भारत में बायोस्फीयर रिज़र्व | 22 Apr 2021

परिचय:

  • बायोस्फीयर रिज़र्व (BR), UNESCO द्वारा प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्यों के सांकेतिक भागों के लिये दिया गया एक अंतर्राष्ट्रीय पदनाम है जो स्थलीय या तटीय/समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों के बड़े क्षेत्रों या दोनों के संयोजन को शामिल करता है। 
  • स्थलीय या तटीय/समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के बड़े क्षेत्रों या दोनों के संयोजन में फैले प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के प्रतिनिधि भागों के लिये बायोस्फीयर रिज़र्व (BR) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा दिया गया एक अंतर्राष्ट्रीय पदनाम है।
  • बायोस्फीयर रिज़र्व प्रकृति के संरक्षण के साथ आर्थिक और सामाजिक विकास तथा संबद्ध सांस्कृतिक मूल्यों के रखरखाव को संतुलित करने का प्रयास करता है।
  • इस प्रकार बायोस्फीयर रिजर्व लोगों और प्रकृति दोनों के लिये विशेष वातावरण हैं तथा इस बात के उदाहरण हैं कि मनुष्य एवं प्रकृति एक-दूसरे की ज़रूरतों का सम्मान करते हुए कैसे सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।

बायोस्फीयर रिज़र्व के पदनाम के लिये मानदंड:

  • किसी स्थल में प्रकृति संरक्षण के दृष्टिकोण से संरक्षित और न्यूनतम अशांत क्षेत्र होना चाहिये।
  • संपूर्ण क्षेत्र एक जैव-भौगोलिक इकाई के समान होना चाहिये और उसका क्षेत्र इतनाबड़ा होना चाहिये कि वह पारिस्थितिकी तंत्र के सभी पोषण स्तरों का प्रतिनिधित्व कर रहे जीवों की संख्या को बनाए रखे।
  • प्रबंधन प्राधिकरण को स्थानीय समुदायों की भागीदारी/सहयोग सुनिश्चित करना चाहिये ताकि जैव विविधता के संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास को आपस में संलग्न करते समय प्रबंधन तथा संघर्ष को रोकने के लिये उनके ज्ञान एवं अनुभव का लाभ उठाया जा सके।
  • वह क्षेत्र जिsमे पारंपरिक आदिवासी या ग्रामीण स्तरीय जीवनयापन के तरीको को संरक्षित रखने की क्षमता हो ताकि पर्यावरण का सामंजस्यपूर्ण उपयोग किया जा सके।

बायोस्फीयर रिज़र्व की संरचना:

  • कोर क्षेत्र (Core Areas):
    • यह बायोस्फीयर रिज़र्व का सबसे संरक्षित क्षेत्र है। इसमें स्थानिक पौधे और जानवर हो सकते हैं।
    • इस क्षेत्र में अनुसंधान प्रक्रियाएँ, जो प्राकृतिक क्रियाओं एवं वन्यजीवों को प्रभावित न करें, की जा सकती हैं।
    • एक कोर क्षेत्र एक ऐसा संरक्षित क्षेत्र होता है, जिसमें ज्यादातर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित/विनियमित राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य शामिल होते हैं। इस क्षेत्र में सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को छोड़करअन्य सभी का प्रव्रेश वर्जित है।
  • बफर क्षेत्र (Buffer Zone):
    • बफर क्षेत्र, कोर क्षेत्र के चारों ओर का क्षेत्र है। इस क्षेत्र का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिये किया जाता है जो पूर्णतया नियंत्रित व गैर-विध्वंशक हों।
    • इसमें सीमित पर्यटन, मछली पकड़ना, चराई आदि शामिल हैं। इस क्षेत्र में मानव का प्रवेश कोर क्षेत्र की तुलना में अधिक एवं संक्रमण क्षेत्र की तुलना में कम होता है।
    • अनुसंधान और शैक्षिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता है।
  • संक्रमण क्षेत्र (Transition Zone):
    • यह बायोस्फीयर रिज़र्व का सबसे बाहरी हिस्सा होता है। यह सहयोग का क्षेत्र है जहाँ मानव उद्यम और संरक्षण सद्भाव से किये जाते हैं।
    • इसमें बस्तियाँ, फसलें, प्रबंधित जंगल और मनोरंजन के लिये क्षेत्र तथा अन्य आर्थिक उपयोग क्षेत्र शामिल हैं।

Buffer-zone

बायोस्फीयर रिज़र्व के कार्य:

  • संरक्षण-
    • बायोस्फीयर रिज़र्व के आनुवंशिक संसाधनों, स्थानिक प्रजातियों, पारिस्थितिक तंत्र और परिदृश्य का प्रबंधन।
    • यह मानव-पशु संघर्ष को रोक सकता है, उदाहरण के लिये अवनी बाघ की मौत, जिसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, क्योंकि वह आदमखोर हो गई थी।
    • वन्यजीवों के साथ आदिवासियों की संस्कृति और रीति-रिवाजों का भी संरक्षण।
  • विकास-
    • आर्थिक और मानवीय विकास को बढ़ावा देना जो समाजशास्त्रीय और पारिस्थितिकी स्तर पर स्थायी हों। यह सतत् विकास के तीन स्तंभों को मज़बूत करता है: सामाजिक, आर्थिक और  पर्यावरण का संरक्षण।
  • लाॅजिस्टिक-
    • स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण एवं सतत् विकास के संदर्भ में अनुसंधान गतिविधियों, पर्यावरण शिक्षा, प्रशिक्षण तथा निगरानी को बढ़ावा देना।

भारत में बायोस्फीयर रिज़र्व:

  • भारत में 18 बायोस्फीयर रिज़र्व हैं:
    • कोल्ड डेज़र्ट, हिमाचल प्रदेश
    • नंदा देवी, उत्तराखंड
    • खंगचेंदजोंगा, सिक्किम
    • देहांग-देबांग, अरुणाचल प्रदेश
    • मानस, असम
    • डिब्रू-सैखोवा, असम
    • नोकरेक, मेघालय
    • पन्ना, मध्य प्रदेश
    • पचमढ़ी, मध्य प्रदेश
    • अचनकमार-अमरकंटक, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़
    • कच्छ, गुजरात (सबसे बड़ा क्षेत्र)
    • सिमिलिपाल, ओडिशा
    • सुंदरबन, पश्चिम बंगाल
    • शेषचलम, आंध्र प्रदेश
    • अगस्त्यमाला, कर्नाटक-तमिलनाडु-केरल
    • नीलगिरि, तमिलनाडु-केरल (पहले शामिल होने के लिए)
    • मन्नार की खाड़ी, तमिलनाडु
    • ग्रेट निकोबार, अंडमान और निकोबार द्वीप

बायोस्फीयर रिज़र्व की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति:

  • यूनेस्को ने विकास और संरक्षण के बीच संघर्ष को कम करने के लिये प्राकृतिक क्षेत्रों के लिये पदनाम 'बायोस्फीयर रिज़र्व' की शुरुआत की है। बायोस्फीयर रिज़र्व को राष्ट्रीय सरकार द्वारा नामित किया जाता है जो यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम (Man and Biosphere Reserve Program) के तहत न्यूनतम मानदंडों को पूरा करता है। वैश्विक रूप से 122 देशों में 686 बायोस्फीयर भंडार हैं, जिनमें 20 पारगमन स्थल शामिल हैं।

मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम:

  • वर्ष 1971 में शुरू किया गया यूनेस्को का  मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम (MAB) एक अंतर-सरकारी वैज्ञानिक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य लोगों और उनके वातावरण के बीच संबंधों में सुधार के लिये वैज्ञानिक आधार स्थापित करना है।
  • यह आर्थिक विकास के लिये नवाचारी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है जो सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उचित तथा पर्यावरणीय रूप से धारणीय है। 
  • भारत में कुल 11 बायोस्फीयर रिज़र्व हैं जिन्हें मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम के तहत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई है:
    • नीलगिरि (पहले शामिल किया गया)
    • मन्नार की खाड़ी
    • सुंदरबन
    • नंदा देवी
    • नोकरेक
    • पचमढ़ी
    • सिमलीपाल
    • अचनकमार - अमरकंटक
    • महान निकोबार
    • अगस्त्यमाला
    • खंगचेंदज़ोंगा (2018 में मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम के तहत जोड़ा गया)

बायोस्फीयर संरक्षण:

  • बायोस्फीयर रिज़र्व नामक एक योजना वर्ष 1986 से भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित की जा रही है, जिसमें उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के राज्यों और तीन हिमालयी राज्यों को 90:10 के अनुपात में तथा अन्य राज्यों को रखरखाव, कुछ वस्तुओं का सुधार एवं विकास के लिये 60:40 के अनुपात में वित्तीय सहायता दी जाती है।
  • राज्य सरकार प्रबंधन कार्ययोजना तैयार करती है जिसका अनुमोदन और निगरानी का कार्य केंद्रीय MAB समिति द्वारा किया जाता है।

आगे की राह:

  • आदिवासियों के भूमि अधिकार जो संक्रमण क्षेत्रों में वन संसाधनों पर निर्भर हैं, को सुF जैसे नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व पर आक्रमण करने वाली विदेशी प्रजातियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिये।