डेली न्यूज़ (03 Apr, 2020)



J&K के अधिवास नियम

प्रीलिम्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर के अधिवासी 

मेन्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन आदेश  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों का अनुकूलन) आदेश, 2020 (J&K Reorganisation (Adaptation of State Laws) Order 2020) की धारा 3A के तहत राज्य के अधिवासियों को पुन: परिभाषित किया है।

मुख्य बिंदु:

  • अधिसूचना के अनुसार, जो व्यक्ति जम्मू कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में पंद्रह वर्ष की अवधि से रह रहा है या सात वर्ष तक वहाँ अध्ययन किया है और जम्मू-कश्मीर स्थित शैक्षणिक संस्थान में 10वीं तथा 12वीं कक्षा की परीक्षा में शामिल हुआ हो, नवीन अधिवास की परिभाषा में शामिल होगा।
  • इस आदेश के माध्यम से, केंद्र ने जम्मू-कश्मीर नागरिक सेवाओं (विशेष प्रावधानों) अधिनियम (J&K Civil Services (Special Provisions) Act) को निरस्त कर दिया है।

क्या थे प्रावधान?

  • संविधान का अनुच्छेद 35A (अब निरस्त) जम्मू-कश्मीर विधानसभा को जम्मू-कश्मीर के अधिवासियों को परिभाषित करने का अधिकार देता है तथा ऐसे निवासी ही वहाँ नौकरियों तथा अचल संपत्ति के लिये आवेदन करने के लिए पात्र थे।

नवीन अधिसूचना के लाभार्थी:

  • नवीन बदलाव का उद्देश्य अखिल भारतीय सेवा, सार्वजनिक उपक्रमों,  केंद्र सरकार के स्वायत्त निकाय, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, वैधानिक निकायों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों तथा मान्यता प्राप्त अनुसंधान संस्थानों के ऐसे अधिकारी जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में दस वर्ष सेवा प्रदान की है, उनके बच्चों को अधिवास की परिभाषा में शामिल करना हैं।
  • इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर के राहत और पुनर्वास आयुक्त (प्रवासियों) (Relief and Rehabilitation Commissioner (Migrants)) के तहत प्रवासी के रूप में पंजीकृत व्यक्तियों को भी नवीन परिभाषा में शामिल किया जाएगा। 
  • इसमें जम्मू और कश्मीर(J&K) में निवास करने वाले ऐसे लोग जिनके बच्चें रोज़गार, व्यवसाय, अन्य कोई पेशा या आजीविका कारणों से जम्मू और कश्मीर के बाहर रहते हैं लेकिन उनके माता-पिता उपर्युक्त शर्तों को पूरा करते हैं, शामिल होंगे।

प्रमाण-पत्र जारीकर्त्ता अधिकारी:

  • अधिनियम के प्रावधान तहसीलदार को अधिवास प्रमाण-पत्र जारी करने के लिये सक्षम प्राधिकारी के रूप में प्राधिकृत करते हैं।

राज्य कानून में संशोधन:  

  • अब तक पूर्ववर्ती J&K राज्य के 29 कानूनों को निरस्त कर दिया गया है जबकि 109 में संशोधन किया गया है। 

निष्कर्ष:

  • यह आदेश राज्य से बाहर रह रहे विशिष्ट लोगों को राज्य में नौकरी तथा अचल संपत्ति अधिग्रहण का अधिकार देता है, अत: यह आदेश राज्य को वास्तविक अर्थों में भारत के साथ एकीकृत करने की दिशा में अच्छा प्रयास है। 

स्रोत: द हिंदू 


COVID-19 का विद्युत उत्पादन पर प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, अक्षय ऊर्जा, फोर्स मेजर प्रावधान, भारतीय सौर ऊर्जा निगम

मेन्स के लिये:

COVID-19 का विद्युत उत्पादन पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 के कारण लॉकडाउन और विद्युत की मांग में गिरावट के मद्देनज़र कुछ राज्यों ने अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) खरीद में कटौती एवं उत्पादकों को भुगतान न करने को लेकर नोटिस जारी किये हैं। 

प्रमुख बिंदु:

Power-shift

  • राज्यों ने विद्युत खरीद समझौते (Power Purchase Agreements-PPA) में फोर्स मेजर प्रावधान (Force Majeure clause-FMC) का प्रयोग करते हुये विद्युत खरीद में कटौती एवं अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को भुगतान न करने का निर्णय लिया है।
  • पंजाब ने राज्य को विद्युत आपूर्ति करने वाले कुछ अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को नोटिस भेजा है कि वह विद्युत खरीद में कमी करें।
  • उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जिसने फोर्स मेजर और राजस्व घटने की वजह से भुगतान करने में सक्षम न होने के कारण सौर ऊर्जा परियोजनाओं को भुगतान करने से इनकार कर दिया था। भारतीय सौर ऊर्जा निगम (Solar Energy Corporation of India-SECI) ने इससे जुड़े आवेदन को खारिज कर दिया था।
  • मध्य प्रदेश देश का प्रमुख अक्षय ऊर्जा उत्पादक राज्य है, उसने सभी अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को नोटिस भेजा है कि विद्युत खरीद समझौते के तहत वह बाध्यताएँ (ऊर्जा वितरण संबंधी) पूरी करने में सक्षम नहीं है क्योंकि विद्युत बिल संग्रह से आने वाले राजस्व में बहुत कमी आई है।  
  • अक्षय ऊर्जा में सौर, पवन, छोटी पनबिजली परियोजनाएँऔर बॉयोमास शामिल हैं। इनका संचालन अनिवार्य होता है जिसका मतलब यह है कि इन्हें किसी भी स्थिति में रोका या बंद नहीं किया जा सकता है।

