धन विधेयक (अनुच्छेद-110) | 27 Aug 2020

संसद में प्रस्तुत होने वाले विधेयकों की चार श्रेणियों में से एक धन विधेयक है। 

संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा दी गई है। 

कोई विधेयक धन विधेयक माना जाएगा यदि वह: 

  • किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन अथवा विनियमन करता हो।
  • केंद्र सरकार द्वारा उधार लिये गए धन के विनियमन से संबंधित हो।
  • भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, या ऐसी किसी निधि में धन जमा करने या उसमें से धन निकालने संबंधित हो।
  • भारत सरकार की संचित निधि से या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा करता हो।
  • भारत सरकार की संचित निधि से धन का विनियोग करता हो।
  • भारत की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि करता हो।
  • भारत की संचित निधि या लोक लेखे में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे व्यय या इनका केंद्र या राज्य की निधियों का लेखा परिक्षण करता हो।
  • उपरोक्त विषयों का आनुषंगिक कोई विषय हो।

कोई विधेयक धन विधेयक नहीं माना जाएगा यदि वह:

  • जुर्माने या अन्य धन संबंधी शास्तियों के अधीन अधिरोपण करता हो।
  • किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिवर्तन या विनियमन, परिहार का उपबंध करता है। 
  • अनुज्ञप्तियों के लिये या की गई सेवाओं के लिये शुल्कों की मांग करता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • किसी विधेयक के बारे में विवाद उठने पर कि वह धन विधेयक है अथवा नहीं, लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। 
  • किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में अध्यक्ष द्वारा प्रमाण पत्र दिये जाने के बाद उसकी प्रकृति के प्रश्न पर न्यायालय में अथवा किसी सदन में अथवा राष्ट्रपति द्वारा विचार नहीं किया जा सकता।
  • धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • धन विधेयक को सरकारी विधेयक माना जाता है तथा इसे केवल मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

धन विधेयक पारित करने की प्रक्रिया:

  • संविधान में (अनुच्छेद-110) संसद द्वारा धन विधेयक को पारित करने के संबंध में एक विशेष प्रक्रिया निहित है तथा उसे पारित करने के लिये अनुच्छेद 109 के तहत विशेष प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है।
  • लोकसभा में पारित होने के उपरांत उसे राज्यसभा के विचारार्थ भेजा जाता है।
    • 14 दिनों के अंदर उसे स्वीकृति देनी होती है अन्यथा इसे राज्यसभा द्वारा पारित माना जाता है।
  • लोकसभा के लिये यह आवश्यक नहीं कि वह राज्यसभा की सिफारिशों को माने।
  • यदि लोकसभा किसी प्रकार की सिफारिश को मान लेती है तो फिर इस विधेयक को सदनों द्वारा संयुक्त रूप से पारित माना जाता है।
    • यदि लोकसभा कोई सिफारिश नहीं मानती है तो इसे मूल रूप से दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है।

धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा के पास शक्तियाँ:

  • धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा की शक्तियाँ सीमित हैं।
    • राज्यसभा के पास इसके संबंध में प्रतिबंधित शक्तियाँ हैं।
  • यह धन विधेयक को अस्वीकृत या संशोधित नहीं कर सकती है
    • राज्यसभा केवल  सिफारिश कर सकती है।

धन विधेयक के संबंध में राष्ट्रपति की भूमिका:

  • इसे केवल राष्ट्रपति की सिफारिश के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • दोनों सदनों द्वारा पारित होने क बाद धन विधेयक को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो या तो वह इस पर अपनी सहमति देता है या फिर इसे रोक कर रख सकता है।
    • राष्ट्रपति इसे किसी भी दशा में सदन को पुनः विचार के लिये नहीं भेज सकता।