डेली न्यूज़ (26 Mar, 2020)



टोक्यो ओलंपिक 2020 स्थगित

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति, टोक्यो ओलंपिक 2020, कोरोनोवायरस

मेन्स के लिये:

COVID-19 तथा वैश्विक आयोजनों पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (International Olympic Committee- IOC) ने वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण टोक्यो ओलंपिक-2020 (ग्रीष्मकालीन) खेलों को वर्ष 2021 के मध्य तक स्थगित करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • कोरोनोवायरस की महामारी को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे कुछ प्रमुख राष्ट्रों द्वारा टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics-2020) से हट जाने के बाद IOC ने यह निर्णय लिया है।
  • कई राष्ट्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं पर नियंत्रण, प्रशिक्षण में कठिनाई और बीमारी फैलने के जोखिम के कारण यह फैसला लिया गया है।
  • ज्ञातव्य है कि इससे पहले वर्ष 1916, 1940 एवं 1944 में विश्व युद्ध के कारण इन खेलों को रद्द किया गया था।
  • वर्ष 1940 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापान ओलंपिक की मेजबानी करने वाला था किंतु एशिया में सैन्य आक्रामकता के कारण जापान में होने वाले ओलंपिक को रद्द कर दिया गया था।

आर्थिक लागत:

  • ओलंपिक खेलों की मेजबानी हेतु टोक्यो का बजट 12.6 बिलियन डॉलर था किंतु स्थगन के कारण इसपर अतिरिक्त 6 बिलियन डॉलर की लागत आने की संभावना है।
  • यह प्रायोजकों और प्रमुख प्रसारकों के लिये एक झटका होगा, जो राजस्व हेतु विज्ञापनों के लिये चार-वर्ष से इस पर आश्रित थे। 

पृष्ठभूमि:

  • उत्पत्ति (Origin) :
    • ओलंपिक खेलों की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीस में हुई थी और ये धार्मिक उत्सव का एक आंतरिक हिस्सा था।
    • यह ग्रीस के ओलंपिया में ज़ीउस (Zeus) (ग्रीक धर्म के सर्वोच्च देवता) के सम्मान में आयोजित किया जाता  था।
  • अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (International Olympic Committee-IOC):
    • वर्ष 23 जून, 1894 को IOC की स्थापना की गयी थी और यह ओलंपिक का सर्वोच्च प्राधिकरण है।
    • यह एक गैर-लाभकारी स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो खेल के माध्यम से एक बेहतर विश्व के निर्माण के लिये प्रतिबद्ध है।
    • यह ओलंपिक खेलों के नियमित आयोजन को सुनिश्चित करता है, सभी संबद्ध सदस्य संगठनों का समर्थन करता है और उचित तरीकों से ओलंपिक के मूल्यों को बढ़ावा देता है।
    • वर्ष 1948 से हर चार वर्ष में एक बार ओलंपिक आयोजित होते हैं।

कोरोनोवायरस (coronavirus):

  • WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिन्हित करता है।
  • इसके सामान्य लक्षणों में खाँसी, बुखार और श्वसन क्रिया में रुकावट मुख्य लक्षण हैं।
  • स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिये दिशानिर्देश जारी किये हैं:
    • हाथों को साबुन से धोना चाहिये, अल्कोहल आधारित हैंड रब का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, खांसते और छिंकते समय नाक और मुंह पर रुमाल या टिश्‍यू पेपर से ढँककर रखें।
  • इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने COVID-19 को महामारी घोषित किया है।

स्रोत: द हिंदू


G- 20 वर्चुअल समिट

प्रीलिम्स के लिये:

G- 20 वर्चुअल समिट

मेन्स के लिये:

G- 20 समूह का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

G- 20 समूह के राष्ट्रीय नेताओं द्वारा COVID-19 महामारी से निपटने की दिशा में एक वीडियो सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।  

मुख्य बिंदु:

  • इस आभासी सम्मेलन (Virtual Summit) का नेतृत्त्व सऊदी अरब, जो वर्तमान में (वर्ष 2020 के लिये) इस आर्थिक समूह के अध्यक्ष हैं, कर रहा है । 
  • किसी एक देश को प्रतिवर्ष इसके अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है, जिसे  'G- 20 प्रेसीडेंसी' के रूप में जाना जाता है। अर्जेंटीना द्वारा वर्ष 2018 में तथा जापान द्वारा वर्ष 2019 में G- 20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की गई थी।
  • वर्ष 2020 के सम्मेलन में स्पेन, जॉर्डन सिंगापुर एवं स्विट्ज़रलैंड आमंत्रित देश के रूप में शामिल हो रहे हैं।

