सुशासन | 26 Nov 2020

सुशासन क्या है?

  • ‘शासन’ निर्णय लेने की एवं जिसके द्वारा निर्णय लागू किये जाते हैं, की प्रक्रिया है।
    • शासन का उपयोग कई संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट शासन, अंतर्राष्ट्रीय शासन, राष्ट्रीय शासन और स्थानीय शासन।
  • वर्ष 1992 में ‘शासन और विकास’ (Governance and Development) नामक रिपोर्ट में विश्व बैंक ने सुशासन अर्थात् ‘गुड गवर्नेंस’ (Good Governance) की परिभाषा तय की। इसने सुशासन को ‘विकास के लिये देश के आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग करने के तरीके’ के रूप में परिभाषित किया।
  • सुशासन की 8 प्रमुख विशेषताएँ हैं। यह भागीदारी, आम सहमति, जवाबदेही, पारदर्शी, उत्तरदायी, प्रभावी एवं कुशल, न्यायसंगत और समावेशी होने के साथ-साथ  ‘कानून के शासन’ (Rule of Law) का अनुसरण करता है।
  • यह विश्वास दिलाता है कि भ्रष्टाचार को कम-से-कम किया जा सकता है, इसमें अल्पसंख्यकों के विचारों को ध्यान में रखा जाता है और निर्णय लेने में समाज में सबसे कमज़ोर लोगों की आवाज़ सुनी जाती है।
  • यह समाज की वर्तमान एवं भविष्य की ज़रूरतों के लिये भी उत्तरदायी है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा बताए गए सुशासन के 8 सिद्धांत:

Good-Governanace

भागीदारी (Participation): 

  • लोगों को वैध संगठनों या प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी राय देने में सक्षम होना चाहिये।
  • इसमें पुरुष एवं महिलाएँ, समाज के कमज़ोर वर्ग, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक आदि शामिल हैं।
  • भागीदारी का तात्पर्य संघ एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी है।

कानून का शासन (Rule of Law): 

  • कानूनी ढाँचे को निष्पक्ष रूप से लागू किया जाना चाहिये विशेषकर मानवाधिकार कानूनों के परिप्रेक्ष्य में।
  • ‘कानून के शासन’ के बिना राजनीति, मत्स्य न्याय (Matsya Nyaya) के सिद्धांत अर्थात् मछली के कानून (Law of Fish) का पालन करेगी जिसका अर्थ है ताकतवर कमज़ोरों पर प्रबल होगा।

आम सहमति उन्मुख (Consensus-oriented):

  • आम सहमति उन्मुख निर्णय लेने से यह सुनिश्चित होता है कि हर किसी की सामान्य न्यूनतम ज़रूरत पूरी की जा सकती है जो किसी के लिये हानिकारक नहीं होगा।
  • यह एक समुदाय के सर्वोत्तम हितों को पूरा करने के लिये व्यापक सहमति के साथ साथ विभिन्न हितों की मध्यस्थता करता है।

न्यायसंगत एवं समावेशी (Equity and Inclusiveness): 

  • सुशासन एक समतामूलक समाज के निर्माण का आश्वासन देता है।
  • लोगों के पास अपने जीवन स्तर में सुधार करने या उसे बनाए रखने का अवसर होना चाहिये।

प्रभावशीलता एवं दक्षता (Effectiveness and Efficiency):

  • विभिन्न संस्थानों को अपने समुदाय की ज़रूरतों को पूरा करने वाले परिणाम उत्पन्न करने में सक्षम होना चाहिये।
  • समुदाय के संसाधनों का उपयोग अधिकतम उत्पादन के लिये प्रभावी रूप से किया जाना चाहिये।

जवाबदेही (Accountability):

  • सुशासन का उद्देश्य लोगों की बेहतरी पर आधारित है और यह सरकार के बिना लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं हो सकता है।
  • सरकारी संस्थानों, निजी क्षेत्रों और नागरिक संगठनों को सार्वजनिक एवं संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।

पारदर्शिता (Transparency):

  • आवश्यक सूचनाएँ जनता के लिये सुलभ हों और उनकी निगरानी होनी चाहिये।
  • पारदर्शिता का मतलब मीडिया पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण न हो और लोगों तक सूचनाओं की पहुँच भी हो।

अनुक्रियाशीलता (Responsiveness): 

