दक्षिणी चीन सागर | 19 Oct 2019

हाल ही में मालदीव के माले में ‘हिंद महासागरीय सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर दक्षिण कोरिया में नियुक्त अमेरिकी राजदूत ने दक्षिणी चीन सागर द्वारा चीन में कृत्रिम द्वीप समूहों का निर्माण करने और उनका सैन्यीकरण करने पर चीन की भर्त्सना की है। चीन ने इस निंदा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि नान्शा अर्थात् स्प्रेटली द्वीपसमूह पर चीन की निर्विवाद संप्रभुता है।

इसके अतिरिक्त चीन ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले का खंडन करते हुए कहा है कि दक्षिण चीन सागर विवाद पर चीन फिलीपींस से कोई भी बात करने को तैयार नहीं है।

हिंद महासागरीय सम्मेलन

(Indian Ocean Conference) 2019

इसका आयोजन इंडिया फाउंडेशन द्वारा मालदीव सरकार के सहयोग से किया गया। इसका विषय ‘हिंदमहासागरीय क्षेत्र की सुरक्षा: परंपरागत और अपरंपरागत चुनौतियाँ’ थी। इस दौरान समुद्री पारिस्थितिकी, आतंकवाद और नौपरिवहन सुरक्षा आदि बिंदुओं पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की गई।

समुद्री कानून के लिये अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण

International Tribunal for the law of the sea (ITLoS)

(क) अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पश्चात् 16 नवंबर, 1924 को इसकी स्थापना की गई।
(ख) Law of the Sea Convention or Law of the Sea Treaty or United Nation Convention on the Law of the Sea (UNCLOS)- नामक अंतर्राष्ट्रीय समझौता तृतीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान किया गया।
(ग) यह समझौता विश्व के विभिन्न देशों को यह निर्देश देता है कि वह अपने महासागरीय जल, पर्यावरणीय एवं समुद्री संसाधनों आदि के उपयोग के संबंध में विभिन्न राष्ट्रों को उनके अधिकारों और कर्त्तव्यों का बोध कराएँ।

इसका मुख्यालय-हैम्बर्ग (जर्मनी) में है।

यह एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है जो संयुक्त राष्ट्र के साथ संबद्ध है।

दक्षिणी चीन सागर- यह दक्षिण-पूर्वी एशिया में पश्चिम प्रशांत महासागर का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। यह चीन के दक्षिणी भाग, वियतनाम के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग, फिलीपींस के पश्चिम और र्बोनियो द्वीपसमूह के उत्तरी भाग में अवस्थित है।

इसके सीमावर्ती राज्य- चीन का जनवादी गणराज्य, चीन गणराज्य (ताइवान) फिलीपींस, मलेशिया, ब्रेुनेई, इडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम है।

यह पूर्वी चीन सागर के साथ ताइवान जलसंधि द्वारा तथा फिलीपींस सागर के साथ लूजॉन जलसंधि द्वारा जुड़ा है।

इस महासागर में प्रचुर मात्रा में कोरल रीफ (मूंगा प्रवाल), एटॉल, और द्वीप आदि पाए जाते हैं। इनमें पैरोकल द्वीपसमूह, स्प्रेटली द्वीपसमूह और स्कारबोरो शाल आदि महत्त्वपूर्ण है।

दक्षिणी चीन सागर: महत्त्वपूर्ण क्यों?