शामिल होने वाले प्रमुख समूह व देश:

  • इस G- 20 सम्मेलन में सदस्य राष्ट्रों के अलावा आमंत्रित देश-स्पेन, जॉर्डन, सिंगापुर एवं स्विट्जरलैंड, के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठन- संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations), विश्व बैंक समूह (World Bank Group), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation), विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation), खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development) के नेता शामिल होंगे।
  • वियतनाम दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ का, दक्षिण अफ्रीका अफ्रीकी संघ का, संयुक्त अरब अमीरात खाड़ी सहयोग परिषद तथा रवांडा अफ्रीका के विकास के लिये नई साझेदारी (New Partnership for Africa’s Development) का प्रतिनिधित्व करेगा।

भारत सरकार द्वारा नेतृत्त्व:

  • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा प्रारंभ, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) वीडियो शिखर सम्मेलन के बाद यह दूसरा आभासी नेतृत्त्व शिखर सम्मेलन (Virtual Leadership Summit) होगा।
  • 15 मार्च 2020 को ‘सार्क आभासी शिखर सम्मेलन’ का आयोजन ‘सार्क COVID-19 आपातकालीन फंड’ के निर्माण हेतु किया गया था। 
  • G- 20 आभासी शिखर सम्मेलन का आयोजन COVID-19 का सामना करने के लिये विस्तृत योजना बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।

G- 20 समूह:

  • वर्ष 1997 के वित्तीय संकट के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच पर एकत्रित होना चाहिये। 
  • G-20 समूह की स्थापना वर्ष 1999 में 7 देशों-अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्राँस और इटली के विदेश मंत्रियों द्वारा की गई थी। 

G-20 का उद्देश्य:

  • G-20 का उद्देश्य वैश्विक वित्त को प्रबंधित करना है।

शामिल देश:

  • इस फोरम में भारत समेत 19 देश तथा यूरोपीय संघ भी शामिल है। जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

G20-Member

G- 20 मुख्यालय:

  • G- 20 एक मंच के रूप में कार्य करता है न कि एक संगठन के रूप में, अत: इसका कोई स्थायी सचिवालय और प्रशासनिक संरचना नहीं है।

नेतृत्त्व संबंधी चुनौतियाँ: 

  • सऊदी अरब ने हाल ही में उदारीकरण अभियान को बढ़ावा दिया है, जिसमें महिलाओं को अधिक से अधिक अधिकार देना शामिल है। हालाँकि, पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या जैसी घटनाओं ने सऊदी अरब में मानवाधिकार के मुद्दों पर गहन वैश्विक आलोचना की गई।
  • G- 20 सदस्य राज्यों को अपनी आधिकारिक नीतियों द्वारा सऊदी अरब पर दबाव डालना चाहिये और इसे अपने मानवाधिकारों के दायित्त्वों के लिये जिम्मेदार ठहराना चाहिये। 

वर्तमान में विश्व के किसी भी देश में COVID-19 के उपचार की दवा की खोज नहीं की जा सकी है, ऐसे में इस इस बीमारी से निपटने के लिये सभी देशों को सार्क COVID-19 आपातकालीन फंड के समान एक आपातकालीन फंड निर्माण की दिशा में कार्य करना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 के लिये इस्तेमाल हो सकता है MPLADS कोष

प्रीलिम्स के लिये:

सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना

मेन्स के लिये:

सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, कोविड-19 (COVID-19) के प्रसार को रोकने हेतु सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation-MoSPI) ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (Members of Parliament Local Area Development Scheme-MPLADS) के दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • MPLADS के दिशा-निर्देशों में संशोधन के तहत सांसद अब MPLADS के अंतर्गत आने वाली निधि को निम्नलिखित कार्यों में उपयोग कर सकते हैं:
    • चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मचारियों को एक व्यक्ति का तापमान रिकॉर्ड करने और नजर बनाए रखने में सक्षम बनाने हेतु इन्फ्रा-रेड थर्मामीटर्स (Infra-Red Thermometers)।
    • चिकित्सा कर्मचारियों को ज्यादा सुरक्षित करने और उन्हें कुशलता से काम के लिये सक्षम बनाने हेतु व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protection Equipment-PPE) की व्यवस्था, जिससे बीमारी के प्रसार का जोखिम न्यूनतम हो जाए।
    • रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डों और प्रवेश के अन्य बिंदुओं पर थर्मल इमेजिंग स्कैनर या कैमरा (Thermal Imaging Scanners or Cameras) लगाना, जिससे एक सुरक्षित दूरी से तापमान जानना संभव हो सके।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry Of Health and Family Welfare) द्वारा स्वीकृत कोरोना परीक्षण किट।
    • स्वीकृत सुविधाओं के भीतर आईसीयू वेंटिलेटर (ICU Ventilator) और आइसोलेशन/ क्वारंटीन (Isolation/ Quarantine) वार्ड की स्थापना।
    • चिकित्सा कर्मचारियों के लिये फेस मास्क, दस्ताने और सैनिटाइज़र।
    • कोविड-19 से बचाव, नियंत्रण और उपचार के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा स्वीकृत कोई अन्य चिकित्सा उपकरण।

सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना

(Members of Parliament Local Area Development Scheme):

  • पृष्ठभूमि:
    • MPLADS 23 दिसंबर, 1993 को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू की गई थी।
    • सांसदों को ऐसा तंत्र उपलब्ध कराया जा सके जिससे वे स्थानीय लोगों की ज़रूरतों के अनुसार स्थायी सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण और सामुदायिक बुनियादी ढाँचा सहित उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये विकास कार्यों की सिफारिश कर सकें।
    • यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा फरवरी 1994 में पहली बार जारी किये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार संचालित की जाती है एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा इस योजना को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को हस्तांतरित करने के बाद दिसंबर 1994 में संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये गए।
    • इन दिशा-निर्देशों में फरवरी 1997, सितंबर 1999, अप्रैल 2002, नवंबर 2005, अगस्त 2012 और मई 2014 में पुनः संशोधन किये गए।
    • दिशा-निर्देशों को संशोधित करते समय सांसदों, सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना से संबंधित राज्यसभा और लोकसभा की समितियों, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक तथा तत्कालीन योजना आयोग (अब नीति आयोग) के कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन, सभी हितधारकों के सुझावों और विगत वर्ष के कार्य अनुभवों को ध्यान में रखा गया है।
  • उद्देश्य:
    • सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना केंद्र सरकार की योजना है जिसके लिये आवश्यक निधि पूर्णतः भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। यह निधि सहायता अनुदान के रूप में सीधे ज़िला प्राधिकारियों को जारी की जाती है।
    • योजना के अंतर्गत ऐसे कार्य शामिल किये जाते है जो विकासमूलक, स्थानीय ज़रूरतों पर आधारित, जनता के उपयोग के लिये हमेशा सुलभ हों। इस योजना के तहत राष्ट्रीय तौर पर प्राथमिक कार्यों को वरीयता दी जाती है, जैसे- पेयजल उपलब्ध कराना, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, सड़क इत्यादि।
    • इस योजना के अंतर्गत जारी की गई निधि अव्यपगत होती है यानी अगर कोई देय निधि किसी वर्ष विशेष में जारी नहीं होती, तो उसे आगे के वषों में पात्रता के अनुसार आवंटित राशियों में जोड़ दिया जाता है। इस समय, प्रति सांसद/निर्वाचन-क्षेत्र के लिये वार्षिक पात्रता 5 करोड़ रुपए है।
    • इस योजना के तहत सांसदों की भूमिका संस्तुतिपरक है। वे संबंधित ज़िला प्राधिकारियों को अपनी  पसंद के कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं जो संबंधित राज्य सरकार की स्थापित कार्यविधियों का पालन करते हुए इन कार्यों को कार्यान्विति करते है।
    • ज़िला प्राधिकारियों को कार्यों की पात्रता की जाँच करने, निधि मंज़ूर करने और कार्यान्वयन अभिकरणों का चयन, कार्यों की प्राथमिकता का निर्धारण और समग्र निष्पादन की देखरेख करने और जमीनी स्तर पर योजना की मॉनीटरिंग करने का अधिकार प्राप्त है। ज़िला प्राधिकारी संबंधित विभागों, स्थानीय कार्यान्वयन अभिकरणों या अन्य सरकारी अभिकरणों के कार्यों को निष्पादित करवाते है। कुछ मामलों में ज़िला प्राधिकारी प्रतिष्ठित गैर-सरकारी संगठनों द्वारा कार्य संपन्न कराते हैं।