  • संस्थानों और प्रक्रियाओं द्वारा उचित समय में सभी हितधारकों को सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिये।

सुशासन का संदर्भ:

  • भगवद्गीता सुशासन, नेतृत्त्व, कर्तव्य परायणता और आत्मबल को कई प्रकार से संदर्भित करती है जिनकी आधुनिक संदर्भ में पुनः व्याख्या की जा सकती है।
  • कौटिल्य के अर्थशास्त्र (ईसा-पूर्व की दूसरी-तीसरी शताब्दी) में राजा के कार्यों में ‘लोगों के कल्याण’ को सर्वोपरि माना गया।
  • महात्मा गांधी ने ‘सु-राज’ (Su-raj) पर ज़ोर दिया है जिसका अनिवार्य रूप से मतलब है ‘सुशासन’।
  • भारतीय संविधान में शासन के महत्त्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है जो कि संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक गणराज्य पर आधारित है, साथ ही लोकतंत्र, कानून का शासन और लोगों के कल्याण के लिये प्रतिबद्ध है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों के तहत ‘लक्ष्य 16’ को सीधे तौर पर सुशासन से जुड़ा हुआ माना जा सकता है क्योंकि यह शासन, समावेशन, भागीदारी, अधिकारों एवं सुरक्षा में सुधार के लिये समर्पित है।
  • पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान के अनुसार, सुशासन मानव अधिकारों के लिये सम्मान और कानून का शासन सुनिश्चित करता है तथा लोकतंत्र को मज़बूती, लोक प्रशासन में पारदर्शिता एवं सामर्थ्य को बढ़ावा देता है।

भारत में सुशासन के लिये पहल:

सूचना का अधिकार (Right to Information):

  • नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय करार (International Covenant on Civil and Political Rights- ICCPR) के लिये एक पार्टी के रूप में भारत ने ICCPR के अनुच्छेद 19 के अनुसार, नागरिकों को सूचना के अधिकार की प्रभावी रूप से गारंटी देने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय दायित्त्व का पालन किया है। 
  • RTI अधिनियम, 2005 भारतीय लोकतंत्र में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है। यह नागरिकों को सूचनाओं तक पहुँच प्रदान करता है जो बदले में अधिक सामुदायिक आवश्यकताओं के प्रति सरकार को जवाबदेह बनाता है।

ई-गवर्नेंस (E-Governance):

  • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (National e-Governance Plan) सभी सरकारी सेवाओं को नागरिकों के लिये उनके क्षेत्र में सुलभ बनाने, ‘कॉमन सर्विस डिलीवरी आउटलेट’ के माध्यम से उपलब्ध कराने और किफायती लागत पर ऐसी सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये लागू की गई है।
  • ई-गवर्नेंस प्रभावी रूप से नई उभरती सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICTs) के युग में बेहतर कार्यक्रम एवं सेवाएँ प्रदान करता है जो दुनिया भर में तेज़ी से सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन के लिये नए अवसर उपलब्ध कराता है।  
  • ई-गवर्नेंस का उन नागरिकों पर सीधा प्रभाव पड़ता है जो सरकार द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के साथ प्रत्यक्ष लेन-देन के माध्यम से लाभ प्राप्त करते हैं।
    • ई-गवर्नेंस के तहत शुरू किये गए कार्यक्रम: प्रगति (Pro-Active Governance and Timely Implementation), डिजिटल इंडिया कार्यक्रम, एमसीए 21 (कंपनी मामलों के मंत्रालय की सेवाओं के वितरण में गतिशीलता एवं निश्चितता में सुधार करना), पासपोर्ट सेवा केंद्र (PSK), ऑनलाइन आयकर रिटर्न आदि।
  • सरकार द्वारा 'न्यूनतम सरकार-अधिकतम शासन' (Minimum Government, Maximum Governance) पर ध्यान देना। 

कानूनी सुधार (Legal Reforms):

  • केंद्र सरकार ने पारदर्शिता लाने और दक्षता में सुधार करने के उद्देश्य से लगभग 1,500 अप्रचलित नियमों एवं कानूनों को समाप्त कर दिया है।
  • कानूनी प्रक्रियाओं के तहत विभिन्न संस्थानों द्वारा की जाने वाली मध्यस्थता पर ध्यान देने के साथ ही प्रक्रियात्मक कानूनों में सुधार किया जाना चाहिये।

ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business):

