स्वास्थ्य सेवा में AI
प्रिलिम्स के लिये:गर्भिणी-GA2, टेलीमेडिसिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), SARAH, ई-संजीवनी, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017), आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM), राष्ट्रीय डेटा और एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म (NDAP), भारतनेट, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, CDSCO (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) मेन्स के लिये:स्वास्थ्य सेवा में AI का उपयोग, भारत में स्वास्थ्य सेवा में AI की प्रमुख चुनौतियाँ और उनसे निपटने के लिये सुझाए गए उपाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय शोधकर्त्ताओं ने 'गर्भिणी-GA2' नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मॉडल विकसित किया है, जो अल्ट्रासाउंड छवियों के माध्यम से भ्रूण की आयु का केवल आधे दिन की त्रुटि सीमा के साथ अनुमान लगाता है। यह वर्तमान में प्रचलित उन विधियों से कहीं अधिक सटीक है, जिनमें 7 दिन तक की त्रुटि हो सकती है। यह विकास भारत में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में AI द्वारा संचालित प्रगति की अपार संभावनाओं को रेखांकित करता है।
स्वास्थ्य सेवा में AI के अनुप्रयोग क्या हैं?
- प्रारंभिक रोग का पता लगाना और निदान: AI उपकरण डॉक्टरों को एक्स-रे, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड जैसी चिकित्सा छवियों का त्वरित व सटीक विश्लेषण करने में सहायता करते हैं - जो सीमित विशेषज्ञों वाले देशों के लिये महत्त्वपूर्ण है ।
- AIIMS दिल्ली ने iOncology.ai नामक एक AI प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है, जिसे स्तन और डिम्बग्रंथि कैंसर के प्रारंभिक अवस्था का पता लगाने हेतु विकसित किया गया है।
- इसी प्रकार, मुंबई स्थित Qure.ai छाती के एक्स-रे के माध्यम से तपेदिक (TB), निमोनिया और फेफड़ों के कैंसर का पता लगाता है, जबकि बंगलूरू स्टार्टअप NIRAMAI विकिरण मुक्त, AI-संचालित थर्मल इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर की पहचान करता है।
- टेलीमेडिसिन और दूरस्थ परामर्श में AI: AI-संचालित टेलीमेडिसिन पहुँच और दक्षता में सुधार करके ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में अंतराल को कम कर रहा है ।
- प्रैक्टो के AI चैटबॉट और अपोलो के "आस्क अपोलो" सहायक जैसे उपकरण लक्षण-आधारित मार्गदर्शन, तत्काल चिकित्सा सलाह और अपॉइंटमेंट शेड्यूलिंग प्रदान करते हैं, जिससे अनावश्यक रूप से अस्पताल जाने की आवश्यकता कम हो जाती है।
- औषधि खोज के लिये AI : भारतीय स्टार्टअप और अनुसंधान प्रयोगशालाएँ किफायती, रोगी-विशिष्ट उपचार बनाने हेतु AI का उपयोग कर रही हैं।
- उदाहरण के लिये, बंगलूरू स्थित इनएक्सेल ने SAANS नामक एक बुद्धिमान, बुनियादी ढाँचे से मुक्त, बहु-चिकित्सा प्रणाली विकसित की है, जो नवजात और बाल रोगियों के लिये गैर-आक्रामक श्वास सहायता प्रदान करती है, जिससे ग्रामीण क्लीनिकों में शिशु मृत्यु दर को कम करने में मदद मिलती है।
- पहनने योग्य उपकरणों में AI: AI -संचालित पहनने योग्य उपकरण और एप्स भारतीयों को मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी दीर्घकालिक बीमारियों का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में सक्षम बना रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली स्थित बीट O एक AI-सक्षम ग्लूकोमीटर प्रदान करता है जो रक्त शर्करा के स्तर पर नज़र रखता है और वास्तविक समय पर आहार एवं दवा संबंधी सुझाव देता है।
- अस्पताल की दक्षता के लिये AI: अस्पताल प्रशासनिक कार्यभार को कम करने और परिचालन दक्षता में सुधार करने के लिये AI का उपयोग कर रहे हैं।
- उदाहरण: हेल्थकेयर के लिये माइक्रोसॉफ्ट के AI नेटवर्क ने मधुमेह रेटिनोपैथी की प्रगति की भविष्यवाणी करने हेतु भारत में नेत्र अस्पतालों के साथ साझेदारी की है, जिससे उच्च जोखिम वाले रोगियों में अंधेपन को रोकने में मदद मिलेगी।
- चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ाना: AI व्यक्तिगत शिक्षा और जटिल नैदानिक परिदृश्यों के अनुकरण के माध्यम से चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण को बदल रहा है।
- फंडामेंटल VR जैसे प्लेटफॉर्म यथार्थवादी सर्जिकल अभ्यास हेतु AI -संचालित VR और हैप्टिक सिस्टम का उपयोग करते हैं, जबकि अनुकूली शिक्षण उपकरण पाठ्यक्रम को अनुकूलित करते हैं, जिससे प्रशिक्षण दक्षता एवं योग्यता बढ़ती है।
भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में AI को अपनाने में सक्षम बनाने वाली प्रमुख पहल क्या हैं?
- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM): ABDM प्रत्येक नागरिक के लिये एक अद्वितीय डिजिटल स्वास्थ्य ID प्रदान करता है।
- हेल्थलॉकर/पर्सनल हेल्थ रिकॉर्ड्स (PHR): यह एक डिजिटल राष्ट्रीय स्वास्थ्य डेटाबेस है, जो क्लाउड-आधारित भंडारण प्रणाली द्वारा समर्थित है, जो राष्ट्र के लिये स्वास्थ्य डेटा के एकल स्रोत के रूप में कार्य करता है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्टैक (NHS): इसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य विश्लेषण प्लेटफॉर्म जैसे उपक्रम भी शामिल हैं, जो डेटा-आधारित स्वास्थ्य देखभाल समाधान उपलब्ध कराने में सहायक भूमिका निभाते हैं।
नोट: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने SARAH (स्वास्थ्य के लिये स्मार्ट AI संसाधन सहायक ) लॉन्च किया है, जो एक जनरेटिव AI प्रोटोटाइप है जो मानसिक स्वास्थ्य, स्वस्थ आदतों और गैर-संचारी रोगों (जैसे- कैंसर , हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारी, मधुमेह) जैसे प्रमुख स्वास्थ्य विषयों पर विश्वसनीय जानकारी देने हेतु उन्नत भाषा मॉडल का उपयोग करता है।
भारत में स्वास्थ्य सेवा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- उच्च गुणवत्ता वाले और मानकीकृत चिकित्सीय डेटा की कमी: AI मॉडल को बड़े, विविध और सुव्यवस्थित डेटा सेट की आवश्यकता होती है, किंतु भारत में खंडित डेटा के कारण इसमें बाधा आती है, क्योंकि अधिकांश अस्पताल अब भी हस्तलिखित पर्चियों और गैर-डिजिटल अभिलेखों पर निर्भर करते हैं।
- इसके अतिरिक्त, पश्चिमी डेटा पर प्रशिक्षित AI भारत में प्रायः कम प्रभावी होता है क्योंकि जीवनशैली और रोग पैटर्न में भिन्नताएँ पाई जाती हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित AI अवसंरचना: उन्नत AI उपकरणों के लिये उच्च गति इंटरनेट, क्लाउड कंप्यूटिंग और डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकता होती है, जो ग्रामीण भारत में प्रायः अनुपलब्ध रहती है।
- eSanjeevani (ई-संजीवनी) जैसे प्लेटफॉर्म और Qure.ai के टी.बी. पहचान उपकरण दूर-दराज़ के क्षेत्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में सीमित कनेक्टिविटी तथा डिजिटल अवसंरचना (जैसे डिजिटल एक्स-रे मशीनों) की कमी के कारण चुनौतियों का सामना करते हैं।
- विनियामक और नैतिक चिंताएँ: भारत में स्पष्ट AI शासन ढाँचे का अभाव है, जिसके कारण रोगी गोपनीयता, पूर्वाग्रह और उत्तरदायित्व को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- यद्यपि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 स्वास्थ्य डेटा के उपयोग पर कड़े नियम निर्धारित करता है, किंतु कमज़ोर प्रवर्तन और AI पूर्वाग्रह के मामलों के कारण सुरक्षित AI के कार्यान्वयन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- साथ ही, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में डिजिटल स्वास्थ्य डेटा को विनियमित करने हेतु प्रस्तावित डिजिटल सूचना सुरक्षा स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (DISHA) अब तक लागू नहीं हो सका है।