स्रोत: पीआईबी


सिक्किम के ग्लेशियर और जलवायु परिवर्तन

प्रीलिम्स  के लिये

अध्ययन से संबंधित मुख्य  बिंदु

मेन्स के लिये 

जलवायु परिवर्तन से संबंधित बिंदु और सिक्किम के ग्लेशियर पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology-WIHG) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, अन्य हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में सिक्किम के ग्लेशियर बड़े पैमाने पर पिघल रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • साइंस ऑफ द टोटल एन्वायरनमेंट (Science of the Total Environment) नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में वर्ष 1991-2015 की अवधि के दौरान सिक्किम के 23 ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया गया।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1991 से 2015 तक की अवधि के दौरान सिक्किम के ग्लेशियर काफी पीछे खिसक गए हैं और उनकी बर्फ पिघलती जा रही है। 
  • जलवायु परिवर्तन को सिक्किम के ग्लेशियर में हो रहे परिवर्तन का मुख्य कारण पाया गया है, जलवायु परिवर्तन के कारण सिक्किम के छोटे आकार के ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं और बड़े ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं।
  • अन्य हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में आयामी परिवर्तन का पैमाना और मलबे की वृद्धि की मात्रा सिक्किम के ग्लेशियरों में काफी अधिक है। 
  • सिक्किम के ग्लेशियरों के व्यवहार में प्रमुख बदलाव वर्ष 2000 के आसपास हुआ था। उल्लेखनीय है कि पश्चिमी और मध्य हिमालयी क्षेत्रों में यह स्थिति काफी विपरीत है, क्योंकि इन क्षेत्रों में हाल के दशकों में ग्लेशियरों के पिघलने की गति धीमी हुई है, जबकि सिक्किम के ग्लेशियरों के पिघलने में वर्ष 2000 के बाद नाममात्र का धीमापन देखा गया है।
  • ग्लेशियर में हो रहे बदलावों का प्रमुख कारण तापमान में वृद्धि हुई है।
  • सिक्किम हिमालयी ग्लेशियरों की लंबाई, क्षेत्र, मलबे के आवरण, हिमतल की ऊंचाई (Snowline Altitude-SLA) जैसे विभिन्न मापदंडों और उन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिये WIHG के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र के 23 प्रमुख ग्लेशियरों का चयन किया, जिसके पश्चात चयनित ग्लेशियरों से संबंधित अध्ययन करते हुए मल्टी-टेम्पोरल (Multi-Temporal) और मल्टी-सेंसर (Multi-Sensor) उपग्रह डेटा प्राप्‍त किये गए।
  • वैज्ञानिकों के समूह ने इन परिणामों का विश्लेषण किया और पहले से मौजूद अध्ययनों के साथ उनकी तुलना की तथा ग्लेशियरों की स्थिति को समझने के लिये उन पर प्रभाव डालने वाले विभिन्न कारकों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन किया।
  • सिक्किम क्षेत्र के ग्‍लेशियरों का व्‍यवहार विविधता से भरपूर है और अध्ययन में ऐसा पाया गया है कि यह प्राथमिक तौर पर ग्‍लेशियर के आकार, मलबे के आवरण और ग्‍लेशियर झीलों से निर्धारित होता है।
  • हालाँकि छोटे (3 वर्ग किमी. से कम) और बड़े आकार के ग्लेशियरों (10 वर्ग किमी. से अधिक) दोनों के ही द्रव्‍यमान में सामान्‍यत: हानि देखी जा रही है, किंतु ऐसा ज्ञात हुआ है कि दोनों प्रकार के ग्लेशियर जलवायु परिवर्तनों से निपटने के लिये अलग-अलग तरीकों का प्रयोग किया है।
  • जहाँ छोटे ग्‍लेशियर विहिमनदन (Deglaciation) से पीछे खिसक रहे हैं, वहीं बड़े ग्‍लेशियरों में बर्फ पिघलने के कारण द्रव्यमान की हानि हो रही है।