फोर्स मेजर प्रावधान (Force Majeure Clause-FMC):

  • आपूर्ति में फोर्स मेजर प्रावधान या परियोजना चालू करने के प्रावधान में तमाम वजहें और परिस्थितियाँ दी गई हैं, जो मानव के नियंत्रण से बाहर हैं। इन प्रावधानों में उत्पादन संबंधी किसी पक्ष को पूरी तरह से हटाने का प्रावधान नहीं है, बल्कि इस नियम से आपूर्ति को कुछ समय के लिये रोका जा सकता है। 

अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy):

  • अक्षय उर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा में वे सारी ऊर्जा शामिल हैं जो बहुत कम प्रदूषणकारक होती हैं तथा जिनके स्रोत का क्षय नहीं होता या जिनके स्रोत का पुनःभरण होता रहता है।
  • अक्षय ऊर्जा के प्रकार:
    • सौर ऊर्जा (Solar Energy)
    • वायु ऊर्जा (Wind Energy)
    • बायोमास ऊर्जा (Biomass Energy)

भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड

(Solar Energy Corporation of India):

  • भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, जिसकी स्‍थापना 20 सितंबर, 2011 को जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के क्रियान्वयन और उसमें निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये की गई थी।
  • यह सौर ऊर्जा क्षेत्र को समर्पित एकमात्र केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। इसे मूल रूप में कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 की कंपनी (नॉट फॉर प्रॉफिट) के तहत निगमित किया गया था।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


कोरोनावायरस महामारी और मृत्यु दर

प्रीलिम्स के लिये

अध्ययन से संबंधित मख्य बिंदु 

मेन्स के लिये 

लैंसेट द्वारा किये गए अध्ययन के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

लैंसेट इन्फेक्शस डिजीज़ (Lancet Infectious Diseases) द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, कोरोनोवायरस संक्रमित व्यक्ति औसतन लगभग 25 दिनों के लिये अस्पताल में हो सकता है और लक्षणों की शुरुआत से मृत्यु तक की औसत अवधि लगभग 18 दिनों की है। 

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के अनुसार, चीन में जहाँ कोरोनावायरस का पहला रोगी पाया गया था वहाँ समग्र संक्रमण दर 0.66 प्रतिशत थी, हालाँकि यह अब वैश्विक स्तर पर एक बड़ा संकट बन गया है।
  • ध्यातव्य है कि लंदन स्थित इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्त्ताओं ने अपने अध्ययन में कहा था कि 'अपरिष्कृत मृत्यु अनुपात’ (Crude Fatality Ratio) लगभग 3.67 प्रतिशत था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के बराबर है।
    • 'अपरिष्कृत मृत्यु अनुपात’ संक्रमण की गंभीरता की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि यह सिर्फ कुल मामलों की तुलना में कुल मृत्यु की संख्या को बताता है।
  • लैंसेट द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, कोरोनोवायरस की गंभीरता एक रोगी की उम्र पर निर्भर करती है और समग्र मामलों में मृत्यु अनुपात 1.38 प्रतिशत है।
    • उम्र के आधार पर 60 वर्ष से अधिक की उम्र वाले रोगियों में मृत्यु दर 6.4 प्रतिशत है,  80 से अधिक की उम्र वाले रोगियों में मृत्यु दर 13.4 प्रतिशत है और 60 से कम उम्र वाले रोगियों में मृत्यु  दर 0.32 प्रतिशत है।
    • इस प्रकार 80 से अधिक उम्र वाले रोगियों में इस वायरस के कारण मृत्यु दर सबसे अधिक है और 60 से अधिक उम्र वाले रोगियों में मृत्यु दर सबसे कम है।

अध्ययन के निहितार्थ

  • कोरोनावायरस (COVID-19) के मामलों में लैंसेट द्वारा किया गया अध्ययन हाल के इन्फ्लूएंजा महामारियों (जैसे- वर्ष 2009 में H1N1 इन्फ्लूएंजा) की तुलना में काफी अधिक है।
  • कोरोनावायरस (COVID-19) का तेज़ी से हो रहा प्रसार इस वायरस का आगामी दिनों में और गंभीर स्वास्थ्य संकट बनने का इशारा करता है।
  • अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता वाले संक्रमित व्यक्तियों के अनुपात को यदि संभावित संक्रमण की दर (लगभग 50-80 प्रतिशत) के साथ संयोजित किया जाए तो यह दर्शाता है कि सबसे उन्नत स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियाँ भी इस वायरस से लड़ने में असफल हो सकती हैं।
  • इसलिये लैंसेट द्वारा किया गया यह अध्ययन दुनिया भर के देशों को और अच्छी तैयारी करने के लिये प्रेरित करता है, क्योंकि कोरोनावायरस महामारी अभी भी जारी है।

मौजूदा स्थिति

  • कोरोनावायरस मौजूदा समय में विश्व के समक्ष एक गंभीर चुनौती बन गया है और दुनिया भर में इसके कारण अब तक 52000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और तकरीबन 1000000 लोग इसकी चपेट में हैं। 
  • भारत में भी स्थिति काफी गंभीर है और इस खतरनाक वायरस के कारण अब तक देश में 56 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा देश में 2300 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं। 
  • भारत सरकार द्वारा कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में 21 दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की थी।
  • इसके अलावा गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा 21,064 राहत शिविर बनाए गए हैं और लगभग 6,66,291 लोगों को शरण दी गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, हवाई अड्डों पर 15.25 लाख यात्रियों की जाँच की गई, 12 प्रमुख बंदरगाहों पर 40,000 लोगों की जाँच की गई और भूमि सीमाओं पर 20 लाख लोगों की जाँच की गई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ऑपरेशन संजीवनी

प्रीलिम्स के लिये:

ऑपरेशन संजीवनी, ऑपरेशन राहत, ऑपरेशन कैक्टस, ऑपरेशन नीर

मेन्स के लिये:

भारत-मालदीव संबंध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय वायु सेना (Indian Air Force- IAF)  ने ‘ऑपरेशन संजीवनी’ (Operation Sanjeevani) के माध्यम से आवश्यक दवाइयों तथा अस्पताल के उपयोग संबंधी 6.2 टन सामग्री को मालदीव पहुँचाया।

मुख्य बिंदु:

  • दवाइयों तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं को भारत में आठ आपूर्तिकर्ताओं से खरीदा गया था, लेकिन COVID- 19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण किसी अन्य माध्यम से इन्हे मालदीव ले जाना संभव नहीं हो सकता था।
  • मालदीव की सरकार के अनुरोध पर, वायुसेना ने ‘ऑपरेशन संजीवनी’ प्रारंभ किया तथा परिवहन विमान C-130J के माध्यम से मालदीव की उड़ान से पहले नई दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और मदुरै में हवाई अड्डों से इन दवाओं को एयर-लिफ्टिंग की।
  • कुछ समय पूर्व ही भारत ने सेना के 14-सदस्यीय मेडिकल दल को एक वायरल परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित करने के लिये मालदीव भेजा था। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा मालदीव को 5.5 टन आवश्यक दवाएँ उपहार के रूप में भेंट की गईं।

सरकार की अन्य पहल: 

  • COVID- 19 महामारी पर कार्य कर स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा से संबंधित उपकरणों का आयात करने में भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों की मदद करने के लिये भी भारत सरकार ने कदम उठाए हैं। इसके लिये भारत सरकार ने एयर इंडिया की शंघाई तथा हांगकांग कार्गो उड़ान संचालित करने के लिये चीन से मंज़ूरी प्राप्त कर ली है।

ऑपरेशन नीर (Operation Neer): 

  • 04 सितंबर 2014 को माले (मालदीव) को अपने मुख्य RO प्लांट के खराब होने से गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ा। संयंत्र के पुनः चालू होने तक शहर को प्रतिदिन केवल 100 टन पानी के साथ निर्वाह करना पड़ रहा था।
  • मालदीव सरकार के अनुरोध पर, भारतीय वायुसेना ने तीन C-17 तथा तीन IL- 76 विमानों को दिल्ली से अराक्कोनम (Arakkonam) तथा उसके बाद माले तक एयरलिफ्ट करने के लिये तैनात किया गया। 05-07 सितंबर के बीच, IAF ने माले को 374 टन पीने के पानी की आपूर्ति की।

ऑपरेशन कैक्टस (Operation Cactus):

  • 3 नवंबर, 1988 की रात को भारतीय वायु सेना ने मालदीव के लिये इस अभियान को शुरू किया। मालदीव द्वारा भाड़े के आक्रमणकारियों (Mercenary Invasion) के खिलाफ सैन्य मदद की अपील करने पर IAF के IL-76s, An- 2s, An-32s ने त्रिवेंद्रम से मालदीव के लिये उड़ान भरी, जबकि IAF मिराज 2000s द्वारा आसपास के द्वीपों पर निगरानी की गई। 
  • इस ऑपरेशन ने भारतीय वायुसेना की सामरिक एयरलिफ्ट क्षमता को प्रदर्शित किया।

ऑपरेशन राहत (Operation Rahat):

  • अरब बलों के गठबंधन (Coalition Arab Forces) ने मार्च 2015 में यमन में हवाई हमले शुरू कर दिये। ऐसे में यमन के विभिन्न स्थानों पर फँसे 4000 से अधिक भारतीय नागरिकों को तत्काल निकाले जाने की आवश्यकता थी। 
  • भारतीय नागरिकों की निकासी के लिये विदेश मंत्रालय, भारतीय वायुसेना, भारतीय नौसेना और एयर इंडिया की संयुक्त टीम ने ऑपरेशन को पूरा करने पर कार्य किया। 

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व बैंक, COVID-19 

मेन्स के लिये:

COVID-19 से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के कारण पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में लगभग 11 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे आ सकते हैं।  

प्रमुख बिंदु:

