डेली न्यूज़ (23 Mar, 2020)



भारत-बेल्जियम प्रत्यर्पण संधि

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-बेल्जियम प्रत्यर्पण संधि 

मेन्स के लिये:

भारत में प्रत्यर्पण संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और बेल्जियम के मध्य प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty) पर हस्ताक्षर को मंज़ूरी प्रदान की है।

पृष्ठभूमि

  • भारत और बेल्जियम के मध्य होने जा रही नई संधि स्वतंत्रता-पूर्व वर्ष 1901 में ब्रिटेन और बेल्जियम के मध्य हुई संधि का स्थान लेगी जो स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत पर भी लागू हो गई थी। वर्तमान में उक्त संधि ही भारत और बेल्जियम के मध्य लागू है। स्वतंत्रता-पूर्व की गई संधि में अपराधों की संख्या काफी सीमित है जिसके कारण यह उपयोगी नहीं रह गई है।

संधि की प्रमुख विशेषताएँ:

  • प्रत्यर्पण हेतु दायित्त्व
    • संधि के अनुसार, प्रत्येक पक्ष दूसरे पक्ष के ऐसे व्यक्ति के प्रत्यर्पण की सहमति प्रदान करता है जो उसके देश के सीमा क्षेत्र में प्रत्यर्पण अपराध का आरोपी है या उसे सजा दी जा चुकी है।
  • प्रत्यर्पण अपराध
    • प्रत्यर्पण अपराध का अर्थ ऐसे अपराध से है जो दोनों देशों के कानूनों के अंतर्गत दंडनीय है और जिसमें एक वर्ष के कारावास अथवा अधिक कड़े दंड का प्रावधान है। जब किसी सज़ा प्राप्त व्यक्ति के प्रत्यर्पण की मांग की जाती है तो शेष सजा की अवधि कम-से-कम 6 महीने होनी अनिवार्य है। उल्लेखनीय है कि बेल्जियम के साथ की जा रही संधि में टैक्स, राजस्व और वित्त से संबंधित अपराध भी शामिल किये गए हैं।
  • अस्वीकार्यता के लिये अनिवार्य आधार
    • यदि अपराध की प्रकृति राजनीतिक है तो प्रत्यर्पण के प्रस्ताव को अस्वीकार किया जा सकता है। हालाँकि संधि में कुछ ऐसे अपराधों को भी शामिल किया गया है जिन्हें राजनीतिक अपराध नहीं माना जाएगा।
    • यदि प्रत्यर्पण अपराध एक सैन्य अपराध है। 
    • यदि किसी व्यक्ति को उसके रंग, लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता या राजनीतिक विचार के कारण दंडित किया जा रहा है।
    • दंड को लागू करने की समय-सीमा बीत चुकी है।
  • दोषी की राष्ट्रीयता
    • राष्ट्रीयता का निर्धारण उस समय के अनुसार किया जाएगा जब अपराध किया गया है।

लाभ 

  • संधि के माध्यम से भारत को और भारत से प्रत्यर्पित होने वाले आतंकियों, आर्थिक अपराधियों और अन्य अपराधियों के प्रत्यर्पण को कानूनी आधार प्राप्त होगा। 
  • ध्यातव्य है कि अभिपुष्टि के पश्चात भारत और बेल्जियम के मध्य अभिपुष्टि-पत्रों के आदान-प्रदान के दिन से संधि लागू हो जाएगी।

प्रत्यर्पण

  • प्रत्यर्पण का अभिप्राय उस कानूनी प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसे एक देश से दूसरे देश में स्थानांतरित किया जाता है।
  • इसमें एक सरकारी प्राधिकरण औपचारिक और कानूनी रूप से एक कथित अपराधी को अपराध हेतु अभियोजन का सामना करने के लिये किसी अन्य सरकार से उसकी मांग करता है।
  • निर्वासन के विपरीत यह एक न्यायिक प्रक्रिया है।

भारत और प्रत्यर्पण (India and Extradition):

  • भारत दुनिया के किसी भी देश को प्रत्यर्पण का प्रस्ताव कर सकता है। यदि भारत ने इस संदर्भ में उस देश के साथ किसी प्रकार की संधि की है तो सभी नियम उस संधि के आधार पर ही निर्धारित किये जाएंगे, किंतु यदि भारत की उस देश के साथ संधि नहीं है, तो इस स्थिति में संपूर्ण प्रक्रिया उस देश की घरेलू कानूनों के आधार पर निर्धारित की जाएगी। 
    • उचित संधि के अभाव में प्रत्यर्पण भारत और उस देश के संबंधों पर भी निर्भर करेगा।
  • इसी प्रकार कोई भी देश भारत को प्रत्यर्पण का अनुरोध कर सकता है। जिन राज्यों के साथ भारत ने प्रत्यर्पण संधि नहीं की है, उनके साथ प्रत्यर्पण का कानूनी आधार भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 की धारा 3(4) द्वारा प्रदान किया गया है।

Belgium

बेल्जियम (Belgium)

  • तकरीबन 40 मील लंबे समुद्री तट वाला बेल्जियम पश्चिमी यूरोप में स्थित एक देश है। यह नीदरलैंडस, जर्मनी, लक्ज़मबर्ग, फ्रांँस और उत्तरी सागर से घिरा हुआ है।
  • तकरीबन 30230 वर्ग किमी वाले इस क्षेत्र में वर्ष 2014 के अनुमान के अनुसार, 10449361 लोग रहते हैं।
  • बेल्जियम की राजधानी और सबसे उसका सबसे बड़ा शहर ब्रसेल्स (Brussels) है, इसके अलावा यहाँ कई अन्य प्रमुख शहर भी हैं।