अध्ययन का महत्त्व

  • अब तक सिक्किम के ग्‍लेशियरों का संतोषजनक अध्‍ययन नहीं किया गया था और ‘फील्‍ड-बेस्‍ड मास बेलेंस’ (Field-Based Mass Balance) आकलन केवल एक ही ग्‍लेशियर तक सीमित था और यह अल्‍पावधि (1980-1987) तक ही चला था। 
  • इन अध्‍ययनों की प्रकृति क्षेत्रीय है और इसमें अलग-अलग ग्‍लेशियर के व्‍यवहार पर बल नहीं दिया गया। इसके अतिरिक्‍त इस क्षेत्र में अधिकांश आकलन केवल लंबाई/क्षेत्र के बदलावों तक ही केंद्रित रहे हैं। वेग का आकलन भी अत्‍यंत दुर्लभ रहा है।
  • इस अध्‍ययन में पहली बार ग्‍लेशियर के विविध मानकों यथा लंबाई, क्षेत्र, मलबे के आवरण, हिमतल की ऊंचाई, ग्‍लेशियर झीलों, वेग और बर्फ पिघलने का अध्‍ययन किया गया और सिक्किम में ग्‍लेशियरों की स्थिति और व्‍यवहार की स्‍पष्‍ट तस्‍वीर प्रस्‍तुत करने के लिये उनके अंतर्संबंध का पता लगाया गया है।
  • ग्‍लेशियरों के आकार साथ ही साथ उनमें हो रहे परिवर्तनों की दिशा की सटीक जानकारी, जिसे मौज़ूदा अध्ययन में उजागर किया गया है, वह जलापूर्ति और ग्‍लेशियर के संभावित खतरों के बारे में आम जनता, विशेषकर उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच जागरूकता उत्‍पन्‍न कर सकता है।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी 

(Wadia Institute of Himalayan Geology-WIHG):

  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत हिमालय के भू-विज्ञान के अध्ययन से संबंधित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
  • इसकी स्थापना जून, 1968 में दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा की गई थी, यह संस्थान अप्रैल, 1976 में देहरादून, उत्तराखंड में स्थानांतरित कर दिया गया था।

स्रोत: पी.आई.बी


कोरोनावायरस के लिये विशेष आपातकालीन ऋण

प्रीलिम्स के लिये

विशेष आपातकालीन ऋण

मेन्स के लिये

आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे, आपदा प्रबंधन में वित्तीय संस्थानों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप से प्रभावित लोगों और व्यवसायों की मदद हेतु इंडियन बैंक (Indian Bank) ने आम लोगों, निगमों, MSMEs एवं स्वयं सहायता समूहों (SHGs) आदि, को विशेष आपातकालीन ऋण उपलब्ध कराने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘Ind-Covid आपातकालीन क्रेडिट लाइन’ के तहत 100 करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा के साथ कार्यशील पूँजी का 10 प्रतिशत तक अतिरिक्त धन प्रदान किया जाएगा।
    • बड़े निगम और मध्यम उद्यम, जो मानक श्रेणी में हैं, वे इस ऋण के लिये पात्र होंगे।
    • ऋण की अवधि 36 महीने की होगी।
  • ‘Ind-MSE COVID आपातकालीन ऋण’ सभी MSMEs को अधिकतम 50 लाख रुपए की सीमा के साथ कार्यशील पूँजी सीमा का 10 प्रतिशत अतिरिक्त धन प्रदान किया जाएगा। इस ऋण की अवधि 60 महीने की होगी।
  • स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को कोरोनावायरस के कारण उत्पन्न संकट से उबारने के लिये इंडियन बैंक ने ‘SHG-Covid-Sahaya’ ऋण लॉन्च किया है। इसके तहत प्रत्येक सदस्य 5,000 रुपए और प्रत्येक SHG 1 लाख रुपए का ऋण प्राप्त कर सकता है।
    • इस ऋण की अवधि भी 36 महीने की होगी।
  • ‘Ind-Covid आपातकालीन वेतन’ ऋण वेतनभोगी कर्मचारियों को नवीनतम मासिक सकल वेतन के 20 गुना के बराबर राशि तक दिया जाएगा, जो कि 2 लाख रुपए से अधिक नहीं हो सकता।
    • इस ऋण का उद्देश्य वेतनभोगी लोगों की चिकित्सा एवं अन्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। यह ऋण रियायती दर पर प्रदान किया जाएगा और इसके तहत किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा।
  • ‘Ind-Covid आपातकालीन पेंशन’ ऋण मासिक पेंशनभोगियों को उसकी पेंशन के 15 गुना के बराबर राशि तक प्रदान किया जाएगा। इसके पुनर्भुगतान कि अवधि 60 महीने की होगी।
    • यह ऋण भी रियायती दर पर प्रदान किया जाएगा और इसके तहत किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा।