  • सरकार द्वारा व्यापार करने की परिस्थितियों में सुधार के लिये कदम उठाए गए हैं जिसमें कई कानून भी शामिल हैं, जो देश के कारोबारी माहौल और नीतियों से संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिये हैं। जैसे- दिवालियापन संहिता (Bankruptcy Code), वस्तु एवं सेवा कर (GST) और एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग कानून आदि।  

विकेंद्रीकरण (Decentralization): 

  • केंद्रीकृत ‘योजना आयोग’ को समाप्त कर दिया गया और इसकी जगह नीति आयोग (NITI Aayog) नामक थिंक टैंक को लाया गया है जो ‘सहकारी संघवाद’ (Cooperative Federalism) को बढ़ावा देता है।
  • 14वें वित्त आयोग ने वर्ष 2015 से वर्ष 2020 तक राज्यों के लिये कर हस्तांतरण की सीमा को 32% से बढ़ाकर 42% कर दिया। यह राज्यों को स्थानीय कारकों के आधार पर योजनाएँ आरंभ करने की अधिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।

पुलिस सुधार (Police Reforms):

  • गौण अपराधों के लिये ई-एफआईआर दर्ज करने सहित प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) तंत्र में सुधार किया गया। 
  • नागरिकों की आपातकालीन सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी आपातकालीन नंबर लॉन्च किया गया।

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (Aspirational Districts Programme):

  • जनवरी 2018 में देश के कम विकसित क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में बदलाव लाने के लिये आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) शुरू किया गया था।  
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य 115 सबसे पिछड़े ज़िलों के स्वास्थ्य एवं पोषण, शिक्षा, कृषि एवं जल प्रबंधन, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।

सुशासन सूचकांक (Good Governance Index):

  • सुशासन सूचकांक 25 दिसंबर, 2019 को सुशासन दिवस के अवसर पर शुरू किया गया था।
  • इसे सभी राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा शासन की स्थिति पर प्रभावों का आकलन करने के लिये एक समान उपकरण के रूप में तैयार किया गया है।
  • GGI के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं:
    • सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में शासन की तुलना करने के लिये मात्रात्मक आँकड़े प्रदान करना।
    • शासन में सुधार के लिये उपयुक्त रणनीति बनाने और लागू करने में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को सक्षम बनाना ताकि शासन व्यवस्था को और बेहतर एवं परिणामोन्मुखी बनाया जा सके।

सुशासन की राह में चुनौतियाँ:

राजनीति का अपराधीकरण:

  • ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में गठित लोकसभा के कुल सांसदों में से 43% सदस्य आपराधिक केस का सामना कर रहे हैं। इसमें वर्ष 2014 की तुलना में 26% की वृद्धि हुई है।
  • राजनीति का अपराधीकरण तथा राजनेताओं, सिविल सेवकों एवं व्यापारिक घरानों का गठजोड़ सार्वजनिक नीति निर्माण एवं शासन पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
  • यद्यपि जनता के बीच राजनीतिक वर्ग का सम्मान लगातार कम होता जा रहा है, इसलिये ऐसे किसी व्यक्ति जिसके खिलाफ गंभीर एवं जघन्य अपराध व भ्रष्टाचार से संबंधित आपराधिक आरोप लंबित हैं, को अयोग्य घोषित करने के लिये जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 में संशोधन करना आवश्यक है।

भ्रष्टाचार (Corruption):

  • शासन की गुणवत्ता को सुधारने में भ्रष्टाचार एक बड़ी बाधा है। जबकि स्पष्ट रूप से मानव लालच भ्रष्टाचार का चालक है। यह भारत में भ्रष्टाचार की बढ़ती प्रवृत्ति में योगदान करने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2019 के अनुसार, भारत की रैंकिंग 78 से फिसलकर 80 हो गई है। 

लैंगिक असमानता (Gender Disparity):

  • स्वामी विवेकानंद के अनुसार, “जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा, विश्व कल्याण के बारे में सोचना असंभव है। जिस प्रकार एक पक्षी के लिये केवल एक पंख पर उड़ना असंभव होता है’’।
  • किसी राष्ट्र की स्थिति का आकलन करने का एक तरीका यह है कि वहाँ की महिलाओं की स्थिति का अध्ययन किया जाए। चूँकि महिलाएँ कुल आबादी का लगभग 50% हैं, इसलिये सरकारी संस्थानों एवं अन्य संबद्ध क्षेत्रों में पर्याप्त रूप से महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व बढ़ाया जाना चाहिये।
  • अर्थात् सुशासन सुनिश्चित करने के लिये महिलाओं का सशक्तीकरण आवश्यक है।

