अन्य देशों से केरल की मौजूदा स्थिति में सहायता स्वीकारना कितना प्रासंगिक

संदर्भ

हाल ही केरल में आई भयावह बाढ़ नें देश दुनिया का ध्यान आकर्षित किया और इस बाढ़ की विभीषिका का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर ‘गंभीर श्रेणी की आपदा’ घोषित किया गया है। इसके साथ ही केरल में राहत, बचाव एवं पुनर्निर्माण कार्यों के लिये देश दुनिया के विभिन्न राज्यों ने आर्थिक सहायता की खबरें भी विशेष रूप से काफी चर्चा में रही हैं। 

प्रमुख आर्थिक सहायता की पेशकश 

  • केरल में आई बाढ़ के बाद राहत, बचाव एवं पुनर्निर्माण कार्यों के लिये केंद्र सरकार ने अब तक राज्य को हर संभव सहायता प्रदान की है।
  • आपदा के दौरान न केवल भारत के विभिन्न राज्यों ने आगे बढ़कर आर्थिक सहायता मुहैया करवाई बल्कि विदेशों से मदद की ख़बरें भी सामने आई हैं।
  • उल्लेखनीय है कि विभिन्न विदेशी सरकारों ने केरल में राहत, बचाव एवं पुनर्निर्माण कार्यों के लिये विभिन्न प्रस्ताव दिए जिसमें संयुक्त अरब अमीरात से लगभग ₹ 700 करोड़ तथा मालदीव ने लगभग ₹ 35 लाख तक की आर्थिक सहायता की पेशकश की गई है।
  • इसके अलवा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने केरल के बाढ़ प्रभावित इलाकों में मदद हेतु एक कमेटी बनाने की भी घोषणा की। 

विवाद का कारण

  • केरल में राहत और पुनर्वास कार्यों के लिये भारत ने विदेशी सरकारों से वित्तीय सहायता के प्रस्तावों को अपनाए जाने से इनकार कर दिया है और इन खबरों के बीच विदेश मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार "मौजूदा नीति के अनुरूप", केंद्र सरकार "घरेलू प्रयासों" के माध्यम से ही केरल में आवश्यकताओं को पूरा करेगी।
  • इसके अतिरिक्त मंत्रालय ने यह भी कहा है कि केवल पीआईओ, एनआरआई या अंतर्राष्ट्रीय संगठन ही विदेश से प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के राहत कोष में पैसा भेज सकते हैं।
  • हालाँकि, केरल के मुख्यमंत्री का कहना है कि केंद्र सरकार की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना की मौजूदा नीति के बारे में अस्पष्टता है।
  • अब महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना क्या है?

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष

  • पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिये जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल प्रमुखतया बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिये किया जाता है।
  • इसके अलावा, हृदय शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर आदि के उपचार के लिये भी इस कोष से सहायता दी जाती है।
  • यह कोष केवल जनता के अंशदान से बना है और इसे कोई भी बजटीय सहायता नहीं मिलती है।
  • समग्र निधि का अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में विभिन्न रूपों में निवेश किया जाता है।
  • कोष से धनराशि प्रधानमंत्री के अनुमोदन से वितरित की जाती है।
  • प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन संसद द्वारा नहीं किया गया है।
  • इस कोष की निधि को आयकर अधिनियम के तहत एक ट्रस्ट के रूप में माना जाता है और इसका प्रबंधन प्रधानमंत्री अथवा विविध नामित अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय प्रयोजनों के लिये किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का संचालन प्रधान मंत्री कार्यालय, साउथ ब्लॉक, नई दिल्ली 110011 से किया जाता है। इसके लिए कोई लाइसेंस फीस नहीं दी जाती है।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 10 और 139 के तहत आयकर रिटर्न भरने से छूट प्राप्त है।
  • प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अध्यक्ष हैं और अधिकारी/कर्मचारी अवैतनिक आधार पर इसके संचालन में उनकी सहायता करते हैं।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किए गए अंशदान को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80 (छ) के तहत कर योग्य आय से पूरी तरह छूट हेतु अधिसूचित किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में स्वीकार किए जाने वाले अंशदान के प्रकार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किसी व्यक्ति और संस्था से केवल स्वैच्छिक अंशदान ही स्वीकार किए जाते हैं। सरकार के बजट स्रोतों से अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बैलेंस शीट्स से मिलने वाले अंशदान स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
  • विनाशकारी स्तर की प्राकृतिक आपदा के समय प्रधानमंत्री इस कोष में अंशदान करने हेतु अपील करते हैं।
  • ऐसे सशर्त अनुदान जिसमें दाता द्वारा यह उल्लेख किया जाता है कि अनुदान की राशि किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिये है, स्वीकार नहीं किये जाते।

राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी)

  • प्रधानमंत्री ने मई 2016 में  राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) जारी की जो देश की पहली इस तरह की राष्‍ट्रीय योजना है।
  • एनडीएमपी आपदा जोखिम घटाने के लिये सेंडैई फ्रेमवर्क में तय किए गए लक्ष्‍यों और प्राथमिकताओं के साथ मौटे तौर पर तालमेल स्थापित करता है।

योजना का विज़न

  • भारत को आपदा मुक्‍त बनाना है, आपदा जोखिमों में पर्याप्‍त रूप से कमी लाना है, जान-माल, आजीविका और संपदाओं-आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्‍कृतिक और पर्यावरणीय के नुकसान को कम करना आदि है।
  • इसके लिये प्रशासन के सभी स्तरों और साथ ही समुदायों की आपदाओं से निपटने की क्षमता को बढ़ाया जाएगा।
  • प्रत्‍येक खतरे के लिये सेंडैई फ्रेमवर्क में घोषित चार प्राथमिकताओं को आपदा जोखिम में कमी करने के फ्रेमवर्क में शामिल किया गया है।
  • इसके लिये पाँच कार्यक्षेत्र निम्‍न हैं :जोखिम को समझना, एजेंसियों के बीच सहयोग, डीआरआर में सहयोग-संरचनात्‍मक उपाय, डीआरआर में सहयोग- गैर-संरचनात्‍मक उपाय, क्षमता विकास।
  • इसके अलावा, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना स्पष्ट रूप से बताती है कि अन्य देशों से सहायता की किसी भी स्वैच्छिक पेशकश को स्वीकार किया जा सकता है।
  • एनडीएमपी के 'अंतर्राष्ट्रीय सहयोग' पर अध्याय के प्रासंगिक खंड में लिखा गया है: "नीति के मामले में, भारत सरकार आपदा के चलते विदेशी सहायता के लिये कोई अपील जारी नहीं करती है।
  • हालाँकि, यदि किसी अन्य देश की राष्ट्रीय सरकार आपदा पीड़ितों के साथ एकजुटता में सद्भावना के रूप में सहायता प्रदान करती है, तो केंद्र सरकार प्रस्ताव स्वीकार कर सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना अध्याय 9 स्वीकार करता है कि समय-समय पर गंभीर आपदाओं की दशा में एक विदेशी सरकार द्वारा दी गई स्वैच्छिक सहायता स्वीकार की जा सकती है।
  • दरअसल, यह योजना बताती है कि आपदा के चलते भारत विदेशी सहायता के लिये अपील नहीं करेगा किंतु एक अन्य देश की राष्ट्रीय सरकार स्वैच्छिक रूप से आपदा पीड़ितों के लिये एकजुटता में सद्भावना के रूप में सहायता प्रदान करती है तो केंद्र सरकार प्रस्ताव स्वीकार कर सकती है।

निष्कर्ष 

उपर्युक्त आधार पर कहना उचित होगा कि मौजूदा विवाद को बहुआयामी रूप में देखने की आवश्यकता है। निःसंदेह केरल गंभीर आपदा से जूझ रहा है और उसके लिये इस समय छोटी वित्तीय सहायता भी मायने रखती है, किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि केंद्र सरकार ने प्रारंभ से ही इस विपत्ति में केरल की हरसंभव सहायता की है। इसके अलावा इस कठिन परिस्थिति में समूचा देश केरल की यथासंभव सहयता कर रहा है हालाँकि, किसी अन्य देश से सहायता लेना भले ही नियमों के अनुसार गलत न हो, किंतु जब सरकार को लगता है कि यह विपत्ति उसके सामर्थ्य से बाहर नहीं हैं तो इस स्थिति में हमें धैर्य का परिचय देने की आवश्यकता है। इसके अलावा यह मुद्दा विश्व में भारत की साख से जुड़ा हुआ है और जल्दीबाजी में लिया गया कोई भी निर्णय भारत की छवि को घातक नुकसान पहुँचा सकता है।

अतः यह समय बिना किसी विवाद के एकजुटता और समन्वय की भावना को प्रदर्शित करने का है, साथ ही भविष्य में होने वाली ऐसी किसी आपदा के कारणों के उचित समाधानों के विषय में पहले ही गंभीर चिंतन करने की भी आवश्यकता है ताकि फिर ऐसी त्रासदी न झेलनी पड़े।