पुलिस सुधार | 14 Sep 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कॉमन कॉज़ (Common Cause) एवं सेंटर फॉर द स्टडी डेवलपिंग सोसाइटीज़ ने “भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019: पुलिस की पर्याप्तता और कार्य करने की स्थिति” (Status of Policing in India Report- SPIR 2019) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

क्या है पुलिस व्यवस्था?

  • पुलिस बल, राज्य द्वारा अधिकार प्रदत्त व्यक्तियों का एक निकाय है, जो राज्य द्वारा निर्मित कानूनों को लागू करने, संपत्ति की रक्षा और नागरिक अव्यवस्था को सीमित रखने का कार्य करता है।
  • पुलिस को प्रदान की गई शक्तियों में बल का वैध उपयोग करना भी शामिल है।

पुलिस सुधार की आवश्यकता क्यों?

  • देश में अधिकांशतः राज्यों में पुलिस की छवि तानाशाहीपूर्ण, जनता के साथ मित्रवत न होना और अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने की रही है।
  • रोज़ ऐसे अनेक किस्से सुनने-पढने और देखने को मिलते हैं, जिनमें पुलिस द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया जाता है। पुलिस का नाम लेते ही प्रताड़ना, क्रूरता, अमानवीय व्यवहार, रौब, उगाही, रिश्वत आदि जैसे शब्द दिमाग में कौंध जाते हैं।
  • जिस पुलिस को आम आदमी का दोस्त होना चाहिये, वही आम आदमी पुलिस का नाम सुनते ही सिहर जाता है और यथासंभव पुलिस के चक्कर में न पड़ने का प्रयास करता है। इसीलिये शायद भारतीय समाज में यह कहावत प्रचलित है कि पुलिस वालों की न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी।

पुलिस सुधारों के लिये विभिन्न आयोग तथा समितियाँ

धर्मवीर आयोग (राष्ट्रीय पुलिस आयोग) (Dharmveer/National Police Committee)

पुलिस सुधारों को लेकर 1977 में धर्मवीर की अध्यक्षता में गठित इस आयोग को राष्ट्रीय पुलिस आयोग कहा जाता है। चार वर्षों में इस आयोग ने केंद्र सरकार को आठ रिपोर्टें सौंपी थीं, लेकिन इसकी सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया।

इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें :

  • हर राज्य में एक प्रदेश सुरक्षा आयोग का गठन किया जाए।
  • जाँच कार्यों को शांति व्यवस्था संबंधी कामकाज से अलग किया जाए।
  • पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के लिये एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाए।
  • पुलिस प्रमुख का कार्यकाल तय किया जाए।
  • एक नया पुलिस अधिनियम बनाया जाए।

पुलिस सुधारों के लिये गठित अन्य समितियाँ :

  • 1997 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्त ने देश के सभी राज्यों के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को पत्र लिखकर पुलिस व्यवस्था में सुधार किये की कुछ सिफारिशें की थी।
  • इसके बाद 1998 में महाराष्ट्र के पुलिस अधिकारी जे.एफ. रिबैरो की अध्यक्षता में एक अन्य समिति का गठन किया गया।
  • वर्ष 2000 में गठित पद्मनाभैया समिति ने भी केंद्र सरकार को सुधारों से संबंधित सिफारिशें सौंपी थीं।
  • देश में आपातकाल के दौरान हुई ज़्यादतियों की जाँच के लिये गठित शाह आयोग ने भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिये पुलिस को राजनैतिक प्रभाव से मुक्त करने की बात कही थी
  • इसके अलावा राज्य स्तर पर गठित कई पुलिस आयोगों ने भी पुलिस को बाहरी दबावों से बचाने की सिफारिशें की थीं।
  • इन समितियों ने राज्यों में पुलिस बल की संख्या बढ़ाने और महिला कांस्टेबलों की भर्ती करने की भी सिफारिश की थी।

लेकिन नतीजा जस-का-तस रहा, अर्थात् किसी भी आयोग की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

मॉडल पुलिस एक्ट, 2006 (Model Police Act, 2006)

  • सोली सोराबजी समिति ने वर्ष 2006 में मॉडल पुलिस अधिनियम का प्रारूप तैयार किया था, लेकिन केंद्र या राज्य सरकारों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
  • विदित हो कि गृह मंत्रालय ने 20 सितंबर, 2005 को विधि विशेषज्ञ सोली सोराबजी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने 30 अक्तूबर 2006 को मॉडल पुलिस एक्ट, 2006 का प्रारूप केंद्र सरकार को सौंपा।

सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख गाइडलाइंस

  • स्टेट सिक्योरिटी कमीशन का गठन किया जाए, ताकि पुलिस बिना दवाब के काम कर सके।
  • पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी बनाई जाए, जो पुलिस के खिलाफ आने वाली गंभीर शिकायतों की जाँच कर सके।
  • थाना प्रभारी से लेकर पुलिस प्रमुख तक की एक स्थान पर कार्यावधि 2 वर्ष सुनिश्चित की जाए।
  • नया पुलिस अधिनियम लागू किया जाए।
  • अपराध की विवेचना और कानून व्यवस्था के लिये अलग-अलग पुलिस की व्यवस्था की जाए।

पुलिस विभागों की समस्याएँ

देश में विभिन्न राज्यों के पुलिस विभागों में संख्या बल की भारी कमी है और औसतन 732 व्यक्तियों पर एक पुलिस कर्मी की व्यवस्था है, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने हर 450 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी की सिफारिश की है। वर्तमान में कार्य निर्वहन के दौरान पुलिस के सामने अनेक समस्याएँ आती हैं, जो निम्नानुसार हैं-

  • पुलिस बल के काम करने की परिस्थितियाँ
  • पुलिसकर्मियों की मानसिक स्थिति
  • पुलिसकर्मियों पर काम का अतिरिक्त दबाव
  • पुलिस की नौकरी से जुड़े अन्य मानवीय पक्ष
  • पुलिस पर पड़ने वाला राजनीतिक दबाव

पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिये अम्‍ब्रेला योजना (Umbrella Scheme)

पुलिस के महत्त्व को मद्देनज़र रखते हुए केंद्र सरकार ने ‘पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की वृहद् अम्ब्रेला योजना’ को 2017-18 से 2019-20 के लिये स्वीकृत किया है। इस योजना के लिये तीन वर्ष की अवधि हेतु 25,060 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है, जिसमें से 18636 करोड़ रुपए केंद्र सरकार तथा 6424 करोड़ रुपए राज्‍यों द्वारा दिये जाएंगे।

आगे की राह

  • पुलिस व्यवस्था को आज नई दिशा, नई सोच और नए आयाम की आवश्यकता है। समय की मांग है कि पुलिस नागरिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के प्रति जागरूक हो और समाज के सताए हुए तथा वंचित वर्ग के लोगों के प्रति संवेदनशील बने।
  • हमें यह समझना होगा कि पुलिस सामाजिक रूप से नागरिकों की मित्र है और बिना उनके सहयोग से कानून व्यवस्था का पालन नहीं किया जा सकता।