- भाषा और स्थानीयकरण की समस्या: भारत की भाषाई विविधता, जिसमें 22 आधिकारिक भाषाएँ और अनेक उपभाषाएँ शामिल हैं, स्वास्थ्य सेवा में AI के कार्यान्वयन के लिये एक प्रमुख चुनौती प्रस्तुत करती है।
- यह भाषाई बाधा गलत निदान, गलत संचार तथा AI उपकरणों की प्रभावशीलता में कमी का कारण बन सकते है।
- स्वास्थ्य पेशेवरों का प्रतिरोध: डॉक्टर और नर्स प्रायः AI के प्रति अविश्वास व्यक्त करते हैं, क्योंकि उन्हें नौकरी छूटने या संभावित गलत निदान की आशंका रहती है।
- कई लोग महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिये AI का उपयोग करने के प्रति अनिच्छुक होते हैं और इसके स्थान पर पारंपरिक नैदानिक विधियों को प्राथमिकता देते हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में AI के उपयोग हेतु ICMR दिशा-निर्देश:
मार्च 2023 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने "जैवचिकित्सा अनुसंधान और स्वास्थ्य सेवा में AI के अनुप्रयोग हेतु नैतिक दिशा-निर्देश" जारी किये, जिसमें स्वास्थ्य सेवा में AI के उपयोग के लिये 10 प्रमुख रोगी-केंद्रित नैतिक सिद्धांतों को रेखांकित किया गया है।
10 मार्गदर्शक सिद्धांत:
- जवाबदेही और दायित्व: AI के सर्वोत्तम प्रदर्शन को सुनिश्चित करने हेतु नियमित ऑडिट, जिनके निष्कर्ष सार्वजनिक किये जाएँ।
- स्वायत्तता: अनिवार्य मानवीय निगरानी और रोगी की सूचित सहमति, जिसमें जोखिम का प्रकटीकरण शामिल हो।
- डेटा गोपनीयता: AI के उपयोग के प्रत्येक चरण में गोपनीयता और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा।
- सहयोग: ज़िम्मेदार AI विकास हेतु अंतर-अनुशासनात्मक और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों को प्रोत्साहन।
- सुरक्षा और जोखिम न्यूनतमकरण: दुरुपयोग की रोकथाम, डेटा सुरक्षा, तथा समितियों द्वारा नैतिक समीक्षा पर विशेष बल।
- सुलभता, समानता और समावेशिता: सभी के लिये AI अवसंरचना की सुलभता सुनिश्चित करना और डिजिटल विभाजन को कम करना।
- डेटा अनुकूलन: खराब डेटा गुणवत्ता या प्रतिनिधित्व की कमी से उत्पन्न पूर्वाग्रहों और त्रुटियों को न्यूनतम करना।
- गैर-भेदभाव और निष्पक्षता: पूर्वाग्रह रहित AI तकनीकों तक सार्वभौमिक पहुँच को बढ़ावा देना।
- विश्वसनीयता: उपयोगकर्त्ता के विश्वास के निर्माण हेतु AI को वैध, विश्वसनीय, नैतिक और वैधानिक बनाना।
- पारदर्शिता: चिकित्सकों को AI की वैधता और विश्वसनीयता का परीक्षण करने हेतु स्पष्ट पद्धतियाँ उपलब्ध कराना।
रूपरेखाएँ: भारत में स्वास्थ्य सेवा में AI का समर्थन करने वाले ढाँचों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) के तहत डिजिटल स्वास्थ्य प्राधिकरण, DISHA 2018 और चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 शामिल हैं।
भारत स्वास्थ्य सेवा में AI का प्रभावी रूप से एकीकरण कैसे कर सकता है?