  • संपूर्ण विश्व में इस वायरस के कारण अभी तक लगभग 7,80,000 लोग संक्रमित हो चुके हैं एवं 37,000 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • वाशिंगटन स्थित एक वैश्विक ऋणदात्री संस्था के पूर्वानुमानों के अनुसार पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में वर्ष 2020 में लगभग 35 मिलियन लोग गरीबी से बाहर आ सकते थे, जिसमें केवल चीन से ही 25 मिलियन से अधिक लोग शामिल हैं।
  • COVID-19 के और ज्यादा फैलने या फिर बहुत लंबे समय तक चलने से इसका पर्यटन गतिविधि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

अर्थव्यवस्था:

  • विकासशील पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में वर्ष 2020 में COVID-19 के कारण वृद्धि दर 2.1% रह सकती है, जो 2019 में 5.8% थी। सबसे बुरी दशा में यह नकारात्मक 0.5% तक हो सकती है।
  • चीन की वृद्धि दर वर्ष 2019 के 6.1% से घटकर वर्ष 2020 में वृद्धि दर 2.3% रह सकती है।

स्वास्थ्य सेवा हेतु दिशा-निर्देश:

  • रिपोर्ट में COVID-19 की रोकथाम और व्यापक आर्थिक नीतियों पर ‘एकीकृत दृष्टिकोण’ का सुझाव दिया गया है।
  • सरकार को आइसोलेशन वार्ड की सुविधा, सेपरेशन किट, मास्क इत्यादि के शीघ्र  उत्पादन पर ज़ोर देना चाहिये।
  • सरकार को अधिक-से-अधिक अत्याधुनिक उपकरणों से लैस प्रयोगशालाओं को स्थापित करना चाहिये, ताकि व्यक्ति में संक्रमण की पूरी तरह से पुष्टि हो सके।
  • स्वास्थ्य सेवा के लिये सब्सिडी COVID-19 की रोकथाम में मदद करेगा तथा यह सुनिश्चित करेगा कि आने वाले दिनों में दुनिया की अर्थव्यवस्था कैसी होगी।

विश्व बैंक (World Bank):

  • विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र की ऋण प्रदान करने वाली एक विशिष्ट संस्था है, इसका उद्देश्य सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक वृहद वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल करना तथा विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन के प्रयास करना है।
  • यह नीति सुधार कार्यक्रमों एवं संबंधित परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करता है। विश्व बैंक की सबसे खास बात यह है कि यह केवल विकासशील देशों को ऋण प्रदान करता है।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निर्माण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इसके अंतर्गत विश्व को आर्थिक तरक्की के मार्ग पर लाने, विश्व में गरीबी को कम करने, अंतर्राष्ट्रीय निवेश को बढ़ावा देने जैसे पक्षों पर बल दिया गया है।

स्रोत: द हिंदू


पीएम केयर्स के तहत विदेशी सहयोग को स्वीकृति

प्रीलिम्स के लिये:

पीएम केयर्स (PM-CARES)

मेन्स के लिये

आपदा प्रबंधन, COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये भारत सरकार ने ‘प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपातकालीन स्थिति राहत कोष (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations or PM-CARES) के तहत विदेशी सहयोग को स्वीकार करने का निर्णय लिया है।

मुख्य बिंदु: 

  • सरकार के इस निर्णय के बाद अन्य देशों के नागरिक, संस्थाएँ और सरकार भी इस राहत कोष में अपना सहयोग कर सकेंगे।
  • ध्यातव्य है कि भारत सरकार ने पिछले 16 वर्षों से आपदा प्रबंधन के लियेप्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष’ (Prime Minister's National Relief Fund- PMNRF) के तहत किसी भी प्रकार की विदेशी सहायता को स्वीकार नहीं किया था।  
  • हालाँकि वर्तमान में केवल पीएम केयर्स (PM-CARES) के तहत ही विदेशी सहयोग/अनुदान की अनुमति दी गई है अन्य किसी भी प्रकार के फंड या राहत कोष जैसे- PMNRF में विदेशी सहयोग पर अभी भी पाबंदी बनी रहेगी।

पीएम केयर्स (PM-CARES) फंड:

  • पीएम केयर्स फंड की स्थापना 27 मार्च, 2020 एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट (Public Charitable Trust) के रूप में की गई थी।
  • देश का प्रधानमंत्री इस फंड का अध्यक्ष होगा तथा केंद्रीय गृह मंत्री, केंद्रीय रक्षा मंत्री और केंद्रीय वित्त मंत्री भी इस फंड के सदस्य होंगे। 
  • इस फंड के तीन अन्य ट्रस्टियों को प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाएगा, जो अनुसंधान, स्वास्थ्य, विज्ञान, सामाजिक कार्य, कानून, लोक प्रशासन और परोपकार (Philanthropy) के क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्ति होंगे।
  • इस फंड के उद्देश्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल या कोई अन्य आपात स्थिति, आपदा या संकट,  चाहे वह मानव निर्मित या प्राकृतिक, में किसी भी प्रकार की राहत या सहायता पहुँचाना। 
  •  इसमें  स्वास्थ्य सेवा या दवा सुविधाओं का निर्माण या उन्नयन, अन्य आवश्यक बुनियादी ढाँचे, प्रासंगिक अनुसंधान या किसी अन्य उद्देश्य के लिये आर्थिक सहायता उपलब्ध करना आदि शामिल है। 

