संसदीय समितियाँ | 22 Jun 2019

मॉटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के आधार पर 1921 से संसदीय समितियाँ अस्तित्व में आई थीं, जिन्हें निरंतर व्यापक रूप से प्रतिष्ठापित किया जाता रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-105 में भी इन समितियों का ज़िक्र मिलता है।

अपनी प्रकृति के आधार पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं-

1. स्थायी समिति: ये स्थायी एवं नियमित समिति होती है, जिसका गठन संसद के अधिनियम के उपबंधों अथवा लोकसभा के कार्य-संचालन नियम के अनुसरण में किया जाता है। इनका कार्य अनवरत प्रकृति का होता है। इसमें निम्नलिखित समितियाँ शामिल हैं-

  • लोक लेखा समिति
  • प्राक्कलन समिति
  • सार्वजनिक उपक्रम समिति
  • एस.सी. व एस.टी. समुदाय के कल्याण संबंधी समिति
  • कार्यमंत्रणा समिति
  • विशेषाधिकार समिति
  • विभागीय समिति

2. अस्थायी या तदर्थ समिति: प्रयोजन विशेष के लिये तदर्थ समिति का निर्माण किया जाता है और कार्य पूरा होने के पश्चात् इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यह भी दो प्रकार की होती हैं-

  • जाँच समितियाँ: किसी तात्कालिक घटना की जाँच के लिये।
  • सलाहकार समितियाँ: किसी विधेयक इत्यादि पर विचार करने के लिये।
  • विभागीय स्थायी समितियाँ: ऐसी समितियों की कुल संख्या 24 है। प्रत्येक विभागीय समिति में अधिकतम 31 सदस्य होते हैं, जिसमें से 21 सदस्यों का मनोनयन स्पीकर द्वारा एवं 10 सदस्यों का मनोनयन राज्यसभा के सभापति द्वारा किया जा सकता है।
  • कुल 24 समितियों में से 16 लोकसभा के अंतर्गत व 8 समितियाँ राज्यसभा के अंतर्गत कार्य करती हैं।
  • इन समितियों का मुख्य कार्य अनुदान संबंधी मांगों की जाँच करना एवं उन मांगों के संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंपना होता है।