- उच्च गुणवत्ता वाले, स्थानीयकृत स्वास्थ्य सेवा डेटा सेट का निर्माण: भारत को आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) का विस्तार कर अस्पतालों में इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य अभिलेखों (EHR) का मानकीकरण करना चाहिये तथा गुमनाम AI प्रशिक्षण डेटा के लिये राष्ट्रीय डेटा एवं विश्लेषिकी मंच (NDAP) जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करना चाहिये।
- AIIMS, अपोलो और टाटा मेमोरियल जैसे प्रमुख अस्पताल AI स्टार्टअप्स (जैसे Qure.ai, SigTuple) के साथ पहचान रहित डेटा साझा कर सकते हैं, जिससे डेटा सेट में ग्रामीण जनसंख्या, महिलाओं और जातीय अल्पसंख्यकों का समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर पूर्वाग्रह को कम किया जा सके।
- ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में AI अवसंरचना को सुदृढ़ करना: ई-संजीवनी में कम कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में उपयोग हेतु ऑफलाइन-सक्षम AI लक्षण जाँचकर्त्ताओं का एकीकरण किया जा सकता है।
- आशा कार्यकर्त्ताओं को AI उपकरणों (जैसे- Butterfly Network, पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड डिवाइस) से सुसज्जित किया जा सकता है, जबकि भारतनेट और जियो का 5G ज़िला अस्पतालों में क्लाउड-आधारित AI रेडियोलॉजी का समर्थन कर सकते हैं।
- स्पष्ट AI विनियमन और नैतिक दिशा-निर्देश स्थापित करना: CDSCO (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) को AI-आधारित निदान के लिये स्पष्ट अनुमोदन प्रक्रियाएँ स्थापित करनी चाहिये, जैसे अमेरिका की AI/ML एक्शन प्लान में है, जबकि नीति आयोग के उत्तरदायी AI दिशा-निर्देशों को स्वास्थ्य क्षेत्र में लागू किया जाना चाहिये।
- जाति/लिंग पूर्वाग्रह के लिये अनिवार्य एल्गोरिदम ऑडिट और सुदृढ़ डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 रोगी डेटा की सुरक्षा तथा नैतिक AI उपयोग सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं।
- डॉक्टरों को प्रशिक्षित करना और AI जागरूकता बढ़ाना: MBBS और नर्सिंग पाठ्यक्रमों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल स्वास्थ्य से संबंधित मॉड्यूल शामिल किये जाएँ तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (National Health Authority) डॉक्टरों को पूर्वानुमान विश्लेषण (predictive analytics) जैसे AI उपकरणों के उपयोग में प्रशिक्षित करे।
- AI डेवलपर्स को एल्गोरिथम संबंधी निर्णयों के लिये स्पष्ट स्पष्टीकरण प्रदान करना चाहिये, ताकि नैदानिक विश्वास और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
- जन जागरूकता अभियान शुरू करना: रोगियों का विश्वास और स्वीकृति बढ़ाने के लिये, भारत को स्वास्थ्य सेवा में AI के लाभों और सीमाओं को सुगम, समझने योग्य शब्दों में समझाते हुए जन जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
- सोशल मीडिया, टी.वी. और सामुदायिक आउटरीच जैसे मीडिया चैनलों का उपयोग करके तथा पल्स पोलियो अभियान जैसे मॉडलों का अनुसरण करके, AI के प्रति जागरूकता और इसके उपयोग को प्रभावी ढंग से प्रोत्साहित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) में रूपांतरण की अपार संभावनाएँ हैं, जिससे निदान, टेलीमेडिसिन और औषधि अनुसंधान में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। हालाँकि इसे डेटा पूर्वाग्रह, बुनियादी ढाँचे की कमी और नियामकीय बाधाओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके प्रभावी एकीकरण के लिये सशक्त डेटा सेट (robust datasets), ग्रामीण क्षेत्रों में AI को अपनाना (rural AI adoption), स्पष्ट नियम (clear regulations) तथा चिकित्सकों को प्रशिक्षण देना आवश्यक है। ICMR जैसे नैतिक ढाँचे ज़िम्मेदार AI उपयोग को सुनिश्चित करते हैं, जो नवाचार, रोगी सुरक्षा एवं समानता के बीच संतुलन बनाए रखते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बदलने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका पर चर्चा कीजिये। इसके प्रभावी कार्यान्वयन में कौन-सी चुनौतियाँ बाधा उत्पन्न करती हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. निषेधात्मक श्रम के कौन-से क्षेत्र हैं, जिन्हें रोबोटिक तकनीकों के माध्यम से सतत् और प्रभावी ढंग से संचालित किया जा सकता है? ऐसी पहलों पर चर्चा कीजिये, जो प्रमुख अनुसंधान संस्थानों में मौलिक तथा लाभप्रद नवाचार के लिये अनुसंधान को आगे बढ़ा सकें। (2015) |
वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025, WEF, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, लैंगिक समानता, स्थानीय शासन मेन्स के लिये:विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक असमानता से संबंधित मुद्दे, लैंगिक असमानता से संबंधित प्रमुख कारक, लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिये उठाए जाने वाले कदम। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025 में भारत 148 देशों में 131वें स्थान पर रहा, जो वर्ष 2024 के 129वें स्थान से नीचे है और इसका लैंगिक समानता स्कोर 64.1% रहा।
- रिपोर्ट में 148 देशों में लैंगिक समानता का समग्र रूप से मूल्यांकन किया गया।
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक क्या है?