भारत-बेल्जियम संबंध

  • भारत, बेल्जियम का एक बड़ा निर्यात स्‍थल है और भारत बेल्जियम से अधिकांशतः जवाहरात और आभूषण (अपरिष्‍कृत हीरा), रसायन, रासायनिक उत्‍पाद, मशीन तथा मशीनी उत्‍पादों का निर्यात करता है।
  • अनुमानित आँकड़ों के अनुसार, भारत में बेल्जियम की लगभग 160 कंपनियाँ कार्यरत हैं। 
  • इसके अलावा सूचना तथा सॉफ्टवेयर क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों जैसे- TCS, इंफोसिस, टेक महिंद्रा और HCL ने बेल्जियम और यूरोपीय बाज़ारों की आवश्‍यकताओं की पूर्ति करने हेतु  बेल्जियम को ही अपना आधार बनाया है।
  • भारत और बेल्जियम के मध्य राजनयिक संबंध वर्ष 1947 में स्थापित किये गए थे। उल्लेखनीय है कि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध काफी सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण रहे हैं तथा बीते कुछ वर्षों में बेल्जियम ने वैश्विक परिदृश्य में भारत की बढ़ती भूमिका को मान्यता प्रदान की है।

स्रोत: पी.आई.बी.


‘सक्रिय दवा सामग्री’ के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश

प्रीलिम्स के लिये:

सक्रिय दवा सामग्री 

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 की महामारी के कारण चीन से आयात की जाने वाली ‘सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredient-API) की आपूर्ति प्रभावित होने के बाद सरकार ने अन्य देशों में भारतीय मिशनों/दूतावासों को API के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करने के निर्देश दिये हैं। 

मुख्य बिंदु:

  • भारत  में आयात होने वाली कुल थोक दवाओं का 70% चीन से आयात किया जाता है। 
  • ध्यातव्य है कि चीन में COVID-19 की महामारी के कारण चीन से आयात की जाने वाली सक्रिय दवा सामग्री (API) की आपूर्ति बाधित हुई है।

‘सक्रिय दवा सामग्री’

(Active Pharmaceutical Ingredient-API):

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी रोग के उपचार, रोकथाम अथवा अन्य औषधीय गतिविधि के लिये आवश्यक दवा के निर्माण में प्रयोग होने वाले पदार्थ या पदार्थों के संयोजन को ‘सक्रिय दवा सामग्री’ के नाम से जाना जाता है।

  • चीन से आयात की जाने वाली कुल सक्रिय दवा सामग्री (API) का 18% चीन के हुबेई (Hubei) प्रांत से आता है।    
  • रसायन और उर्वरक मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-19 के बीच एंटीबायोटिक दवाओं के लिये चीन से आयात की जाने वाली API की मात्रा में दोगुनी वृद्धि हुई है।    
  • हाल ही में विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade- DGFT) देश में API की कमी को देखते हुए 13 ऐसे API और उनसे तैयार दवाइयों के निर्यात पर रोक लगा दी है।
  • निर्यात के लिये प्रतिबंधित दवाओं में पैरासीटामाॅल, विटामिन बी-6, विटामिन बी-12, प्रोजे़स्टेराॅन, ऐसीक्लोविर आदि शामिल हैं।

API के अन्य स्रोत और उनकी चुनौतियाँ: 

  • भारत में चीन के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों जैसे- हाॅन्गकाॅन्ग, जापान, बेल्जियम, फ्राँस, अमेरिका, इटली, थाईलैंड और नीदरलैंड आदि से भी API का आयात किया जाता है।
  • हालाँकि वर्तमान में इटली के साथ विश्व के कई अन्य देश COVID-19 की महामारी से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, ऐसे में ये देश आने वाले कुछ दिनों तक भारत की आवश्यकता के अनुरूप API का निर्यात करने में सक्षम नहीं होंगे।
  • इसके अतिरिक्त ये देश केवल मधुमेह-रोधी (Anti-diabetic) और उच्च रक्तदाब रोधी (Anti-hypertension) जैसी दवाइयों के उत्पादन लिये आवश्यक API उपलब्ध करने में ही सक्षम होंगे।

भारत सरकार के प्रयास: 

  • भारत सरकार द्वारा API के लिये चीन पर भारत की निर्भरता को कम करने हेतु वर्ष 2015 में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (Department of Health Research-DHR) के सचिव वी. एम. कटोच. की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। 
  • समिति ने अपनी रिपोर्ट में API की आपूर्ति के लिये अन्य देशों पर भारत की निर्भरता को कम करने हेतु देश में API के उत्पादन को बढ़ावा मेगा फूड पार्क की स्थापना करने का सुझाव दिया था। 
  • वर्ष 2020 में ही देश में API के स्टॉक की उपलब्धता की समीक्षा करने के लिये रसायन और उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग (Department of Pharmaceuticals- DoP) के तहत एक पैनल का गठन किया गया है।  
  • API के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश हेतु भारत सरकार की पहल के बाद 6 देशों में भारतीय मिशनों/दूतावासों ने संभावित आपूर्तिकर्त्ताओं की सूची निर्यात संवर्द्धन परिषदों (Export Promotion Councils) से साझा की है। 

