क्लोनिंग | 15 Jul 2019

क्या है?

  • क्लोनिंग का तात्पर्य है अलैंगिक विधि से एक जीव से दूसरा जीव तैयार करना।
  • इस विधि से उत्पादित क्लोन अपने जनक से शारीरिक और आनुवांशिक रूप में समरूप होते हैं।
  • अर्थात् किसी जीव का प्रतिरूप तैयार करना ही क्लोनिंग है।

मुख्य बिंदु

  • वर्ष 1997 में ‘डॉली’ नामक भेड़ का क्लोन बनाया गया।
  • इसकी सहायता से विशेष ऊतकों व अंगों का निर्माण कर असाध्य और आनुवांशिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है।
  • क्लोनिंग कैंसर के उपचार में भी कारगर हो सकता है।
  • इसकी मदद से लीवर, किडनी आदि अंगों का निर्माण कर अंग प्रत्यारोपण को सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
  • क्लोनिंग के द्वारा विशेष प्रकार की वनस्पतियों व जीवों का क्लोन बनाया जा सकता है, जिससे महत्त्वपूर्ण औषधियों का निर्माण तथा जैव-विविधता का संरक्षण किया जा सकता है।

क्लोनिंग के प्रकार

जीन क्लोनिंग या आणिवक क्लोनिंग:

इसके अंतर्गत पहले जीन-अभियांत्रिकी के प्रयोग से ट्रांसजेनिक बैक्टीरिया का निर्माण किया जाता है, फिर उस आनुवांशिक रूप से संशोधित बैक्टीरिया के क्लोन प्राप्त किये जाते हैं।

रिप्रोडक्टिव क्लोनिंग

  • इस प्रक्रिया में सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर (SCNT) तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
  • इस विधि में कोशिका से नाभिक को निकालकर केंद्रकरहित अंडाणु में प्रतिस्थापित किया जाता है और विद्युत तरंग प्रवाहित करके भ्रूण तैयार किया जाता है।

थेराप्यूटिक क्लोनिंग

  • इस विधि से मानवीय अनुसंधान हेतु मानव भ्रूण तैयार किया जाता है।
  • भ्रूण के तैयार होने की आरंभिक अवस्था में इससे ‘स्टेम सेल’ को अलग कर लिया जाता है। बाद में इस सेल से आवश्यक मानवीय कोशिकाओं का विकास किया जाता है।

स्टेम सेल या स्तंभ कोशिका

  • ऐसी कोशिकाएँ जिनमें शरीर के किसी भी अंग की कोशिका के रूप में विकसित होने की क्षमता विद्यमान होती है, स्तंभ कोशिकाएँ कहलाती है।
  • ये कोशिकाएँ बहुकोशिकाय जीवों में पाई जाती हैं और विभाजन द्वारा अपनी संख्या बढ़ा सकती हैं।