आपदा पश्चात् आवश्यकता मूल्यांकन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management- NIDM) ने आपदा पश्चात आवश्यकता मूल्यांकन (Post Disaster Needs Assessment- PDNA) पर एक-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला (Workshop) का आयोजन किया।

संदर्भ:

  • हाल ही में NIDM ने राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना (National Cyclone Risk Mitigation Project- NCRMP) के तहत PDNA हेतु वैज्ञानिक उपकरण विकसित करने के लिये एक अध्ययन प्रारंभ किया है।
  • इस कार्यशाला का ध्येय सभी संबंधित हितधारकों तक अध्ययन के परिणाम दस्तावेजों (Outcome Documents) को प्रसारित करना है ताकि आपदा-पश्चात् चरण में गृह मंत्रालय को प्रस्तुत करने के लिये ज्ञापन तैयार करते समय उनका उपयोग संदर्भ दस्तावेज के रूप में किया जा सके।

आपदा पश्चात आवश्यकता मूल्यांकन के बारे में:

  • PDNA का विकास संयुक्त राष्ट्र विकास समूह, विश्व बैंक और यूरोपीय संघ द्वारा आपदा के बाद की परिस्थितियों में सामान्य मूल्यांकन और रिकवरी योजना को विकसित करने तथा उसका उपयोग करने हेतु किया गया है।
  • PDNA सरकार द्वारा संचालित और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, विश्व बैंक तथा यूरोपीय संघ द्वारा समर्थित एक कार्यक्रम है।
  • ये आकलन सरकारों और अन्य हितधारकों को भूकंप, चक्रवात, बाढ़ और सूखे के बाद रिकवरी हेतु योजनाओं को विकसित करने और आवश्यक संसाधनों का आवंटन करने के लिये आधार तैयार करते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) PDNA विशेषज्ञों का एक रोस्टर भी रखता है जो किसी आपदा के बाद के आकलन में सहायता के लिये तैनात किये जाते हैं। साथ ही इस महत्त्वपूर्ण उपकरण को व्यापक स्तर पर लागू करने के ध्येय से UNDP वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
  • PDNA एक समग्र रिकवरी कार्यक्रम विकसित करने की दिशा में पहला कदम है जो न्यायसंगतता और समावेश को बढ़ावा देता है।

PDNA

आपदा पश्चात आवश्यकता मूल्यांकन के मूल तत्त्व:

  • आपदा-पूर्व संदर्भ और आधारभूत जानकारी।
  • आपदाओं का आकलन।
  • आपदा प्रभावों का आकलन।
  • रिकवरी रणनीति के तहत सेक्टर रिकवरी (Sector Recovery) की जरूरतों का निर्धारण।

राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना

(National Cyclone Risk Mitigation Project- NCRMP)

  • गृह-मंत्रालय के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) द्वारा संबंधित राज्य सरकारों और NIDM के समन्वय से इस परियोजना को कार्यान्वित किया जाता है।
  • राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना को विश्व बैंक से प्राप्त वित्तीय सहायता के साथ लागू किया जाता है।
  • इसके अंतर्गत चार प्रमुख घटकों को समाहित किया गया है:
    • घटक A: चक्रवात की चेतावनी और सलाह प्रदान करने हेतु अंतिम मील कनेक्टिविटी (Last Mile Connectivity-LMC) को मजबूत करके प्रारंभिक चेतावनी प्रसार प्रणाली में सुधार।
    • घटक B: चक्रवात जोखिम शमन हेतु निवेश।
    • घटक C: जोखिम प्रबंधन और क्षमता निर्माण के लिये तकनीकी सहायता।
    • घटक D: परियोजना प्रबंधन और संस्थागत समर्थन।

स्रोत: PIB


साइबरडोम

चर्चा में क्यों?

केरल पुलिस ने इंटरनेट की डार्कनेट (Dark Net) जैसी आपराधिक गतिविधियों को रोकने हेतु सॉफ्टवेयर को सक्षम करने के लिये एक अत्याधुनिक लैब की स्थापना की है।

प्रमुख बिंदु

  • डार्क नेट की चौबीस घंटे निगरानी के लिये चार विश्लेषकों के समूह को प्रशिक्षित और तैनात किया गया है।
  • इज़राइल के विशेषज्ञों द्वारा 14 दिन का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, क्योंकि देश में डार्क नेट पर नज़र रखने हेतु विशेषज्ञता का अभाव है।
  • केरल साइबरडोम की स्थापना करने वाला पहला राज्य था इससे प्रेरित होकर असम ने भी साइबरडोम की स्थापना की है।

साइबरडोम (Cyberdome)

  • साइबरडोम केरल पुलिस विभाग का एक तकनीकी अनुसंधान और विकास केंद्र है, जो साइबर सुरक्षा हेतु प्रौद्योगिकी संवर्द्धन के माध्यम से प्रभावी पुलिसिंग (Policing) में सक्षमता प्रदान करता है।
  • यह सक्रिय रूप से साइबर अपराधों से निपटने के लिये साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में उच्च तकनीक युक्त सार्वजनिक-निजी साझेदारी केंद्र है।
  • साइबरडोम देश के विभिन्न सरकारी विभागों और एजेंसियों, अनुसंधान समूहों, गैर-लाभकारी संगठनों, समुदाय विशेष के विशेषज्ञों, नैतिक (Ethical) हैकर्स के मध्य सामूहिक समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है।

साइबरडोम (Cyberdome) के कार्य:

साइबरडोम ने साइबर निगरानी उपकरण (Cyber-Surveillance Tools) का विकास किया है, जो औद्योगिक जासूसी (Industrial Espionage) के लिये ज़िम्मेदार लोगों का पता लगाएगा जिससे उन्हें अपराधी घोषित किया जा सकेगा।

  • डार्कनेट पर बढ़ते आपराधिक गतिविधियों की जाँच और इन गतिविधियों को नियंत्रित करने हेतु सॉफ्टवेयर को सक्षम बनाने के लिये एक अत्याधुनिक लैब का निर्माण किया गया है।
  • ब्लू व्हेल (Blue whale) जैसे ऑनलाइन गेम के विरुद्ध प्रचार करना।
  • साइबरडोम ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी की घटनाओं को कम करने के लिये गुप्त साइबर निगरानी और घुसपैठ कार्यक्रम (Covert Cyber Surveillance and Infiltration Programme) शुरू किया है।
  • साइबरडोम ने सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) का इस्तेमाल कट्टरपंथी समूहों की निगरानी करने के लिये किया है जो चरमपंथी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