अन्य प्रयास:  

  • भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (Indian Pharmaceutical Alliance -IPA) महासचिव के अनुसार, API पर निर्भरता के मामले में एंटीबायोटिक्स और विटामिन जैसे किण्वन आधारित उत्पादों (Fermentation-Based Products) का मुद्दा प्रमुख है, जिन पर चीन का प्रभुत्त्व है।
  • आने वाले दिनों में फार्मास्युटिकल क्षेत्र में देश की सभी कंपनियाँ चीन के अलावा अन्य देशों में API के वैकल्पिक स्रोतों की जाँच करेंगी, यह पहल आपूर्ति शृंखला के विकेंद्रीकरण और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये बहुत ही आवश्यक है।  
  • IPA महासचिव के अनुसार, भारत को API के उत्पादन में आत्मनिर्भरता विकसित करनी होगी और भारत सरकार द्वारा फार्मास्युटिकल क्षेत्र की कंपनियों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी की तेज़ प्रक्रिया की पहल इस दिशा में एक सही कदम है। 

निष्कर्ष: पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक स्तर पर फार्मास्युटिकल क्षेत्र में दवाइयों के उत्पादन में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, इसके साथ ही भारत इस क्षेत्र में एक बड़ा निर्यातक भी बन गया है। परंतु वर्तमान में भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों को दवाइयों के उत्पादन में आवश्यक रसायनों और API के लिये अन्य देशों (विशेषकर चीन) पर निर्भर रहना पड़ता है। API की आपूर्ति के स्रोतों को विकेंद्रीकृत करने से भविष्य में विषम परिस्थितियों में भी API की निर्बाध आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सकेगा। API के उत्पादन के लिये स्थानीय क्षमता के विकास से दवाइयों की लागत में कमी आएगी और भविष्य में इस क्षेत्र में भी व्यावसायिक अवसरों का लाभ उठाया जा सकेगा।    

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र

प्रीलिम्स के लिये:

आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय आयुष मिशन, स्वास्थ्य योजनाओं से संबंधित प्रश्न   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आयुष्मान भारत के अंग आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AYUSH Health & Wellness Centre-AYUSH WHC) को राष्ट्रीय आयुष मिशन (National AYUSH Mission-NAM) में शामिल करने की मंज़ूरी दे दी है

मुख्य बिंदु:   

  • केंद्र सरकार की इस योजना के तहत अगले पाँच वर्षों (वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2023-24) में देश भर में 12,500 आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (AYUSH WHC) का संचालन किया जाएगा
  • इस योजना में कुल 3399.35 करोड़ रुपए का खर्च आएगा, जिसमें से 2209.58 करोड़ रुपए केंद्र सरकार द्वारा और 1189.77 करोड़ रुपए राज्य सरकारों द्वारा दिये जाएंगे।
  • आयुष मंत्रालय (Ministry of Ayush) ने इस योजना के तहत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और अन्य संबंधित मंत्रालयों के सहयोग से देश के सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 12,500 आयुष स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों के संचालन के लिये दो मॉडल प्रस्तावित किये हैं-
    • वर्तमान आयुष औषधालयों (लगभग 10,000) का उन्नयन (Upgrade) करना।
    • वर्तमान उप स्वास्थ्य केंद्रों (लगभग 2,500) का उन्नयन (Upgrade) करना।  

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत AYUSH WHC के संचालन का उद्देश्य:  

  • मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं के एकीकरण के माध्यम से आरोग्यकर, निवारक, पुनर्सुधारक और उपशामक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करते हुए आयुष सिद्धांतों और अभ्यासों पर आधारित एक संपूर्ण वेलनेस मॉडल को स्थापित करना।
  • आयुष सेवाओं के माध्यम से ज़रूरतमंद लोगों को उपचार के नए (सूचित) विकल्प उपलब्ध कराना।
  • आयुष सेवाओं के तहत रहन-सहन, योग, औषधीय पौधों आदि के बारे में सामुदायिक जागरूकता फैलाना और चयनित मामलों में आयुष परियोजना की क्षमता के अनुरूप दवाइयों का प्रावधान करना।

पृष्ठभूमि: 

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में आयुष प्रणाली की क्षमताओं को एक एकीकृत स्वास्थ्य सेवा की बहुवादी व्यवस्था के तहत मुख्यधारा में लाने की बात पर बल दिया गया था।
  • भारत सरकार ने फरवरी 2018 में समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ मुहैया कराने के लिये मौजूदा उप स्वास्थ्य केंद्रों (Sub health Centres-SHCs) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (Primary Health Centres-PHCs) को बदलकर 1.5 लाख ‘स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों’ की स्थापना का निर्णय लिया था। 
  • केंद्र सरकार द्वारा यह भी निर्णय लिया गया कि वर्तमान में मौज़ूद कुल स्वास्थ्य उपकेंद्रों में से 10% का स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों के रूप में संचालन आयुष मंत्रालय द्वारा किया जाएगा।
  • इस प्रस्ताव का उद्देश्य आयुष सिद्धांतों और अभ्यासों के आधार पर एक समग्र कल्याण मॉडल स्थापित करना था, जिससे लोगों को स्वत: देखभाल के जरिये बीमारियों से बचने और अतिरिक्त खर्च बचाने में सक्षम बनाया जा सके तथा ज़रूरतमंद लोगों को उपचार का एक नया विकल्प मुहैया कराया जा सके।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत AYUSH WHC के संचालन के लाभ: 

  • कम खर्च में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की पहुँच में वृद्धि।
  • आयुष स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों के माध्यम से देश के दूरस्थ क्षेत्रों में भी ज़मीनी स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध की जा सकेंगी जिससे द्वितीयक (Secondary) और तृतीयक (Tertiary) स्वास्थ्य सेवाओं के दबाव में कमी लाने में सहायता प्राप्त होगी। 
  • लोगों में बीमारियों और उनसे बचाव के बारे में जन-जागरूकता और सेल्फ केयर (Self Care) मॉडल के कारण स्वास्थ्य पर होने वाले अतरिक्त खर्च में कटौती की जा सकेगी। 
  • नीति आयोग की योजना के तहत सतत् विकास लक्ष्य-3 (स्वास्थ्य और कल्याण) की प्राप्ति के लिये आयुष योजना का समायोजन। 
  • आयुष योजना के अंतर्गत एक मज़बूत स्वास्थ्य तंत्र की स्थापना के माध्यम से लक्षित क्षेत्रों में वैध संपूर्ण वेलनेस मॉडल को लागू करने में सहायता प्राप्त होगी।

निष्कर्ष: भारत 133 करोड़ (लगभग) की जनसंख्या के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। जबकि इतनी बड़ी आबादी पर डॉक्टर जनसंख्या (नागरिक) का अनुपात 0.62:1000 है, जो बहुत ही चिंताजनक आँकड़ा है। आयुष योजना के माध्यम से केंद्र सरकार ने भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली को एक नई ऊर्जा प्रदान करने का प्रयास किया है। भारत की इतनी बड़ी आबादी के लिये नए सिरे से उच्च कोटि के चिकित्सा तंत्र की स्थापना करना या कुशल चिकित्सकों की नियुक्ति करना बहुत आसान नहीं होगा। ऐसे में ज़मीनी स्तर पर पहले से स्थापित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को आयुष स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में बदलकर और स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान कर एक बड़ी आबादी तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जा सकेगी। 

स्रोत: पीआईबी 


रेडियोधर्मी कचरे की डंपिंग

प्रीलिम्स के लिये:

रेडियोधर्मी अपशिष्ट वर्गीकरण, मार्शल द्वीप, सागरीय प्रदूषण की रोकथाम पर लंदन कन्वेंशन

मेन्स के लिये:

परमाणु आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान के फुकुशिमा नगर के तटीय भागों में रेडियोधर्मी विकिरण का स्तर जापान सरकार द्वारा अधिसूचित 100 बैकरल (Becquerel-रेडियोधर्मिता मापन की इकाई) की सीमा से कई गुना अधिक पाया गया, जिसने रेडियोधर्मी पदार्थों के अपशिष्ट प्रबंधन को पुन: चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट:
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट सामग्री में उन सभी पदार्थों को शामिल किया जाता है जो- “या तो खुद ही रेडियोधर्मी हैं या रेडियोधर्मिता द्वारा संदूषित होते हैं तथा जिनको भविष्य के लिये उपयोगी नहीं माना जाए।” 
  • सरकार द्वारा नीति निर्माण करके विशिष्ट सामग्री जैसे- उपयोग किये जा चुके परमाणु ईंधन एवं प्लूटोनियम,  को रेडियोधर्मी अपशिष्ट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

रेडियोधर्मी अपशिष्ट का वर्गीकरण:

  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट को रेडियोधर्मिता स्तर के आधार पर निम्न स्तर अपशिष्ट (low level Waste- LLW), मध्यवर्ती स्तर अपशिष्ट ( Intermediate Level Waste- ILW), या उच्च-स्तर अपशिष्ट ( High Leve Waste- HLW) में वर्गीकृत किया जाता है।
  • निम्न स्तर अपशिष्ट (low level Waste- LLW):
    • LLW में ऐसी रेडियोधर्मी सामग्री को रखा जाता है जिसमें अल्फा क्रियाविधि  (Alpha Activity) का स्तर 4 गीगा-बैकरल/टन (GBq/t) तथा बीटा-गामा क्रिया विधि का स्तर 12 गीगा-बेकरल/टन (GBq/t) से कम हो। 
    • LLW की हैंडलिंग एवं परिवहन के दौरान विशिष्ट परिरक्षण (Shielding) की आवश्यकता नहीं होती है तथा इनका निपटान ऊपरी सतह के निकट ही किया जा सकता है।
  • मध्यवर्ती स्तर अपशिष्ट (Intermediate Level Waste- ILW):
    • ILW, LLW की तुलना में अधिक रेडियोधर्मी होते हैं। रेडियोधर्मिता के उच्च स्तर के कारण ILW को कुछ परिरक्षण (Shielding) उपायों की आवश्यकता होती है, लेकिन इनके द्वारा उत्पन्न ऊष्मा इतनी अधिक नहीं होती है कि इनके भंडारण तथा निपटान में विशेष प्रकार के डिज़ाइन के चयन की आवश्यकता हो।
    • इसका रेडियोधर्मी अपशिष्ट के आयतन में 7% तथा रेडियोधर्मिता में 4% योगदान है।
  • उच्च स्तर अपशिष्ट ( High Level Waste- HLW):
    • HLW इतने अधिक रेडियोधर्मी होते हैं कि वे रेडियोधर्मी क्षय ऊष्मा (Decay Heat) से आसपास के वातावरण का तापमान उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकते हैं। अत: HLW के निपटान में शीतलन और परिरक्षण उपायों की आवश्यकता होती है। 
    • परमाणु रिएक्टर में यूरेनियम ईंधन के दहन से HLW उत्पन्न होता है। HLW का उत्पादित कचरे के आयतन में केवल 3% परंतु रेडियोधर्मिता में 95% योगदान होता है।
    • HLW को निम्नलिखित 2 वर्गों मे रखा जाता है: 
      • प्रयुक्त ईंधन जिसे अपशिष्ट के रूप में नामित किया गया है। 
      • उपयोग किये जा चुके ईंधन के पुन: प्रसंस्करण से उत्पन्न अपशिष्ट।

सागरीय रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण:

  • परमाणु बम परीक्षण:
    • सर्वप्रथम सागरीय क्षेत्र में परमाणु बम परीक्षण, वर्ष 1946 में अमेरिका द्वारा प्रशांत महासागर के बिकिनी एटॉल (Bikini Atoll) नामक ‘कोरल रीफ’ के सागरीय क्षेत्र में किया था। अगले कुछ दशकों में 250 से अधिक परमाणु हथियारों के परीक्षण उच्च सागरीय क्षेत्रों मे किये गए।
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (International Atomic Energy Agency- IAEA) के अनुसार, वर्ष 1946-1993 की अवधि के दौरान परमाणु गोला बारूद सहित कई परमाणु पनडुब्बियाँ भी महासागरों मे डूब गईं।
  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से परमाणु दुर्घटनाएँ:
    • फुकुशिमा डाइची (जापान), चर्नोबिल (यूक्रेन) एवं थ्री माइल द्वीप (अमेरिका) में प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुर्घटनाएँ हुई हैं
    • फुकशिमा परमाणु आपदा के कारण प्रशांत महासागर में रेडियोधर्मी विकिरण में व्यापक वृद्धि हुई है। परंतु वास्तव मे देखा जाए तो पूर्व में किये गए परमाणु बम परीक्षण तथा रेडियोधर्मी अपशिष्ट इस आपदा के पूर्व से ही इस महासागर को प्रदूषित कर रहे थे तथा तभी से महासागरों में रेडियोधर्मी प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। 
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट की डंपिंग: 
    • 1990 के दशक तक सागरीय क्षेत्रों का प्रयोग न केवल परमाणु युद्ध के परीक्षण क्षेत्र के रूप में अपितु परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से उत्पन्न रेडियोधर्मी अपशिष्ट की डंपिंग करने मे भी किया जाता रहा है। 
    • आदर्श वाक्य ‘दृष्टि से दूर, दिमाग से बाहर’ (Out of Sight, Out of Mind) की विचारधारा के अनुसार ‘परमाणु अपशिष्ट’ के सागरीय क्षेत्र में डंपिंग को सबसे आसान तरीका माना जाता है। 
    • IAEA के अनुसार वर्ष 1946-1993 की अवधि के दौरान 2 लाख टन से भी अधिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट की डंपिंग महासागरों में की गई।
  • परमाणु संयंत्र शीतलक (Coolant in Nuclear plant):
    • परमाणु संयंत्रों में शीतलक के रूप में जल का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। अन्य शीतलकों में भारी जल, वायु, कार्बन डाइऑक्साइड, हीलियम, तरल सोडियम, सोडियम-पोटेशियम मिश्र धातु आदि शामिल हैं।
    • उत्तरी फ्राँस के तटीय भागों में रेडियोधर्मी विकिरण का मुख्य कारण परमाणु ईंधन पुनर्संसाधन संयंत्र है जो प्रतिवर्ष 33 मिलियन लीटर रेडियोधर्मी तरल का बहाव महासागर में करता है।

अंतर्राष्ट्रीय नियम:

  • वर्ष 1993 में ‘सागरीय प्रदूषण की रोकथाम पर लंदन कन्वेंशन’ (London Convention on the Prevention of Marine Pollution) द्वारा ड्रमों के माध्यम से महासागरों में किये जाने वाले परमाणु अपशिष्ट की डंपिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था परंतु विकिरण युक्त संदूषित तरल की सागरीय भागों में डंपिंग को अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर अभी भी अनुमति प्राप्त है। 

लंदन कन्वेंशन एवं प्रोटोकॉल

(The London Convention and Protocol):

  • 'लंदन कन्वेंशन ऑन डंपिंग ऑफ वेस्टेज़ एंड अदर मैटर' (Convention on the Prevention of Marine Pollution by Dumping of Wastes and Other Matter) 1972, जिसे संक्षेप में 'लंदन कन्वेंशन' के नाम से जाना जाता हैं, मानव गतिविधियों से सागरीय पर्यावरण की रक्षा करने वाले प्रारंभिक वैश्विक सम्मेलनों में से एक है।
  • यह कन्वेंशन वर्ष 1975 से प्रभावी है। इसका उद्देश्य समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों पर प्रभावी नियंत्रण को बढ़ावा देना तथा सागरीय क्षेत्रों में अपशिष्टों की  डंपिंग रोकने के लिये सभी व्यावहारिक कदम उठाना है।
  • वर्ष 1996 में ‘लंदन प्रोटोकॉल’ पर सहमति बनी जो पूर्ववर्ती कन्वेंशन को आधुनिक बनाने तथा समय के साथ इसे प्रतिस्थापित करने की दिशा में एक प्रयास था। इस प्रोटोकॉल के तहत तथाकथित ‘रिवर्स सूची’ (Reverse List) में शामिल अपशिष्टों के अलावा अन्य सभी अपशिष्टों की डंपिंग करने पर पाबंदी लगा दी गई है।
  • ‘लंदन प्रोटोकॉल’ 24 मार्च 2006 से प्रभावी हुआ।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव:

  • रेडियोधर्मी विकिरण के सटीक प्रभाव (Effect) का मापन बेहद मुश्किल है। हम इससे उत्पन्न होने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों (Affect) को ही जान सकते हैं। 
  • विकिरण प्रदूषण की प्रभावशीलता, विकिरण के स्रोत तथा व्यक्तिगत संवेदनशीलता द्वारा निर्धारित की जाती है। प्रत्येक व्यक्ति की संवेदनशीलता के अनुसार रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। 
  • उच्च मात्रा में विकिरण के संपर्क से ‘क्रॉनिक डिज़ीज़िज़’ (Chronic Diseases), जबकि अत्यधिक प्रदूषण से  कैंसर या यहाँ तक कि अचानक मृत्यु भी हो सकती है। 
  • विकिरण की कम मात्रा उन बीमारियों का कारण बन सकती है जो विकिरण संपर्क के समय इतनी गंभीर नहीं होती हैं परंतु समय के साथ विकसित होती है। विकिरण की कम मात्रा भी लंबे समय तक संपर्क में रहने पर कैंसर का कारण बन सकती है।

radiation-level

परमाणु आपदा प्रबंधन:

  • सामान्यत: परमाणु या रेडियोधर्मी आपात काल को ऐसी स्थिति के रूप में वर्णित किया जाता है- “जब परिचालन कर्मी या सामान्य जनता, नियामक संस्थाओं द्वारा निर्धारित रेडियोधर्मी विकिरण स्तर से अधिक की चपेट में हो।”
  • NDMA दिशा-निर्देशों के अनुसार रोकथाम और शमन उपायों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है-
    (i) नियामक आवश्यकताओं का अनुपालन।
    (ii) परमाणु आपातकालीन तैयारी।
    (iii) क्षमता निर्माण।
    (iv) कानूनी एवं नियामक उपायों के माध्यम से परमाणु आपातकालीन प्रबंधन (Nuclear Emergency Management- NEM) के ढाँचे को मज़बूत करना।

भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना, डिज़ाइनिंग, निर्माण, कमीशनिंग, संचालन एवं डीकमीशनिंग के दौरान सुस्थापित सुरक्षा मानदंडों का पालन किया जाता है।

बिकिनी एटॉल (Bikini Atoll): 

यह प्रशांत महासागर में स्थित ‘मार्शल द्वीपों’ (Marshall Islands)-  जिनका निर्माण 29 एटॉल एवं 5 द्वीपों से मिलकर हुआ है, में स्थित एक एटॉल है।

नियमित वायु एवं सागरीय परिवहन मार्गों से दूर होने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस द्वीप का चुनाव परमाणु परीक्षण करने के लिये किया।

Bikini-Atoll

स्रोत: द हिंदू


रक्षा खरीद प्रक्रिया मसौदा

प्रीलिम्स के लिये

रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) 

मेन्स के लिये:

रक्षा अधिग्रहण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure-DPP) 2020 का मसौदा जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • सरकार द्वारा जारी DDP 2020 में सस्ती दरों पर रक्षा उपकरण प्राप्त करने के उद्देश्य से ‘पट्टे’ (Lease)  को एक श्रेणी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रारंभिक पूंजीगत व्यय को प्रतिस्थापित करने के उद्देश्य से मौज़ूदा ‘खरीद’ (Buy) और ‘निर्माण’ (Make) श्रेणियों के साथ-साथ अधिग्रहण के लिये लीज़िंग (Leasing) यानी ‘पट्टे’ को एक नई श्रेणी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    • उल्लेखनीय है कि ये उन सैन्य उपकरणों के लिये उपयोगी साबित होगा जो वास्तविक युद्ध में उपयोग नहीं किये जाते हैं जैसे- परिवहन बेड़े, ट्रेनर, सिम्युलेटर आदि।
  • इसके अलावा, ‘मेक इन इंडिया (Make In India) पहल का समर्थन करने के लिये खरीद की विभिन्न श्रेणियों में निर्धारित स्वदेशी सामग्री को बढ़ाया गया है।
    • उदाहरण के लिये नए DDP की ‘खरीद (इंडियन-आईडीडीएम)’ [Buy (Indian-IDDM)] श्रेणी के तहत एक भारतीय विक्रेता के केवल उन भारतीय उत्पादों को किया जाएगा जो कुल अनुबंध मूल्य के न्यूनतम 50 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री के साथ डिज़ाइन, विकसित और निर्मित किये गए होंगे।
  • ध्यातव्य है कि रक्षा खरीद के दौरान उक्त श्रेणी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है और मौज़ूदा नियमों के अनुसार, इस श्रेणी के तहत उन उत्पादों का वर्गीकरण किया जाता है जो कुल अनुबंध मूल्य के न्यूनतम 40 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री के साथ डिज़ाइन, विकसित और निर्मित किये जाते हैं।
  • कुल अनुबंध मूल्य की लागत के आधार पर न्यूनतम 50 फीसदी स्वदेशी सामग्री के साथ नई श्रेणी ‘खरीद (वैश्विक-भारत में निर्माण)’ [Buy (Global-Manufacture in India)] को लाया गया है। इसके तहत केवल न्यूनतम आवश्यक सामग्री को ही विदेश से खरीदा जाएगा जबकि शेष मात्रा का निर्माण भारत में किया जाएगा।
  • सॉफ्टवेयर और सिस्टम संबंधित परियोजनाओं की खरीद के लिये एक नया खंड शुरू किया गया है, क्योंकि ऐसी परियोजनाओं में प्रौद्योगिकी में तेजी से बदलाव के कारण अप्रचलन बहुत तेज होता है और प्रौद्योगिकी के साथ गति बनाए रखने के लिये खरीद प्रक्रिया में लचीलापन आवश्यक है।
  • इसके अलावा DDP में ‘मूल्य-परिवर्तन खंड’ (Price Variation Clause) शामिल किया गया है जो उन सभी मामलों पर लागू होगा जहाँ अनुबंध की कुल लागत 1,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
    • इस खंड का प्रयोग अनुबंध के मूल्य में परिवर्तन की स्थिति में किया जाएगा।

