब्द दो ग्रीक शब्दों से बना है, होमोइस का अर्थ ‘समान’ और पाथोस का अर्थ है ‘पीड़ा’। इसे भारत में 18वीं शताब्दी में पेश किया गया था।
  • होम्योपैथी का सीधा सा अर्थ है कि उपचार के साथ बीमारियों का इलाज छोटी खुराक से निर्धारित किया जाता है, जो स्वस्थ लोगों द्वारा लिये जाने पर रोग के समान लक्षण पैदा करने में सक्षम होते हैं, अर्थात- "सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरेंटूर" का सिद्धांत, इसका अर्थ है कि रोगी उन्हीं औषधियों से निरापद रूप से शीघ्रातिशीघ्र और अत्यंत प्रभावशाली रूप से निरोग होते हैं जो रोगी के रोगलक्षणों से मिलते-जुलते लक्षण उत्पन्न करने में सक्षम हैं।।
  • यह मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और शारीरिक स्तरों पर आंतरिक संतुलन को बढ़ावा देकर बीमार व्यक्ति के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाता है।

स्रोत- पीआईबी