- परिचय: वर्ष 2006 से प्रतिवर्ष प्रकाशित की जाने वाली यह रिपोर्ट लैंगिक समानता के आकलन के लिये सबसे पुराना वैश्विक सूचकांक है, जो चार प्रमुख आयामों में लैंगिक अंतराल को कम करने में देशों की प्रगति को मापती है।
- आर्थिक भागीदारी और अवसर
- शैक्षणिक उपलब्धि
- स्वास्थ्य और उत्तरजीविता
- राजनीतिक सशक्तीकरण
- रेटिंग तंत्र: प्रत्येक आयाम को 0 से 1 के पैमाने पर अंकित किया जाता है, जिसमें 1 पूर्ण लैंगिक समानता को और 0 पूर्ण असमानता को दर्शाता है।
- यह सूचकांक एक रणनीतिक तुलनात्मक उपकरण के रूप में कार्य करने का उद्देश्य रखता है, जो देशों को लैंगिक असमानताओं का मूल्यांकन और तुलना करने में सक्षम बनाता है।
- उद्देश्य: स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति में लैंगिक अंतराल को कम करने की प्रगति को ट्रैक करने हेतु मार्गदर्शक उपकरण के रूप में कार्य करना।
- यह वार्षिक मानक प्रत्येक देश में हितधारकों को उनके विशेष आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के अनुरूप प्राथमिकताएँ निर्धारित करने में सहायता करता है।
वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- भारत का प्रदर्शन:
- उप-सूचकांकों में भारत ने आर्थिक भागीदारी (40.7%) में प्रगति दिखाई है, जिसमें आय समानता में 28.6% से बढ़कर 29.9% तक सुधार हुआ है। शैक्षणिक उपलब्धि 97.1% पर उच्च स्तर पर है, जो साक्षरता और उच्च शिक्षा नामांकन में लगभग समानता को दर्शाता है।
- स्वास्थ्य और उत्तरजीविता में लिंगानुपात तथा जीवन प्रत्याशा में सुधार के साथ प्रगति हुई। हालाँकि राजनीतिक सशक्तीकरण में 0.6 अंकों की गिरावट आई है; संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 14.7% से घटकर 13.8% हो गया और मंत्री पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व 6.5% से घटकर 5.6% हो गया।
- दक्षिण एशिया का प्रदर्शन: भूटान (119), नेपाल (125) और श्रीलंका (130) की रैंकिंग भारत से बेहतर रही।
- बांग्लादेश इस क्षेत्र का शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता रहा, जो 75 स्थान से वैश्विक स्तर पर 24वें स्थान पर पहुँच गया, जिसका प्रमुख कारण राजनीतिक सशक्तीकरण में प्रगति है। वहीं, पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर सबसे नीचे 148वें स्थान पर रहा।
- वैश्विक रुझान: वर्ष 2025 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में आइसलैंड (लगातार 16वें वर्ष) शीर्ष पर रहा, जबकि फिनलैंड, नॉर्वे, यूनाइटेड किंगडम और न्यूज़ीलैंड भी शीर्ष पाँच देशों में शामिल रहे।
- वैश्विक लैंगिक अंतराल 68.8% तक कम हो गया है, जो कोविड-19 महामारी के बाद की सबसे मज़बूत प्रगति को दर्शाता है, फिर भी वर्तमान गति से पूर्ण समानता हासिल करने में अभी 123 वर्ष लगेंगे।
लैंगिक अंतराल को कम करने में भारत की प्रमुख प्रगति क्या है?