अपनी भौगोलिक अवस्थिति के कारण दक्षिणी चीन सागर सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह मलक्का जलसंधि द्वारा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है।

(व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) (United Nation Conference on Trade and Development-UNCTAD) के अनुसार, वैश्विक नौ परिवहन व्यापार का एक-तिहाई हिस्सा इसी मार्ग से होता है।

फिलीपींस सरकार के पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन विभाग के अनुसार, दक्षिणी चीन सागर में वैश्विक जैव-विविधता का एक-तिहाई भाग पाया जाता है, इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने हेतु यहाँ पर्याप्त मत्स्य संसाधन उपलब्ध हैं। साथ ही गैस भंडारों की उपलब्धता के कारण दक्षिणी चीन सागर सदैव विवादों में बना रहता है। व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nation Conference on Trade and Development-UNCTAD):

  1. यह संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित (1964) एक अंतर-सरकारी निकाय है। इसका मुख्यालय-जिनेवा स्विट्ज़रलैंड में है।
  2. यह संयुक्त राष्ट्र सचिवालय और संयुक्त राष्ट्र विकास समूह का ही एक भाग है।
  3. यह व्यापार, निवेश और विकास के मुद्दों से निपटने का कार्य करता है।

घटनाक्रम:

  • 1994- समुद्र के कानून पर कन्वेंशन लागू हुआ। अमेरिका ने इस संधि को ‘लॉ ऑफ द सी कन्वेशन’ कहा (Law of the Sea Convention)।
  • 1997- चीन ने अपने दावे के तहत ‘नाइन डेश लाइन’ को हैनान द्वीप से आगे इक्वेटोरियल बोर्नियों तक लगभग 1118 मील बढ़ा दिया।
  • 2002- दक्षिणी चीन सागर में पार्टियों के आचरण की घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
  • 2009- चीन ने दो राजनयिक प्रपत्र जारी करके दक्षिणी चीन सागर पर अपना दावा किया।
  • 2013- फिलीपींस ने ‘सी कन्वेंशन’ के तहत चीन के दावे को चुनौती दी।
  • 2016- मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने चीन को सी कन्वेंशन का उल्लंघन करने का दोषी पाया और फिलीपींस के पक्ष में पैसला सुनाया।

नाइन डेश लाइन- चीन के दक्षिणी हैनान द्वीप से लेकर स्प्रेटली, पेरासल आदि द्वीपों तक विस्तृत है। लगभग 2000 वर्ष पूर्व इन दोनों द्वीप शृंखलाओं पर चीन का अधिकार माना जाता था।

संबंधित पक्ष- 1. चीन ने संवेदनशील विवादित क्षेत्र पर अपना दावा करते हुए फिलीपींस के तटीय क्षेत्र तक अपना अधिकार जमा लिया और उस क्षेत्र में कृत्रिम द्वीप बनाकर उनका सैन्यीकरण कर दिया। चीन का यह कदम संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के निर्णय के विरुद्ध है। चीन द्वारा कल्पित ‘नाइन डेश लाइन’ Exclusive Economic Zone (EEZ) अर्थात् विशेष आर्थिक क्षेत्र के सिद्धांत का भी उल्लंघन करती है।

विशेष आर्थिक क्षेत्र

(Exclusive Economic Zone-EEZ)

  1. यह विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के बीच एक समझौता है। संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा वर्ष 1976 में इसे समुद्री कानून के रूप में मान्यता दी गई।
  2. इसके अनुसार किसी देश, द्वीप के समुद्र तट से सटे समीपवर्ती क्षेत्र तथा उससे भी थोड़ा आगे खुला समुद्री क्षेत्र विशेष आर्थिक क्षेत्र कहलाता है। यह आधार रेखा से अधिकतम 200 नॉटिकल मील तक विस्तृत हो सकता है।

वे गतिविधियाँ जो EEZ में करने की अनुमति है-

(क) कृत्रिम द्वीपों, प्रतिष्ठानों, संरचनाओं का निर्माण एवं उपयोग।
(ख) समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान।
(ग) समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण।

चुनौतियाँ-

  • चीन ने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है। चीन के इस अनुत्तरदायी कार्य और उत्तर कोरिया की आक्रामक नीतियों ने इस क्षेत्र में अमेरिका आदि महाशक्तियों की उपस्थिति और हस्तक्षेप बढ़ाया है।
  • दक्षिण चीन सागर का अनिश्चित भौगोलिक विस्तार, संयुक्त राष्ट्र के निर्णयों पर असहमति, संयम का अभाव, अपरिभाषित आचार संहिता, कानूनी अस्पष्टता ने इस समस्या को बढ़ाया है।