PMNRF के तहत विदेशी सहयोग स्वीकार का करने के कारण: 

  • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आयी सुनामी के समय भारत सरकार ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष के तहत किसी भी प्रकार की विदेशी सहायता को लेने से इनकार कर दिया था। हालाँकि इस दौरान सहायता के इच्छुक राष्ट्र, विदेशी नागरिक आदि स्वयंसेवी संस्थाओं जैसे अन्य माध्यमों से सहायता भेज सकते थे।
  • वर्ष 2004 में भारत सरकार की नीति में हुए इस बड़े बदलाव के बाद अब तक इसका अनुसरण किया जाता रहा है। 
  • पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अन्य क्षेत्रों में प्रगति के साथ ही आपदा प्रबंधन और पुनर्वास में अपनी क्षमता में महत्त्वपूर्ण विकास किया है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, आपदा में राहत के अतिरिक्त विदेशी सहायता देने वाले देशों की अन्य राजनीतिक/रणनीतिक अपेक्षाएँ होती हैं, ऐसे में अन्य देशों से सहायता न लेने का निर्णय भारतीय विदेश नीति को मज़बूती प्रदान करता है।
  • हालाँकि इस दौरान भारत ने अन्य देशों में आपदा या किसी अन्य संकट की स्थिति में आर्थिक तथा अन्य आवश्यक सहायता उपलब्ध करायी है। उदाहरण- वर्ष 2005 में चक्रवात कट्रीना (Hurricane Katrina) के बाद अमेरिका को 25 टन राहत सामग्री की सहायता, वर्ष 2005 में पाकिस्तान को भूकंप से उबरने के लिये अन्य सहयोगों के साथ 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक मदद, वर्ष 2008 चीन में भूकंप के बाद राहत सामग्री भेजी गई थी।

पीएम केयर्स के तहत विदेशी सहायता की स्वीकृति के कारण:

  • COVID-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियाँ पहले कभी नहीं देखी गई, किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव तथा इस बीमारी की अनिश्चितता को देखते हुए सरकार ने ‘पीएम केयर्स’ के तहत विदेशी सहायता स्वीकार करने का फैसला लिया है।    
  • इस फंड की स्थापना से पहले कई विदेशी संस्थाओं, नागरिकों आदि ने COVID-19 की चुनौती से निपटने में सरकार के प्रयासों में सहायता देने की इच्छा व्यक्त की थी। 

निष्कर्ष:

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने आपदा-प्रबंधन के लिये स्वास्थ्य, तकनीकी और अन्य क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, देश में किसी आपदा के लिये PMNRF में विदेशी सहायता को स्वीकार न करना भारत को बिना किसी दबाव के विदेश नीति स्पष्ट करने में सहायता प्रदान करता है।  परंतु वर्तमान में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई अनिश्चितता की स्थिति में सभी प्रकार की सहायता के लिये मार्ग खोलना इस आपदा से निपटने के प्रयासों को मज़बूती प्रदान करेगा।

स्त्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


मनरेगा के तहत काम की मांग में बढ़ोतरी

प्रीलिम्स के लिये

मनरेगा (MNREGA)

मेन्स के लिये

मनरेगा के तहत काम की मांग में वृद्धि के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

मनरेगा (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act- MNREGA) के विषय में जारी आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, 5.47 करोड़ परिवारों ने  वित्तीय वर्ष 2019-20 में मनरेगा के तहत कार्यों की मांग की, जो कि वित्तीय वर्ष 2010-11 के पश्चात् सबसे अधिक है। उल्लेखनीय है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में तकरीबन 5.47 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की थी।

प्रमुख बिंदु

  • आँकड़ों के अनुसार, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था धीमी होती जा रही है मनरेगा कार्यक्रम के तहत काम की मांग बढ़ती जा रही है। इसीलिये वित्तीय वर्ष 2019-20 में मनरेगा के तहत काम की मांग 9 वर्ष के सबसे उच्चतम स्तर पर आ गई है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 में मनरेगा के तहत कार्य करने वाले लोगों की संख्या भी काफी अधिक है, इस अवधि में तकरीबन 7.86 करोड़ लोग देश भर के विभिन्न स्थलों पर कार्यरत थे। यह वित्तीय वर्ष 2012-13 के बाद सबसे अधिक है।
  • अन्य आँकड़ों के अनुसार, शून्य व्यय वाली ग्राम पंचायतों की संख्या में भी गिरावट आई है।
    • वित्तीय वर्ष 2019-20 में ऐसी पंचायतों की संख्या 9,144 और वित्तीय वर्ष 2018-19 में 10,978 थी।
    • उल्लेखनीय है कि भारत में कुल 2.63 लाख ग्राम पंचायतें हैं।
  • शून्य व्यय वाली पंचायतों की संख्या में हो रही गिरावट से यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिक-से-अधिक पंचायतें बेरोज़गारों को अकुशल कार्य प्रदान करने के लिये मनरेगा के तहत आवंटित धन का उपयोग कर रही हैं।
  • मनरेगा के तहत काम की मांग करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि के बावजूद भी इसके तहत मिलने वाली मज़दूरी में कुछ खास बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली है।
    • आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति औसत मनरेगा मज़दूरी 182.09 रुपए थी, जो कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में 179.13 रुपए था।
    • इसी दौरान सामग्री तथा अन्य संबंधित मदों पर आने वाली प्रति व्यक्ति प्रति दिन औसत लागत वित्तीय वर्ष 2018-19 में 247.19 रुपए से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2019-20 में बढ़कर 263.3 रुपए हो गई।
  • आँकड़ों से यह भी ज्ञात होता है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान कुल 263.73 करोड़ व्यक्ति दिवस (Person Days) उत्पन्न हुए, जो कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में 267.96 करोड़ से थोड़ा कम है। हालाँकि मनरेगा को लेकर ये अंतिम आँकड़े नहीं है, सरकार द्वारा अंतिम आँकड़े अप्रैल माह के अंत तक प्रस्तुत किये जाएंगे।