- नीति और विधायी सुधार: भारत ने प्रगतिशील नीतियाँ लागू की हैं, जिनमें नारी शक्ति वंदन अधिनियम (2023) शामिल है, जिसमें विधायिकाओं में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करना, लैंगिक-संवेदनशील शासन को बढ़ावा देना शामिल है।
- शिक्षा और कौशल विकास: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और विज्ञान ज्योति जैसे कार्यक्रमों ने बालिकाओं की शिक्षा ( विशेष रूप से STEM में) तक पहुँच में सुधार किया है।
- उच्च शिक्षा में महिला सकल नामांकन अनुपात (GER) 42.5% (2017-18) से बढ़कर 46.3% (वर्ष 2022-23) हो गया है।
- आर्थिक भागीदारी: महिला श्रम शक्ति भागीदारी 23.3% (2017-18) से बढ़कर 41.7% (2023-24) हो गई है। स्टैंड-अप इंडिया और महिला ई-हाट जैसी योजनाएँ महिला उद्यमिता को बढ़ावा देती हैं।
- बदलते सामाजिक मानदंड: बदलते सामाजिक दृष्टिकोण और मीडिया में लैंगिक-तटस्थ चित्रण ने नेतृत्व तथा गैर-पारंपरिक भूमिकाओं में महिलाओं की अधिक स्वीकार्यता को सक्षम किया है।
- वित्तीय समावेशन: 28 करोड़ से अधिक महिलाओं के पास जन धन खाते हैं, जिससे उनकी स्वायत्तता में वृद्धि हुई है। PMJDY और स्टैंड-अप इंडिया जैसी योजनाएँ वित्तीय स्वतंत्रता एवं उद्यमशीलता को बढ़ावा देती हैं।
- स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकार: प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) जैसी पहलों से मातृ देखभाल में सुधार हुआ है।
- मातृ मृत्यु दर (MMR) 174 (2013-15) से घटकर 97 (2018-20) हो गई, जो महिलाओं के लिये बेहतर स्वास्थ्य परिणामों का संकेत है।
भारत में लैंगिक अंतराल को बढ़ावा देने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- महिला श्रम बल में कम भागीदारी: भारत की महिला श्रम बल में भागीदारी दर सिर्फ 41.7% (PLFS 2023-24) है, जिसमें अधिकांश महिलाएँ अनौपचारिक और निम्न मूल्यांकित भूमिकाओं (खासकर कृषि में) में हैं।
- पितृसत्तात्मक मानदंड, असुरक्षित कार्यस्थल और बाल देखभाल सहायता का अभाव महिलाओं की औपचारिक, सुरक्षित रोज़गार तक पहुँच को प्रतिबंधित करता है।
- शिक्षा और साक्षरता असमानताएँ: महिला साक्षरता लगभग 65% है जबकि पुरुषों के लिये यह 82% है (जनगणना 2011) अर्थात् 17% का अंतर है।
- 15-18 वर्ष की आयु की लगभग 40% लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं, जिनमें से 23 मिलियन लड़कियाँ मासिक धर्म से संबंधित समस्याओं और सुविधाओं की कमी के कारण स्कूल छोड़ देती हैं। शिक्षा समानता सूचकांक, 2024 में यह आँकड़ा घटकर 0.964 हो गया, जो पहले की प्रगति के विपरीत है।
- आर्थिक भागीदारी और मज़दूरी असमानता: महिलाएँ प्रतिदिन लगभग 289 मिनट अवैतनिक घरेलू कार्यों में बिताती हैं, जो पुरुषों की तुलना में 3 गुना अधिक है तथा उन्हें पुरुषों के औसत वेतन का लगभग 73% ही प्राप्त होता है, तकनीक जैसे क्षेत्रों में यह समानता और भी कम (केवल 60% तक) है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022–23 के अनुसार, महिलाओं के बिना वेतन वाले देखभाल कार्य का अनुमानित मूल्य ₹22.7 लाख करोड़ था, जो भारत की GDP का लगभग 7.5% है।
- इतना बड़ा आर्थिक योगदान होने के बावजूद यह कार्य श्रम आँकड़ों में अदृश्य बना रहता है, जिससे महिलाओं के समय का मूल्य कम आँका जाता है तथा उनकी वेतनभोगी रोज़गार में भागीदारी सीमित हो जाती है।
- इसके अलावा, कॉर्पोरेट भारत में केवल 17% प्रमुख पदों और 20% बोर्ड पदों पर ही महिलाएँ आसीन हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022–23 के अनुसार, महिलाओं के बिना वेतन वाले देखभाल कार्य का अनुमानित मूल्य ₹22.7 लाख करोड़ था, जो भारत की GDP का लगभग 7.5% है।
- योजनाओं में कार्यान्वयन अंतराल: यद्यपि अनेक सरकारी योजनाएँ लैंगिक समानता को लक्षित करती हैं, परंतु जागरूकता की कमी, अंतिम छोर तक कमज़ोर वितरण तथा लैंगिक रूप से संवेदनशील निगरानी का अभाव, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिये पर स्थित जनसंख्या में, उनके वास्तविक प्रभाव में बाधा उत्पन्न करते हैं।
भारत में लैंगिक असमानता को कम करने हेतु सरकार की प्रमुख पहले क्या हैं?