उद्देश्य

सरकार द्वारा जारी किये गए रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) मसौदे का मुख्य उद्देश्य रक्षा उपकरणों की खरीद के लिये स्वदेशी विनिर्माण को अधिक-से-अधिक बढ़ावा देना है और उसमें लगने वाली समय सीमा को कम करना है।

रक्षा खरीद प्रक्रिया

(Defence Procurement Procedure- DPP)

  • DPP 2020 का मसौदा निजी उद्योग सहित सभी हितधारकों की सिफारिशों के आधार पर महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता वाली समीक्षा समिति द्वारा तैयार किया गया है।
  • पहली रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure-DPP) को वर्ष 2002 में लाया गया था और तब से इसे कई बार संशोधित किया गया है ताकि बढ़ते घरेलू उद्योग को गति प्रदान की जा सके और रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके।

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स


कीट प्रतिरोधी कपास

प्रीलिम्स के लिये:

व्हाइटफ्लाइज़, टेरियारामैक्रोडोंटा, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान

मेन्स के लिये:

किसानों की सहायता में जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute-NBRI) लखनऊ ने कपास की एक कीट प्रतिरोधी किस्म का विकास किया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • व्हाइटफ्लाइज़ नामक कीट कपास की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले विनाशकारी कीटों में से एक है।
  • व्हाइटफ्लाइज़ 2000 से अधिक पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुँचाते हैं एवं पौधों से संबंधित 200 विषाणुओं के प्रति रोग वाहक के रूप में भी कार्य करते हैं। 
  • NBRI लखनऊ द्वारा विकसित कपास की इस किस्म का परीक्षण अप्रैल-अक्तूबर 2020 तक पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के फरीदकोट केंद्र में किया जाएगा। 
  • उल्लेखनीय है कि ये कीट सबसे अधिक कपास की फसल को नुकसान पहुँचता है तथा वर्ष 2015 में पंजाब में कपास की दो-तिहाई फसल इसी कीट की वजह से नष्ट हो गई थी। 

आवश्यकता:

  • बीटी कपास आनुवंशिक रूप से संशोधित और किसानों हेतु बाज़ार में मौजूद एक कपास है। विशेषज्ञों के अनुसार, बीटी कपास केवल दो कीटों के लिये प्रतिरोधी है, यह व्हाइटफ्लाइज़ के लिये प्रतिरोधी नहीं है। 
  • गौरतलब है कि व्हाइटफ्लाइज़ न केवल कपास को नुकसान पहुँचाता है बल्कि कई अन्य फसलें भी इससे प्रभावित होती हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2007 में विशेषज्ञों ने कीट प्रतिरोधी एक अन्य कपास पर काम करने का फैसला किया था। 

खोज से संबंधित मुद्दे:

  • कीटरोधी किस्म विकसित करने हेतु शोधकर्त्ताओं ने 250 छोटे पौधों को चुना ताकि यह चिह्नित किया जा सके कि कौन-सा प्रोटीन अणु व्हाइटफ्लाइज़ को रोकने में सक्षम है। 
  • चुने गए सभी पौधों के पत्तों का अर्क अलग-अलग तैयार किया गया और व्हाइटफ्लाइज़ को खिलाया गया। खाद्य फर्न (Fern) टेक्टारियामैक्रोडोंटा (Tectariamacrodonta) की पत्ती का अर्क व्हाइटफ्लाइज़ के लिये विषैला साबित हुआ।
  • इस फर्न का उपयोग नेपाल में सलाद के रूप में और एशिया के कई क्षेत्रों में गैस्ट्रिक विकारों को दूर करने हेतु एक पाचक के रूप में उपयोग में लाया जाता है। 
  • जब व्हाइटफ्लाइज़ को टेक्टोरियामैक्रोडोंटा कीटनाशक प्रोटीन की खुराक दी जाती है, तो इससे इस कीट का जीवन चक्र प्रभावित होता है जैसे- खराब अंडा देना, अविकसित कीट (Nymph), लार्वा का विकास न होना इत्यादि। 
  • इस प्रोटीन को अन्य कीटों पर निष्प्रभाव पाया गया जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रोटीन विशेष रूप से व्हाइटफ्लाइज़ के लिये विषाक्त है एवं तितली और शहद जैसे अन्य लाभकारी कीड़ों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है। 