उपलब्धियाँ:

  • दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) Association of Southeast Asian Nation (ASEAN) के सदस्यों एवं चीन ने दक्षिणी चीन सागर तथा अन्य क्षेत्रीय विवादों के समाधान पर चर्चा की, अंतत: ‘पार्टियों के आचरण पर एक गैर-बाध्यकारी घोषणा’ (Non-binding Declaration on the conduct of Parties) पर 2002 में सहमति बनी।
  • 2002-Doc को लागू करने के लिये दिशा-निर्देशों का पहला प्रारूप तैयार किया गया, तथापि यह 2011 तक नहीं अपनाया जा सका।
  • 2017-आसियान एवं चीन ने आचार संहिता के निर्माण के लिये एक अत्यंत ही साधारण प्रारूप अपनाया है।
  • दक्षिणी चीन सागर-पार्टियों के आचरण पर घोषणा
  • आसियान एवं चीन ने दक्षिणी चीन सागर में शांति, स्थिरता, आर्थिक विकास आदि पक्षों पर सहमति प्रदान की है और नौवहन आदि की स्वतंत्रता हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की है जिसमें ‘यूएन कन्वेंशन ऑन द सी ऑफ सी’ भी शामिल है।

सुझाव:

  1. नई मध्यस्थता प्रणाली और बाध्यकारी अनुपालन तंत्र अपनाए जाने की आवश्यकता है ताकि सैन्य विवाद, सीमा विवाद को संयुक्त विकास में बदला जा सके।
  2. ‘संयुक्त विकास क्षेत्र’ की अवधारणा को अपनाना, जो कि संयुक्त रूप से लाभदायक आर्थिक गतिविधियों, पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन और समुद्री डकैती को नियंत्रित करने में सहायक हो सके।
  3. अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार शांतिपूर्ण ढंग से समाधान।

दक्षिणी चीन सागर के संदर्भ में भारत का दृष्टिकोण

  • भारत ने एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिये एक संयुक्त रणनीति को अपनाते हुए UNCLOSE के अनुसार दक्षिणी चीन सागर में नौवहन की स्वतंत्रता और विवाद निवारण के लिये अमेरिका से वार्ता की। लेकिन 2016 में फैसला फिलीपींस के पक्ष में आया, उसके बाद भारत इस समस्या से अलग हो गया। भारत-रूस संबंधों में हाल ही में देखी गई मज़बूती और विकास को देखकर ऐसा लगता है कि भारत एक बार फिर दक्षिणी चीन सागर में अपनी रणनीतिक उपस्थिति बनाना चाहता है लेकिन वास्तव में ऐसा है, नहीं।
  • वस्तुत: भारत इस क्षेत्र में समुद्री क्षेत्रीय विवादों में हित देखने वाला पक्षकार या पार्टी नहीं है।
  • दूसरा, भारत-चीन के बीच ‘वुहान-सहमति’ पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इसके अनुसार दोनों देश अपने आस-पास के जलीय क्षेत्रों में एक-दूसरे के कूटनीतिक प्रभाव में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। यही कारण है कि भारत अब इस मुद्दे में सक्रिय रुचि नहीं ले रहा है।

संभावित समाधान:

  1. नाटो अथवा यूरोपीय संघ जैसा कोई व्यापक संगठन बनाया जाना चाहिये और चीन को भी उसका सदस्य बनाया जाए। यह संगठन एशियाई देशों की शिकायतों, विवादों का निवारण करने का कार्य करे।
  2. युद्ध, आक्रमण आदि दोनों पक्षों के लिये हानिकारक होता है। अत: शांतिपूर्ण द्विपक्षीय, बहुपक्षीय वार्ता और कूटनीतिक उपायों द्वारा समाधान खोजा जाना चाहिये।