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- महिला शक्ति केंद्र
- महिला पुलिस कार्यकर्त्ता
- राष्ट्रीय महिला कोष
- राजनीतिक: सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित की हैं।
- संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई (1/3) सीटें आरक्षित की गई हैं, जिसमें अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिये आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।
- महिला उद्यमिता: महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये, सरकार ने स्टैंड-अप इंडिया और महिला-ए-हाट (महिला उद्यमिता/ SHG/NGO को समर्थन देने हेतु एक ऑफलाइन विपणन मंच), उद्यमिता और कौशल विकास कार्यक्रम (ESSDP) जैसे कार्यक्रम शुरू किये हैं।
भारत में लैंगिक समानता को सुदृढ़ करने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- सुरक्षा संरचनाओं के प्रवर्तन को दृढ़ करना: लैंगिक संरचनाओं (जैसे, POCSO, घरेलू हिंसा अधिनियम) के प्रवर्तन को दृढ़ करना और हिंसा तथा प्रावधानों से वंचित लोगों की सहायता के लिये वन-स्टॉप सेंटर एवं निर्भया फंडों की पहुँच का विस्तार करना।
- आर्थिक समावेशन को शामिल करना: सामाजिक सुरक्षा सुधारों (क्रेसी, मातृ लाभ, भर्ती प्रोत्साहन) के माध्यम से महिला श्रम बल भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है, साथ ही समय-उपयोगकर्त्ताओं के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा सुधारों को शामिल करना और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना भी आवश्यक है।
- शिक्षा, कौशल और डिजिटल पहुँच: छात्रवृत्तियों और मासिक धर्म स्वच्छता सहायता के माध्यम से यह सुनिश्चित करना कि लड़कियाँ शिक्षा से वंचित न हों तथा नियमित रूप से स्कूल जाती रहें।
- डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया के तहत STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित) तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है और प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) एवं आकांक्षी ज़िलों में मोबाइल पहुँच के माध्यम से डिजिटल लैंगिक अंतराल को पाटने का प्रयास किया जा रहा है।
- स्वास्थ्य, पोषण और सुरक्षा अवसंरचना: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के माध्यम से प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया जा रहा है, पोषण अभियान के तहत कुपोषण से सामना किया जा रहा है तथा महिलाओं की आवाजाही व सार्वजनिक सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिये लैंगिक उत्तरदायी अवसंरचना जैसे कि सुरक्षित परिवहन, सड़क प्रकाश व्यवस्था, CCTV कैमरे व महिला सहायता डेस्क सुनिश्चित किये जा रहे है।
- समावेशी शासन और डेटा-संचालन नीति: औद्योगिक राज अध्ययन में शामिल महिला किराएदारों की क्षमता का निर्माण करके ज़मीनी स्तर पर नेतृत्व को बढ़ावा देना।
- लैंगिक आधारों को दृढ़ करना, सभी मंत्रालयों में लैंगिक आधारों को सक्रिय करना तथा लक्ष्य नीतिगत हस्तक्षेपों के लिये लैंगिक आधारों का नियमित संग्रह सुनिश्चित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2025 में भारत की गिरती रैंकिंग की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये। प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)' का श्रेणीकरण प्रदान करता है ? (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021) |