डार्कनेट (Dark Net)

डार्कनेट एक प्रकार की इंटरनेट पहुँच (Access) है। पहुँच (Access) के आधार पर डार्कनेट तीन प्रकार के होते हैं-

  • सतही वेब (Surface Web): यह दिन-प्रतिदिन के कार्यों में प्रयुक्त होता है, जिसमें किसी विशिष्ट अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • डीप वेब (Deep Web): डीप वेब के किसी डॉक्यूमेंट तक पहुँचने के लिये उसके URL एड्रेस पर जाकर लॉग-इन करना होता है। इसमें यूज़र आईडी व पासवर्ड की ज़रूरत होती है।

जैसे- जीमेल अकाउंट (Gmail Account), सरकारी प्रकाशन आदि। यह अपनी प्रकृति में वैधानिक होते हैं।

  • डार्क नेट (Dark Net): इसे आमतौर पर प्रयुक्त सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता। इन तक पहुँचने के लिये एक विशेष ब्राउज़र टॉर (The Onion Router- TOR) का इस्तेमाल किया जाता है।

इस डार्क नेट का प्रयोग मानव तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री, हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


सोशल मीडिया पर गलत सूचना व फेक न्यूज़ का नियंत्रण

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश देते हुए सख्त टिप्पणी की थी कि हमें ऐसे दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, जिससे ऑनलाइन अपराध करने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी पोस्ट करने वालों को नियंत्रित किया जा सके।

क्या था मामला?

  • केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 तथा 35A को समाप्त करने से ठीक पहले मोबाइल व इंटरनेट सेवाएँ बंद कर दी थीं ताकि फेक न्यूज़ और भड़काऊ संदेशों के फैलने से घाटी की शांति व्यवस्था भंग न हो।
  • कश्मीर में संचार सेवाओं पर लगाई गई सरकार की रोक के खिलाफ बहुत से लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।

अन्य देशों में फेक न्यूज़ का नियंत्रण?

मलेशिया: मलेशिया दुनिया के उन अग्रणी देशों में से एक है, जिसने फेक न्यूज़ रोकने के लिये सख्त कानून बनाया है। इसके तहत फेक न्यूज़ फैलाने पर 5 लाख रिंग्गित (रिंग्गित, मलेशिया की आधिकारिक मुद्रा है) का जुर्माना या छह साल का कारावास अथवा दोनों का प्रावधान है।

यूरोपीय यूनियन: अप्रैल 2019 में यूरोपीय संघ की परिषद ने कॉपीराइट कानून में बदलाव करने और ऑनलाइन प्लेटफार्म को उसके यूज़र्स द्वारा किये जा रहे पोस्ट के प्रति ज़िम्मेदार बनाने वाले कानून को मंज़ूरी प्रदान की थी। इससे किसी और की फोटो या पोस्ट को अपने प्रयोग के लिये चोरी (कॉपी-पेस्ट) कर लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

चीन: चीन के पास हज़ारों की संख्या में साइबर पुलिसकर्मी हैं, जो सोशल मीडिया पोस्ट विशेषकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील, फेक न्यूज़ और भड़काऊ पोस्ट पर नज़र रखते हैं। इसके अलावा यहाँ इंटरनेट के बहुत से कंटेंट पर सेंसरशिप भी लगी है।

ध्यातव्य है कि चीन ने फेक न्यूज़ को रोकने के लिये पहले से ही सोशल मीडिया साइट और इंटरनेट सेवाओं जैसे-ट्विटर, गूगल और व्हाट्सएप आदि को प्रतिबंधित कर रखा है।

  • रूस, फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में भी सख्त नियमों व जुर्माने का प्रावधान है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

यद्यपि भारत में भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) है और इसके तहत विभिन्न तरह के प्रावधान भी किये गए हैं। लेकिन इस अधिनियम के बावजूद निम्नलिखित चुनौतियों/समस्याओं का सामना करना पड़ता है-

  • अधिनियम के प्रावधानों में स्पष्टता का अभाव है।
  • ज़्यादातर राज्यों की पुलिस या अन्य जाँच एजेंसियों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम/कानून के बारे में बहुत कम जानकारी है।
  • भारत में साइबर अपराध के अधिकतर मामले भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के तहत दर्ज़ किये जाते हैं, न कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत।
  • ज़्यादातर सोशल मीडिया व सर्च इंजनों का न तो भारत में सर्वर है और न ही कार्यालय। इसलिये ये भारतीय नियमों को मानने के लिये बाध्य नहीं होते।

निष्कर्ष

चूँकि भारत में अक्सर फेक न्यूज़ के मामले सामने आते रहे हैं जो राष्ट्र की एकता व अखंडता को बाधित करते हैं तथा सांप्रदायिक दंगों आदि को प्रेरित करते हैं। इसलिये विभिन्न देशों की भाँति भारत में भी फेक न्यूज़ या गलत सूचना फैलाने के विरुद्ध सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है। साथ ही जनता को भी जागरूक किया जाना चाहिये ताकि लोग प्रसारित हो रही सूचनाओं के मूल तथ्यों व इनके पीछे की मंशा को समझने में सक्षम हों।

स्रोत: द टाइम्स ऑफ इंडिया


अटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग करंट

चर्चा में क्यों?