कोरोनावायरस- एक महामारी के रूप में

  • COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना है। अब संपूर्ण विश्व में इसका प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है।
  • WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।
  • कोरोनावायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया।
  • ध्यातव्य है कि इस खतरनाक वायरस के कारण चीन, इटली में अब तक हज़ारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और यह वायरस धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व में फैल रहा है।
  • नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अब तक कोरोनावायरस के कारण 21000 से अधिक लोगों कि मृत्यु हो गई है और लगभग 400000 से अधिक लोग इसकी चपेट में आ गए हैं।
  • भारत में भी इसके कारण 13 से अधिक लोगों कि मृत्यु हो चुकी है और लगभग 600 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। कोरोनावायरस महामारी की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की है, जो कि महामारी को रोकने की दृष्टि से सराहनीय कदम है। 

स्रोत: द हिंदू


कोरोनावायरस: 21 दिन की लॉकडाउन अवधि ही क्यों?

प्रीलिम्स के लिये:

माध्य ऊष्मायन अवधि 

मेन्स के लिये:

महामारी आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने COVID-19 महामारी के चलते 21 दिवसीय लॉकडाउन (Lockdown) घोषित किया है। ऐसे में इस लॉकडाउन अवधि के पीछे के वैज्ञानिक आधार एवं महामारी विज्ञान (Epidemiological Significance) के महत्त्व को चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • 21 दिवसीय लॉकडाउन अवधि का निर्णय पर्याप्त वैज्ञानिक आँकड़ों के आधार पर लिया गया है। इबोला वायरस के संदर्भ में 21-दिवसीय लॉकडाउन अवधि पर विस्तृत चर्चा की गई थी तथा यह गणना वायरस की मानव मे अनुमानित ऊष्मायन (Incubation Period) अवधि पर आधारित थी।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, 21 दिवसीय क्वारंटाइन (Quarantine) का निर्णय अतीत तथा वर्तमान के महामारी संबंधी आँकड़ों की व्याख्या के आधार पर लिया गया है।

लॉकडाउन का महत्त्व:

  • माध्य ऊष्मायन अवधि (Median Incubation Period): 
    • यह वायरस के शरीर में प्रवेश तथा रोग के लक्षणों/रोग के प्रकट होने के बीच की अवधि होती है।
    • जीव विज्ञान में, ऊष्मायन अवधि, विकास की किसी विशेष प्रक्रिया के लिये आवश्यक समय है। 

communicability

प्रसुप्ति अवधि (Latency period):

  • यह रोगजनक जीव से संपर्क होने तथा रोगी के शरीर द्वारा संक्रमण फैलाने की क्षमता के आरंभ होने के बीच की अवधि होती है।  
  • महामारी विज्ञान के अनुसार वर्तमान में मानव में वायरस की ऊष्मायन अवधि 14 दिन की होती है। एक सप्ताह की अवधि बढ़ाने पर अवशिष्ट संक्रमण (वायरस टेल ) भी समाप्त हो जाता है तथा इस प्रकार कुल 21 दिनों के बाद हम पूरी तरह से सुरक्षित स्तर में पहुँचते हैं। 
  • COVID-19 का वायरस एक नवीन प्रकार का कोरोनावायरस है, अत: इसकी ऊष्मायन अवधि 21 दिनों तक हो सकती है।  
  • साइंस डेली (Science Daily) की एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के लिये औसत ऊष्मायन अवधि सिर्फ पाँच दिनों की होती है एवं 97.5% लोग जिनमें इस बीमारी के लक्षण प्रकट हुये, संक्रमण के 11.5 दिनों के भीतर प्रकट होते हैं।
  • वर्तमान 14 दिन की वायरस ऊष्मायन अवधि यू.एस. रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र  (U.S. Centers for Disease Control and Prevention) द्वारा सक्रिय निगरानी तथा साक्ष्यों के आधार पर अनुशंसित की गई है। 
  • संपर्क अनुरेखण (Contact Tracing):
    • यह उन लोगों की पहचान, आकलन और प्रबंधन की प्रक्रिया है, जो इस बीमारी की चपेट में है तथा अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। वायरस के संपर्क में आने वाले लोगों की 28 दिनों तक निगरानी तथा ट्रैस (Trace) किया जाता है।
    • यह समुदाय में पहले से ही संक्रमित लोगों से इस वायरस के प्रसार को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है। 
  • ब्रीदिंग स्पेस (Breathing Space):
    • लॉकडाउन या क्वॉरंटाइन ‘ब्रीदिंग स्पेस’ भी बनाता है। यह लोगों को स्थिति की गंभीरता को समझने तथा सकारात्मक सार्वजनिक राय बनाने में मदद करता है। 
    • सभी भवनों, वाहनों और सतहों के कीटाणुशोधी बनाने तथा अस्पतालों को इस महामारी के अगले चरण के लिये तैयार करने में मदद करता है।