मनरेगा

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया।
  • ग्रामीण भारत को ‘श्रम की गरिमा’ से परिचित कराने वाला मनरेगा रोज़गार की कानूनी स्तर पर गारंटी देने वाला विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम है।
  • मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान किया गया है।
    • ध्यातव्य है कि सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।
  • मनरेगा एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है। वर्तमान में इस कार्यक्रम में पूर्णरूप से शहरों की श्रेणी में आने वाले कुछ ज़िलों को छोड़कर देश के सभी ज़िले शामिल हैं। मनरेगा के तहत मिलने वाले वेतन के निर्धारण का अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास है। जनवरी 2009 से केंद्र सरकार सभी राज्यों के लिये अधिसूचित की गई मनरेगा मज़दूरी दरों को प्रतिवर्ष संशोधित करती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


COVID- 19 और प्रवासी श्रमिक शिविर

प्रीलिम्स के लिये:

राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष, अधिसूचित आपदाएँ

मेन्स के लिये: 

आपदा प्रबंधन

चर्चा में क्यों?

COVID- 19 महामारी के चलते देश में लगाए गए 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन को दृष्टिगत रखते हुए गृह मंत्रालय ने राज्यों को राजमार्गों पर तत्काल राहत शिविर लगाने तथा नियमित चिकित्सा जाँच के आदेश दिये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • मंत्रालय ने राज्यों को श्रमिकों एवं बेघर लोगों के लिये अस्थायी आवास, भोजन, कपड़े, चिकित्सा देखभाल आदि का प्रबंधन करने तथा राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Funds- SDRF) का उपयोग करने के लिये अधिकृत किया है।
  • गृह मंत्रालय ने COVID- 19 महामारी को 'अधिसूचित आपदा' (Notified Disaster) के रूप में मानने का फैसला किया है। 
  • इसके अलावा मंत्रालय ने राज्यों को शिविरों में लोगों को प्रदत्त सुविधाओं, ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan- PMGKY) के तहत प्रदत राहत पैकेज आदि के बारे में जानकारी देने के निर्देश दिया है। 

महत्त्व:

  • इस कदम के बाद राज्य सरकारें SDRF अधिसूचित आपदाओं के लिये उपलब्ध SDRF निधि का उपयोग COVID- 19 महामारी के प्रबंधन में कर सकेंगे। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य रह कि SDRF को अगले वित्त वर्ष के लिये पहले से ही लगभग 29,000 करोड़ का आवंटन किया जा चुका है।

राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF):

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम’, 2005 (Disaster Management Act, 2005) की धारा 48 (1) (a) के तहत राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) का गठन किया गया है। 
  • SDRF राज्य सरकार के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि होती है जो अधिसूचित आपदाओं के प्रति तत्काल प्रतिक्रिया करने तथा राहत प्रदान करने के व्यय को पूरा करने में काम आती है।
  • केंद्र सरकार द्वारा वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, दो समान किश्तों में निधि जारी की जाती है। 
  • केंद्र, सामान्य श्रेणी के राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के लिये SDRF आवंटन में 75% और विशेष श्रेणी राज्यों (पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर) के लिये 90% योगदान देता है।

SDRF में अधिसूचित आपदाएँ: 

  • चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, मेघ प्रस्फुटन, कीट हमला, तुषार तथा शीत लहर।

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 के कारण गैर निष्पादित परिसंपत्तियों में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

गैर निष्पादित संपत्तियाँ, COVID-19 

मेन्स के लिये

भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव, COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश के कई बैंकों ने चिंता व्यक्त की है कि COVID-19 के कारण औद्योगिक गतिविधियों के रुकने से आने वाले दिनों में बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों (Non-Performing Assets- NPAs)की संख्या में वृद्धि हो सकती है।

मुख्य बिंदु:  

  • एक अनुमान के अनुसार, पहले से ही बड़ी मात्रा में NPA का दबाव झेल रहे भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में लॉकडाउन के परिणामस्वरूप ऐसे लोन की संख्या बढ़ सकती है।
  • बैंकों ने चिंता व्यक्त की है कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन की समाप्ति के पश्चात भी कुछ क्षेत्रों कंपनियों के लिये सामान्य स्थिति में लौटना और पहले की तरह उत्पादन शुरू करना आसान नहीं होगा।
  • विशेषतः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र (Micro,Small and Medium Enterprise- MSME) तथा मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर एवं ऊर्जा क्षेत्र में दिये गए लोन पर बड़ी मात्र में NPA के बढ़ने की आशंकाएँ हैं। 
  • बैंकों ने भारतीय रिज़र्व बैंक के सहयोग के बावज़ूद संवेदनशील क्षेत्र के संदर्भ में अपनी चिंताएँ सरकार के साथ साझा की हैं।
  • ध्यातव्य है कि भारत सरकार ने COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये 24 मार्च, 2020 को अगले 21 दिनों के लिये देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। जिसके बाद अतिआवश्यक सेवाओं को छोड़कर देश में लगभग सभी प्रकार की गतिविधियों (यातायात, उद्योग आदि) पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था।   