एक नए अध्ययन में पता चला है कि पिछले 15 वर्षों से अटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग करंट (ATLANTIC MERIDIONAL OVERTURNING CURRENT- AMOC) का प्रभाव कम हो रहा है।

अटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग करंट

(ATLANTIC MERIDIONAL OVERTURNING CURRENT- AMOC)

  • AMOC पृथ्वी की सबसे बड़ी जल संचलन प्रणालियों में से एक है इसके तहत महासागरों की धाराएंँ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से गर्म और लवणीय जल को उत्तर दिशा जैसे कि पश्चिमी यूरोप की ओर ले जाती हैं तथा दक्षिण की ओर ठंडा जल भेजती हैं।
  • यह एक ऐसी धारा प्रणाली है जो एक वाहक बेल्ट (Conveyor Belt) के रूप में तापमान और लवणता के अंतर (पानी का घनत्व) से संचालित होती है।
  • इस प्रकार के समुद्री जल संचलन से महासागरों का तापमान संतुलित रहता है और चरम जलवायु के बजाय सामान्य जलवायु की उपस्थिति बनी रहती है।
  • इस प्रकार की जल संचलन प्रणाली से वायुमंडल में ताप और ऊर्जा मुक्त होती है।
  • समुद्री गर्म जल के प्रभाव से वायुमंडल में तापमान बढ़ जाता है और वायुमंडलीय कार्बन को अवशोषित तथा संग्रहीत कर लिया जाता है।

ATLANTIC MERIDIONAL

AMOC के कम होते प्रभाव का परिणाम:

  • AMOC हज़ारों वर्षों से स्थिर बना हुआ था लेकिन यह पिछले 15 वर्षों से कमज़ोर पड़ रहा है। नेचर क्लाइमेट चेंज (Nature Climate Change) पत्रिका के अनुसार, AMOC के कमज़ोर पड़ने से यूरोप और अटलांटिक रिम (Atlantic Rim) के अन्य हिस्सों में नाटकीय परिणाम देखने को मिल सकता है।
  • येल विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार, AMOC अंतिम बार 15,000 से 17,000 वर्ष पहले अस्थिर हुआ था। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि AMOC में आई इस अस्थिरता के कारण यूरोप में कठोर सर्दियांँ पड़ी थी और अफ्रीका का सहेल (Sahel) क्षेत्र सूखाग्रस्त हो गया था।

हिंद महासागर की भूमिका:

  • हिंद महासागर क्षेत्र के ज़्यादा गर्म होने से यहाँ अतिरिक्त वर्षा हो रही है। इस क्षेत्र में अधिक प्रबल निम्न दाब का निर्माण हो रहा है जिससे यह क्षेत्र विश्व के अन्य क्षेत्रों से भी हवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, फलतः अटलांटिक महासागर जैसे क्षेत्र में वर्षा के लिये विपरीत स्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • हिंद महासागर में अतिरिक्त वर्षा होने के कारण अटलांटिक महासागर में कम वर्षा होने की प्रवृति देखी जा रही है जिससे वहाँ के जल की लवणता का स्तर बढ़ रहा है।
  • जल की बढ़ती लवणता के कारण इस स्थायी प्रणाली के प्रवाह में अस्थिरता आ रही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय प्रधानमंत्री की न्यूज़ीलैंड, एस्टोनिया व कैरीकॉम समूह के नेताओं के साथ बैठक

चर्चा में क्यों ?

25 सितंबर, 2019 को भारतीय प्रधानमंत्री ने न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न (Jacinda Ardern), एस्तोनिया गणराज्‍य की राष्‍ट्रपति केर्स्टी कलजुलैद (Kersti Kaljulaid) तथा कैरेबियाई देशों के समूह कैरीकॉम (Caribbean Community- CARICOM) के प्रतिनिधित्व मंडल के साथ बैठक की।

प्रमुख बिंदु

  • भारतीय प्रधानमंत्री ने न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की और राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा, सुरक्षा तथा दोनों देशों की जनता के बीच आपसी संबंधों को बढ़ाने के उपायों पर चर्चा की।
  • न्‍यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री को अपने नए महत्त्वपूर्ण पत्र ‘इंडिया 2022- इन्वेस्टिंग इन रिलेशनशिप’ के बारे में बताया जो न्‍यूजीलैंड इंक इंडिया स्ट्रैटिजी 2011 का ही विस्‍तार है।
  • दोनों नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के मामले सहित आपसी हित के वैश्विक और क्षेत्रीय मामलों पर भी चर्चा की तथा इस बारे में दोनों देशों के बीच वैचारिक समानता की सराहना की।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने एस्तोनिया गणराज्‍य की राष्‍ट्रपति केर्स्टी कलजुलैद के साथ ई-प्रशासन, साइबर सुरक्षा और नवाचार जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत बनाने पर चर्चा की तथा संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में अस्‍थायी सीट (2021-2022) के लिये भारत की उम्‍मीदवारी पर समर्थन के लिये एस्‍तोनिया को धन्‍यवाद दिया।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने कैरेबियाई देशों के समूह के नेताओं के साथ अलग से बैठक की। इस मुलाकात में कैरेबियाई देशों और भारत के ऐतिहासिक तथा मधुर संबंधों में एक नई गति देखने को मिली।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर क्षमता निर्माण, विकास कार्यों में सहायता और आपदा प्रबंधन में कैरीकॉम देशों के साथ भागीदारी पर बल दिया। उन्होंने कैरीकॉम देशों को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने तथा आपदा प्रतिरोधी संरचना के निर्माण के लिये आमंत्रित किया।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने कैरीकॉम में सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिये 14 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा सौर, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन संबंधित परियोजनाओं के लिये 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट की घोषणा की।
  • प्रधानमंत्री ने इन देशों में भारत द्वारा वित्‍तपोषित केंद्रों को उन्नत करके जॉर्जटाउन, गुयाना में क्षेत्रीय सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र तथा बेलीज़ में क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना करने की भी घोषणा की।

कैरेबियन समुदाय (Caribbean Community- CARICOM)

  • इसे वर्ष 1973 में चैगुआरामास की संधि (Treaty of Chaguaramas) के तहत स्थापित किया गया है।
  • यह कैरेबियन देशों का साझा बाजार क्षेत्र है। जिसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण और सहयोग को बढ़ावा देना है ।
  • यह सुनिश्चित करता है कि एकीकरण के लाभ समान रूप से सदस्य देशों के मध्य साझा किये जाएं ।
  • इसका सचिवालय- जॉर्ज टाउन (गुयाना) में स्थित है ।
  • कैरीकॉम संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पर्यवेक्षक भी है।

स्रोत: PIB


कीलादी- वैगई नदी के तट पर संगम कालीन एक नगरीय बस्ती

चर्चा में क्यों?

