डेली न्यूज़ (02 Mar, 2020)



हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र में जल संकट

प्रीलिम्स के लिये:

हिंदू-कुश हिमालय, तीसरा ध्रुव

मेन्स के लिये:

हिमालय का संरक्षण

चर्चा में क्यों?

जल नीति (Water Policy) पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन तथा अपर्याप्त शहरी नियोजन के कारण हिंदू-कुश हिमालय (Hindu Kush Himalayan- HKH) क्षेत्र के चार देशों - बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के 13 नगरों में से 12 नगर जल-असुरक्षा (Water Insecurity) का सामना कर रहे हैं।

मुख्य बिंदु:

  • यह हिंदू-कुश हिमालय पर किया गया प्रथम अध्ययन है जो पानी की उपलब्धता, पानी की आपूर्ति प्रणाली, बढ़ते नगरीकरण और जल की मांग (दैनिक और मौसमी दोनों) में वृद्धि तथा बढ़ती जल असुरक्षा के मध्य संबंध स्थापित करता है।
  • इस अध्ययन में भौतिक वैज्ञानिक, मानवविज्ञानी, भूगोलविद् और योजनाकार आदि से मिलकर बनी बहु-अनुशासित टीम शामिल थी।

हिंदू-कुश हिमालयन (HKH) क्षेत्र:

  • यह भारत, नेपाल और चीन सहित आठ देशों में फैला हुआ है, जो लगभग 240 मिलियन लोगों की आजीविका का साधन है।
  • HKH क्षेत्र को तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है क्योंकि यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद स्थायी हिम आवरण का तीसरा बड़ा क्षेत्र है।
  • यहाँ से 10 से अधिक नदियों का उद्गम होता है, जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेकांग जैसी बड़ी नदियाँ शामिल हैं।

जल-असुरक्षा के कारण:

  • इस अध्ययन में जल असुरक्षा के निम्नलिखित कारणों की पहचान की गई है:
    • खराब जल प्रशासन
    • खराब शहरी नियोजन
    • खराब पर्यटन प्रबंधन
    • जलवायु संबंधी जोखिम और चुनौतियाँ
  • यहाँ के योजनाकारों और स्थानीय सरकारों ने इन नगरों में दीर्घकालिक रणनीतियँ बनाने पर विशेष ध्यान नहीं दिया।
  • ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर प्रवासन से हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र में नगरीकरण लगातार बढ़ रहा है। यद्यपि वर्तमान में यहाँ के बड़े नगरों की आबादी केवल 3% तथा छोटे शहरों की आबादी केवल 8% है, लेकिन अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक नगरीय आबादी 50% से अधिक हो जाएगी, इससे जल तनाव बहुत बढ़ जाएगा।
  • यहाँ 8 कस्बों में जल की मांग और आपूर्ति का अंतर 20-70% के बीच है तथा मांग-आपूर्ति का यह अंतर वर्ष 2050 तक दोगुना हो सकता है।
  • यहाँ की नियोजन प्रक्रियाओं में नगरों के आसपास के क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है, इससे प्राकृतिक जल निकायों (स्प्रिंग्स, तालाबों, झीलों, नहरों और नदियों) का अतिक्रमण तथा अवनयन हो गया, साथ ही इन क्षेत्रों की पारंपरिक जल प्रणालियाँ भी नष्ट हो गईं।

जल संकट से प्रभावित नगर:

  • हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र के 12 नगरों में जल प्रबंधन संबंधी समस्या देखी गई है, ये इस प्रकार हैं:
    • मुर्रे(Murree) और हैवेलियन (पाकिस्तान)
    • काठमांडू, भरतपुर, तानसेन और दामौली (नेपाल)
    • मसूरी, देवप्रयाग, सिंगतम, कलिम्पोंग और दार्जिलिंग (भारत)
    • सिलहट (बांग्लादेश)

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जल संकट का समाधान:

  • योजनाकारों और स्थानीय सरकारों को नगरों में सतत् जलापूर्ति के लिये दीर्घकालिक रणनीतियों को अपनाना चाहिये।
  • एक समग्र जल प्रबंधन दृष्टिकोण, जिसमें स्प्रिंग्सशेड प्रबंधन (Springshed Management) और नियोजित अनुकूलन (Planned Adaptation) शामिल हो, को सर्वोपरि रखकर नीतियों का निर्माण करना चाहिये।

स्प्रिंग्स (Springs):

  • स्प्रिंग्स मूल रूप से भूजल निर्वहन के प्राकृतिक स्रोत हैं जिनका उपयोग विश्व में पर्वतीय क्षेत्रों के साथ-साथ भारत में भी बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है।
  • स्प्रिंग्स वह स्रोत बिंदु है जहाँ किसी जलभृत (Aquifer) से जल निकलकर पृथ्वी की सतह पर बहता है। यह जलमंडल का एक घटक है।
  • नगरिय जल निकायों तथा आर्द्रभूमि का संरक्षण किया जाना चाहिये क्योंकि ये न केवल बाढ़ आदि रोकने में मदद करते हैं अपितु पारिस्थितिक तंत्र को भी मज़बूती प्रदान करते हैं।