टेक्टोरियामैक्रोडोंटा (Tectariamacrodonta):

  • टेक्टोरियामैक्रोडोंटा एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एवं आमतौर पर भारत के पश्चिमी घाटों में पाया जाता है।

Tectariamacrodonta

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान

(National Botanical Research Institute-NBRI) :

  • NBRI वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR), नई दिल्ली के प्रमुख घटक अनुसंधान संस्थानों में से एक है।
  • यह वनस्पति विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान करता है, जिसमें प्रलेखन, संरक्षण और आनुवंशिक सुधार शामिल है।
  • इसकी स्थापना मूल रूप से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान (NBG) के रूप में की गई थी जिसे वर्ष 1953 में CSIR ने अपने अधिकार में ले लिया था।
  • यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत कार्य करता है।


स्रोत: पीआईबी


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 मार्च, 2020

टॉलीवुड के एक्टर और डायरेक्टर विसू

टॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता, डायरेक्टर और लेखक विसू (Visu) का 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। विसू का जन्म 1 जुलाई, 1945 को तमिलनाडु में हुआ था और उनका मूल नाम मीनाक्षीसुंदरम रामासामी विश्वनाथं (Meenakshisundaram Ramasamy Viswanthan) है किंतु वे फिल्म उद्योग में विसू के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। विसू ने अपने कैरियर की शुरुआत निर्देशक के. बालचंदर के सहायक के रूप में की थी, जिसके पश्चात् उन्होंने स्वयं निर्देशन शुरू कर दिया। अपने कैरियर में उन्होंने एक्टिंग में भी काफी प्रसिद्धि प्राप्त की, अभिनेता के तौर पर उनकी पहली फिल्म एस. पी मुथुरमन द्वारा निर्देशित कुदुम्बम ओरु कदम्बम (Kudumbam Oru Kadambam) थी। विसू ने 60 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया था और 25 से अधिक फिल्मों का निर्देशन किया था। 

टोक्यो ओलंपिक में भाग नहीं लेंगे कनाडा और ऑस्ट्रेलिया 

कोरोनावायरस (COVID-19) के खतरे के कारण कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने 2020 टोक्यो ओलंपिक और पैरालिंपिक खेलों में भाग लेने से इनकार कर दिया है। दोनों देशों की ओलंपिक समिति द्वारा जारी आधिकारिक बयान में इस निर्णय की सूचना दी गई है। दोनों देशों ने यह मांग की है कि इन खेलों को वर्ष 2021 तक के लिये स्थानांतरित कर दिया जाए। टोक्यो ओलंपिक का आयोजन जापान की राजधानी टोक्यो में 24 जुलाई से 9 अगस्त (2020) तक आयोजित किया जाना था। गौरतलब है कि कोरोनावायरस (COVID-19) के कारण दुनिया भर के तमाम देश प्रभावित हुए हैं और वैश्विक स्तर पर तकरीबन 3 लाख से अधिक मामलों की पुष्टि हो गई है। इसके कारण खेल जगत से लेकर आर्थिक क्षेत्र सभी प्रभावित हुए हैं। टोक्यो ओलंपिक इस वर्ष की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता है और इसकी तैयारी भी लगभग पूरी हो चुकी है।

हाइपरसोनिक परमाणु सक्षम मिसाइल 

हाल ही में अमेरिका ने अपनी पहली हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। इस संदर्भ में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस मिसाइल की गति ध्वनि की गति से पाँच गुना अधिक है और यह मिसाइल 6,200 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक गति से हमला कर सकती है। साथ ही यह मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। इससे पूर्व रूस ने दिसंबर 2019 में हाइपरसोनिक हथियार का परीक्षण किया था और चीन भी अपने DF-17 हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल को प्रदर्शित कर चुका है। उल्लेखनीय है कि हाइपरसोनिक मिसाइलों के प्रक्षेपक (Trajectory) का पता नही लगाया जा सकता, जबकि बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रक्षेपवक्र को ट्रेस किया जा सकता है। विश्व के अन्य राष्ट्रों की भाँति भारत भी अपनी रक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये प्रयासरत है, इसी दिशा में रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (DRDO) ने भी भारत की अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइलों का निर्माण शुरू कर दिया है।

शहीद दिवस

प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। 23 मार्च को ही वर्ष 1931 में भारत के तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मृत्युदंड दिया गया था। लाहौर षड़यंत्र मामले में इन स्वतंत्रता सेनानियों के लिये 24 मार्च, 1931 को मृत्युदंड का आदेश दिया गया था, किंतु उन्हें 23 मार्च, 1931 की शाम को ही फांसी दे दी गई थी। अपनी मृत्यु के समय भगत सिंह केवल 23 वर्ष के थे किंतु उनके क्रांतिकारी विचार बहुत व्यापक थे। उल्लेखनीय है कि भारतीय आंदोलनों का बहुचर्चित नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ पहली बार भगत सिंह ने ही बोला था। भगत सिंह मानते थे कि व्यक्ति को दबाकर उसके विचार नहीं दबाए जा सकते हैं।