तमिलनाडु पुरातात्त्विक विभाग (Tamilnadu Archaeology Department) द्वारा कीलादी- वैगई तट पर संगम काल की एक नगरीय बस्ती (Keeladi- An Urban Settlement of Sangam Age on the Banks of River Vaigai) नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

  • रिपोर्ट के अनुसार, शिवगंगा ज़िले में स्थित कीलादी की खुदाई से यह ज्ञात हुआ है कि यह स्थल छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर पहली शताब्दी ईसवी के मध्य का हो सकता है। इसके पहले यह अवधारणा थी कि कीलादी तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से संबंधित है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु स्थित वैगई मैदान (Vaigai plains) में द्वितीय नगरीकरण (सिन्धु घाटी सभ्यता प्रथम नगरीय सभ्यता थी) का विकास छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था। गंगा के मैदानों का लौह युग और नास्तिक संप्रदाओं के उदय की अवधि कीलादी की समकालिक थी।
  • गाय, बैल, भैंस, भेड़-बकरी, नीलगाय, ब्लैक बक, जंगली सुअर और मोर के कंकालो से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि कीलादी समाज कृषि कार्यों के लिये जानवरों का प्रयोग करता था।
  • कीलादी से प्राप्त मृदभांडों से ज्ञात होता है कि पानी और खाद्य सामग्री के लिये बर्तन स्थानीय कच्ची मिट्टी से बने होते थे।
  • यहाँ से प्राप्त धुरीदार छड़ी (Spindle Whorls), नुकीली हड्डियों के उपकरण, तारों से लटकते पत्थर, टेराकोटा गोले (Terracotta Sphere), तांबे की सुई, घोल बनाने हेतु मिटटी के बर्तन और कताई-बुनाई से संबंधित सामान यहाँ के उद्योगों के विभिन्न चरणों की रूपरेखा को दर्शाते हैं।

तमिल-ब्राह्मी लिपि (Tamil-Brahmi Script)

  • सर्वप्रथम तमिलों द्वारा प्रयोग की गई लिपि ब्राह्मी थी।
  • प्रारंभिक मध्यकाल से तमिलों ने एक नई कोणीय लिपि का प्रयोग शुरू किया जिसे ग्रंथ लिपि (Grantha Script) कहा गया। इस ग्रंथ लिपि से ही आधुनिक तमिल शब्द निकला है।

वैगई नदी (Vaigai River)

  • वैगई नदी पूर्व दिशा में प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  • वैगई नदी बेसिन, कावेरी और कन्याकुमारी के मध्य अवस्थित 12 महत्त्वपूर्ण बेसिनों में से एक है।
  • इसका नदी बेसिन पूर्व में पाक जल-डमरू-मध्य और पश्चिम में कार्डमम तथा पालनी पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

संगम काल (Sangam Age)

  • संगम, संस्कृत शब्द संघ का तमिल रूप है जिसका अर्थ होता है लोगों का समूह या संघ।
  • तमिल संगम कवियों का एक शैक्षणिक समुदाय था जिन्होंने पांड्य राजाओं के काल में भिन्न जगहों पर तीन संगमों का आयोजन किया।
  • संगम साहित्य जो कि तीसरे संगम से मिलता था। यह ईसाई युग (Christian Era) से जुड़े लोगो की जीवनशैली की जानकारी प्रदान करता है।
  • संगम साहित्य सार्वजनिक और सामाजिक कार्यकलापों से संबंधित धर्मनिरपेक्ष मामलों जैसे प्रशासनिक कार्य, युद्ध दान, व्यापार, उपासना और कृषि आदि से संबंधित जानकारियाँ प्रदान करता है।
  • संगम साहित्य में 10 कविताएंँ- पट्टूपट्टू (Pattupattu), 08 संकलन- एत्तुतोगाई (Ettutogai) और तीन महाकाव्य शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारत में ‘मर्सिया’ कविता की परंपरा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने नई दिल्ली में 'दास्तान-ए-मर्सिया: कर्बला से काशी तक' समारोह को संबोधित करते हुए उर्दू कविता की मर्सिया परंपरा की प्रशंसा कर इसे 'अदब' (साहित्य) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बताया।

उर्दू कविता की मर्सिया विधा

  • मर्सिया कविता साहित्यिक अभिव्यक्ति का एक रूप है जिसका शिया मुसलमानों के लिये विशेष महत्त्व है।
  • कर्बला के ऐतिहासिक युद्ध में इमाम हुसैन के व्यक्तित्व और उनकी शहादत को समर्पित मर्सिया कविता का पाठ प्राय: मुहर्रम के महीने में किया जाता है।
  • मर्सिया शब्द का अर्थ है शोक-गीत (Elegy) अर्थात् ये मृतकों की याद में लिखे गए शोक गीत होते है।
  • मर्सिया को आमतौर पर संगीत और कविता के संयोजन से भारतीय रागों पर गाया जाता है।
  • उर्दू साहित्य में मर्सिया को मुख्य रूप से पैगंबर के दोहिते इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की प्रशंसा में लिखा गया है, जो 680 ईस्वी में कर्बला (वर्तमान इराक में) की लड़ाई में मारे गए थे।
  • मर्सिया कविता का ऐसा रूप है जिसमें न केवल इमाम हुसैन की शहादत और अन्य घटनाओं का ज़िक्र है बल्कि इसमें क्षमा और करुणा जैसे नैतिक आदर्शों एवं व्यवहार की भी चर्चा है।

मर्सिया परंपरा का विकास

  • मर्सिया परंपरा का प्रारंभ पहले दिल्ली और दक्कन में हुआ लेकिन लखनऊ के नवाबों के संरक्षण में यह अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गई।
  • नवाबों ने पतनशील मुगल सत्ता के समय 18वीं और 19वीं शताब्दी में इस कला को प्रोत्साहित किया।
  • 19वीं शताब्दी के मीर अनीस और मिर्ज़ा दाबीर मर्सिया के सबसे प्रतिष्ठित कवि हैं जिन्होंने छह-पंक्ति वाली छंद रचना को बढ़ावा दिया।
  • मर्सिया 7वीं शताब्दी के अरब की घटनाओं के चित्रण के लिये भी महत्त्वपूर्ण है जो दक्षिण एशिया में दर्शकों के बीच इसे लोकप्रिय बना सकता है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


