मृदा परिच्छेदिका | 13 Nov 2020

मृदा की ऊपरी सतह से आधारभूत चट्टान तक के ऊर्ध्वाधर काट को ‘मृदा परिच्छेदिका’ (Soil Profile) तथा मृदा की क्षैतिज परतों को ‘मृदा संस्तर’ कहते हैं।

Soil-profile

प्रमुख बिंदु:

  • संस्तर की भौतिक और रासायनिक विशेषताओं के आधार पर ही मृदा की पहचान की जाती है, जैसे मृदा के सबसे ऊपरी जैविक परत को ‘O संस्तर’ कहते हैं।
    • इन जैविक संस्तरों का निर्माण पौधों एवं जंतुओं से प्राप्त जैविक पदार्थों के संचयन से होता है।
  • ‘O संस्तर’ के नीचे ‘A संस्तर‘ पाया जाता है। इसको कई उपभागों में विभाजित किया जाता है। ‘A संस्तर’ की जिस परत में ह्यूमस की मात्र अधिक होती है, उसे ‘A1- उपसंस्तर’ कहते हैं, जिसका रंग गाढ़ा होने के साथ, पोषक तत्त्वों की अधिकता के कारण कृषि की दृष्टि से अधिक उपयोगी होता है।
  • ‘A- संस्तर’ के ‘A2- उपसंस्तर’ में अपवाहन की दर अधिक होने के कारण पोषक तत्त्वों का अभाव होता है, जिसके कारण  ‘A2- उपसंस्तर’ का रंग हल्का होता है। अतः इसे ‘अपवाहन क्षेत्र’ (Zone of Illuviation) भी कहते है।
  • A3, B1 तथा B3- उपसंस्तरों को ‘संक्रमण संस्तर’ कहते हैं, क्योंकि यहाँ एक साथ दो संस्तरों की विशेषताएँ देखने को मिलती हैं।
  • मृदा की सबसे निचली परत को ‘C-संस्तर‘ कहते हैं, जहाँ मृदा निर्माणकारी प्रक्रिया का आंशिक प्रभाव होने के कारण मृदा का पूर्णतः विकास नहीं हो पाता है, लेकिन कालांतर में ‘C-संस्तर‘, ‘B संस्तर’ में परिवर्तित हो जाता है।
  • इसी प्रकार अन्य संस्तरों के परिवर्तन से ही मृदा की मोटाई में वृद्धि होती जाती है।

मृदा का वर्गीकरण:

  • क्षेत्रीय अथवा मंडलीय मृदा-
    • इस प्रकार की मृदा उचित जल निकास वाले मूल स्थान पर विकसित एवं वातावरण के साथ साम्यावस्था में होती है।
  • अंतः क्षेत्रीय अथवा अंतः प्रादेशिक मृदा-
    • इस प्रकार की मृदा विभिन्न प्रदेशों में बखरी हुई होती है। इस मृदा में जल प्रवाह की व्यवस्था नहीं होती है, जिस कारण से जलाक्रांति की स्थिति बनी रहती है।
  • अक्षेत्रीय मृदा-
    • इस प्रकार की मृदा का संबंध स्थानीयता से नहीं होता बल्कि अपरदन के कारकों द्वारा परिवहित कर लाई जाती है।
    • इसमें मृदा संस्तरों का पूर्ण विकास नहीं होता है।