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गर्भपात का अधिकार | 07 Jun 2019 | नीतिशास्त्र

संदर्भ

भारत में गर्भपात वास्तविक अर्थों में कानूनी अधिकार नहीं है। कोई महिला डॉक्टर के पास जाकर यह नहीं कह सकती कि वह गर्भपात करवाना चाहती है। सुरक्षित कानूनी गर्भपात उसी स्थिति में हो सकता है अगर डॉक्टर कहे कि ऐसा करना ज़रूरी है।

धारा 3: जब पंजीकृत चिकित्सक गर्भपात कर सकता है।

a. गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक की नही है

b. गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है लेकिन 20 सप्ताह से अधिक नहीं है तो गर्भ उसी स्थिति में हो सकता है जब दो डॉक्टर ऐसा मानते हैं किः

1. गर्भपात नहीं किया गया तो गर्भवती महिला का जीवन खतरे में पड़ सकता है, या

2. अगर गर्भवती महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पहुँचने की आशंका हो, या

3. अगर गर्भाधान का कारण बलात्कार हो, या

4. इस बात का पर्याप्त खतरा हो कि अगर बच्चे का जन्म होता है तो वह शारीरिक या मानसिक विकारों का शिकार हो सकता है जिससे उसके गंभीर रूप से विकलांग होने की आशंका है, या

5. बच्चों की संख्या को सीमित रखने के उद्देश्य से वैवाहिक दंपति ने जो गर्भ निरोधक हो या तरीका अपनाया हो वह विफल हो जाए, या

6. गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को उसके वास्तविक या बिल्कुल आप-पास के वातावरण के कारण खतरा हो। यह कानून 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की अनुमति नहीं देता। निश्चित तौर पर ‘मेडिकल ओपिनियन’ ‘गुड फेथ’ में दिया जाना चाहिये। गुड फेथ शब्द को इस कानून में परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 52 गुड फेथ को पर्याप्त सावधानी के साथ किये गए कार्य के रूप में परिभाषित करती है।

गर्भपात के लिये सहमति

MTPA की धारा 3 (4) यह स्पष्ट करती है कि गर्भपात के लिये किसकी सहमति ज़रूरी होगी।

a. कोई भी युवती जिसकी आयु 18 वर्ष नहीं है या वह 18 वर्ष की तो हो लेकिन मानसिक तौर पर बीमार हो तो गर्भपात के लिये उसके अभिभावक की लिखित सहमति लेनी होगी।

b. कोई भी गर्भपात महिला की सहमति के बगैर नहीं किया जा सकता।

गर्भ का चिकित्सकीय समापना (संशोधन) विधेयक, 2014

(Medical Termination of Pregnancy- MTP Act)

अजन्मे बच्चे का अधिकार

लिंग निर्धारण को अनिवार्य करना और सभी गर्भ-धारकों को निगरानी का विषय बनाना, संविधान के 19वें अनुच्छेद का उल्लंघन होगा, जहाँ से हमें निजता का अधिकार हासिल हुआ है और किसी भी महिला को यह हक दिया गया है कि वह इस बात को तय करे कि गर्भवती बनना है या नही, अथवा अपने गर्भ को कायम रखना है या नहीं। सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने 1992 में नीरा माथुर बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम मामले में यह निर्णय दिया था कि गर्भ-धारण को निजी रखना, निजता के अधिकार का मामला है।