मृदा अपरदन को मापने के लिये नई विधि

चर्चा में क्यों

देहरादून अवस्थित ICAR- भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के शोधकर्त्ताओं ने मृदा अपरदन और मृदा में कार्बन तत्त्व की कमी के मापन हेतु एक नई विधि का विकास किया है। इस विधि से प्राप्त परिणाम करंट साइंस (Current Science) नामक जर्नल में प्रकाशित किये गए हैं।

पृष्ठभूमि

  • मृदा का निर्माण प्राकृतिक तत्त्वों द्वारा एक लंबी कालावधि में होता है। मृदा पेड़-पौधों, कीड़ों और सूक्ष्म जीवों को आधार प्रदान करती है।
  • सूक्ष्म जीवों की अपक्षयित वनस्पति पर क्रिया के माध्यम से कार्बन मृदा तक पहुँचता है और यह मृदा के भौतिक-रासायनिक गुणों को बदल कर इसकी उर्वरता को भी बढ़ाता है।
  • इस तरह से मृदा कार्बन अधिग्रहण (Carbon Sequestration) के द्वारा वातावरण में कार्बन के स्तर को विनियमित करने में भी सहायता करती है।
  • प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियों के कारण मृदा अपरदन से खाद्य सुरक्षा पर संकट एवं जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ गंभीर होती जा रही हैं।
  • इसलिये मृदा अपरदन और इसके कारण कार्बन क्षय की मॉनीटरिंग करना आवश्यक है।

क्या है नई विधि?

  • पहले के अध्ययनों से यह स्थापित किया गया था कि मृदा में कार्बन सांद्रता का सीज़ियम के समस्थानिक की सांद्रता के साथ सहसंबंध है।
  • इसका उपयोग वैज्ञानिकों ने पश्चिमोत्तर हिमालय में अवस्थित दून घाटी में मिट्टी के कटाव के विस्तार का अध्ययन करने हेतु किया था।
  • अध्ययन के लिये दून घाटी को इसलिये चुना गया था क्योंकि यहाँ अपरदन से प्रभावित और अप्रभावित दोनों प्रकार की साइट्स एक-दूसरे से पर्याप्त दूरी पर मौजूद हैं।
  • भारतीय वैज्ञानिकों ने रेडियोएक्टिव सीज़ियम के स्तर के आकलन द्वारा मिट्टी में कटाव की दर और कार्बनिक सामग्री में कमी को मापने के लिये गामा स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक (Gamma Spectroscopy Technique) का इस्तेमाल किया।
  • विभिन्न साइट्स पर मृदा अपरदन के भिन्न-भिन्न स्तरों पर मृदा में सीज़ियम के अलग-अलग स्तर चिह्नित किये गए।
  • विभिन्न फॉर्मूलों द्वारा सीज़ियम की सांद्रता में कमी की गणना का उपयोग मृदा अपरदन और इससे हुई कार्बन की हानि के आकलन के लिये किया गया।
  • इस अध्ययन द्वारा 8 मेगा ग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष वाले कम अपरदित स्थानों से लेकर 31 मेगा ग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष वाले गंभीर रूप से अपरदित स्थानों की पहचान की गई।
  • पारंपरिक तकनीकों के माध्यम से प्राप्त परिणामों ने भी इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों की पुष्टि की है।

नई विधि के लाभ

  • अत्यधिक गहन कृषि भूमि (Severely Intensive Croplands) में मृदा अपरदन के अध्ययन हेतु रेडियोएक्टिव सीज़ियम के स्तर को मापने के लिये यह एक तीव्र और कम खर्चीली विधि है।
  • यह ऐतिहासिक, तुलनात्मक और दीर्घकालिक मृदा अपरदन और मृदा में जैविक कार्बन क्षरण सहित सभी प्रकार के कटाव अध्ययनों के लिये अधिक सटीक परिणाम देती है।
  • मृदा अपरदन से मृदा के जैविक अंश में कमी आती है और अंततः इसकी उर्वरता में कमी हो जाती है। यह विधि मृदा अपरदन के प्रभावों और मृदा संरक्षण रणनीतियों की प्रभावशीलता की मॉनीटरिंग में सहायक हो सकती है।
  • हालाँकि सीज़ियम के प्रयोग के प्रमाणीकरण के लिये विभिन्न भू-परिदृश्यों और भूमि उपयोग संबंधी बड़े डेटाबेस की आवश्यकता है, ताकि विभिन्न प्रकार की भूमियों की कार्बन अधिग्रहण क्षमता का मापन किया जा सके।

क्या है मृदा अपरदन?

Soil

  • बहते हुए जल या वायु के प्रवाह द्वारा मृदा के विघटन तथा एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानातंरण को मृदा अपरदन कहा जाता है।

अपरदन प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं-

Soil Partition

  • देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 57% भाग मृदा ह्रास के विभिन्न प्रकारों से प्रभावित है। जिसका 45% जल अपरदन से तथा शेष 12% भाग वायु अपरदन से प्रभावित है।

भारत में मृदा अपरदन के मुख्य कारण

  • वृक्षों की अविवेकपूर्ण कटाई।
  • वानस्पतिक आवरण में कमी।
  • वनों में आग लगना।
  • भूमि को बंजर/खाली छोड़कर जल व वायु अपरदन के लिये प्रेरित करना।
  • मृदा अपरदन को तेज़ करने वाली फसलों को उगाना।
  • त्रुटिपूर्ण फसल चक्र अपनाना।
  • ढलान की दिशा में कृषि कार्य करना।
  • सिंचाई की त्रुटिपूर्ण विधियाँ अपनाना।

मृदा संरक्षण के उपाय

  • समोच्च जुताई
  • पट्टीदार खेती
  • भू-परिष्करण प्रक्रियाएँ (टिलेज प्रैक्टिसेज़)
  • वायु अवरोधक व आश्रय आवरण
  • समोच्च बांध
  • श्रेणीबद्ध बांध
  • वृहत् आधार वाली वेदिकाएँ
  • सीढ़ीनुमा वेदिकाएँ

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


फॉरेस्ट-प्लस 2.0 कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) और भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने 25 सितंबर, 2019 को आधिकारिक तौर पर फॉरेस्ट-प्लस 2.0 (Forest-PLUS 2.0) कार्यक्रम लॉन्च कर दिया है।