हिंसा की बढ़ती घटनाएँ:

  • अवैध तरीके से बल का सहारा लेना कानून व्यवस्था की समस्या मानी जाती है किंतु सुशासन के सिद्धांतों के दृष्टिकोण से देखने पर लगता है कि शांति और व्यवस्था, विकास की दिशा में पहला कदम है।

न्याय में देरी (Delay in Justice):

  • एक नागरिक को समय पर न्याय पाने का अधिकार है, किंतु कई ऐसे कारक है जिनकी वजह से एक सामान्य व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिल पाता है।

प्रशासनिक प्रणाली का केंद्रीकरण (Centralisation of Administrative System):

  • महात्मा गांधी के अनुसार, जब पंचायत राज स्थापित हो जाएगा, तब लोकमत ऐसे अनेक कार्य कर दिखाएगा जहाँ हिंसा का कोई स्थान नहीं होगा।
  • पंचायती राज संस्थान (Panchayati Raj Institution- PRI) भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन (Rural Local Self-government) की एक प्रणाली है। स्थानीय स्वशासन का अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों के माध्यम से स्थानीय मामलों का प्रबंधन। 
    • किंतु वर्तमान में यह प्रक्रिया निधियों के अपर्याप्त हस्तांतरण के कारण सुशासन की राह में बाधा बन रही है।

सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का सीमांकन: 

  • विकास की प्रक्रिया में हाशिये पर स्थित समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिये कई संवैधानिक प्रावधान है किंतु वास्तविकता में शिक्षा, आर्थिक गतिविधियों आदि जैसे कई क्षेत्रों में वे अभी भी पीछे हैं।

निष्कर्ष:

  • शासन की प्रभावी कार्यपद्धति देश के प्रत्येक नागरिक से संबंधित है। नागरिक राज्य द्वारा दी जाने वाली अच्छी सेवाओं का खर्च वहन करने लिये तैयार हैं, किंतु इसके लिये आवश्यक है की ऐसी एक पारदर्शी, जवाबदेह और बौद्धिक शासन प्रणाली हो जो पक्षपात एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त हो। 
  • देश में सुशासन बहाल करने के लिये ‘अंत्योदय’ के गांधीवादी सिद्धांत की प्रधानता हेतु हमारी राष्ट्रीय रणनीति में सुधार करने की आवश्यकता है। 
  • भारत को शासन में सत्यनिष्ठा की धारणा को विकसित करने पर भी ध्यान देना चाहिये ताकि शासन को अधिक नैतिक बनाया जा सके।
  • सरकार को ‘सबका साथ-सबका विकास एवं सबका-विश्वास’ के आदर्श पर कार्य करते रहना चाहिये जो समावेशी एवं सतत् विकास को बढ़ावा दे।

शासन में सत्यनिष्ठा

  • सत्यनिष्ठा, मज़बूत नैतिक सिद्धांत होने का एक आवश्यक गुण है। इसमें समग्रता, शुचिता और ईमानदारी शामिल है। इसमें न केवल सच्चरित्रता एवं ईमानदारी है बल्कि आचार संहिता का सख्ती से पालन करना भी शामिल है। शासन की एक प्रभावी प्रणाली और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये सत्यनिष्ठा आवश्यक है।
  • शासन और सत्यनिष्ठा के दार्शनिक आधार: 
    • शासन की नैतिक अवधारणाएँ पूर्वी एवं पश्चिमी देशों के साहित्य जैसे- भगवद्गीता, अर्थशास्त्र, कन्फ्यूशियस, प्लेटो, मिल आदि द्वारा दी गई हैं।
    • प्रशासक, राज्य के प्रशासनिक संरक्षक हैं, इसलिये उन्हें ‘पब्लिक ट्रस्ट’ का सम्मान करना चाहिये।

शासन में सत्यनिष्ठा का उद्देश्य: 

  • शासन में जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • लोक सेवा में ईमानदारी बनाए रखना। 
  • प्रक्रिया का अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • सरकारी प्रक्रिया में लोगों का विश्वास बनाए रखना।
  • कदाचार, धोखाधड़ी एवं भ्रष्टाचार की संभावना से बचना।