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम

(Micro,Small and Medium Enterprise- MSME): 

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के उद्यमों को ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006’ के तहत दो श्रेणियों में बाँटा गया है:
    1. विनिर्माण उद्यम (Manufacturing Enterprise): 
    • सूक्ष्म (Micro): जिनकी स्थापना के लिये 25 लाख रुपए से अधिक के निवेश की आवश्यकता न हो।    
    • लघु (Small): निवेश की सीमा 25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए के बीच।    
    • मध्यम (Medium):  निवेश की सीमा 5 से 10 करोड़ रुपए के बीच ।
      2. सेवा उद्यम (Service Enterprise): 
    • सूक्ष्म (Micro): जिनकी स्थापना के लिये आवश्यक उपकरणों में  कुल निवेश 10 लाख रुपए से अधिक न हो।    
    • लघु (Small): निवेश की सीमा 10 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए के बीच।    
    • मध्यम (Medium): निवेश की सीमा 2 से 5 करोड़ रुपए के बीच। 

NPA में वृद्धि के कारण:  

  • विशेषज्ञों के अनुसार, हाल के दिनों में भारतीय उत्पाद बाज़ार में लगातार घटती मांग से जूझ रहे थे, ऐसे में देशव्यापी लॉकडाउन के बाद ऐसे उद्योगों को पुनः सामान्य स्थिति में लाना एक बड़ी चुनौती होगी।
  • वर्तमान में भारत के साथ ही विश्व के कई देशों में पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन लागू है। ऐसे में वे औद्योगिक इकाइयाँ जो कच्चे माल के लिये अन्य देशों पर निर्भर है, आपूर्ति सेवा के बाधित होने से गंभीर रूप से प्रभावित होंगी।
  • लॉकडाउन के कारण MSME और असंगठित क्षेत्र में कर्मचारियों के पलायन से प्रतिबंधों के हटने के बाद भी कुछ समय तक ऐसी औद्योगिक इकाइयों में उत्पादन बाधित रहने की आशंकाएँ हैं।
  • इसके अतिरिक्त पूँजी प्रधान क्षेत्र जैसे-हवाई यातायात, अचल संपत्ति, आभूषण आदि की मांग में भी तेज़ी आने में समय लग सकता है।

प्रभाव: 

  • वित्तीय क्षेत्र के विश्लेषकों के अनुसार, शेयर बाज़ार में ‘तेज़ी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुओं’ (Fast Moving Consumer Goods-FMCG) की अपेक्षा वित्तीय क्षेत्र और बैंक शेयर को अधिक नुकसान हुआ है।
  • हाल ही में अमेरिका की रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस’ (Moody's Investors Service) ने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को स्थिर के स्थान पर नकारात्मक की श्रेणी में रखा है क्योंकि संस्था के अनुमान के अनुसार, भारतीय आर्थिक क्षेत्र में बाधाओं के कारण आने वाले दिनों में बैंकों की संपत्तियों में गिरावट देखी जा सकती है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में भारतीय बैंकिग क्षेत्र में 44% लोन हाई रिजिलियंस (High Resilience) श्रेणी के उद्योगों जैसे-फार्मास्यूटिकल्स, दूरसंचार, उर्वरक, तेल रिफाइनरी, बिजली और गैस वितरण आदि तथा 52% लोन मोडरेट रिजिलियंस (Moderate Resilience) श्रेणी की कंपनियों जैसे-ऑटोमोबाइल निर्माता, विद्युत् उत्पादन, सड़क और निर्माण को दिया गया है।
  • मात्र 4% लोन ही लीस्ट रिजिलियंट (Least Resilient) क्षेत्र जैसे- एयरलाइंस, आभूषण संबंधी कंपनियों और रियल स्टेट (Real State) आदि को दिया गया है, जिन पर इस लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव हो सकता है।   

सरकार का पक्ष :

  • अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में इस लॉकडाउन के 21 दिनों से आगे चलने की उम्मीद नहीं है और हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि भारतीय अर्थव्यवस्था की तन्यकता (Resilience) बहुत अधिक है। 
  • सरकार द्वारा कंपनियों और बैंकों को ऋण लौटने की समय-सीमा में दी गई छूट से आर्थिक क्षेत्र को इस संकट से उबरने में सहायता प्राप्त होगी। 
  • इसके साथ-साथ इस चुनौती से कम-से-कम नुकसान के साथ निपटने के लिये सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट में कटौती के साथ कई अन्य प्रयास किये जा रहे हैं।    

