आचार संहिता बनाम नीति संहिता | 18 Jul 2020

भूमिका:

  • नीति संहिता एवं आचार संहिता दोनों का संबंध विभिन्न संगठनों में शासन में, प्रशासन में क्या सही है, क्या गलत? अर्थात् नैतिकता की स्थापना से है।
  • हालाँकि व्यावहारिक तौर पर नीति संहिता एवं आचार संहिता को पूरी तरह एक-दूसरे से पृथक करना संभव नहीं है, परंतु सैद्धांतिक स्तर पर दोनों में अंतर किया जा सकता है।

नीति संहिता एवं आचार संहिता में अंतर:

  • नीति संहिता मूल आधार है, इसमें कुछ नैतिक मूल्यों को शामिल किया जाता है, जबकि आचार संहिता नीति संहिता पर आधारित एक दस्तावेज है जो यह निश्चित करता है कि किस अधिकारी को कौन-सा आचार करना चाहिये, कौन-सा नहीं।
  • नीति संहिता प्राय: सामान्य तथा अमूर्त होती है, जबकि आचार संहिता विशिष्ट एवं मूर्त होती है।
  • संभवतः विभिन्न विभागों के लिये नीति संहिता एक जैसी हो सकती है वहीं आचार संहिता अलग-अलग हो सकती है।
  • आचार संहिता समय के साथ परिवर्तित होती है, जबकि नीति संहिता अपेक्षाकृत स्थायी होती है।

क्या है नीति संहिता? 

  • ध्यातव्य है कि भारत सरकार ने कोई निश्चित नीति संहिता नहीं बनाई है, परंतु कुछ नैतिक मूल्यों पर हर आचार संहिता में बल दिया गया है।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी चौथी रिपोर्ट ‘शासन में नैतिकता’ में सिविल सेवकों के लिये शासन में नीति संहिता की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • वर्ष 1964 में संथानम समिति ने भी सिविल सेवा में नीति संहिता की आवश्यकता को महसूस किया तथा सत्यनिष्ठा एवं कुशलता की मज़बूत परंपराओं के विकास में नैतिक उत्साह की कमी का बाधक माना।
  • लोक सेवा अधिनियम, 2007 (संशोधन, 2009) में जिन नैतिक मूल्यों पर बल दिया गया है, उन्हें नीति संहिता माना जा सकता है।
    • संविधान की प्रस्तावना में आदर्शों के प्रति निष्ठा रखना।
    • तटस्थता, निष्पक्षता बनाए रखना।
    • किसी राजनीतिक दल के प्रति सार्वजनिक निष्ठा न रखना। यदि किसी दल से लगाव हो तो भी अपने कार्यों पर प्रभाव न पड़ने देना।
    • देश की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए वंचित समूहों (लिंग, जाति, वर्ग या अन्य कारणों से) के प्रति करुणा का भाव रखना।
    • निर्णयन प्रक्रिया में उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता के साथ-साथ उच्चतम सत्यनिष्ठा को बनाए रखना।

नीति संहिता एवं आचार संहिता से संबंधित द्वितीयक प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें:

  • द्वितीयक प्रशासनिक सुधार आयोग ने ‘शासन में नैतिकता’ नाम से अपनी चौथी रिपोर्ट जारी की जिसमें कुछ सिफारिशें की गईं।
  • आयोग ने लोक सेवा मूल्यों की एक शृंखला की सिफारिश की जिसका निर्धारण कानूनी अनुबंध द्वारा हो।
  • यह सुनिश्चित करने की व्यवस्था होनी चाहिये कि सिविल सेवक निरंतर इन मूल्यों के प्रति उत्साहजनक बने रहें।
  • आयोग की सिफारिशें-
    • अधिकारियों के लिये नैतिक संहिता और आचार संहिता में हितों के संघर्ष के मुद्दे को विस्तार से शामिल किया जाना चाहिये।
    • सेवारत अधिकारियों को भी सरकारी उपक्रमों के मंडलों में नामांकित नहीं किया जाना चाहिये, यद्यपि यह गैर-लाभ के सरकारी संस्थानों एवं परामर्शी निकायों पर लागू नहीं होगा।
    • ऐसे ‘लोक सेवा मूल्य’ जिन्हें सभी सार्वजनिक कर्मचारियों को ऊँचा उठाना चाहिये, को परिभाषित किया जाना चाहिये। इसे सरकार एवं अर्द्ध-सरकारी संगठनों की सभी श्रेणियों पर लागू किया जाना चाहिये।
    • इन मूल्यों का उल्लंघन किये जाने पर इसे कदाचार और दंड को निमंत्रण समझा जाना चाहिये।
    • विभिन्न वर्ग के लोगों के लिये अलग-अलग आचार संहिता का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त मंत्रियों के लिये नैतिक संहिता तथा विधायिका के सदस्यों एवं सिविल सेवकों के लिये नैतिक संहिता की भी सिफारिश की।