आगे की राह:

हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र के सभी देशों को मिलकर सक्षम वातावरण और संस्थाएँ बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो पर्वतीय लोगों को समावेशी विकास और सतत् विकास के लाभों को साझा करने के लिये सशक्त करें।

स्रोत: द हिंदू


उड़ीसा में अनुसूचित जाति एवं जनजातीय क्षेत्र

प्रीलिम्स के लिये:

अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006

मेन्स के लिये:

ओडिशा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान द्वारा तैयार किये गए मानचित्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

ओडिशा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (Odisha Scheduled Caste and Scheduled Tribe Research and Training Institute- SCSTRTI) द्वारा ऐसे संभावित क्षेत्रों का एक मानचित्र तैयार किया गया है, जहाँ ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ [Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006] लागू किया जा सकता है।

मुख्य बिंदु:

  • 27 फरवरी, 2020 को केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री द्वारा भुवनेश्वर में जारी किये गए मानचित्र में 27,818.30 वर्ग किमी. क्षेत्र को चिह्नित किया गया है जहाँ सामुदायिक वन संसाधन (Community Forest Resources- CFR) अधिकारों को मान्यता दी जा सकती है।
  • इस मानचित्र के अनुसार, 7,921.36 वर्ग किमी. क्षेत्र को व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights- IFR) के रूप में मान्यता दी जा सकती है।

CFR और IFR:

  • CFR अधिकारों पारंपरिक वन सीमाओं के आधार पर सभी ग्राम सभाओं को प्राप्त होते हैं।
  • वन भूमि का उपयोग करने वाले व्यक्तियों को IFR संबंधी अधिकार प्राप्त होते हैं, इसके अंतर्गत आने वाली भूमि का क्षेत्रफल चार हेक्टेयर से अधिक नहीं हो सकता है।
  • यह दोनों अधिकार ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ से लिये गए हैं।
  • सितंबर 2019 में जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, CFR अधिकारों के लिये केवल 951.84 वर्ग किमी. और IFR के लिये 2,600.27 वर्ग किमी. क्षेत्र को मान्यता दी गई है।
  • इस मानचित्र में वन क्षेत्र की पहचान के लिये वर्ष 1999 के ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ की रिपोर्ट और जनगणना 2001 के आँकड़ों का प्रयोग किया गया है।

लाभ:

यह नीति निर्माताओं और वन आश्रित समुदायों को इस बात का आकलन करने करने में सहायता करेगा कि यह कानून किस हद तक लागू किया गया है।

इस नए अनुमान में ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ की मान्यता की योजना एवं प्रभावी कार्यान्वयन के लिये एक आधार रेखा की पेशकश की गई है।

मानचित्र के लिये किया गया शोध:

  • इस मानचित्र संबंधी शोध को ओडिशा SCSTRTI द्वारा ‘वसुंधरा’ नामक एक गैर-लाभकारी संस्था द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
  • वर्ष 2014 में SCSTRTI ने मयूरभंज जिले में संभावित FRA क्षेत्रों के लिये एक पायलट अध्ययन का निष्पादन किया और निष्कर्ष प्रस्तुत किया। वर्ष 2015 में इस संबंध में सभी राज्यों से अध्ययन की मांग की गई थी परंतु अभी तक केवल ओडिशा ने ही अपना कार्य पूर्ण किया है।
  • ओडिशा में कई रियासतें थीं। स्वतंत्रता के बाद वनवासियों के अधिकारों का निपटान के लिये उनकी वन भूमि को आरक्षित या संरक्षित वनों के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ ने इनके खिलाफ होते आए ऐतिहासिक अन्याय को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006:

  • वनों में रहने वाले कई आदिवासी परिवारों की विषम जीवन स्थिति को दूर करने के लिये अनुसूचित जाति एवं अन्‍य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम, 2006 का ऐतिहासिक कानून अमल में लाया गया है।
  • इस कानून को वनों में रहने वाले अनुसूचित जातियों एवं अन्‍य पारंपरिक वन निवासियों को उनका वाज़िब अधिकार दिलाने के लिये जो पीढि़यों से जंगलों में रह रहे हैं लेकिन जिन्‍हें वन अधिकारों तथा वन भूमि में आजीविका से वंचित रखा गया है, लागू किया गया है।
  • इस अधिनियम में न केवल आजीविका के लिये, स्‍व–कृषि या निवास के लिये व्‍यक्ति विशेष को वन भूमि में रहने के अधिकार का प्रावधान है बल्कि यह वन संसाधनों पर उनका नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिये कई अन्‍य अधिकारों का भी प्रावधान करता है।
  • इनमें स्‍वामित्‍व का अधिकार, संग्रह तक पहुँच, लघु वन उत्पाद का उपयोग व निपटान, अन्य सामुदायिक अधिकार, आदिम जनजातीय समूहों तथा कृषि समुदायों के लिये निवास के अधिकार, ऐसे किसी सामुदायिक वन संसाधन जिसकी वे ठोस उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से सुरक्षा या संरक्षण करते रहे हैं, के पुनर्निर्माण या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है।
  • इस अधिनियम में ग्राम सभाओं की अनुशंसा के साथ विद्यालयों, चिकित्‍सालयों, उचित दर की दुकानों, बिजली तथा दूरसंचार लाईनों, पानी की टंकियों आदि जैसे सरकार द्वारा प्रबंधित जन उपयोग सुविधाओं के लिये वन उत्पाद के उपयोग संबंधी प्रावधान भी हैं।
  • इसके अतिरिक्‍त जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आदिवासी लोगों के लाभ के लिये कई योजनाएँ भी क्रियान्वित की गई हैं।
  • इनमें वन क्षेत्रों के लिये ‘न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य’ के जरिये लघु वन उत्पादों के विपणन के लिये एक तंत्र तथा वैल्‍यू चैन के विकास जैसी योजनाएँ भी शामिल हैं।
  • वन ग्रामों के विकास के लिये सड़क, स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, प्राथमिक शिक्षा, लघु सिंचाई, वर्षा जल, पीने का पानी, स्‍वच्‍छता, समुदाय हॉल जैसी बुनियादी सेवाओं तथा सुविधाओं से संबंधित ढाँचागत कार्यों के लिये जनजातीय उप योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये विशेष केंद्रीय सहायता से फंड जारी किये जाते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


ग्रामीण विकास कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रामीण विकास कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में राज्यों के प्रदर्शन से संबंधित एक रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, समय पर मज़दूरी के भुगतान, ग्रामीण स्तर पर शिकायत निवारण, कौशल-निर्माण और बेहतर बाज़ार कनेक्टिविटी आदि देश में देश में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों केंद्र में होने चाहिये।
  • इस रिपोर्ट में वर्ष 2018-19 में मुख्यतः निम्नलिखित ग्रामीण विकास योजनाओं में विभिन्न राज्यों के प्रदर्शन का आकलन किया गया है:
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
    • प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)
    • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
    • दीनदयाल उपाध्‍याय ग्रामीण कौशल्य योजना
    • श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
  • ज्ञात हो कि इन सभी कार्यक्रमों को केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के सतत् और समावेशी विकास के लिये राज्य सरकारों के माध्यम से लागू किया जा रहा है।

कार्यक्रमों का विश्लेषण

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया।
    • मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान किया गया है।
    • रिपोर्ट के अंतर्गत वर्ष 2014-15 से 2018-19 के मध्य मनरेगा को ग्रामीण गरीबों के लिये एक सफल कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    • रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के प्रयासों के कारण ही मनरेगा के तहत वर्ष 2018-19 में 69,809 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड खर्च किया गया, जो कि इस कार्यक्रम के शुरू होने के बाद सबसे अधिक है।
    • हालाँकि स्वतंत्र विश्लेषकों द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2018-19 में मनरेगा देश के सूखाग्रस्त ज़िलों में किसी भी तरह की मदद करने में विफल रहा। ध्यातव्य है कि सरकार ने वर्ष 2020-21 में मनरेगा के बजट को भी घटा दिया है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)
    • प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) को केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था। इस योजना का उद्देश्य पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करके आवास इकाइयों के निर्माण और मौजूदा गैर-लाभकारी कच्चे घरों के उन्नयन में गरीबी रेखा (BPL) से नीचे के ग्रामीण लोगों की मदद करना है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, PMAY-G के तहत लक्षित एक करोड़ घरों में से करीब 7.47 लाख घरों का निर्माण पूरा होना अभी शेष है। इसमें से अधिकतर घर बिहार (26 प्रतिशत), ओडिशा (15.2 प्रतिशत), तमिलनाडु (8.7 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (आठ प्रतिशत) में हैं।
    • रिपोर्ट के अंतर्गत राज्यों को समय-सीमा में सभी घरों को पूरा करने हेतु आवश्यक कदम उठाने के लिये कहा गया है।
  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)
    • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे लागू करने की ज़िम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय एवं राज्य सरकारों को दी गई है। इसे वर्ष दिसंबर 2000 में लॉन्च किया गया था।
    • इसका उद्देश्‍य निर्धारित आकार (2001 की जनगणना के अनुसार, 500+मैदानी क्षेत्र तथा 250+ पूर्वोत्‍तर, पर्वतीय, जनजातीय और रेगिस्‍तानी क्षेत्र) को सभी मौसमों के अनुकूल एकल सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करना है ताकि क्षेत्र का समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास हो सके।
    • रिपोर्ट के अनुसार, PMGSY ने अपना 85 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। अब तक, 668,455 किमी. सड़क की लंबाई स्वीकृत की गई है, जिसमें से 581,417 किमी. पूरी हो चुकी थी।
  • दीनदयाल उपाध्‍याय ग्रामीण कौशल्य योजना
    • दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) गरीब ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम मज़दूरी के बराबर या उससे अधिक मासिक मज़दूरी प्रदान करने का लक्ष्य रखता है। यह ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिये की गई पहलों में से एक है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, योजना के तहत 1.87 लाख ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है अर्थात् केवल 59 प्रतिशत लक्ष्य ही प्राप्त किया जा सका है।
    • रिपोर्ट में राज्यों को ग्रामीण युवाओं के प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने तथा लाभकारी रोज़गार तक पहुँच की सुविधा प्रदान करने की सलाह दी गई है।

