भारत की शरणार्थी नीति | 06 Feb 2019

चर्चा में क्यों?

  • ‘ब्राह्मदाग बुगती’ बलूच राष्ट्रवादी नेता अकबर बुगती (जिसे अगस्त 2006 में पाकिस्तानी सेना द्वारा मार दिया गया था) के पौत्र हैं। साथ ही वे बलूच रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष और संस्थापक भी हैं।
  • वे 2006 में पाकिस्तान से अफगानिस्तान पलायन कर गए थे और 2010 में स्विट्जरलैंड गए, जहाँ स्विस प्राधिकरण द्वारा उनके राजनैतिक शरण (आश्रय अथवा asylum) के आवेदन को 2016 में खारिज कर दिया गया है। उन्होंने भारत में राजनैतिक शरण (भारतीय राष्ट्रीयता) के लिये आवेदन किया है, यदि उन्हें भारत में राजनीतिक शरण या राष्ट्रीयता प्राप्त होती है तो उनके लिये यात्रा करने के लिये दस्तावेज़ पाना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान के मुद्दे के लिये समर्थन हासिल करना संभव हो सकेगा।
  • यदि सरकार का निर्णय उनके पक्ष में आता है तो बुगती को एक दीर्घकालीन वीज़ा प्रदान किया जा सकता है, जिसका हर वर्ष पुनर्नवीकरण करवाना होगा। बुगती के संबंध में समस्या इतनी जटिल हो गई है कि गृह मंत्रालय के अधिकारी इसकी प्रक्रिया के निरीक्षण के लिये 1959 ई. के अभिलेखों को खँगाल रहे हैं।

राजनैतिक शरणार्थी और शरणार्थी में अंतर

  • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR), राजनैतिक शरण मांगने वाले (आश्रय याचक) को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो एक शरणार्थी के रूप में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की मांग करता है, लेकिन आवेदन के समय के निरपेक्ष उनकी शरणार्थी के रूप में स्थिति अभी निश्चित नहीं की गई है।
  • कोई व्यक्ति इस आधार पर राजनैतिक शरण के लिये आवेदन कर सकता है कि यदि वह अपने मूल देश में लौटता/लौटती है तो नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनैतिक धारणा या किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता के कारण उसे अपने उत्पीड़न की आशंका है।
  • निम्नलिखित के अंतर्गत मान्यता प्राप्त व्यक्ति शरणार्थी हैः

♦ शरणार्थी के दर्जे से संबंधित यूनाइटेड नेशंस 1951 सम्मेलन
♦ 1967 प्रोटोकॉल (Relating to the status of refugees)
♦ अफ्रीका में शरणार्थी समस्याओं के विशेष पहलुओं का प्रबंधन करने के लिये 1969 में बनी अफ्रीकी एकता संस्था
♦ यूएनएचसीआर के विधान के अनुसार मान्यता प्राप्त लोग
♦ पूरक सुरक्षा अथवा अस्थायी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति
♦ 2007 से शरणार्थी आबादी में वे लोग भी जोड़े गए हैं, जो ‘शरणार्थियों जैसी स्थिति’ में रह रहे हैं।

क्या भारत में आश्रय याचकों और शरणार्थियों के लिये एकसमान कानून है?

  • हालाँकि भारत में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सबसे अधिक शरणार्थी आबादी है लेकिन यहाँ अभी तक आश्रय याचकों के लिये एक समान कानून नहीं बनाया जा सका है। भारत ने 1951 के शरणार्थी दर्ज़े के संबंध में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन समझौते पर या ‘मेजबान राज्य’ द्वारा आवश्यक रूप से शरणार्थियों को अधिकार और सेवाएँ देने से संबंधित प्रोटोकॉल पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
  • अधिकारियों द्वारा विभिन्न कानूनों, जैसे–पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920; विदेशी कानून, 1946 इत्यादि को ध्यान में रखकर शरणार्थियों और आश्रय याचकों के प्रवेश के संबंध में विचार किया जाता है।
  • ये कानून शरणार्थियों को अन्य विदेशियों के समतुल्य मानते हैं और इस बात का विचार नहीं करते कि मानवीय आधार पर उन्हें विशेष दर्जा मिलना चाहिये। दिसंबर 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आश्रय विधेयक, 2015 पेश किया जो भारत के शरणार्थियों को संगठित और सुव्यवस्थित करने के लिये कानूनी ढाँचे की स्थापना करेगा; यह विधेयक अभी विचाराधीन है।

इस संधि को स्वीकृत करने के भारत के लिये क्या अर्थ होंगे?

  • यह किसी भी शरणार्थी को उसकी इच्छा के बिना उसके देश वापस न भेजने के लिये कानून द्वारा बाध्य हो जाएगा। इसे ‘अवापसी नियम’ कहते हैं, जिसका अर्थ है–किसी को बलपूर्वक उसके देश वापस न भेजना।
  • पर भारत वैसे भी इस नियम से बँधा हुआ है क्योंकि यह 1984 के यंत्रणा विरोधी संधि में सम्मिलित है, जिसका भारत भी एक हस्ताक्षरकर्ता है।

अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के शरणार्थियों को मिलने वाली राहत

  • हाल ही में सरकार ने भारत में दीर्घकालीन वीजा पर रह रहे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के अल्पसंख्यकों के द्वारा सामना की जा रही समस्याओं को कम करने के लिये कई सुविधाओं को स्वीकृति प्रदान की।
  • उन्हें बैंक खाता खोलने, अपने व्यवसाय के लिये संपत्ति खरीदने, सेवा-रोज़गार हेतु उपयुक्त स्थान खरीदने, स्वरोज़गार करने, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड और आधार कार्ड प्राप्त करने की अनुमति दी गई है।

आगे का रास्ता


इन कानूनी मसलों को सुलझाने के लिये सबसे व्यावहारिक तरीका, सभी शरणार्थी समुदायों के लिये एकसमान आश्रय कानून को अपनाना होगा।

यह आश्रय के संबंध में भारत की सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणाली को संहिताबद्ध करने में मदद करेगा और हर बार शरणार्थी सुरक्षा का प्रश्न उठने पर ऐतिहासिक नीतियों को फिर से देखने की आवश्यकता को खत्म करेगा।

एक राष्ट्रीय शरणार्थी नियम, समानांतर प्रणालियों की जरूरत को भी कम करेगा और भविष्य में आश्रय प्रबंधन के लिये एक सुव्यवस्थित तंत्र की स्थापना भी करेगा।