अनिश्चित काल तक लोग घरों में नहीं रह सकते हैं, लेकिन वर्तमान परिस्थिति की आवश्यकता को समझते हुए लोगों को इन निर्देशों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू


क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पुनर्पूंजीकरण

प्रीलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, पुनर्पूंजीकरण 

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, ग्रामीण बैंकों के विकास हेतु केंद्र सरकार की योजनाएँ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थिति में सुधार के लिये 1,340 करोड़ रुपए की पुनर्पूंजीकरण योजना को मंज़ूरी दी है।

मुख्य बिंदु: 

  • 25 मार्च, 2020 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने इस योजना में केंद्र के हिस्से के रूप में 670 करोड़ के परिव्यय के लिये अपनी मंज़ूरी दी है।
  • हालाँकि सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इस योजना के तहत केंद्र के हिस्से की राशि को तभी जारी किया जाएगा जब प्रायोजक बैंकों द्वारा अपने आनुपातिक हिस्से की राशि जारी की जाएगी।

योजना के लाभ:

  • केंद्रीय सरकार की इस योजना से क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों के ‘पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात’ (Capital-to-risk Weighted Assets Ratio- CRAR) में सुधार होगा। 

पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात’

(Capital-to-risk Weighted Assets Ratio- CRAR):

  • CRAR किसी बैंक की कुल संपत्ति और उसकी जोखिम भारित संपत्तियों का अनुपात होता है।  
  • इसे पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR) के नाम से भी जाना जाता है। 
  • यह योजना उन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को एक अतिरिक्त वर्ष (वित्तीय वर्ष 2020-21) के लिये न्यूनतम विनियामक पूँजी (Minimum Regulatory Capital) प्रदान करेगी जो वर्तमान में न्यूनतम ‘पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात’ (9%) बनाए रखने में असमर्थ थे।
  • इस योजना से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को संस्थागत मज़बूती प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • COVID-19 के कारण देशव्यापी बंदी (Lockdown) के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय तरलता सुनिश्चित करने के लिये ग्रामीण बैंकों का आर्थिक रूप से मज़बूत होना बहुत ही आवश्यक है। 

बैंकों का पुनर्पूंजीकरण: 

  • बैंक पुनर्पूंजीकरण से आशय, बैंकों के लिये अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध कराना है, जिससे बैंक के सफल संचालन के लिये आवश्यक पूंजी पर्याप्तता मानदंडों को पूरा किया जा सके।   
  • भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सबसे बड़ी शेयरधारक है, अतः संकट की स्थिति में इन बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की ज़िम्मेदारी भी सरकार की ही होती है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पुनर्पूंजीकरण: 

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना को वित्तीय वर्ष 2010-11 में शुरू किया गया था।
  • वित्तीय वर्ष 2010-11 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण ‘के.सी. चक्रवर्ती समिति’ के सुझावों के आधार पर किया गया। 
  • के.सी. चक्रवर्ती समिति ने 21 राज्यों के 40 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना के तहत 2,200 करोड़ रुपए जारी करने का सुझाव दिया था।  

पुनर्पूंजीकरण के लिये बजटीय आवंटन: 

  • वित्तीय वर्ष 2010-11 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिये केंद्र सरकार ने 1,100 करोड़ रुपए जारी किये थे। 
  • इसे बाद में वित्तीय वर्ष 2012-13, 2015-16 और पुनः वर्ष 2017 में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये बढ़ा दिया गया था।

  • के.सी. चक्रवर्ती समिति के सुझावों के अनुरूप आज तक केंद्र सरकार द्वारा 1,395.64 करोड़ रुपए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिये जारी किये जा चुके हैं।  

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक: 

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना ‘नरसिंहम समिति (1975)’ की सिफारिसों के आधार पर 26 सितंबर, 1975 को केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के तहत वर्ष 1975 में की गई थी। 
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976’ के माध्यम से इस अध्यादेश को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई थी।
  • इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, व्यापार, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादन गतिविधियों को आर्थिक तंत्र से जोड़कर उनका विकास करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत कृषकों, कृषि श्रमिकों, कलाकारों और छोटे उद्यमियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सहयोग प्रदान करना था। 
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का संचालन भारत सरकार, राज्य सरकारों और प्रायोजक बैंकों के सहयोग से किया जाता है। 
  • इन बैंकों में भारत सरकार, प्रायोजक बैंकों और संबंधित राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 50%, 35% और 15% होती है। 
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का विनियमन ‘राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक’ (National Bank for Agriculture and Rural Development-NABARD) के द्वारा किया जाता है।   
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मज़बूती प्रदान करने और इनके पूंजी आधार को बढ़ने के लिये वर्ष 2011 के बाद सरकार ने तीन चरणों में इन बैंकों के समेकन (Consolidation) की शुरुआत की, जिससे देश में कुल क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या 196 (वर्ष 2005) से घटकर मात्र 45 रह गई है।    

निष्कर्ष: आज भी भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। इनमें से अधिकांश लोग कृषि, लघु और कुटीर उद्योग या ग्रामीण आवश्यकताओं से जुड़े छोटे व्यवसायों से जुड़े हैं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ग्रामीण क्षेत्र की ज़रूरतों के अनुरूप ऋण एवं अन्य बैंकिग सेवाएँ उपलब्ध करा कर तथा सरकार की योजनाओं के माध्यम से इस आबादी को देश के आर्थिक तंत्र से जोड़ने का काम करते हैं। सरकार द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की घोषणा से हाल के वर्षों में देश के विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में फैले आर्थिक दबाव और COVID-19 से उत्पन्न अनिश्चितता के बीच ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक चुनौतियों को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी।  

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 मार्च, 2020

भारत और जर्मनी के बीच समझौता ज्ञापन 

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और जर्मनी के मध्य रेलवे क्षेत्र में तकनीकी सहयोग के लिये सहमति पत्र को मंज़ूरी प्रदान की है। इस समझौते पर भारत की ओर से रेल मंत्रालय और जर्मनी की और से ‘डीबी इंजीनियरिंग एंड कंसल्टिंग’ (DB Engineering & Consulting) द्वारा फरवरी, 2020 को हस्ताक्षर किये गए थे। रेलवे क्षेत्र में तकनीकी सहयोग के लिये हुए इस समझौता ज्ञापन (MoU) से माल परिचालन, यात्री परिचालन, बुनियादी ढाँचा निर्माण एवं प्रबंधन, आधुनिक एवं प्रतिस्पर्द्धी रेलवे संगठन का विकास, भविष्‍यसूचक रख-रखाव और निजी ट्रेन संचालन आदि क्षेत्रों में सहयोग किया जाएगा। 

अलीगढ़-हरदुआगंज फ्लाईओवर

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेल मंत्रालय को अलीगढ़-हरदुआगंज फ्लाईओवर (Aligarh-Harduaganj Flyover) के निर्माण को मंज़ूरी प्रदान की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई। इस रेलवे फ्लाईओवर के निर्माण की मांग काफी समय से की जा रही थी और इसके निर्माण से क्षेत्र विशिष्ट में भीड़-भाड़ को काम किया जा सकेगा। आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस रेलवे फ्लाईओवर की लंबाई 22 किलोमीटर होगी। इसका निर्माण कार्य वर्ष 2024-25 में पूरा होने की संभावना है और इस पर 1285 करोड़ रुपए की लागत आएगी। ध्यातव्य है कि भीड़-भाड़ के कारण अलीगढ़ जंक्शन पर ट्रेनों को काफी देर तक रुकना पड़ता है। यह स्थान एक अवरोध बन गया है और इसके कारण ट्रेनों का परिचालन काफी प्रभावित होता है। 

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT)

भारतीय राजस्व सेवा (Indian Revenue Service-IRS) के अधिकारी सतीश कुमार गुप्ता और कृष्ण मोहन प्रसाद को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) का सदस्य नियुक्त किया गया है। इस संबंध में सरकार द्वारा जारी आदेश के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली नियुक्ति मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने दोनों अधिकारियों की नियुक्ति पर अंतिम निर्णय लिया है। सतीश कुमार गुप्ता वर्तमान में मुंबई के प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त हैं, जबकि कृष्ण मोहन प्रसाद दिल्ली में ई-आकलन केंद्र में प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त हैं। दोनों अधिकारियों को विशेष सचिव का दर्जा दिया गया है। उक्त अधिकारियों की नियुक्ति के पश्चात् भी CBDT में एक सदस्य का स्थान रिक्त है। CBDT प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों एवं योजनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करने के साथ-साथ आयकर विभाग की सहायता से प्रत्यक्ष करों से संबंधित कानूनों को प्रशासित करता है।