निष्कर्ष

भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति काफी चिंताजनक है। ऐसे में सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के स्तर पर अभी कई खामियाँ मौजूद हैं, जिन्हें जल्द-से-जल्द संबोधित किया जाना आवश्यक है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


उच्चतम न्यायालय का नॉन-स्पीकिंग आदेश

प्रीलिम्स के लिये:

उद्देशिका, अनुच्छेद 14 , अनुच्छेद 21, मध्य प्रदेश इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड केस

मेन्स के लिये:

भारतीय न्यायपालिका का परिवर्तनकारी रूप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सबरीमाला समीक्षा याचिका से उपजे प्रारंभिक मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के नौ न्यायाधीशों वाली बेंच ने एक नॉन-स्पीकिंग आदेश (Non-Speaking Order) का सहारा लिया। इसे भारतीय न्यायपालिका के परिवर्तनकारी रूप के तौर पर देखा जा रहा है। इसने परिवर्तनकारी संवैधानिकतावाद (Transformative Constitutionalism) की अवधारणा को पुनः चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

नॉन-स्पीकिंग आदेश क्या है?

  • एक नॉन-स्पीकिंग आदेश में व्यक्ति अदालत द्वारा दिये गए निर्णय के कारणों को नहीं जान पाता है और न ही यह जान पाता है कि निर्णय तक पहुँचने में अदालत ने क्या-क्या विचार किया है?
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि निचली अदालतें कुछ मामलों में ही नॉन-स्पीकिंग आदेश पारित कर सकती हैं। उच्चतम न्यायालय भी इसका उपयोग सावधानीपूर्वक करता है।

मुख्य बिंदु:

  • उच्चतम न्यायालय के नॉन-स्पीकिंग आदेश को उचित नहीं माना जाता है। संवैधानिक लोकतंत्र में विधि के शासन के तहत एक ‘तर्कपूर्ण निर्णय’ अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
  • विभिन्न मामलों में उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि स्पीकिंग आदेश ‘न्यायिक जवाबदेही एवं पारदर्शिता’ को बढ़ावा देते हैं और ये ‘न्यायिक प्रशासन के प्रति लोगों के विश्वास’ को बनाए रखता है। स्पीकिंग आदेश से अदालतों के निर्णयों में स्पष्टता आती है और निरंकुशता की संभावना कम-से-कम होती है।
    • न्यायिक पारदर्शिता: पारदर्शिता आधुनिक लोकतंत्रों की एक मूलभूत विशेषता है। यह सार्वजनिक मामलों में नागरिकों के नियंत्रण एवं उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करने में मदद करती है। न्यायिक प्रणालियों के खुले संचालन से न्यायपालिका से लेकर समाज तक सूचनाओं का प्रवाह बढ़ता है जिससे लोगों को न्यायपालिका के प्रदर्शन एवं फैसलों के बारे में जानने में मदद मिलती है। भारत में सर्वोच्च न्यायपालिका के लिये विशेषकर न्यायाधीशों की नियुक्ति और न्याय प्रशासन के संबंध में पारदर्शिता का मुद्दा प्रमुख है।
  • जो संस्थाएँ भारत के संविधान के तहत दूसरों पर संवैधानिक नियमों का प्रयोग करती हैं उन सभी के लिये एक वैध अनुशासन होने के अलावा उनके द्वारा दिये गए फैसलों के कारणों की रिकॉर्डिंग को सर्वोच्च न्यायालय ने ‘प्रत्येक निर्णय का मुख्य बिंदु’, ‘न्यायिक निर्णय लेने के लिये जीवन रक्त’ और ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत’ के रूप में वर्णित किया है।

प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत

(Principle of Natural Justice):

  • भारत के संविधान में कहीं भी प्राकृतिक न्याय का उल्लेख नहीं किया गया है। हालाँकि भारतीय संविधान की उद्देशिका, अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को मज़बूती से रखा गया है।
    • उद्देशिका: संविधान की उद्देशिका में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय, विचार, विश्वास एवं पूजा की स्वतंत्रता शब्द शामिल हैं और प्रतिष्ठा एवं अवसर की समता जो न केवल लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों में निष्पक्षता सुनिश्चित करती है बल्कि व्यक्तियों के लिये मनमानी कार्रवाई के खिलाफ स्वतंत्रता हेतु ढाल का कार्य करती है, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का आधार है।
    • अनुच्छेद 14: इसमें बताया गया है कि राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह नागरिक हो या विदेशी सब पर लागू होता है।
    • अनुच्छेद 21: वर्ष 1978 के मेनका गांधी मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत व्यवस्था दी कि प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को उचित एवं न्यायपूर्ण मामले के आधार पर रोका जा सकता है। इसके प्रभाव में अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा केवल मनमानी कार्यकारी क्रिया पर ही उपलब्ध नहीं बल्कि विधानमंडलीय क्रिया के विरुद्ध भी उपलब्ध है।