पृष्ठभूमि

  • फॉरेस्ट-प्लस 2.0, टिकाऊ वन परिदृश्य प्रबंधन के उद्देश्य पर आधारित पायलट प्रोजेक्ट्स फॉरेस्ट-प्लस का दूसरा संस्करण है, जिसने 2017 में अपने पाँच साल पूरे किये हैं।
  • इसका उद्देश्य ‘निर्वनीकरण एवं वन निम्नीकरण से होने वाले उत्सर्जन में कटौती’ (REDD +) में भाग लेने हेतु भारत की क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना था।
  • इसमें सिक्किम, रामपुर, शिवमोग्गा और होशंगाबाद के चार पायलट प्रोजेक्ट शामिल थे।
  • इसके अंतर्गत वन प्रबंधन के लिये क्षेत्र परीक्षण, नवीन उपकरण और दृष्टिकोण विकसित किया गया।
  • सिक्किम में जैव-ब्रिकेट्स (Bio-Briquettes) का संवर्द्धन, रामपुर में सौर ताप प्रणाली की शुरुआत और होशंगाबाद में एक कृषि- वानिकी मॉडल का विकास इस कार्यक्रम की कुछ उपलब्धियाँ थीं।
  • बायो-ब्रिकेट्स विकासशील देशों में प्रयोग किया जाने वाले कोयला और चारकोल का जैव-ईंधन विकल्प हैं।

फॉरेस्ट-प्लस 2.0

  • यह दिसंबर 2018 में शुरू किया गया पाँच वर्षीय कार्यक्रम है।
  • यह वन परिदृश्य (Forest Landscape) प्रबंधन हेतु पारितंत्र प्रबंधन और पारिस्थितिकीय सेवाओं के संवर्द्धन के लिये उपकरणों और तकनीकों का विकास करने पर केंद्रित है।
  • अमेरिका की एक परामर्शदात्री और इंजीनियरिंग कंपनी टेट्रा टेक ARD को कार्यक्रम लागू करने का दायित्व सौंपा गया है और नई दिल्ली स्थित IORA इकोलॉजिकल सॉल्यूशंस नामक पर्यावरण सलाहकार समूह इसका कार्यान्वयन भागीदार है।
  • फॉरेस्ट-प्लस 2.0 में तीन भू-परिदृश्यों (Landscapes) में पायलट प्रोजेक्ट्स शामिल हैं - बिहार में गया, केरल में तिरुवनंतपुरम और तेलंगाना में मेडक।
  • इन स्थलों का चयन उनके भू-परिदृश्यों में विविधता के आधार पर किया गया है।
  • बिहार एक वनाभाव वाला क्षेत्र है, तेलंगाना अपेक्षाकृत एक सूखा क्षेत्र है जहाँ सामुदायिक आजीविका संवृद्धि की पर्याप्त संभावना है और केरल जैव-विविधता से समृद्ध है।

फॉरेस्ट-प्लस 2.0 के लक्ष्य

  • 1,20,000 हेक्टेयर भूमि का बेहतर प्रबंधन।
  • 12 मिलियन डॉलर मूल्य की नई और समावेशी आर्थिक गतिविधियाँ।
  • 800,000 घरों को लाभान्वित करना।
  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये भू-परिदृश्य के प्रबंधन में तीन प्रोत्साहन तंत्रों का प्रदर्शन।

इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कार्यक्रम की कार्रवाई के तीन केंद्रबिंदु निम्नलिखित हैं-

  1. वन प्रबंधन में कई सेवाओं के लिये उपकरण विकसित करना। जैसे स्वचालित वन नियोजन प्रक्रियाओं और मॉडल वन प्रबंधन योजनाओं के लिये नवाचारी एप्स। परिणामस्वरूप जल प्रवाह और गुणवत्ता, आजीविका एवं वनाश्रित समुदायों के लचीलेपन आदि में सुधार होने की आशा है।
  2. वित्तीयन का लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहन-आधारित उपकरणों का विकास करना। उदाहरण के लिये ऐसे भुगतान तंत्र का विकास जिसमे एक नगरपालिका या उद्योग डाउनस्ट्रीम जल के उपयोग के लिये अपस्ट्रीम वन समुदायों को भुगतान करे ताकि वनों का बेहतर संरक्षण हो सके।
  3. वनों पर निर्भर लोगों के लिये आर्थिक अवसरों के सृजन हेतु मॉडल्स और संरक्षण उद्यमों की स्थापना करना तथा निजी क्षेत्र से निवेश जुटाना।

स्रोत : टाइम्स ऑफ इंडिया


गोल्डस्मिथिडाइट

चर्चा में क्यों?

दक्षिण अफ्रीका में एक खदान से निकले हीरे के अंदर एक नया खनिज गोल्डस्मिथिडाइट (Goldschmidtite) खोजा गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इसे दक्षिण अफ्रीका के कोफीएफोंटेन पाइप (Koffiefontein Pipe) नामक हीरे की खदान से निकाला गया है।
  • यह गहरे हरे रंग का अपारदर्शी खनिज है, जिसे हीरे के अंदर पाया गया है।
  • इसका रासायनिक फॉर्मूला KNbO3 है।
  • आधुनिक भू-रसायन विज्ञान के पिता विक्टर मोरित्ज गोल्डस्मिड्ट के सम्मान में इस खनिज का नाम रखा गया है।
  • माना जा रहा है कि यह हीरा मेंटल में लगभग 105 मील नीचे गहराई पर बना है।
  • शोधकर्त्ताओं ने कहा कि यह रसायन शास्त्र का एक अनूठा रिकॉर्ड प्रस्तुत करता है; जो ग्रह के गहरे, प्राचीन हिस्सों के अंदर है।
  • गोल्डस्मिथिडाइट में नाइओबियम (Niobium), पोटैशियम (Potassium) तथा पृथ्वी में पाए जाने वाले दुर्लभ तत्त्वों लैंथेनम (Lanthanum) और सीरियम (Cerium) की उच्च सांद्रता है, जबकि मेंटल में मैग्नीशियम (Magnesium) और आयरन (Iron) जैसे तत्त्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
  • मेंटल लगभग 1802 मील (2900 किलोमीटर) मोटी परत है। यहाँ पर अत्यधिक ताप एवं दाब की स्थिति पायी जाती है जिससे वैज्ञानिकों के लिए इसका अध्ययन करना मुश्किल हो जाता है।
  • मेंटल में अत्यधिक ताप एवं दाब के कारण यह अंदर जमे हुए कार्बन को हीरे में बदलने में सहायक है।

