सर्वोच्च न्यायालय, क्षेत्राधिकार और शक्तियाँ | 29 Jun 2020

सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियाँ उनकी प्रकृति एवं विस्तार के अनुसार किसी भी अन्य देश के सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में अधिक है। अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की तरह यह परिसंघीय न्यायालय, मूल अधिकारों का संरक्षण तथा संविधान का अंतिम व्याख्याकार है, जबकि इंग्लैंड के हाउस ऑफ लॉर्ड्स की न्यायिक समिति की तरह देश के सभी और आपराधिक मामलों में अपील का अंतिम न्यायालय भी है।

सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार और शक्तियों को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • मौलिक अथवा आरंभिक क्षेत्राधिकार-
    • अनुच्छेद 131 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक क्षेत्राधिकार का वर्णन किया गया है। ये मौलिक क्षेत्राधिकार ऐसे विवाद से संबंधित हैं, जिसमें विधि का या तथ्य का कोई प्रश्न अंतर्निहित है जिस पर कोई विधिक अधिकार का अस्तित्व अथवा विस्तार निर्भर करता है।
    • इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय तीन तरह के मामलों की सुनवाई करता है -
      • भारत सरकार तथा एक या अधिक संघ के राज्यों के बीच के विवाद।
      • एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों एवं दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच के विवाद।
      • परस्पर दो या अधिक राज्यों के बीच का विवाद।
    • ध्यातव्य है कि वैसे विवाद जो पूर्ववर्ती भारतीय रियासतों के साथ हुई संधियों से या किसी ऐसी रियासत द्वारा हस्तांतरित संधि से उत्पन्न हुए हों, सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक अधिकारिता अथवा क्षेत्राधिकार के अंतर्गत शामिल नहीं किये जाते हैं।
    • संविधान में कुछ अन्य अनुच्छेदों में वर्णित विषयों जैसे अनुच्छेद 262 के अंतर्गत अन्तर्राज्यीय जल आयोग संबंधी मामले अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।
  • अपीलीय क्षेत्राधिकार-

    • सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है तथा उसे उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सुनने का अधिकार प्राप्त है।
    • अनुच्छेद 132, 133, 134 तथा 136 में सर्वोच्च न्यायालय की अपीलीय अधिकारिता स्पष्ट की गई है।
    • संवैधानिक मामले (अनुच्छेद 132) में उच्च न्यायालय के किसी निर्णय पर चाहे वह दीवानी (सिविल) अथवा फौजदारी में से किसी भी कार्यवाही से संबंधित हो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
    • दूसरे शब्दों में यदि किसी उच्च न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश से कोई ऐसा प्रश्न जुड़ा है जो संविधान से संबद्ध ‘विधि का सारवान प्रश्न’ है और उच्च न्यायालय इस आशय का प्रमाण दे देता है तो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी।
    • दीवानी मामले (अनुच्छेद 133) में उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, जब उच्च न्यायालय प्रमाणित कर दें कि- उस मामले का संबंध सार्वजनिक महत्त्व के किसी सारगर्भित कानूनी प्रश्न से है।
    • उस मामले का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय में होना आवश्यक है।
    • आपराधिक अथवा फौजदारी मामले (अनुच्छेद 134) में उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जब-
      • किसी अपराधी को अधीनस्थ न्यायालय ने छोड़ दिया होता तथा अपील में उच्च न्यायालय ने उसे मृत्युदंड दिया हो।
      • किसी मामले को उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय से हटाकर अपने पास हस्तांतरित कर लिया हो तथा अपराधी को मृत्युदंड दिया हो।
      • उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणित कर दिया जाए कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनने योग्य है।
    • विशिष्ट मामले (अनुच्छेद 136) के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय को उपरोक्त मामले के अलावा कुछ अन्य मामलों में भी हस्तक्षेप करने हेतु अवशिष्ट शक्ति प्राप्त है।
    • विशिष्ट मामलों के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के विवेकानुसार भारत के राज्य क्षेत्र में किसी न्यायालय अथवा अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री, अवधारणा, दण्डादेश या आदेश की विशेष अनुमति दे सकता है।
    • यहाँ ध्यान रखने वाली बात यह है कि सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित किए गए किसी निर्णय, अवधारणा, दण्डादेश या आदेश के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय को अवशिष्ट शक्ति प्राप्त नहीं है।
  • अभिलेख न्यायालय की शक्तियाँ-

    • अनुच्छेद 129 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय के रूप में कार्य करता है अर्थात् आधिकारिक तौर पर प्रकाशित किए जाते हैं तथा उन्हें दृष्टांत स्वरूप मानकर उनके आधार पर निर्णय दिए जाते हैं। उसके द्वारा दिए गए निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय को अपनी मानहानि के लिए भी दंडित करने का अधिकार प्राप्त है।
  • रिट अधिकारिता-

    • संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश निषेध अधिकार पृच्छा एवं उत्प्रेषण रिट जारी किए जा सकते हैं।
      • यह रिट अधिकारिता संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा है। इसका अर्थ है कि संसद इस शक्ति को ना तो कम कर सकती है और न ही समाप्त।
  • परामर्शी/सलाहकारी अधिकारिता-

    • संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार, जब कभी राष्ट्रपति को ऐसा लगे कि विधि या तथ्य से संबंधित कोई ऐसा प्रश्न उठा है अथवा उठने की संभावना है, जो सार्वजनिक महत्त्व का है अथवा जिसकी प्रकृति ऐसी है कि उस पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श लेना उचित होगा तो राष्ट्रपति उस प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख परामर्श हेतु भेज सकता है।
      • सर्वोच्च न्यायालय उसकी सुनवाई कर उस पर अपना परामर्श राष्ट्रपति को भेज सकता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया परामर्श राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं होता।
      • सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि अनुच्छेद 143 के अंतर्गत उससे पूछा गया प्रश्न व्यर्थ है या अनावश्यक है तो वह उत्तर देने से मना कर सकता है।
  • पुनर्विलोकन का अधिकार-

    • अनुच्छेद 137 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों का पुनर्विलोकन करने का अधिकार प्राप्त है।
    • यदि सर्वोच्च न्यायालय को यह प्रतीत हो कि उसके द्वारा दिए गए निर्णय में किसी पक्ष के प्रति न्याय नहीं हुआ है तो वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकता है तथा उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।
  • संविधान का संरक्षक-

    • यदि कोई कानून संविधान का उल्लंघन करता है तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसे अवैध घोषित किया जा सकता है।
    • संसद अथवा राज्य विधान मंडल द्वारा पारित कानून को संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए उस पर अंकुश लगाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार प्राप्त है।
  • अन्य शक्तियाँ एवं अधिकारिताएँ-

    • अनुच्छेद 137 सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने तथा सुधारने की शक्ति देता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाँच करने एवं उन्हें प्रमाणित करने के उपरांत ही राष्ट्रपति द्वारा संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को पदच्युत किया जा सकता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या का अंतिम तथा पूर्ण अधिकार है जो उसे मुख्यतः अनुच्छेद 131, 132 तथा 133 से प्राप्त होता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय को देश के सभी न्यायालयों, पंचायतों आदि का न्यायिक अधीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है।
    • यह उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को मंगवा सकता है एवं उसका निपटारा कर सकता है तथा एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरित भी कर सकता है।
    • राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसका निपटान करने की शक्ति सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के पास ही है।