मध्य प्रदेश इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड केस

(Madhya Pradesh Industries Ltd. Case)

  • मध्य प्रदेश इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड मामले में न्यायमूर्ति सुब्बा राव के. ने कहा है कि ‘किसी भी निर्णय में कारण बताने की शर्त अदालत के निर्णयों में स्पष्टता को दर्शाती है और किसी भी स्थिति में बहिष्करण या निरंकुशता को कम करती है। यह उस पक्ष को संतुष्टि देता है जिसके खिलाफ आदेश दिया जाता है और इस आदेश के द्वारा न्यायाधिकरण की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिये एक अपीलीय या पर्यवेक्षी अदालत को भी सक्षम बनाता है।’

परिवर्तनकारी संवैधानिकतावाद

(Transformative Constitutionalism)

  • ‘परिवर्तनकारी संवैधानिकतावाद’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कार्ल क्लारे (Karl Klare) ने किया था। कार्ल क्लारे बोस्टन में नॉर्थ-ईस्टर्न यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ में श्रम एवं रोज़गार कानून तथा कानूनी सिद्धांत के प्रोफेसर हैं।
  • हाल ही में संवैधानिक न्याय-निर्णयन में ‘परिवर्तनकारी संवैधानिकतावाद’ शब्द प्रचलन में आया है। उच्चतम न्यायालय द्वारा अवधारणा के इस व्यापक सिद्धांत को स्पष्ट किया जाना अभी बाकी है किंतु इसे अन्य न्यायालयों में रद्द कर दिया गया है।
  • भारत में अधिक न्यायसंगत समाज की अवधारणा सुनिश्चित करने के लिये उच्चतम न्यायालय द्वारा उपयोग किये जाने वाले एक साधन के रूप में परिवर्तनकारी संवैधानिकतावाद की अवधारणा प्रमुखता से उभर कर आई है। इसके प्रमुख उदाहरण हैं- वर्ष 2014 का नालसा (NALSA) जजमेंट (जिसने थर्ड जेंडर के अधिकारों को मान्यता दी), नवतेज सिंह जौहर मामला, वर्ष 2018 का सबरीमाला फैसला (इसमें अभी अंतिम निर्णय आना बाकी है)।
    • संविधान के संरक्षक और व्याख्याकार के रूप में उच्चतम न्यायालय की भूमिका ने भारत के संविधान को एक अपरिवर्तनकारी दस्तावेज़ के बजाय एक परिवर्तनकारी दस्तावेज़ के रूप में भारतीय संविधान की बढ़ती मान्यता के साथ जोड़कर इन परिवर्तनों को लाने में सक्षम बनाया है।

नवतेज सिंह जौहर मामला और परिवर्तनकारी संवैधानिकतावाद:

  • नवतेज सिंह जौहर मामले में विचार व्यक्त किया गया था कि न्यायालय की भूमिका समाज के कल्याण के लिये संविधान के मुख्य उद्देश्य एवं विषय को समझना है। हमारा संविधान ‘समाज के कानून’ की तरह एक जीवंत जीव है। यह तथ्यात्मक एवं सामाजिक यथार्थ पर आधारित है जो लगातार बदल रहा है। कभी-कभी कानून में बदलाव सामाजिक परिवर्तन से पहले होता है और सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करने का प्रयोजन भी होता है और कभी-कभी कानून में बदलाव सामाजिक यथार्थ का परिणाम होता है।
  • एक अन्य उदाहरण में दक्षिण अफ्रीका के संवैधानिक न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पायस लांगा (Pius Langa) ने तर्क दिया कि ‘परिवर्तनकारी संवैधानिकतावाद’ कानूनी संस्कृति के एक ‘प्राधिकार’ के बजाय ‘औचित्य’ पर आधारित होती है।

आगे की राह

  • उपरोक्त प्रकरण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नॉन-स्पीकिंग आदेश जारी करने और उसके पश्चात् तर्क देने की प्रक्रिया संवैधानिक शासन के सिद्धांत का एक अंग है। न्यायिक फैसलों का ‘कारण’ देने का कर्त्तव्य न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

स्रोत: द हिंदू


भारत में प्रवासी प्रजातियों की सूची

प्रीलिम्स के लिये:

COP-13, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, भारत में प्रवासी प्रजातियों की सूची, विभिन्न वर्गों (जंतु, पक्षी, मछली तथा सरीसृप) से संबंधित आँकड़े

मेन्स के लिये:

प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण तथा इनसे संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (Convention on the Conservation of Migratory Species-CMS) द्वारा वन्यजीवों की सूची में नए बदलाव के साथ ही भारत के प्रवासी जीवों की कुल संख्या 457 हो गई है।

प्रमुख बिंदु

  • भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (Zoological Survey of India-ZSI) ने पहली बार गुजरात में आयोजित सम्मेलन (COP 13) से पहले CMS के तहत भारत की प्रवासी प्रजातियों की सूची तैयार की थी। तब ZSI ने भारत के प्रवासी जीवों की कुल संख्या को 451 बताया गया था। निम्नलिखित छह प्रजातियों को बाद में इस सूची में जोड़ा गया था:
    1. एशियाई हाथी (Elephas maximus)
    2. ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Ardeotis nigriceps)
    3. बंगाल फ्लोरिकन (Bengal florican)
    4. ओशनिक व्हाइट-टिप शार्क (Carcharhinus longimanus)
    5. यूरियाल (Ovis orientalis vignei)
    6. स्मूथ हैमरहेड शार्क (Sphyrna zygaena)

गुजरात के गांधीनगर में आयोजित ‘प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र के काॅप-13 सम्मेलन में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई हाथी और बंगाल फ्लोरिकन को प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के परिशिष्ट-I में शामिल करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है। उक्त तीन प्रजातियों के अलावा सात अन्य प्रजातियों- जगुआर, यूरियाल, लिटिल बस्टर्ड, एंटीपोडियन अल्बाट्रॉस, ओशनिक व्हाइट-टिप शार्क, स्मूथ हैमरहेड शार्क और टोपे शार्क को भी CMS परिशिष्टों में सूचीबद्ध करने लिये प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था।

  • विश्व स्तर पर 650 से अधिक प्रजातियों को CMS के परिशिष्ट में सूचीबद्ध किया गया है और 450 से अधिक प्रजातियों के साथ भारत, उनके संरक्षण में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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पक्षी वर्ग से संबंधित आँकड़े:

  • प्रवासी जीवों के इन नवीनतम आँकड़ों में पक्षियों की हिस्सेदारी 83% है। ध्यातव्य है कि COP-13 से पहले, प्रवासी पक्षी प्रजातियों की संख्या 378 थी और अब यह 380 तक पहुँच गई है।
  • पक्षी वर्ग में मूसिकैपिडे (Muscicapidae) से संबंधित प्रवासी प्रजातियों की संख्या सर्वाधिक है। प्रवासी पक्षियों की सर्वाधिक संख्या वाला दूसरा समूह राप्टर्स या एक्सीपीट्रिडे (Accipitridae) वर्ग के उल्लू, गिद्ध और चील जैसे शिकारी पक्षियों का है।
  • बड़ी संख्या में प्रवास करने वाले पक्षियों का एक अन्य समूह वेडर (wader) या जलपक्षियों का है। भारत में इन प्रवासी पक्षी प्रजातियों की संख्या 41 है, इसके बाद ऐनाटीडे वर्ग से संबंधित बत्तखों का स्थान आता है जिनकी संख्या 38 हैं।

भारत में फ्लाईवे:

ZSI के अनुसार, देश में तीन फ्लाईवे (पक्षियों द्वारा उपयोग किये जाने वाले उड़ान मार्ग) हैं:
1. मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway)
2. पूर्वी एशियाई फ्लाईवे (East Asian Flyway)
3. पूर्वी एशियाई-ऑस्ट्रेलियाई फ्लाईवे (East Asian–Australasian Flyway)

जंतु वर्ग से संबंधित आँकड़े:

  • ZSI के वन्यजीव अनुभाग के अनुसार, COP-13 के बाद भारत में प्रवासी स्तनपायी प्रजातियों की संख्या 44 से बढ़कर 46 हो गई है। एशियाई हाथी को परिशिष्ट-I और यूरियाल को परिशिष्ट-II में शामिल किया गया है।
  • स्तनधारियों का सबसे बड़ा समूह वेस्पेरिलिओनिडे (Vespertilionidae) से संबंधित चमगादड़ों का है। डॉल्फिन स्तनधारियों का दूसरा सबसे बड़ा समूह है, इनमें डॉल्फिन की नौ प्रजातियाँ सूचीबद्ध की गई हैं।

मछलियों से संबंधित आँकड़े:

  • मछलियाँ प्रवासी प्रजातियों के एक और महत्त्वपूर्ण समूह का निर्माण करती हैं। COP-13 से पहले ZSI ने 22 प्रजातियों को संकलित किया था, जिसमें 12 शार्क और 10 रे मछली (Ray Fish) शामिल थीं।
  • अब ओशनिक व्हाइट-टिप शार्क और स्मूथ हैमरहेड शार्क को शामिल किये जाने के बाद भारत में प्रवासी मछली प्रजातियों की कुल संख्या 24 हो गई है।

सरीसृप वर्ग से संबंधित आँकड़े:

  • भारत में पाई जाने वाली सरीसृप प्रजातियों में से कछुओं की पाँच प्रजातियाँ और भारतीय घड़ियाल तथा खारे पानी के मगरमच्छ CMS के अंतर्गत वन्यजीव सूची में शामिल हैं।
  • ध्यातव्य है कि ये प्रजातियाँ पहले से ही CMS की सूची में शामिल हैं तथा सरीसृप सूची में किसी नई प्रजाति को शामिल नहीं किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

मेन्स के लिये:

महिलाओं से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा सरकार के अन्य मंत्रालय मिलकर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day- IWD) 8 मार्च, 2020 के परिप्रेक्ष्य में 1 से 7 मार्च तक विशेष अभियान शुरू कर रही है।

मुख्य बिंदु:

  • सरकार ने 7 दिनों के अभियान के लिये महिलाओं के योगदान के 7 विषय क्षेत्रों की पहचान की है।
  • जिन विषयों का अवलोकन किया जा रहा है वे हैं:
    1. शिक्षा
    2. स्वास्थ्य और पोषण
    3. महिलाओं का सशक्तीकरण
    4. कौशल और उद्यमिता एवं खेलों में भागीदारी
    5. विशेष परिस्थितियाँ
    6. ग्रामीण महिलाएँ एवं कृषि
    7. शहरी महिलाएँ

अन्य गतिविधियाँ

  • इस सप्ताह के दौरान (1-7 मार्च ) गर्भावस्था और स्तनपान अवधि के दौरान महिलाओं के लिये स्वस्थ और पौष्टिक भोजन, महिला प्रधान 14 हिंदी फ़िल्मों का दूरदर्शन पर प्रसारण, डीडी किसान चैनल पर महिला कृषकों संबंधी कार्यक्रमों का प्रसारण, स्वास्थ्य-कल्याण और एनीमिया पर महिला शिविरों का आयोजन, 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में महिला सशक्त्तीकरण पर राउंड टेबल, प्रधानमंत्री आवास योजना से लाभान्वित होने के लिये महिलाओं को शिक्षित और सूचित करना जैसे विषयों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस:

  • प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है। सर्वप्रथम वर्ष 1909 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1977 में इसे अधिकारिक मान्यता प्रदान की गई।
  • विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के उद्देश्य से इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

ऐतिहासिक पहलू:

  • 28 फरवरी, 1909 को संयुक्त राज्य अमेरिका में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने इस दिन को न्यूयॉर्क में वर्ष 1908 की कपड़ा श्रमिकों की हड़ताल के सम्मान में नामित किया, जहाँ महिलाओं ने कामकाजी परिस्थितियों के खिलाफ विरोध किया था।
  • हालाँकि अमेरिका में इसके बीज बहुत पहले बोये जा चुके थे जब वर्ष 1848 में महिलाओं को गुलामी विरोधी सम्मेलन में बोलने से रोक दिया गया।

थीम IWD 2020:

  • अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2020 का विषय है, “मैं पीढ़ीगत समानता: महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूँ।” (I am Generation Equality: Realizing Women’s Rights)
  • इस वर्ष ‘यूएन वीमेन’ (UN Women) की 10वीं वर्षगांठ भी मनाई जाएगी।

IWD 2020 उद्देश्य:

  • पीढ़ीगत समानता अभियान के तहत हर लिंग, आयु, नस्ल, धर्म और देश के लोगों को एक साथ लाया जा सके तथा ऐसे अभियान चलाए जाए ताकि लैंगिक-समानता युक्त दुनिया का निर्माण हो सके।
  • लिंग आधारित हिंसा को समाप्त करना, आर्थिक न्याय और अधिकारों की प्राप्ति, शारीरिक स्वायत्तता, यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य के अधिकार, जलवायु न्याय के लिये नारीवादी कार्यवाही तथा लैंगिक समानता के लिये प्रौद्योगिकी और नवाचारों का उपयोग जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में छोटे-छोटे कार्यों द्वारा व्यापक परिवर्तन लाया जा सकता है।

SDG लक्ष्य 5- ‘लैंगिक समानता हासिल करना और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना’

(Achieve gender equality and empower all women and girls):

  • जबकि दुनिया ने सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (Millennium Development Goals- MDG) के तहत लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में प्रगति हासिल करने के बावजूद महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ दुनिया के हर हिस्से में भेदभाव और हिंसा जारी है। SDG में इन भेदभावों की समाप्ति की दिशा में निम्न लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं:
    • महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हर जगह भेदभाव के सभी प्रकारों को समाप्त करें।
    • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में महिलाओं तथा लड़कियों के खिलाफ हिंसा के सभी प्रकारों की समाप्ति, जिसमें तस्करी, यौन और अन्य प्रकार का शोषण शामिल हैं।
    • सभी कुप्रथाओं की समाप्ति, जैसे बाल-विवाह और महिला जननांग विकृति।
    • सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान के माध्यम से अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्यों को पहचान व महत्व देना।
    • राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में निर्णय लेने के सभी स्तरों पर महिलाओं की पूर्ण व प्रभावशाली भागीदारी तथा नेतृत्व के समान अवसर सुनिश्चित करना।
    • यौन और प्रजनन स्वास्थ्य तथा प्रजनन अधिकारों के लिये सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।

लैंगिक समानता प्राप्ति में चुनौतियाँ:

  • नीति आयोग ने अपने ‘सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक’ (Sustainable Development Goal India Index) रिपोर्ट में यह चिंता ज़ाहिर की है कि यदि राज्य उल्लेखनीय प्रगति नहीं करते हैं तो भारत सतत् विकास लक्ष्यों को नियत समय में प्राप्त करने में पीछे रह जाएगा।
  • विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा जारी ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’ (Global Gender Gap Report) 2018 में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर लिंग भेद को कम करने के लिये कम-से-कम 108 साल तथा कार्यबल में समानता हासिल करने के लिए कम-से-कम 202 साल लगेंगे।
  • प्रसिद्ध समाजशास्त्री सिल्विया वाल्बे के अनुसार, “पितृसत्ता सामाजिक संरचना की ऐसी व्यवस्था है, जिसमें पुरुष, महिला पर अपना प्रभुत्व जमाता है, उसका दमन करता है और उसका शोषण करता है” तथा भारतीय समाज में लिंग असमानता का मूल कारण इसी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में निहित है।

यद्यपि लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में आज हमने काफी प्रगति की है, लेकिन नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों को चाहिये कि वे इस प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाएँ और आने वाले वर्षों में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिये कड़ी कार्रवाई करें। न्याय और सामाजिक समानता के साथ-साथ मानव पूंजी के विविध एवं व्यापक आधारों के संदर्भ में ऐसा करना बहुत ज़रूरी है।

स्रोत: PIB


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 मार्च, 2020

रेडर–एक्स (RaIDer-X)

पुणे में आयोजित राष्ट्रीय विस्फोटक डिटेक्शन कार्यशाला (NWED-2020) में आज रेडर–एक्स (RaIDer-X) नामक एक नए विस्फोटक डिटेक्शन डिवाइस का अनावरण किया गया। रेडर-एक्स में एक दूरी से विस्फोटकों की पहचान करने की क्षमता है। शुद्ध रूप में अनेक विस्फोटकों के साथ-साथ मिलावट वाले विस्फोटकों का पता लगाने की क्षमता बढ़ाने के लिये सिस्टम में डेटा लाइब्रेरी बनाई जा सकती है। इस डिवाइस के द्वारा छुपाकर रखे गए विस्फोटकों के ढेर का भी पता लगाया जा सकता है। हाई एनर्जी मैटेरियल रिसर्च लेबोरेटरी (HEMRL), पुणे तथा भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बंगलूरू ने मिलकर रेडर-एक्स को विकसित किया है।

मार्शल ऑफ द एयरफोर्स अर्जन सिंह चेयर ऑफ एक्सीलेंस

भारतीय वायुसेना की एक विशिष्ट पहल के रूप में भारतीय वायुसेना और पुणे स्थित सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय ने रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन विभाग में उत्कृष्टता की पीठ की स्थापना करने के लिये 26 फरवरी, 2020 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर शैक्षिक सहयोग स्थापित किया है। वायुसेना के दिग्गज मार्शल को श्रद्धांजलि अर्पित करने तथा एम.आई.ए.एफ. के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में भारतीय वायुसेना ने इस पीठ को ‘मार्शल ऑफ द एयरफोर्स अर्जन सिंह चेयर ऑफ एक्सीलेंस’ का नाम दिया है। यह पीठ वायुसेना के अधिकारियों को रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन तथा संबद्ध क्षेत्रों में डॉक्टरल अनुसंधान एवं उच्च अध्ययन करने में समर्थ बनाएगी साथ ही राष्ट्रीय रक्षा के क्षेत्र और वायु सेना अधिकारियों के संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान एवं उच्च अध्ययन की सुविधा प्रदान करेगी। यह पीठ रणनीतिक दृष्टिकोण को विकसित करने तथा रणनीतिक विचारकों के पूल का निर्माण करने में भी मदद करेगी।

शून्य भेदभाव दिवस

1 मार्च, 2020 को ‘महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ शून्य भेदभाव’ की थीम के साथ विश्व स्तर पर शून्य भेदभाव दिवस मनाया गया। इस दिवस को महिलाओं और लड़कियों द्वारा भेदभाव तथा असमानता को चुनौती देने के लिये मनाया जाता है। इसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और उनके सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र एड्स कार्यक्रम द्वारा मनाया जाता है। वर्ष 2014 में पहली बार इस दिवस का आयोजन किया गया। इस दिवस को एड्स कार्यक्रम से जोड़ा जा रहा है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र (UN) का मानना ​​है कि एड्स के उन्मूलन के लिये महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव से लड़ना सबसे महत्त्वपूर्ण है।