मेंटल (Mantle): क्रस्ट के नीचे का भाग मेंटल कहलाता है। इसमें पृथ्वी का अधिकांश आयतन पाया जाता है। इसका औसत घनत्व 4.5 है, इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह भाग भारी चट्टानों से निर्मित है। इस भाग में ऑक्सीजन और सिलिका की अधिकता पाई जाती है। इस भाग में भूकंपीय लहरों की गति 7.9 किलोमीटर प्रति सेकंड के स्थान पर 8.1 किलोमीटर प्रति सेकंड हो जाती है।

भूकंपीय लहरों की गति के आधार पर मेंटल को दो भागों में विभाजित किया जाता है:

1) ऊपरी मेंटल (Upper Mantle): क्रस्ट के निचले भाग से ऊपरी मेंटल के मध्य भूकंपीय लहरों की गति में परिवर्तन हो जाता है, जिससे गति मंद पड़ जाती है। अतः क्रस्ट और ऊपरी मेंटल के मध्य असंबद्धता की स्थिति होती है। इसकी खोज सर्वप्रथम ए. मोहोरोविसिस ने 1909 में की थी। अत: इसे मोहो असंबद्धता भी कहते हैं अथवा केवल मोहो (Moho) भी कहा जाता है।

2) निम्न मेंटल (Lower Mantle): निम्न मेंटल के परत की मोटाई 700 किलोमीटर मानी गई है। अन्य मतानुसार इसकी मोटाई मोहो असंबद्धता से 1,000 किमी. से 2,900 तक किलोमीटर मानी गई है। इस भाग में तापमान अधिक रहता है। इस भाग में प्रवाहित S भूकंपीय लहरों से पता चला है कि यह निश्चित रूप से ठोस भाग है। घनत्व में क्रमशः वृद्धि और भूकंपीय लहरों की तीव्रता का मुख्य कारण इस भाग में दबाव की अधिकता है। अधिक गहराई पर अधिक दबाव की स्थिति रहती है, यहाँ सिलीकेट खनिजों में लोहे की मात्रा गहराई के साथ बढ़ती जाती है जिससे इस भाग का घनत्व अधिक हो गया है। ऊपरी मेंटल और निम्न मेंटल के मध्य 300 किलोमीटर चौड़ी संक्रमण परत (Transition Zone) पाई जाती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


ग्रामीण स्वच्छता रणनीति (2019-2029)

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (Department of Drinking Water and Sanitation- DDWS) ने 10 वर्षीय ग्रामीण स्वच्छता रणनीति (2019-2029) प्रारंभ की है|

संदर्भ:

  • भारत सरकार का उद्देश्य 2 अक्तूबर 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर उन्हें कार्यांजलि के रूप में भारत को पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त (Open Defecation Free-ODF) घोषित करना है| इसी संदर्भ में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने और इन लाभों को आगे भी समावेशी रूप से बनाए रखने के लिये इस 10 वर्षीय रणनीति को प्रारंभ किया गया है|
  • राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी गई है कि कोई भी पीछे न रहे और अगर किसी घर में शौचालय नहीं है, तो उसे प्राथमिकता के आधार पर शौचालय बनाने की सुविधा दी जाए|
  • वर्ष 2014 में स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (Swachh Bharat Mission-Gramin- SBM-G) के लॉन्च होने के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 10 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए जा चुके हैं तथा 5.9 लाख से अधिक गाँवों, 699 ज़िलों और 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है|

Clean India

मुख्य बिंदु :

  • यह रणनीति भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (Department of Drinking Water and Sanitation- DDWS) द्वारा राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के परामर्श से तैयार की गई है|
  • इस रणनीति के तहत ‘ODF-प्लस’ (ODF-Plus/ODF+) योजना हेतु स्थानीय सरकारों, नीति निर्माताओं, कार्यान्वयनकर्त्ताओं और अन्य संबंधित हितधारकों के मार्गदर्शन के लिये एक रूपरेखा तैयार की गई है|
  • इस रणनीति में विकास के भागीदारों (Development Partners), नागरिक समाज (Civil Society) और अंतर-सरकारी भागीदारी (Inter-Government Partnerships) के साथ संभावित सहयोग के संदर्भ में भी उल्लेख किया गया है|
  • यह 10 वर्षीय रणनीति स्वच्छता हेतु वित्तपोषण के अभिनव मॉडलों (Innovative Models) पर भी प्रकाश डालता है|

ODF के तहत मानदंड

  • मार्च 2016 में जारी किये गए मूल ODF प्रोटोकॉल में कहा गया है कि "एक शहर / वार्ड को ODF शहर / वार्ड के रूप में अधिसूचित किया जाता है, अगर दिन के किसी भी समय, एक भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं करता है|"
ODF

ODF+ के तहत मानदंड

  • ODF + प्रोटोकॉल में कहा गया है - “एक शहर, वार्ड या कार्यक्षेत्र को ODF+ घोषित किया जा सकता है, यदि किसी दिन किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच और/या पेशाब करते हुए नहीं पाया जाता है और सभी सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालय कार्यात्मक अवस्था में एवं सुव्यवस्थित हैं|"
  • उन शहर और कस्बों को ODF+ के अंतर्गत रखा जाता है, जो पहले ही आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) द्वारा निर्धारित ODF प्रोटोकॉल के अनुसार ODF स्थिति प्राप्त कर चुके हैं और शौचालय सुविधाओं के उचित रख-रखाव के लिये ODF स्थिति की निरंतरता सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहे हैं|