 स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 03 अप्रैल, 2020

AWS पीड़ितों को शराब मुहैया कराने पर रोक

केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के उस निर्णय पर आगामी 3 हफ्ते के लिये रोक लगा दी है, जिसमें राज्य सरकार ने अल्कोहल विड्रोवल सिंड्रोम (Alcohol Withdrawal Syndrome-AWS) के पीड़ितों को शराब प्राप्त करने की अनुमति दी थी। दरअसल, केरल सरकार ने AWS से पीड़ित लोगों की बुरी हालत को देखते हुए उन्हें चिकित्सीय परामर्श पर शराब मुहैया कराने के लिये विशेष पास जारी करने का निर्णय लिया गया था, ताकि वे आबकारी विभाग के माध्यम से आसानी से शराब प्राप्त कर सकें। उल्लेखनीय है कि देश भर में कोरोनावायरस के बढ़ते प्रसार को देखते हुए कुछ ही दिनों पूर्व सरकार ने 21 दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की थी, जिसके कारण देश भर के कई हिस्सों मुख्य रूप से केरल में शराब न मिल पाने के कारण हताश होकर आत्महत्या की प्रवृत्ति जैसी समस्याएँ देखी जा रही हैं। राज्य सरकार ने इन्हीं समस्याओं के मद्देनज़र राज्य के लोगों को पास जारी करने का निर्णय लिया था। उल्लेखनीय है कि केरल में कोरोनावायरस के अब तक 286 मामले सामने आए हैं।

टोनी लुईस

वर्षा से प्रभावित सीमित ओवरों के क्रिकेट मैचों के नतीजे के लिये प्रयोग होने वाले डकवर्थ-लुईस स्टर्न पद्धति (Duckworth-Lewis-Stern Method) अर्थात् DLS नियम के सूत्रधार और गणितज्ञ टोनी लुईस का 78 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। टोनी लुईस ने अपने गणितज्ञ साथी फ्रेंक डकवर्थ के साथ मिलकर वर्ष 1997 में डकवर्थ-लुईस स्टर्न पद्धति का प्रतिपादन किया था। अंतर्राष्‍ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने वर्ष 1999 में इसे आधिकारिक स्‍वीकृति दी। गणित पर आधारित इस पद्धति का इस्‍तेमाल वर्षा से खेल बाधित होने पर सीमित ओवरों के अंतर्राष्‍ट्रीय क्रिकेट मैचों में किया जाता है। ध्यातव्य है कि क्रिकेट के सबसे छोटे प्रारूप T20 मैचों के अनुकूल न होने के कारण इस पद्धति की आलोचना भी होती रही है। डकवर्थ और लुईस के पश्चात् स्टीवन स्टर्न इस प्रणाली से जुड़े और वर्ष 2014 में इस पद्धति को डकवर्थ-लुईस-स्टर्न नाम दिया गया। लुईस ने शेफील्ड विश्वविद्यालय से गणित और संख्यिकी में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और ऑक्सफोर्ड ब्रूक्स विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए जहाँ वह ‘क्वांटिटेटिव रिसर्च मेथड्स’ के लेक्चरर थे। लुईस को क्रिकेट और गणित में योगदान के लिये वर्ष 2010 में ब्रिटिश साम्राज्य के विशिष्ट सम्मान एमबीई (MBE) से सम्मानित किया गया था।

BS-IV वाहनों की बिक्री की अनुमति

सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली/NCR के अतिरिक्त देश भर के वाहन डीलरों के पास लंबित BS-IV स्टॉक (सर्वोच्च न्यायालय को दी गई जानकारी के अनुसार) की सीमित और सशर्त बिक्री की अनुमति दी है, जो कुल स्टॉक के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिये। न्यायालय के अनुसार यह आदेश COVID-19 के कारण देश में लगे लॉकडाउन की समाप्ति के 10 दिनों तक वैध होगा। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और दीपक गुप्ता की न्यायपीठ ने हाल ही में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इस विषय पर निर्णय दिया है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया है कि 1 अप्रैल, 2020 से दिल्ली-NCR में कोई भी BS-IV वाहन नहीं बेचा जाएगा। BS मानक यूरोपीय नियमों पर आधारित हैं। अलग-अलग देशों में ये मानक अलग-अलग होते हैं, जैसे-अमेरिका में ये टीयर-1, टीयर-2 के रूप में होते हैं, तो यूरोप में इन्हें यूरो मानक के रूप में प्रयोग किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, BS-IV के मुकाबले BS-VI डीज़ल में प्रदूषण फैलाने वाले खतरनाक पदार्थ 70 से 75% तक कम होते हैं। 

कोरोनावायरस के कारण विंबलडन रद्द

कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी की वजह से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली सभी खेल प्रतियोगिताएँ या तो रद्द की जा चुकी हैं या फिर उन्हें कुछ समय के लिये टाल दिया गया है। जापान की राजधानी टोक्यो में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों को एक वर्ष के लिये टालने के पश्चात् टेनिस के प्रतिष्ठित ग्रैंडस्लैम विंबलडन को भी रद्द करने का फैसला किया गया है। उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ऐसा पहली बार हुआ है, जब विंबलडन को रद्द करना पड़ा हो। ऑल इंग्लैंड लॉन टेनिस एंड क्रोकेट क्लब (All England Lawn Tennis & Croquet Club) ने कोरोना महामारी के कारण विंबलडन को रद्द करने का निर्णय लिया है। विंबलडन इस वर्ष 29 जून से शुरू होना था।