ODF++ के तहत मानदंड

  • ODF ++ प्रोटोकॉल इस शर्त को जोड़ता है कि "मल कीचड़/सेप्टेज (Faecal sludge/Septage) और नालियों का सुरक्षित रूप से प्रबंधन और उपचार किया जाए, जिसमें किसी प्रकार के अनुपचारित कीचड़/सेप्टेज (Sludge/Septage) और नालियों की निकासी जल निकायों या खुले क्षेत्रों के नालों में नहीं होती है|"
  • ODF ++ में सभी के लिये सुरक्षित स्थायी स्वच्छता प्राप्त करने हेतु ODF+ के प्रोटोकॉल के अलावा सभी संग्रहणीय मल और सीवेज के सुरक्षित संग्रहण, परिवहन, उपचार और निपटान शामिल हैं| यह शहरों में स्वच्छता की निरंतर स्थिरता के लिये उल्लेखनीय कदम है|

स्रोत : PIB, द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (28 September)

  • दुनिया भर में विश्व नदी दिवस (World Rivers Day) प्रतिवर्ष सितंबर के अंतिम रविवार को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 2005 से हुई। तब संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक जल संसाधनों की बेहतर देखभाल की आवश्यकता के बारे में अधिक से अधिक जागरूकता पैदा करने में मदद करने के लिये वाटर फॉर लाइफ डिकेड लॉन्च किया। इसके बाद विश्व नदी दिवस मनाने की शुरूआत की गई। भारत में अधिकांश नदियों की स्थिति बहुत खराब है। नदियों का स्वरूप बरकरार रखने के लिये वर्ष 1987 में पहली राष्ट्रीय जल नीति बनाई गई। इस वर्ष विश्व नदी दिवस की थीम नदियों के लिये कार्रवाई का दिन (Day of Action for Rivers) रखी गई है जो नदियों की रक्षा और प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका के महत्त्व को दर्शाती है।
  • प्रत्येक वर्ष 27 सितंबर को दुनियाभर में विश्व पर्यटन दिवस (World Tourism Day) मनाया जाता है। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1980 में की थी। विश्व पर्यटन दिवस मनाने का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को पर्यटन के प्रति जागरूक करना है। प्रत्येक वर्ष अलग-अलग देश विश्व पर्यटन दिवस की मेजबानी करते हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन ने पहली बार विश्व पर्यटन दिवस की मेज़बानी भारत को सौंपी है। इस वर्ष विश्व पर्यटन दिवस की थीम- पर्यटन और रोज़गार: सभी के लिये बेहतर भविष्य (Tourism and Jobs: A Better Future for All) रखी गई है।
  • 27 सितंबर को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने अपना 15वाँ स्थापना दिवस समारोह आयोजित किया। इस वर्ष की थीम अग्नि सुरक्षा (Fire Safety) है। इस मौके पर आयोजित कार्यशाला में हितधारकों ने देश में आगजनी जोखिम, इसकी रोकथाम और समाप्ति तथा आगजनी जोखिम को कम करने से संबंधित महत्त्वपूर्ण विषयों एवं संस्थागत चुनौतियों पर चर्चा की। विदित हो कि राष्ट्रीय प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2016 में लाई गई राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को आपदा जोखिम में कमी के बारे में सेंडई रूपरेखा 2015-30 से जोड़ा गया है और इसे कम करने के नियंत्रण के उपायों पर बल दिया गया है। 23 दिसंबर, 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 अधिनियमित किया, जिसके तहत ‘NDMA एवं राष्ट्रीय आपदा मोचन बल NDRF का गठन किया गया। NDMA पर देश में आपदा प्रबंधन के लिये नीतियों, योजनाओं एवं दिशा-निर्देश तय करने का दायित्व है, जो आपदाओं के समय प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है। भारत का प्रधानमंत्री NDMA का अध्यक्ष होता है।
  • थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने वर्तमान अध्‍यक्ष एयर चीफ मार्शल बीरेंद्र सिंह धनोआ के स्थान पर चीफ ऑफ स्‍टॉफ कमेटी (COSC) का अध्‍यक्ष पद ग्रहण किया। COSC के वर्तमान अध्‍यक्ष एयर चीफ मार्शल बीरेंद्र सिंह धनोआ को 31 मई, 2019 को इसका अध्‍यक्ष नियुक्‍त किया गया था। चीफ ऑफ स्‍टॉफ कमेटी केे अध्‍यक्ष के तौर पर जनरल बिपिन रावत तीनों सेनाओं के बीच एकीकरण को बढ़ावा देने, सेनाओं की समकालिक प्रगति को प्रोत्‍साहन देने, आधुनिक युद्ध कौशल क्षमताओं का त्‍वरित संचालन करने और उन्‍हें समकालिक बनाने पर ध्‍यान केंद्रित करेंगे ताकि सशस्‍त्र बलों को भविष्‍य के लिये बेहतर ढंग से सुसज्जित किया जा सके।
  • हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के कार्यकारी बोर्ड ने क्रिस्टालिना जॉर्जीएवा (Kristalina Georgieva) को संस्था का नई प्रबंध निदेशक तथा कार्यकारी बोर्ड की अध्यक्ष नियुक्त किया है। बुल्गारिया की जॉर्जीएवा ने क्रिस्टीन लागार्द का स्थान लिया है। जॉर्जीएवा का चयन 189 देशों के सदस्यों वाली संस्था के 24 सदस्यीय कार्यकारी बोर्ड ने किया है। इनकी नियुक्ति 1 अक्तूबर से प्रभावी होगी। जॉर्जीएवा जनवरी 2017 से विश्व बैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रही है। इसी वर्ष वह 1 फरवरी से 8 अप्रैल तक विश्व बैंक समूह की अंतरिम अध्यक्ष भी रही है। इससे पहले वह यूरोपीय आयोग में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, मानवीय सहायता एवं आपदा प्रतिक्रिया के आयुक्त के रूप में भी कार्य कर चुकी हैं।
  • फ्राँस के पूर्व राष्ट्रपति जाक शिराक का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मध्यमार्गी दक्षिणपंथी राजनेता शराक वर्ष 1995 से 2007 तक 12 साल तक फ्राँस के राष्ट्रपति रहे। उनके प्रमुख राजनीतिक निर्णयों में से एक राष्ट्रपति पद के कार्यकाल को सात वर्ष से घटाकर पाँच वर्ष करना था। राष्ट्रपति बनने से पहले वह 18 वर्ष तक पेरिस के मेयर और दो बार देश के प्रधानमंत्री भी रहे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें अमेरिका के नेतृत्व में वर्ष 2003 में हुए इराक पर हमले का विरोध करने के लिये जाना जाता था।